शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

मैं, मेरा चश्मा और बंदर कृष्णभूमि के

पर इस बार अपहरणकर्ता की फिल्डिंग कमजोर थी ! हो सकता है नौसिखिया हो ! क्योंकि उसकी ओर जैसे ही फ्रूटी फेंकी गई, उसने चश्मा नीचे फेंक, माल लपकना चाहा और हड़बड़ी में ना माया मिली ना राम ! बेचारे का चेहरा देखने लायक था ! पर यहां कुछ सवाल भी खड़े होते हैं कि यहां के वानरों ने अपने सदा से प्रिय केले और चने जैसे खाद्यों को छोड़ यह फ्रूटी की लत कैसे पाल ली ! जिससे ना तो उनका पेट भरता होगा नाहीं भूख मिटती होगी  ! क्या यह कोई सोची-समझी साजिश तो नहीं .............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

पिछले दिनों RSCB के सौजन्य से वृन्दावन-मथुरा जाने का सुयोग बना ! संयोगवश ग्रुप की अगुवाई की बागडोर मेरे ही हाथों में थी ! चलने के पहले मिली हिदायतों में सबसे अहम् बात जो बताई गई वह थी, दोनों जगहों के बंदरों से सावधानी बरतने की ! खासकर वृन्दावन के इन स्वच्छंद जीवों से, जहां इनका उत्पात खौफ का रूप ले चुका है ! इनका आतंक मथुरा में भी है पर वृन्दावन की तुलना में कुछ कम !  हम सब ने इस बात की अच्छी तरह गांठ बांध ली थी ! जिसका असर भी रहा ! दोपहर तक पहुंचने के बाद गुफा मंदिर, प्रेम मंदिर और इस्कॉन मंदिर के दर्शनों में रात का पहला पहर बिना किसी विघ्न-बाधा के गुजर गया ! सब लोग निश्चिंतता के बावजूद सावधान भी थे !   

रात के नौ बजे के लगभग, भारी भीड़ के बीच हम सब भी बांके बिहारी जी के दर्शनार्थ, कतारों में लगे हुए थे ! वहां पहली बार वानर-चश्मा प्रेम के दर्शन हुए ! इतनी भीड़, जहां पैर रखने की जगह तक मिलना मुश्किल हो रहा था, उसके बावजूद ये चपल प्राणी, बड़ी सफाई और बिजली की फुर्ती से, बिना किसी को संभलने का मौका दिए, उनके चश्मों को हथिया जा रहे थे ! जिनके साथ यह घट रहा था, उनको छोड़ बाकी सब इस मुफ्त के शो का मजा ले रहे थे ! चश्मा लौटता था पर ''साहब को फ्रूटी'' की रिश्वत देने के बाद ! हम सब सुरक्षित थे !

बांकेबिहारी जी के दर्शनों के बाद हम सब कुछ अलग-थलग पड़ गए थे ! सब को इकठ्ठा करना था ! गलियों में रौशनी कम थी ! रात घिर आई थी ! मैंने सोचा ''भाई लोग'' भी आराम करने चले गए होंगें सो चश्मा कान पर चढ़ा लिया ! जरा सी देर बाद लगा जैसे किसी ने कंधे पर हाथ रखा हो, मैं समझा साथी मनोज जी होंगे...! जब तक पलटा चश्मा सामने के घर की मुंडेर तक जा पहुंचा था ! वहां से गुजर रहे एक दो बच्चों ने कहा, अंकल उसे फ्रूटी दीजिए ! पास ही दूकान बंद होने-होने को थी, वहाँ से फ्रूटी ले, उसी बच्चे को देने को कहा ! बच्चे ने फ्रूटी फेंकी......बंदर ने लपकी और बजाए चश्मा फेंकने के और ऊपर चढ़ गया ! बच्चे ने कहा, अंकल एक और दीजिए ! एक और ले कर दी गई, पर वह तो और आगे खिसक गया और चश्मे की डंडी को चबाना शुरू कर दिया ! अब मुझे परेशानी का अनुभव हुआ ! चश्मा ''प्रोग्रेसिव'' था, यूँही छोड़ते नहीं बन रहा था ! उसी बच्चे ने फिर एक और फ्रूटी देने को कहा, कोई और चारा भी तो नहीं था ! तीसरी भेंट दी गई और आश्चर्य इस बार अगले ने चश्मा जमीन पर दे मारा ! बच गया, उसी बच्चे ने लपक लिया था ! अब जब ऊपर ध्यान गया तो देखा वहां तीन सदस्य विराजमान थे ! जब तक तीनों को ''गिफ्ट'' नहीं मिला बंधक को छोड़ा नहीं गया था ! 


