सोमवार, 13 नवंबर 2023

इक झप्पी जादू वाली

भले ही झप्पी किसी फिल्म से मशहूर हुई हो पर इसका अस्तित्व सनातन है ! चाहे नृसिंह रूप में भगवान ने प्रह्लाद को गले लगा अभय दिया हो, चाहे श्रीराम ने हनुमान जी को गले लगा उन्हें आश्वस्त किया हो, चाहे प्रभु ने विभीषण का आलिंगन कर उसे भय मुक्त किया हो ! चाहे श्रीकृष्ण ने सुदामा को गले लगा उसको गरीबी के तनाव से मुक्त किया हो ! अब तो वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं कि यदि आप पेड़-पौधों, लता-गुल्मों के पास जा उनसे ''बात-चीत'' करते हैं, उन्हें सहलाते हैं, उनका आलिंगन करते हैं तो उनका विकास  अन्य पौधों से बेहतर होता है ! जानवर तो सदा से ही प्यार भरे, स्नेहिल स्पर्श को खूब समझते रहे हैं ! पर एक बात का ख्याल जरूर रखें किसी को जबरदस्ती यह उपचार देने की कोशिश ना करें ! कहीं ऐसा ना हो कि आपकी इस कोशिश के बाद आपको ''किसी उपचार'' की जरुरत पड़ जाए.....................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

याद है मुन्ना भाई एमबीबीएस फिल्म का वह दृश्य जिसमें अस्पताल का एक कर्मचारी फर्श साफ कर रहा होता है और लोगों के बार-बार आने-जाने से सफाई बरकरार नहीं रह पा रही होती, जिससे वह गुस्से से भुनभनाता है, तो मुन्ना भाई बने संजय दत्त उसके पास जा उसको गले लगा कर उसके काम की तारीफ करते हैं तो वह बिलकुल शांत हो प्यार से कहता है, अब रुलाएगा क्या ! जा काम करने दे....... ! यह बदलाव आता है, उस एक प्यार भरे स्नेहालिंगन से, जो पल भर में सारे तनाव को खत्म कर रख देता है ! फिल्म में इसे जादू की झप्पी कहा गया है ! झप्पी पंजाबी से हिन्दी में आया शब्द है जिसका उर्दू-पंजाबी रूप है जफ्फी ।

क्या किसी को गले लगाने से सचमुच कोई फर्क पड़ता है ? क्या किसी का गुस्सा एक झप्पी से गायब हो सकता है ? क्या बिलकुल हताश-निराश व्यक्ति को आशा का संबल मिल सकता है ? इन सब का उत्तर हाँ में है ! और सिर्फ मनुष्यों पर ही नहीं, पशु-पक्षियों और यहां तक की पेड़-पौधों पर भी इसका व्यापक असर पड़ता है ! कुछ तो है जो एक सरल से आलिंगन को जादुई बना कुछ अलग सा महसूस करवाने लगता है ! प्रयोगों से पता चला है कि गले लगाने से मिली स्पर्श की प्रक्रिया तनाव, अवसाद, चिंता, अकेलेपन जैसी स्थितियों को तिरोहित करने में सहायक होती है ! अब तो बाकायदा इसे एक चिकित्सा का रूप भी दे दिया गया है ! 

बहुगुणा जी जिन्होंने सिखाया पेड़ों को स्नेह देना, अपनी पत्नी के साथ  

कहा जाता है कि जैसे शरीर को चलाने और स्वस्थ रखने के लिए भोजन की जरुरत होती है वैसे ही मन को निरोग रखने के लिए प्रेम की आवश्यकता पड़ती है ! गले लगाना उसी प्रेम की एक स्वाभाविक व सरल क्रिया है ! इससे ऊर्जा का आदान-प्रदान होता है और भावनात्मक संबल की प्राप्ति होती है ! इसका सबसे सरल और सुगम उदाहरण साधारण परिस्थितियों में अपने घरों में ही हमें सुलभ है, किसी भी रोते हुए शिशु को उठा गले लगाते ही वह शांत हो जाता है, उसे एक सुरक्षा का एहसास होता है ! एक बच्चे के रूप में, जब हमें चोट लगती थी या दुखी होते थे, तो तुरंत अपनी माँ के गले लग राहत पाते थे ! युवावस्था में दोस्त-मित्र भी विपरीत परिस्थितियों इसी तरह राहत पहुंचाते हैं ! बुढ़ापे में किसी प्रियजन या मित्र का एक आलिंगन हमें संबल तो देता ही है हमारे मूड को भी अच्छा करने में सहायक होता था। दंपतियों का प्रेमालिंगन उनका आपसी प्रेम तो बढ़ाता ही है, रिश्तों को और मजबूत भी बना उनके कई मसले चुटकियों में हल कर देता है ! यह सब एक सरल से आलिंगन का ही कमाल है ! संसार भर में लोग एक-दूसरे से मिलते वक्त आपस में गले लगते हैं ! दुनिया भर में अपनों से, अपने प्रियजनों से मिलने पर की यह पहली प्रतिक्रिया होती है !  

