चलती गाड़ी में अपने शरीर का कोई अंग बाहर न निकालें :)
1, ट्रेन में बैठे श्रीमान जी काफी परेशान थे। बार-बार कसमसा कर पहलू बदल रहे थे। चेहरे पर बैचैनी साफ झलक रही थी। उनकी हालत देख सहयात्री ने पूछा, परेशान लग रहे हैं, कोई तकलीफ है?
हां, टायलेट जाना है। श्रीमान जी ने जवाब दिया।
तो जाते क्यों नहीं? साथ वाले ने पूछा ।
ट्रेन जो चल रही है। श्रीमान जी बोले।
तो उससे क्या होता है? सहयात्री कुछ समझ ना पाया।
वहां लिखा है, चलती गाड़ी मे अपने शरीर का कोई अंग बाहर ना निकालें। श्रीमान जी ने अपनी परेशानी का कारण बताया।
2, बंता ट्रेन में टायलेट जाकर लौटा तो बदहवास था। सहयात्री ने पूछा, क्या हो गया?
बंता बोला टायलेट के छेद से मेरा पर्स नीचे गिर गया।
अरे, तो चेन खींचनी थी ना। सहयात्री ने कहा।
दो बार खींची पर हर बार पानी बहने लगा।
3, रेलगाड़ी में एक बुजुर्गवार अपनी सीट से बार-बार उठ कर टायलेट जा रहे थे। कुछ परेशान भी थे। सहयात्री बार-बार उनके आने-जाने से तंग आ चुका था। अंत में उसने चिढ कर कह ही दिया, कि बाबा आपको "चैन" नहीं है?
है तो सही बेटा पर खुल नहीं रही है।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
गुरुवार, 25 मार्च 2010
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13 टिप्पणियां:
nice pieces.
क्या यह सब एक ही रेल मै बेठे थे जी..... बहुत सुंदर पहली बार पढे, बहुत नाईस ही नाईस है जी
Ha ha ha
हा हा बहुत बढ़िया
:)
Pleasant!!
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
chhi....chhi.....gande.....!!
रेल मन्त्री को शिकायत हो जायेगी जरा संभल के लिखा करो
chhi....chhi.....gande.....!!
और सँग्रह बढायेँ
वाह भाई
wah bhai kya majedar joke pes kiya...
chhi..chhi.........,
बहुत बढिया है
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