दूसरे दिन दिन-दहाड़े निधिवन के बाहर रात की नाटिका का रि-मंचन हो गया ! कंधे पर हल्का सा दोस्ताना स्पर्श हुआ और चश्मा इतनी कोमलता और सफाई से उतारा गया, जितने प्यार से मैंने खुद भी कभी नहीं उतारा होगा ! अब गफलत में चूक हो गई थी, खामियाजा तो उठाना पड़ना ही था ! इस बार एहतियातन दो फ्रुटियाँ ले लीं ! फिर एक बच्चे को मुहीम पर लगाया ! पर इस बार ऐनकहरणकर्ता की फिल्डिंग कमजोर थी ! हो सकता है नौसिखिया हो ! क्योंकि उसकी ओर जैसे ही फ्रूटी फेंकी गई, उसने चश्मा नीचे फेंक, माल लपकना चाहा और हड़बड़ी में ना माया मिली ना राम.....! बेचारे का चेहरा देखने लायक था ! इसी बीच हमारे ही ग्रुप के एक और सज्जन भी बिना किसी नुक्सान के इस अनुभव को संजो चुके थे ! एक बार तो इन आतंकियों ने मथुरा के डी. एम. की भी ऐनक उतार पुलिस वालों की जान सांसत में डाल दी थी ! बड़ी मुश्किलों के बाद फ्रुटियों ने ही वापस दिलवाई थी !

इन सब बातों से जो बात सामने आई, वह कुछ सवाल भी खड़े करती है ! सबसे अहम् तो यही है कि वानरों ने अपने सदा से प्रिय केले और चने जैसे खाद्यों को छोड़ यह फ्रूटी की लत कैसे पाल ली ! जिससे ना तो उनका पेट भरता है नाहीं भूख मिटती होगी ! तो क्या दुकानदारों ने अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए इनका दुरोपयोग किया ! क्योंकि मेरे साथ जहां भी छिनताई हुई वहां बगल में ही किराने की दुकान थी ! सदा ही इनका 99 % लक्ष्य चश्मा ही होता है जो शरीर पर कुछ कम सुरक्षित जगह पर रहता है ! हालांकि मोबाईल और हाथ में पकड़े छोटे-छोटे सामान भी जाते हैं पर बहुत ही कम, क्योंकि हाथ से सामान लेने पर कभी ''देने'' भी पड़ सकते हैं ! इसके अलावा वहां के स्थानीय रहवासी तुरंत घटनाग्रस्त इंसान से फ्रूटी ही देने की सिफारिश करता है ! खैर जो भी हो, आप-हम यदि पैक्ड फ्रूटी पिएं तो हो सकता है कि उसमें कुछ द्रव्य बच जाए, पर मजाल है कि एक बूँद भी चिपकी रह जाए, जब डिब्बा इन कपिवंशियों के हाथ में हो !

@ फोटो अंतर्जाल के सौजन्य से 

रविवार, 23 अप्रैल 2023

फोन से लगाव, रिश्तों में अलगाव (मोबिकेट)

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब बातों को जानते भी हैं, पर फिर भी जाने-अनजाने चूक हो ही जाती है ! आज की दुनिया में यह भले ही एक वरदान है, लेकिन इसका अनुचित प्रयोग कभी-कभी दूसरों की परेशानी का सबब बन जाता है ! खास कर तब, जब यह बिना एहसास दिलाए आपकी लत में बदल चुका हो ! आज खुद को भोजन मिले ना मिले पर इसका 'पेट'भरे रहना, इसकी चार्जिंग की ज्यादा चिंता रहती है ! इसलिए यह जरुरी  हो गया है कि अभिभावक बचपन से ही अपने बच्चों को "मोबिकेट" से अवगत कराते रहें............!     