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आपकी आँखें हमारे लिए अनमोल हैं 
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स्पर्श इस दुनिया में सबसे शक्तिशाली थेरेपी है और गले मिलना उसी का एक वृहद रूप है ! एक अच्छे आलिंगन से बेहतर प्यार और स्नेह का उदाहरण कुछ और नहीं है। इससे भावनात्मक शांति तो मिलती ही है साथ ही साथ स्वास्थय लाभ भी हो जाता है ! दक्षिण भारत के कोल्लम जिले में स्थित माता अमृतानंदमयी का आश्रम एक ऐसी जगह के रूप में विख्यात है जहां दक्षिण की अम्मा के नाम से मशहूर इस महिला साध्वी को लोग जादू की झप्पी देने वाली चमत्कारी संत के रूप में मानते और पूजते रहे हैं ! माता अमृतानंदमयी के भक्तों में आम व्यक्ति से लेकर देश के खास, महत्वपूर्ण लोग भी शामिल हैं, जो उनके सेवा कार्यों को लेकर प्रभावित रहे हैं ! इनके अनुयायियों का मानना है कि ''अम्मा'' के आलिंगन से आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है ! जो पिछले तीस वर्षों में करीब 300 करोड़ श्रद्धालुओं को आलिंगन कर उन्हें तनाव मुक्त कर चुकी हैं ! 

ममत्व 

अध्ययनों से पता चलता है कि आलिंगन तनाव दूर करने और अशांत मन को शांत करने के लिए उत्तम है। जब हम आलिंगन करते हैं, तो हमारे शरीर में उत्पन्न होने वाले तनाव हार्मोन कोर्टिसोल की मात्रा तुरंत कम हो जाती है। लंबे समय तक गले मिलने से सेरोटोनिन का स्तर बढ़ता है, मूड अच्छा होता है और खुशी पैदा होती है।आलिंगन का स्पर्श आत्मविश्वास की भावना पैदा करता है और अकेलेपन और चिंता की भावनाओं को कम करता है। गले लगने से दर्द से राहत मिलती है और रक्त संचार बेहतर होता है, जिससे शरीर का तनाव दूर हो जाता है।जिन्हें रात में नींद नहीं आती या कम आती है उन्हें इस क्रिया से लाभ मिल सकता है ! हम सभी प्यार पाना चाहते हैं और विशेष महसूस करना चाहते हैं और गले लगाना ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका है !

सकून की नींद 

परीक्षणों से यह बात भी सामने आई है कि ''हग थेरेपी'' मनुष्यों के लिए ही नहीं पशु-पक्षियों यहां तक पेड़-पौधों तक के लिए बहुत लाभदायक है ! अब तो कुछ लोग यह भी दावा करने लगे हैं कि पालतु जानवरों के बीच रहने और उन्हें गले लगाने से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है ! आज दुनिया में मन की शांति हासिल करने-करवाने के तरह-तरह के तरीके ईजाद हो रहे हैं ! नीदरलैंड्स में गायों को गले लगाने का चलन चल पड़ा है, जिसे 'काऊ नफलेन' का नाम दिया गया है ! इसमें गायों से सटकर बैठना, उसे गले लगाना, उसे थपथपाना ये सब थेरेपी का हिस्सा होते हैं ! जो मन को एक तरह की शांति प्रदान करते हैं ! इस प्रक्रिया से गायों को भी सुखद अनुभूति का अहसास होता है, यह उनको प्यार से सहलाने जैसी ही क्रिया की तरह है ! 

काऊ नफलेन, गायों को गले लगाना 

भले ही झप्पी किसी फिल्म से मशहूर हुई हो पर इसका अस्तित्व सनातन है ! हमारे प्राचीन ग्रंथों में तो यह सब विस्तार से लिखित व चित्रित है ! चाहे नृसिंह रूप में भगवान ने प्रह्लाद को गले लगा अभय दिया हो, चाहे श्रीराम ने हनुमान जी को गले लगा उन्हें आश्वस्त किया हो, चाहे प्रभु ने विभीषण का आलिंगन कर उसे भय मुक्त किया हो ! चाहे श्रीकृष्ण ने सुदामा को गले लगा उसको गरीबी के तनाव से मुक्त किया हो ! पेड़-पौधों में जीवन का भी कई बार उल्लेख हुआ है ! अब तो वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं कि यदि आप पेड़-पौधों, लता-गुल्मों के पास जा उनसे ''बात-चीत'' करते हैं, उन्हें सहलाते हैं, उनका आलिंगन करते हैं तो उनका विकास बहुत अन्य पौधों से बेहतर होता है ! जानवर तो प्यार भरे, स्नेहिल स्पर्श को खूब समझते हैं !

