आज हम एक कोहेनूर का जिक्र होते ही भावनाओं में खो जाते हैं। तख्ते ताऊस में तो वैसे सैंकड़ों हीरे जड़े हुए थे। हीरे-जवाहरात तो अपनी जगह, उस मनो सोने का भी कुछ पता नहीं चला जिसकी खपत इस सिंहासन को बनाने में हुई थी.................
बाबर द्वारा रोपित मुगल साम्राज्य का पौधा, हुमायूं के समय के थपेडों को सह, अकबर द्वारा सिंचित और रक्षित हो जहांगीर के समय तक धीरे-धीरे एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था। जिसकी जडें गहराई तक पैठ गयीं थीं। विशाल मुगल साम्राज्य की स्थापना हो चुकी थी। छुटपुट हरकतों को छोड उसे किसी बडे खतरे या विनाश का डर नहीं रह गया था। उसी की शांति छाया में चिंता मुक्त शाहजहां ने देश की बागडोर संभाली थी। वतन में अमन ओ चैन और आय के अजस्र स्रोतों का लाभ उठा उसने अपना सारा ध्यान और समय इतिहास प्रसिद्ध इमारतों के निर्माण में लगा दिया था।
बाबर द्वारा रोपित मुगल साम्राज्य का पौधा, हुमायूं के समय के थपेडों को सह, अकबर द्वारा सिंचित और रक्षित हो जहांगीर के समय तक धीरे-धीरे एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था। जिसकी जडें गहराई तक पैठ गयीं थीं। विशाल मुगल साम्राज्य की स्थापना हो चुकी थी। छुटपुट हरकतों को छोड उसे किसी बडे खतरे या विनाश का डर नहीं रह गया था। उसी की शांति छाया में चिंता मुक्त शाहजहां ने देश की बागडोर संभाली थी। वतन में अमन ओ चैन और आय के अजस्र स्रोतों का लाभ उठा उसने अपना सारा ध्यान और समय इतिहास प्रसिद्ध इमारतों के निर्माण में लगा दिया था।
ऐसे ही एक समय उसके कोषपाल ने आ कर उसे बताया कि शाही खजाना तरह-तरह के बहुमूल्य हीरे-जवहरातों से लबरेज है। उसने सलाह दी कि उन्हें इसी तरह ना पडे रहने दे कर उनका कुछ सही उपयोग करना चाहिए। इस विषय पर मंत्रणा की गयी और तय पाया गया कि इन नायाब रत्नों का उपयोग सम्राट के लिए एक बेशकीमती, अनोखे और बेजोड सिंहासन को बनाने में किया जाए। तत्काल देश के चुनिंदा स्वर्णकारों को तलब किया गया और उन्हें सब कुछ समझा कर कार्य सौंप दिया गया।
स्वर्णकारों के मुखिया बेबदल खान को बादशाह की उपस्थिति में 1150 किलो सोना और 230 किलो रत्नों का भंडार इस नायाब कार्य हेतु सौंप दिया गया। कुशल, कलात्मक कार्यों में माहिर स्वर्णकारों को सिंहासन बनाने में सात साल का समय लग गया। उस समय इस पर आई लागत का आज सिर्फ आंकलन ही किया जा सकता है। इस ठोस सोने के सिंहासन को दो मोरों का रूप दिया गया था, जो अपने पंख फैलाये खडे थे। तरह-तरह के रंग-बिरंगे रत्नों से उन्हें मोर के पंखों की तरह ही सजाया गया था। जिनके बीच एक पेड की आकृति भी थी जिसे हीरे-पन्ने, लाल और मोतियों से जडा गया था। मोरों की सोने से बनी आकृतियां भी रत्नों से ढकी हुई थीं तथा उनकी पूंछ पर नीलम जडे गये थे। सिंहासन के मध्य फारस के शाह द्वारा भेंट किया गया एक बडा और अनमोल हीरा जडा गया था। फ्रांस के यात्री ट्रैवर्नियर ने अपने यात्रा वृतांत में इसका वर्णन करते हुए बताया है कि यह सिंहासन बादशाह के आराम को ध्यान में रखते हुए 6 फिट गुणा 4 फिट के आकार का बनाया गया था जिसके आसन की ऊंचाई 5 फिट थी और वह एक तख्त का रूप लिए हुए था। उसमें चार सोने के पाए लगे हुए थे। पृष्ठ भाग में दो अत्यंत सुंदर पर फैलाये मोरों की आकृतियां बनी हुई थीं। उन दोनों के बीच एक वृक्ष था जिसके बीचोबीच इतिहास प्रसिद्ध "कोहेनूर हीरा" जडा हुआ था। सिंहासन के ऊपर एक छत्र भी बनाया गया था और यह सब कुछ बेशकीमती रत्नों से जडा और भरा हुआ था। कहीं भी जरा सी जगह खाली नहीं छोडी गयी थी। सब कुछ अप्रतिम व नायाब था। उसे तख्ते-ताऊस या मयूर सिंहासन का नाम दिया गया।