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कल मेरे एक मित्र घर आए ! मैं लैप-टॉप पर अपना कुछ काम कर रहा था ! उनके आते ही मैंने उसे बंद कर उनका अभिवादन किया ! अभी आधे मिनट की दुआ-सलाम भी ठीक तरह से नहीं हुई थी कि उनका फोन घनघना उठा और वे उस पर व्यस्त हो गए ! बात खत्म होने के बाद भी वे उसमें निरपेक्ष भाव से अपना सर झुकाए कुछ खोजने की मुद्रा बनाए रहे ! इधर मैं उजबक की तरह उनको ताकता बैठा था ! बीच में एक बार मैंने एक मैग्जीन उठा उसके एक-दो पन्ने पलटे कि शायद भाई साहब को मेरी असहजता का कुछ एहसास हो ओर पर वे वैसे ही निर्विकार रूप से अपने प्रिय के साथ मौन भाव से गुफ्तगू में व्यस्त बने रहे ! हार कर मैं भी अपने कम्प्यूटर को दोबारा होश में ले आया ! हालांकि मुखातिब उनकी ओर ही रहा ! पर पता नहीं उन्हें क्या लगा या क्या याद आ गया कि वे अचानक उठ कर बोले, अच्छा चला जाए ! मैंने कहा, बस ! बैठो ! बोले, नहीं फिर कभी आऊंगा !   

मोबाइल फोन, आज हर आम और खास के लिए यह कितना महत्वपूर्ण बन गया है, इसके बारे में बात करना समय बर्बाद करना है ! आज खुद को भोजन मिले ना मिले पर इसका ''पेट'' भरे रहना, इसकी चार्जिंग, जरुरी है ! आज की दुनिया में यह भले ही एक वरदान है, लेकिन इसका अनुचित प्रयोग कभी-कभी दूसरों की परेशानी का सबब बन जाता है ! और खास कर तब, जब यह बिना एहसास दिलाए आपकी लत में बदल चुका हो ! सोचिए आप किसी के घर गए हैं, तो वह अपने दस काम छोड़ आपकी अगवानी करता है और आप हैं कि आपका फोन आपको छोड़ ही नहीं रहा ! मान लीजिए इसका उल्टा हो जाए, आप किसी के यहां जाएं और वह अपने फोन पर व्यस्त रहे, तो.......! इस लत के तहत, अनजाने ही सही, यदि किसी के साथ बात करते या सामने बैठे हुए आप अपने फोन पर ''अन्वेषण'' करते हैं तो सामने वाला अपने को उपेक्षित समझ, भले ही मुंह से कुछ न बोले, बुरा मान बैठता है !  

जानकारों ने, मनोवैज्ञानिकों ने, इस लत के लिए कुछ सुझाव दिए हैं ! उन पर अमल करना तो हमारा काम है, जिससे फिजूल की परिस्थितियां या माहौल पनपने ना पाएं ! इन सुझावों पर बात करना फिलहाल ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जाए ! पर यह जरुरी भी है कि अभिभावक शुरू से ही अपने बच्चों को "मोबिकेट" की जानकारी से अवगत कराते रहें ! 

सबसे पहले तो फोन आने या करने पर अपना स्पष्ट परिचय दें ! ''पहचान कौन'' या ''अच्छा ! अब हम कौन हो गए'' जैसे वाक्यों से सामने वाले के धैर्य की परीक्षा ना लें ! हो सकता है कि आपने जिसे फोन किया हो उसके बजाए सामने कोई और हो, जो आपकी आवाज ना पहचानता हो !फोन करते समय सामने वाले का गर्मजोशी और खुशदिली से अभिवादन करें ! आपका लहजा ही आपकी छवि घडता है ! स्पष्ट, संक्षिप्त और सामने वाले की व्यस्तता को देख बात करें ! बात करते समय किसी का भी तेज बोलना या चिल्लाना अच्छा नहीं माना जाता, फिर भले ही वह आपका लहजा हो या फिर फोन की रिंग-टोन ! हमेशा विनम्र रहें और अभद्र भाषा के प्रयोग तथा किसी को कभी भी फोन करने से बचें। गलती से गलत नंबर लग जाए तो क्षमा जरूर मांगें !