स्नेहालिंगन 

सखा मिलन 

तो अब सोच-विचार-देर किस बात की ! आइए बाहर निकलें और किसी जरूरतमंद को गले लगा उसे तनावमुक्त कर हौसला प्रदान करें, पर एक बात का ख्याल जरूर रखें किसी को जबरदस्ती यह उपचार देने की कोशिश ना करें ! कहीं ऐसा ना हो कि आपकी इस कोशिश के बाद आपको ''किसी उपचार'' की जरुरत पड़ जाए !   


@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

बुधवार, 1 नवंबर 2023

बाजार की गिद्ध दृष्टि एक मासूम से त्योहार पर

आज सोची-समझी साजिशों के तहत हमारे हर त्योहार, उत्सव, प्रथा को रूढ़िवादी, अंधविश्वास, पुरातनपंथी, दकियानूसी कह कर ख़त्म करने की कोशिशें हो रही हैं। रही सही कसर पूरी करने को "बाजार" उतारू है जिसने इस मासूम से त्योहार को भी एक फैशन का रूप देने के लिए कमर कस ली है। आज समय की जरुरत है कि हम अपने ऋषि-मुनियों, गुणी जनों द्वारा दी गयी सीखों  उपदेशों का सिर्फ शाब्दिक अर्थ ही न जाने उसमें छिपे गूढार्थ को समझने की कोशिश भी करें...............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

करवा चौथ, हिंदू विवाहित महिलाओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार। जिसमें पत्नियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए दिन भर कठोर उपवास रखती हैं। यह खासकर उत्तर भारत में खासा लोकप्रिय पर्व है, वर्षों से मनता और मनाया जाता हुआ पति-पत्नी के रिश्तों के प्रेम के प्रतीक का एक त्योहार। सीधे-साधे तरीके से बिना किसी ताम-झाम के, बिना कुछ या जरा सा खर्च किए, सादगी से मिल-जुल कर मनाया जाने वाला एक छोटा सा उत्सव, जो कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है ! करवा उस मिटटी के पात्र को कहते हैं, जो इस व्रत का एक अहम हिस्सा है, इसमें पानी की निकासी के लिए एक टोंटी बनी होती है, व्रत पश्चात् करवे से ही चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है ! इसलिलिए दोनों को मिला कर करवाचौथ नामकरण हुआ !   

इसकी शुरुआत को पौराणिक काल से जोड़ा जाता रहा है। इसको लेकर कुछ कथाएं भी प्रचलित हैं। जिसमें सबसे लोकप्रिय रानी वीरांवती की कथा है जिसे पंडित लोग व्रती स्त्रियों को सुनवा, संध्या समय  जल ग्रहण करवाते हैं। इस गल्प में सात भाइयों की लाडली बहन वीरांवती का उल्लेख है जिसको कठोर व्रत से कष्ट होता देख भाई उसे धोखे से भोजन करवा देते हैं जिससे उसके पति पर विपत्ति आ जाती है और वह माता गौरी की कृपा से फिर उसे सकुशल वापस पा लेती है। महाभारत में भी इस व्रत का उल्लेख मिलता है जब द्रौपदी पांडवों की मुसीबत दूर करने के लिए शिव-पार्वती के मार्ग-दर्शन में इस व्रत को कर पांडवों को मुश्किल से निकाल चिंता मुक्त करवाती है।  कहीं-कहीं सत्यवान और सावित्री की कथा में भी इस व्रत को सावित्री द्वारा संपंन्न होते कहा गया है जिससे प्रभावित हो यमराज सत्यवान को प्राणदान करते हैं। ऐसी ही एक और कथा करवा नामक स्त्री की  भी है जिसका पति नहाते वक्त नदी में घड़ियाल का शिकार हो जाता है और बहादुर करवा घड़ियाल को यमराज के द्वार में ले जाकर दंड दिलवाती है और अपनें पति को वापस पाती है।

