बुधवार, 17 मार्च 2010

कबीरदासजी और छत्तीसगढ़

साहेब बंदगी साहेब का स्वर यदि कभी सुनाई पड़े तो जान लीजिए कि कबीर पंथी आपस में एक दुसरे का अभिवादन कर रहे हैं।

सत्यलोक गमन के पश्चात कबीर जी की वाणी का संग्रह उनके शिष्य धर्मदास जी ने किया। वे बांधवगढ जिला शहडोल के रहने वाले थे। इन्हीं के द्वितीय पुत्र मुक्तामणी नाम साहब को कबीर पंथ के प्रचार-प्रसार का दायित्व मिला था। इन्होंने कुदुरमाल जिला कोरबा को अपना कार्यक्षेत्र बनाया तथा यहां से घूमते-घूमते रतनपुर, मण्ड़ला, धमधा, सिंघोड़ी तथा कवर्धा होते हुए दामाखेड़ा तक गये। तभी से दामाखेड़ा कबीर पंथियों का प्रमुख आस्था केन्द्र बना हुआ है। यहां हर साल माघ शुक्ल दशमी से माघ पुर्णिमा तक संतों का समागम होता आ रहा है। यह स्थान रायपुर- बिलासपुर मार्ग पर सिमगा नामक जगह से मात्र दस की.मी. की दूरी पर स्थित है। सन 1903 में यहां बारहवें वंश गुरु उग्रनाथ साहब ने, दशहरे के अवसर पर मठ की स्थापना की थी। यहां समाधी मंदिर में कबीर जी की जीवनी को बहुत सुंदर रूप में दिवारों पर उकेरा गया है। यहां किसी भी तरह का भेदभाव नहीं बरता जाता। यह तीर्थ सारी मानव जाति के लिए आराधना स्थल बना हुआ है।

इसके अलावा पेंड्रा रोड़ से अमरकंटक मार्ग पर करीब 6 की।मी। की दूरी पर "कबीर चौरा" नामक तीर्थ स्थल है। ऐसा मानना है कि कबीर जी ने यहीं आत्म चिंतन कर काव्य रचना करने की प्रेरणा पायी थी।

6 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर जानकारी. धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

इस उतकृष्ट जानकारी के लिये आपका बहुत आभार.

रामराम.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

सुंदर है.

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

छत्तीसगढ़ ब्लाग में भी इसे स्थान दें

Udan Tashtari ने कहा…

आभार जानकारी का.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जानकारी के लिए शुक्रिया!

विशिष्ट पोस्ट

दीपक, दीपोत्सव का केंद्र

अच्छाई की बुराई पर जीत की जद्दोजहद, अंधेरे और उजाले के सदियों से चले आ रहे महा-समर, निराशा को दूर कर आशा की लौ जलाए रखने की पुरजोर कोशिश ! च...