जब भी आपसे कोई आमने-सामने बात कर रहा हो तो मोबाईल पर बेहद जरुरी कॉल को छोड़ ना ज्यादा बात करें नाहीं स्क्रॉल करें ! वहीं ड्राइविंग के वक्त, खाने की टेबल पर, बिस्तर या टॉयलेट में तो खासतौर पर मोबाइल न ले जाएं । इसके अलावा अपने कार्यस्थल या किसी मीटिंग के दौरान फोन साइलेंट या वाइब्रेशन पर रखें और मेसेज भी न करें ! कुछ खास जगहों या अवसरों, जैसे धार्मिक स्थलों, बैठकों, अस्पतालों, सिनेमाघरों, पुस्तकालयों, अन्त्येष्टि इत्यादि पर बेहतर है कि फोन बंद ही रखा जाए  !

इन सब के अलावा कुछ बातें और भी ध्यान देने लायक हैं ! कईयों की आदत होती है दूसरों के फोन में ताक-झांक करने की जो कतई उचित नहीं है नाहीं बिना किसी की इजाजत उसका फोन देखने लगें ! बिना वजह कोई भी एसएमएस दूसरों को फारवर्ड ना करें, जरूरी नहीं कि जो चीज आपको अच्छी लगे वह दूसरों को भी भाए ! आजकल मोबाइल में कैमरा, रिकॉर्डर और ऐसी अनेक सुविधाएं होती हैं। इन सुविधाओं का बेजा इस्तेमाल न कर जरूरत के वक्त ही इस्तेमाल करें !  

आज ध्यान में रखने की बात यह है कि यदि आधुनिक यंत्रों का आविष्कार यदि हमें तरह-तरह की सुख-सुविधा प्रदान कर रहा है, तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हमारी सहूलियतें दूसरों की मुसीबत या असुविधा ना बन जाएं !  

गुरुवार, 13 अप्रैल 2023

नजरबट्टू, क्या या कौन है ये

प्राचीन काल से ही यह मान्यता चली आ रही है कि किसी के प्रति मन की बुरी भावनाएं यथा द्वेष, ईर्ष्या, जलन इत्यादि नकारात्मक ऊर्जा के रूप में आँखों के जरिए बाहर आ दूसरों का अहित कर सकती हैं ! जिसे आम बोल-चाल की भाषा में नजर लगना कहा जाता है ! इसके प्रतिकार के लिए नजरबट्टू का उपयोग किया जाता रहा है ! यह एक पाम या ताड़ प्रजाति के वृक्ष के काले रंग का फल है जो दक्षिण भारत में प्रचुरता के साथ पाया जाता है, जिसकी माला लोग अपने बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिये पहनाते हैं.........!


#हिन्दी_ब्लागिंग 


इंसान की फितरत है कि वह किसी अनजाने डर से सदा त्रस्त रहता है ! इसीलिए विश्वास-अंधविश्वास उस पर सदा हावी रहते हैं ! तर्क और अंधविश्वास की मुठभेड़ में सदा अंधविश्वास ही भारी पड़ता है ! वैसे भी सभी को लगता है कि जरा सा टोटका करने से शायद, यदि अनहोनी टल ही जाए तो इसमें नुक्सान या बुराई क्या है ! यह भी देखा गया है कि इससे एक संबल, एक सुरक्षा की भावना भी मिलती है, जिससे दिलो-दिमाग को कुछ राहत का एहसास हो जाता है ! यही कारण है कि सदियों से दुनिया भर में टोन-टोटके आजमाए जाते रहे हैं !


नजरबट्टू के फल 

प्राचीन काल से ही यह मान्यता चली आ रही है कि किसी के प्रति मन की बुरी भावनाएं यथा द्वेष, ईर्ष्या, जलन इत्यादि नकारात्मक ऊर्जा के रूप में आँखों के जरिए बाहर आ दूसरों का अहित कर सकती हैं ! जिसे आम बोल-चाल की भाषा में नजर लगना कहा जाता है ! इसके प्रतिकार के लिए नजरबट्टू का उपयोग किया जाता रहा है ! यह एक पाम या ताड़ प्रजाति के वृक्ष के काले रंग का फल है जो दक्षिण भारत में प्रचुरता के साथ पाया जाता है, जिसकी माला लोग अपने बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिये पहनाते हैं ! ऐसी मान्यता है कि आँखों की नकारात्मक तरंगों से इस फल में दरार आ जाती है और पहनने वाला विपरीत प्रभाव से बच जाता है ! 


