किसी भी ब्लॉग में किसी की बेवजह आलोचना या निंदा नहीं की जानी चाहिए, ऐसा मेरा मानना है !पर कभी-कभी कुछ ख़ास लोगों द्वारा अपनाई गई तिकड़म, हथकंडा या कूटनीतिक चाल का, जो भविष्य में देश व समाज को प्रभावित कर सकती हो, जिक्र भी इस व्यक्तिगत डायरी में होना लाजिमी है, ताकि सनद रहे ...............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
मानव स्वभाव है कि वह यादों के सहारे भूतकाल में विचरण करता है या फिर तरह-तरह की आशंकाओं से भयभीत भविष्य को जानने की जुगत लगाता रहता है। फिर उसी जुगत में अपनी बुद्धिनुसार तरह-तरह की तिकड़मों को अंजाम दे कभी लोगों के सामने अपनी कुटिलता जाहिर करवा देता है या फिर हास्य का पात्र बन जाता है ! तेहरवीं शताब्दी में तुर्की में जन्में मुल्ला नसरुद्दीन ने अपने अनोखे अंदाज में ऐसे लोगों का मजाक बना अवाम को नसीहत देने की कोशिश की थी।
मुल्ला नसरुद्दीन अक्सर शहर में फटे-पुराने, जीर्ण-शीर्ण कपडे पहन घूमा करता था। उसके इस रंग-ढंग पर लोग उसका मजाक बनाते, उसकी कंजूसी का उपहास करते उस पर फब्तियां कसते रहते थे ! कुछ को समझ ही नहीं आता था कि माली हालत खराब ना होने के बावजूद वह ऐसे क्यों रहता है ! उसके खानदान को जानने वाले कुछ लोग पुराने दिनों को याद कर उस पर तरस भी खाते थे ! पर इस सब का मुल्ला पर कोई असर नहीं होता था। वह अपनी ही धुन में रमा रहता था। अपनी हरकतों से सबक वह दूसरों को देता था पर लोग समझते थे कि नसीहत उसको मिल रही है !
एक दिन मुल्ला को उसके गधे ने दुलत्ती मार छत से गिरा दिया ! मुल्ला उसी के बारे में सोचता सड़क पर निकल आया कि कभी किसी गधे को ऊँचे मकाम पर नहीं ले जाना चाहिए ! ऐसा करने पर वह उसी जगह को बर्बाद करता है ! ले जाने वाले को भी लतिया कर गिरा देता है और सबसे बड़ी बात खुद भी सर के बल नीचे आ गिरता है। इसलिए दान, ज्ञान और सम्मान सुयोग्य पात्र को ही देना चाहिए ! वह इस इस नतीजे पर पहुंचा ही था कि उसको एक वृद्ध सज्जन ने आवाज दे रोक लिया। वह बुजुर्गवार काफी दिनों से मुल्ला के प्रति लोगों के व्यवहार और उसकी जबरदस्ती ओढ़ी हुई दयनीय अवस्था को देख व्यथित था ! वह हमदर्द, बुजुर्ग इंसान मुल्ला के खानदान से भी अच्छी तरह वाकिफ था। इसीलिए आज सड़क पर बेवजह बड़बड़ाते, मलिन कपड़ों में बावले से घूमते मुल्ला को देख उससे रहा नहीं गया। सो उसने आवाज लगा मुल्ला को रोका और उसे समझाने के लिहाज से पूछा कि क्यों तुमने ऐसी हालत बना रखी है ! क्या तुम नहीं जानते कि इस शहर में तुम्हारे खानदान का कैसा रुतबा था ! लोग तुम्हारे पूर्वजों की कितनी इज्जत करते थे ! उनकी हैसियत की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी ! उनके पास बेहतरीन और बेशकीमती पोशाकें थीं ! वे जब उन्हें पहन कर निकलते थे तो अनजाने लोग भी उन्हें दूर से ही पहचान जाते थे।
मुल्ला ने ध्यान से बुजुर्ग की बातें सुनीं और शान्ति से जवाब दिया, चचाजान आप बिल्कुल सही फरमा रहे हैं, उसी का ख्याल रख मैं अपने दादाजी के बेहतरीन कपडे पहन घूमता रहता हूँ; ताकि हमारे खानदान का नाम सदा रौशन रहे ! इसीलिए तो मैंने यह जुगत अपनाई है ! यह सुन बुजुर्गवार अपनी राह लगे और मुल्ला इस नतीजे पर पहुंचते हुए अपनी कि दुनिया में पहचान बनाने के लिए सूरत-शक्ल, नाम या पहरावा काम नहीं आता ! काम आती है लियाकत !
