शनिवार, 6 अगस्त 2011

"झंडा ऊंचा रहे हमारा", किसने इस गीत की रचना की ?

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
हमारे तिरंगे के सम्मान में लिखा गया यह गीत जब भी सुनाई देता है, रोम-रोम पुल्कित हो जाता है, हर भारतीय का दिल इसके प्रति श्रद्धा विभोर हो उठता है। पर इस गीत की रचना किसने की यह शायद बहुत से लोगों को मालुम नहीं है।

इस राष्ट्रीय झंडा गीत के रचनाकार थे स्वर्गीय श्री श्याम लाल गुप्त। इनका जन्म कानपुर के नरवल गांव में 16 सितंबर 1893 को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री विश्वेश्वर गुप्त तथा माता का नाम कौश्लया देवी था। परिवार के आर्थिक संकट से जुझने के कारण श्याम लालजी बचपन से ही पढाई के साथ-साथ पिता का हाथ भी बटाया करते थे। बड़े होने के साथ-साथ इनका रुझान पत्रकारिता की ओर होता चला गया और इनकी देश भक्ति से ओत-प्रोत कविताएं तथा लेख अखबारों इत्यादि में छपने लगे जो काफी लोक प्रिय भी होते चले गये। इसी के कारण धीरे-धीरे नेताओं का ध्यान इनकी ओर गया और श्री गणेश शंकर विद्यार्थीजी की प्रेरणा से ये कांग्रेस के सक्रीय कार्यकर्ता बन गये और अपनी मेहनत और लगन के सहारे 1920 में फतेहपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर पहुंच गये।
उस समय तक कोई झंड़े को सम्मान देने वाला ऐसा गीत नहीं बन पाया था जिसे सुन मन उद्वेलित हो सके। गणेश शंकरजी इनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित थे सो उन्होंने ही इन्हें कोई ऐसा गीत लिखने की जिम्मेदारी सौंप दी जो सीधा दिल तक पहुंचे। श्याम लालजी के सामने बहुत बड़ी चुन्नौती थी। काफी मेहनत और लगन से आखिर उन्होंने गीत लिखा। उसे बड़े-बड़े नेताओं ने सुना, पढा और उन सब के अनुमोदन के बाद उसे गांधीजी को दिखाया गया उन्होंने गीत को कुछ छोटा करने का परामर्श दे इसे झंडा गीत बनने का गौरव प्रदान कर दिया।
फिर तो यह गीत सार्वजनिक सभाओं, जुलुसों, प्रभात फेरियों के अवसर पर गाया जाने लगा और जब 1938 में हरिपुरा के ऐतिहासिक कांग्रेस के अधिवेशन के अवसर पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के ध्वजारोहण करते ही वहां पांच हजार लोगों ने देश के सभी महत्वपूर्ण नेताओं की उपस्थिति में भाव-विभोर हो इसे गाया तो इसे राष्ट्रीय झंड़ा गीत होने का गौरव भी मिल गया।

पूरा गीत इस प्रकार है :-

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
सदा शक्ति सरसानेवाला
वीरों को हर्षानेवाला
मातृभूमि का तन-मन-सारा
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
लाल रंग भारत जननी का,
हरा अहले इस्लाम वली का,
श्वेत सभी धर्मों का टीका,
एक हुआ रंग न्यारा-न्यारा
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
है चरखे का चित्र संवारा,
मानो चक्र सुदर्शन प्यारा,
हरे देश का संकट सारा,
है यह सच्चा भाव हमारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
इस चरखे के नीचे निर्भय,
होवे महाशक्ति का संचय,
बोलो भारत माता की जय,
सबल राष्ट्र है ध्येय हमारा
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
आओ प्यारे वीरो आओ,
राष्ट्र ध्वज पर बलि-बलि जाओ
एक साथ सब मिल कर गाओ
प्यारा भारत देश हमारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
शान ना इसकी जाने पाए
चाहे जान भले ही जाए
विश्व विजय कर के दिखलाये
तब होवे प्रण पूर्ण हमारा
झंडा ऊंचा रहे हमारा।

जय हिंद।

19 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

एक महत्वपूर्ण पोस्ट। इस तथ्य की जानकारी के साथ पूरा गीत भी आपने दे गया है। यह सोने में सुहागा वाली बात है।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
ASHOK BAJAJ ने कहा…

चाहे जान भले ही जाए
विश्व विजय कर के दिखलाये .

अनूप शुक्ल ने कहा…

अच्छा लगा झंडा गीत के रचयिता के बारे में पढ़कर!

श्याम लाल गुप्त जी का उपनाम ’पार्षद’ था।
उनका जन्म नरवल में हुआ था (नखल में नहीं)

इस पर एक लेख यह भी देखें।

विवेक रस्तोगी ने कहा…

बेहद महत्वपूर्ण तथ्य जानकारी मिली । पूरा गीत भी देने के लिये धन्यवाद।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनुपजी,धन्यवाद। अंग्रेजी से हिंदी में आते-आते कमी रह गयी थी, ठीक कर दी है।

Chetan ने कहा…

ek namalum jankaree dene ke lie aabhaar

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

झंडा ऊँचा रहे हमारा।

G.N.SHAW ने कहा…

गगन जी आप ने बहुत ही छुपी हुयी जानकारी प्रस्तुत की है !काश हम ऐसे रचनाकारों को याद करते ? आभार

SAMEER PATEL ने कहा…

वंदे मातरम

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मनोज जी, नई पीढ़ी को भी कुछ जानकारी जरूर होनी चाहिए

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

प्रतुल जी, समय तो बदला पर कुछ लोग अभी भी मानसिक गुलामी में जकड़े हुए हैं

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अशोक जी, धीरे-धीरे यह भावना तिरोहित होती जा रही है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनुप जी, सदा स्वागत है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

चेतन जी, धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

प्रवीण जी, हर देशवासी की यही कामना है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शॉ जी, हमें ही यह करना होगा ¡

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

समीर जी, जय हिंद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विवेक जी, "कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है

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