नजरबट्टू को बजर बट्ट या बिजूका भी कहा जाता है। अक्सर अधिकांश नए और सुंदर बने भवनों पर किसी हांडी या तख्ती पर बना एक ड़रावना काले रंग का चेहरा, छत के पास टंगा नजर आता है। जिसमें बड़ी-बड़ी मूंछें, लाल-लाल आंखें और बाहर निकले दांत दर्शाए गए होते हैं। ऐसी सोच है कि यह नये बने भवन को बुरी नजर से बचाता है। कुछ किसान अपने खेतों की फसल को पक्षियों से बचाने के लिए जो बिजूका लगाते हैं। वह भी एक तरह से बजरबट्टू ही है जो जानवरों को इंसान का भ्रम दे उन्हें फसल से दूर रखता है ! इसी का एक रूप ट्रकों या गाड़ियों के पीछे लटकते जूते भी हैं। वैसे इस उद्देश्य के लिए कई चीजों को काम में लाया जाता रहा है जो मुख्य वस्तु पर दृष्टि पड़ने के पहले ही नज़र को भटका दें !

नजरबट्टु का पौधा

क्या या कौन है, यह बजरबट्टू और कैसे यह बचाता है बुरी नजर से, यदि होती है तो ! इसके बारे में पुराणों में एक कथा या विवरण मिलता है ! 

बजरबट्टू
जालंधर नाम का एक दैत्य था। उसने ब्रह्माजी को अपने तप द्वारा प्रसन्न कर असीम बल प्राप्त कर लिया था। जिसकी बदौलत उसने देवताओं को भी पराजित कर स्वर्ग पर अपना अधिकार जमा लिया जिससे उसे अत्यधिक घमंड़ हो गया और वह अपने समक्ष सबको तुच्छ समझने लग गया ! अहंकारवश वह नीति अनीती सब भुला बैठा था। हद तो तब हो गई जब उसने अपने दूत के द्वारा भगवान शिव को पार्वतीजी को अपने हवाले कर देने का संदेश भिजवाया ! स्वभाविक ही था कि शिवजी भयंकर रूप से क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया ! नेत्र से भीषण तेज की ज्वाला निकली जिससे एक भयंकर दानव की उत्पत्ति हुई ! उस ड़रावनी आकृति ने जैसे ही दूत पर आक्रमण किया, वह तुरंत शिवजी की शरण में चला गया, इससे उसकी जान तो बच गई पर उस दानव की जान पर बन आई जो भूख से बुरी तरह व्याकुल था ! उसने भगवान शिव से अपनी क्षुधा शांत करने की विनती की ! तत्काल कोई उपाय ना हो पाने के कारण शिवजी ने उसे अपने ही अंगों को खाने का कह दिया ! भूख से विचलित उस दानव ने धीरे-धीरे अपने मुख को छोड़ अपना सारा शरीर खा ड़ाला।

 कीर्तीमुख
वह आकृति शिवजी से उत्पन्न हुए थी इसलिए प्रभू को बहुत प्रिय थी। उन्होंने उससे कहा, आज से तेरा नाम कीर्तीमुख होगा और तू सदा मेरे द्वार पर रहेगा। इसी कारण पहले कीर्तीमुख सिर्फ शिवालयों पर लगाया जाता था। धीरे-धीरे फिर इसे अन्य देवालयों पर भी लगाया जाने लगा। समयांतर पर इसे बुराई दूर करने का प्रतीक मान लिया गया और यह आकृति बुराई या बुरी नजर से बचने के लिए भवनों पर भी लगाई जाने लगी। पता नहीं कब और कैसे यह मुखाकृति हांड़िंयों या तख्तियों पर उतरती चली गई। जैसा कि आजकल मकानों पर टंगी दिखती हैं। जिनकी ओर अनायास ही पहले नजर चली जाती है। इनके लगाने का आशय भी यही होता है।
  