कहानी चाहे जब की हो और जैसी भी हो हर कहानी में एक बात प्रमुखता से दिखलाई पड़ती है कि स्त्री, पुरुष से ज्यादा धैर्यवान, सहिष्णु, सक्षम, विपत्तियों का डट कर सामना करने वाली, अपने हक़ के लिए सर्वोच्च सत्ता से भी टकरा जाने वाली होती है। जब कि पुरुष या पति को सदा उसकी सहायता की आवश्यकता पड़ती रहती है।उसके मुश्किल में पड़ने पर उसकी पत्नी अनेकों कष्ट सह, उसकी मदद कर, येन-केन-प्रकारेण उसे मुसीबतों से छुटकारा दिलाती है। हाँ इस बात को कुछ अतिरेक के साथ जरूर बयान किया गया है। वैसे भी यह व्रत - त्योहार  प्राचीन काल से चले आ रहे हैं, जब महिलाएं घर संभालती थीं और पुरुषों पर उपार्जन की जिम्मेवारी होती थी।पर आज इसे  कुछ तथाकथित आधुनिक नर-नारियों द्वारा पिछडे तथा दकियानूसी त्योहार की संज्ञा दे दी गयी है।  

आज कल आयातित कल्चर, विदेशी सोच तथा तथाकथित आधुनिकता के हिमायती कुछ लोगों को महिलाओं का दिन भर उपवासित रहना उनका उत्पीडन लगता है। उनके अनुसार यह पुरुष  प्रधान समाज द्वारा महिलाओं को कमतर आंकने का बहाना है। अक्सर उनका सवाल रहता है कि पुरुष क्यों नहीं अपनी पत्नी के लिए व्रत रखते ? ऐसा कहने वालों को शायद व्रत का अर्थ सिर्फ भोजन ना करना ही मालुम है। जब कि कहानियों में व्रत अपने प्रियजनों को सुरक्षित रखने, उनकी अनिष्ट से रक्षा करने की मंशा का सांकेतिक रूप भर है। यह तो  इस तरह के लोग एक तरह से अपनी नासमझी से महिलाओं की भावनाओं का अपमान ही करते हैं। उनके प्रेम, समर्पण, चाहत को कम कर आंकते हैं और जाने-अनजाने महिला और पुरुष के बीच गलतफहमी की खाई को पाटने के बजाए और गहरा करने में सहायक होते हैं। वैसे देखा जाए तो पुरुष द्वारा घर-परिवार की देख-भाल, भरण-पोषण भी एक तरह का व्रत ही तो है जो वह आजीवन निभाता है ! आज समय बदल गया है, पहले की तरह अब महिलाएं घर के अंदर तक ही सिमित नहीं रह गई हैं। पर इससे उनके अंदर के प्रेमिल भाव, करुणा, परिवार की मंगलकामना जैसे भाव खत्म नहीं हुए हैं।

आज सोची-समझी साजिशों के तहत हमारे हर त्योहार, उत्सव, प्रथा को रूढ़िवादी, अंधविश्वास, पुरातनपंथी, दकियानूसी कह कर ख़त्म करने की कोशिशें हो रही हैं। रही सही कसर पूरी करने को "बाजार" उतारू है ! उसे तो सिर्फ अपने लाभ से मतलब होता है। उसने महिलाओं की दशा को भांपा और उनकी भावनाओं को ''कैश'' करना शुरू कर दिया। देखते-देखते साधारण सी चूडी, बिंदी, टिकली, धागे सब "डिजायनर" होते चले गए। दो-तीन-पांच रुपये की चीजों की कीमत 100-150-200 रुपये हो गई। अब सीधी-सादी प्लेट या थाली से काम नहीं चलता, उसे सजाने की अच्छी खासी कीमत वसूली जाने लगी ! कुछ घरानों में छननी से चांद को देखने की प्रथा घर में उपलब्ध छननी से पूरी कर ली जाती थी पर अब उसे भी बाजार ने साज-संवार, दस गुनी कीमत कर, आधुनिक रूप दे, महिलाओं के लिए आवश्यक बना डाला। चाहे फिर वह साल भर या सदा के लिए उपेक्षित घर के किसी कोने में ही पडी रहे। पहले शगन के तौर पर हाथों में मेंहदी खुद ही लगा ली जाती थी या आस-पडोस की महिलाएं एक-दूसरे की सहायता कर देती थीं, पर आज यह लाखों का व्यापार बन चुका है। उसे भी पैशन और फैशन बना दिया गया है ! कल के एक घरेलू, आत्म केन्द्रित, सरल, मासूम से उत्सव, एक आस्था, को खिलवाड का रूप दे दिया गया। करोड़ों की आमदनी का जरिया बना दिया गया ! आज समय की जरुरत है कि हम अपने ऋषि-मुनियों, गुणी जनों द्वारा दी गयी सीखों, उपदेशों का सिर्फ शाब्दिक अर्थ ही न जाने, उसमें छिपे गूढार्थ को समझने की कोशिश भी करें।   
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@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से   

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