गणेश जी. देश में सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले, अबाल-वृद्ध सबके चहेते, सबके सखा, निर्विवाद रूप से सबके प्रिय। देश-विदेश में स्थापित अनगिनित मंदिरों की तरह ही उनके बारे में असंख्य कथाएं भी जन-जन में प्रचलित हैं। जो पूजा स्थलों के साथ-साथ ही अभिन्नरूप से गुंथी हुई हैं। उनका ऐसा ही एक पावन स्थल है पुणे का मयूरेश्वर मंदिर।
गणेश पुराण के अनुसार त्रेता युग में उस समय मिथिला के राजा चक्रपाणी की रानी उग्रा ने सूर्य देव द्वारा पुत्र पाने की इच्छा की थी। पर सूर्य देवता के तेज और ताप को सहन ना कर पाने के कारण उसने अविकसित बच्चे को सागर के हवाले कर दिया। पर बच्चा बच गया और सागर ने उसे वापस राजा चक्रपाणी को सौंप दिया। चुंकि शिशु को सागर ने लौटाया था इसलिए उसका नामकरण सिंधू कर दिया
गया। सूर्य देव ने अपने इस अंश को अमृत कुंभ प्रदान किया था, जो उसके शरीर के अंदर स्थित था। अमर होने की भावना के कारण वह अपने मार्ग से भटक उच्श्रृंखल और आताताई बन गया। सारी प्रकृति उससे कांपने लगी। तब देवताओं ने उसके संहार के लिए प्रभू शिव और माता पार्वती की शरण ली. माँ ने जगत हित के लिए गणेश जी को पुत्र रूप में पाने के लिए लेंयाद्री की गुफाओं में कठोर तप किया। जिसके फलस्वरूप गणेश जी ने अवतार लिया और प्रभू शिव ने उनका नाम गुनेशा रखा। शुभ्र रंग तथा छह हाथों वाले गणेश जी ने अपने वाहन के रूप में मोर को चुना जिससे उनका नाम मोरेश्वर भी पडा।
गुनेशा जी ने सिंधू की सेना उसके सेनापति कमलासुर को नाश किया। फिर सिंधू दानव के दो टुकडे कर उसके अंदर स्थित अमृत कुंभ को खाली कर उसका भी संहार कर डाला।
परम पिता ब्रह्मा ने खुश हो सिद्धि और बुद्धि का विवाह गुनेशा जी के साथ कर दिया। अपने कार्य को संम्पन्न कर अपना वाहन अपने भाई कार्तिकेय को सौंप कर प्रभू फिर वापस अपने लोक को लौट गये।
गणेश पुराण के अनुसार गणेश जी के तीन प्रमुख स्थान हैं। जिनमें से मोरगांव धरती पर अकेला है। बाकि के दोनों स्थान शिवलोक तथा पाताल लोक में स्थित हैं। इसलिए भी इसकी महत्ता बहुत बढ जाती है। मोरगांव पुणे शहर से 80 किलोमीटर दूर स्थित है। मोरेश्वर मंदिर के निर्माण की निश्चित तिथि का तो पता नहीं चलता पर इसे पेशवा राज्य काल में भव्य रूप प्रदान किया गया था।
कुछ लोगों का मानना है कि जिस जगह गणेश जी ने अवतार लिया था वहां मोर बहुतायत में पाए जाने के कारण वहां का नाम मोरगांव पड गया था, इसलिए वहां अवतार लेने के कारण उनका नाम मोरेश्वर पडा।
3 टिप्पणियां:
दर्शन जी,
हार्दिक धन्यवाद। कल मिलते हैं।
रोचक कथा..
आज की विशेष बुलेटिन 625वीं बुलेटिन और एकता की मिसाल में आपकी इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।
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