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मानव स्वभाव है कि वह यादों के सहारे भूतकाल में विचरण करता है या फिर तरह-तरह की आशंकाओं से भयभीत भविष्य को जानने की जुगत लगाता रहता है। फिर उसी जुगत में अपनी बुद्धिनुसार तरह-तरह की तिकड़मों को अंजाम दे कभी लोगों के सामने अपनी कुटिलता जाहिर करवा देता है या फिर हास्य का पात्र बन जाता है ! तेहरवीं शताब्दी में तुर्की में जन्में मुल्ला नसरुद्दीन ने अपने अनोखे अंदाज में ऐसे लोगों का मजाक बना अवाम को नसीहत देने की कोशिश की थी।
मुल्ला नसरुद्दीन अक्सर शहर में फटे-पुराने, जीर्ण-शीर्ण कपडे पहन घूमा करता था। उसके इस रंग-ढंग पर लोग उसका मजाक बनाते, उसकी कंजूसी का उपहास करते उस पर फब्तियां कसते रहते थे ! कुछ को समझ ही नहीं आता था कि माली हालत खराब ना होने के बावजूद वह ऐसे क्यों रहता है ! उसके खानदान को जानने वाले कुछ लोग पुराने दिनों को याद कर उस पर तरस भी खाते थे ! पर इस सब का मुल्ला पर कोई असर नहीं होता था। वह अपनी ही धुन में रमा रहता था। अपनी हरकतों से सबक वह दूसरों को देता था पर लोग समझते थे कि नसीहत उसको मिल रही है !
एक दिन मुल्ला को उसके गधे ने दुलत्ती मार छत से गिरा दिया ! मुल्ला उसी के बारे में सोचता सड़क पर निकल आया कि कभी किसी गधे को ऊँचे मकाम पर नहीं ले जाना चाहिए ! ऐसा करने पर वह उसी जगह को बर्बाद करता है ! ले जाने वाले को भी लतिया कर गिरा देता है और सबसे बड़ी बात खुद भी सर के बल नीचे आ गिरता है। इसलिए दान, ज्ञान और सम्मान सुयोग्य पात्र को ही देना चाहिए ! वह इस इस नतीजे पर पहुंचा ही था कि उसको एक वृद्ध सज्जन ने आवाज दे रोक लिया। वह बुजुर्गवार काफी दिनों से मुल्ला के प्रति लोगों के व्यवहार और उसकी जबरदस्ती ओढ़ी हुई दयनीय अवस्था को देख व्यथित था ! वह हमदर्द, बुजुर्ग इंसान मुल्ला के खानदान से भी अच्छी तरह वाकिफ था। इसीलिए आज सड़क पर बेवजह बड़बड़ाते, मलिन कपड़ों में बावले से घूमते मुल्ला को देख उससे रहा नहीं गया। सो उसने आवाज लगा मुल्ला को रोका और उसे समझाने के लिहाज से पूछा कि क्यों तुमने ऐसी हालत बना रखी है ! क्या तुम नहीं जानते कि इस शहर में तुम्हारे खानदान का कैसा रुतबा था ! लोग तुम्हारे पूर्वजों की कितनी इज्जत करते थे ! उनकी हैसियत की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी ! उनके पास बेहतरीन और बेशकीमती पोशाकें थीं ! वे जब उन्हें पहन कर निकलते थे तो अनजाने लोग भी उन्हें दूर से ही पहचान जाते थे।
मुल्ला ने ध्यान से बुजुर्ग की बातें सुनीं और शान्ति से जवाब दिया, चचाजान आप बिल्कुल सही फरमा रहे हैं, उसी का ख्याल रख मैं अपने दादाजी के बेहतरीन कपडे पहन घूमता रहता हूँ; ताकि हमारे खानदान का नाम सदा रौशन रहे ! इसीलिए तो मैंने यह जुगत अपनाई है ! यह सुन बुजुर्गवार अपनी राह लगे और मुल्ला इस नतीजे पर पहुंचते हुए अपनी कि दुनिया में पहचान बनाने के लिए सूरत-शक्ल, नाम या पहरावा काम नहीं आता ! काम आती है लियाकत !