यह सिंहासन मुगल कला का बेहतरीन नमूना था। इस पर बैठ कर शाहजहां दिवाने खास का काम-काज देखा करता था। पर नियति को कुछ और ही मंजूर था, उसने मुगल साम्राज्य की भावी पटकथा लिखनी शुरु कर दी थी। जिसके नायक औरंगजेब ने पिता की बिमारी का लाभ उठा, उसे कारागार में डाल, अपने भाइयों को रास्ते से हटा खुद को बादशाह घोषित कर दिया। सत्ता में तो वह वर्षों रहा पर अपने जीवन के तीस साल उसे युद्ध करते ही बिताने पडे। उसकी मृत्यु होते ही कमजोर पडते साम्राज्य पर बाहरी खतरों ने सर उठाना शुरु कर दिया। जिसमें सबसे अहम था नादिरशाह का हमला। ऐतिहासिक कत्लेआम के बाद उसने दिल्ली को इस तरह लूटा और रौंदा कि विनाश भी दहल कर रह गया। उस दौर का बयान करना मुश्किल है। कहते हैं कि वह उस बेशकीमती मयूरासन के अलावा 15 करोड नकद तथा उसके साथ 300 हाथी, दस हजार घोडे, इतने ही ऊंट जो सभी किमती सामानों, हीरे, जवाहरातों से लदे थे, अपने साथ ले गया। इस बात के तो प्रमाण मिलते हैं कि तख्ते-ताऊस फारस पहुंच गया था पर उसके बाद उसका क्या हश्र हुआ पता नहीं चलता।
कुछ इतिहासकारों के अनुसार कुर्दों द्वारा नादिरशाह की हत्या के बाद सिंहासन को तोड कर उसकी अमूल्य संपत्ति को आपस में बांट लिया था। कुछ लोगों का कहना है कि मूल सिंहासन सुरक्षित था और 18वीं शताब्दि के अंत में वह अंग्रजों के अधिकार में आ गया था। जिसे “ग्रासनेवर” नामक जहाज द्वारा बडे गोपनीय ढंग से कोहेनूर हीरे की तरह इंग्लैंड भिजवा दिया गया था। पर बदकिस्मति से ग्रासनेवर अपनी यात्रा के दौरान उस बेशकीमती सिंहासन के साथ एक भयंकर समुद्री तूफान की चपेट में फंस कर अफ्रिका के पूर्वी तट पर सागर में डूब गया। पिछले दो सौ सालों से उसका पता लगाने के कई प्रयास हो चुके हैं पर कोई भी अभियान सफल नहीं रहा।
एक कोहेनूर हीरा ही हमारे दिलों की टीस को बार-बार चीर जाता है. इस सिंहासन में तो कई-कई कोहेनूरों के बराबर रत्न तथा मनो सोना खपा हुआ था।
#हिन्दी_ब्लागिंग
#हिन्दी_ब्लागिंग
17 टिप्पणियां:
आज कोई और ले जा रहा है ।
सबने जीभर लूटा जिसको,
अपने पैरों पर सक्षम हो।
अब भी देश में लुटेरों की कोई कमी है क्या ?
बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
http://mmsaxena69.blogspot.in/
वे चोरी-चोरी, सीनाजोरी से ले गए थे ..आज सब कुछ राजी राजी, खुश-खुश भेजा जा रहा है....
सार्थक प्रस्तुति.
http://dehatrkj.blogspot.com
शास्त्री जी यूं ही स्नेह बना रहे।
हर्षवर्धन जी, हार्दिक धन्यवाद।
दर्शन जी, आभार।
लूटने वाले तो आज भी लूट रहें हैं देश को ...
British hamara desh ko loota inka bichar hona chahiye
British hamara desh ko loota inka bichar hona chahiye
British hamara desh ko loota inka bichar hona chahiye
काफी अहम जानकारी थी...। विषय भी गहन...।
संदीप जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है,आपका
बहुत बढ़िया लेखन
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