बिजुका
इंसान किसी अनहोनी, असंभाव्य या अनजान डर से, यह जानते हुए भी कि ऐसा कुछ नहीं होगा फिर भी इतना भयभीत रहता है कि कुछ ना कुछ तर्कहीन कार्य-कलापों का सहारा ले ही लेता है ! ऐसे में ही यदि कुछ अच्छा घट जाता है तो हमारा विश्वास उन चीजों पर और भी बढ़ जाता है ! देखा जाए तो यदि मष्तिष्क को सकून मिलता है, डर थोड़ा तिरोहित होता है, किसी का कोई नुक्सान नहीं होता तो दिल को समझाने के लिए ऐसी चीज का उपयोग बुरा भी नहीं है , पर वही सही है ऐसा दिलो-दिमाग पर छा जाना भी उचित नहीं है ! वैसे यह भी एक तरह का फोबिया ही है !

मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

हमारा वैदिक गणित

आश्चर्य के साथ खेद भी होता है कि हमने अपने ऋषि-मुनियों द्वारा रचित, अपनी इस अनमोल, अति उपयोगी, बहुमूल्य धरोहर का अब तक अपने पाठ्यकर्मों में उपयोग कर अपनी पीढ़ियों को लाभान्वित क्यों नहीं किया ! क्यों अभी भी हम विदेशियों द्वारा थोपे गए पाठ्यक्रमो को ढोए जा रहे हैं ! किनके अहम्, गलत सोच या विचारों ने हमें उत्कृष्टता अपनाने से रोक रखा है ! आज जरुरत है, इस ग्रंथ जैसे अनेक ग्रंथों को अवैज्ञानिक मानने वाले, किसी और विचारधारा से ग्रस्त तथाकथित बुद्धिजीवियों को परे धकेल, उनसे किनारा कर, बिना किसी सोच या गुरेज के अपने सनातन ज्ञान को अपना कर अपने देश के भविष्य को और बेहतर बनाने की............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

यह तो लंबे समय से ज्ञात है कि भारतीय गणित की समृद्धि शून्य की खोज से भी आगे तक फैली हुई है। उसी समृद्ध खजाने की एक कड़ी है वैदिक गणित, एक अद्भुत, चमत्कारी एवं क्रान्तिकारी ग्रन्थ ! जिसमें अथर्ववेद के परिशिष्ट के एक हिस्से में उल्लेखित 16 सूत्र तथा 13 उपसूत्रों के सहारे शीघ्र गणना करने की अद्भुत व नितांत अलग सी विधियां बहुत ही सरल ढंग से सिखाई गई हैं ! इस ग्रंथ की यह विशेषता है कि यह किसी भी व्यक्ति की सरल और जटिल दोनों प्रकार की गणितीय समस्याओं को तेजी से सुलझाने में मदद करता है। यह कठिन अवधारणाओं को याद रखने के बोझ को भी कम करता है। 

वैदिक गणित की रचना का श्रेय स्वामी भारती कृष्णतीर्थ को जाता है ! उनका जन्म 14 मार्च 1884 को तिन्निवेलि, तमिलनाडु के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि कृष्ण तीर्थ ने बी.ए.और एम.ए. की परीक्षाओं में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए थे। केवल बीस वर्ष की आयु में सन् 1904 में उन्होंने अमेरिकन कॉलेज ऑफ साइंस रोचेस्टर, न्यूयार्क के बम्बई केन्द्र से इतिहास, संस्कृत, दर्शन, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान जैसे विषयों में एक साथ सर्वोच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया था। अपने प्रिय विषय वैदिक गणित को वे व्यावहारिक विद्या के रूप में प्रस्तुत करते थे। ज्ञान, आयु और अनुभव की प्रौढ़ता प्राप्त कर लेने के बाद 35 वर्ष की आयु में शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी त्रिविक्रम तीर्थ महाराज ने 4 जुलाई सन् 1919 को उन्हें काशी में सन्यास की दीक्षा दी और नाम दिया स्वामी भारतीकृष्ण तीर्थ। 

आज का समय तीव्र प्रतिस्पर्द्धा का है ! जिसमें सफल होने के लिए समय एक बहुत बड़ा कारक है ! किसी भी स्पर्द्धा में सफल होने के लिए गति एवं सटीकता की सबसे ज्यादा जरुरत होती है। वैदिक गणित के सूत्रों और नियमों का अभ्यास किसी भी स्पर्धा व परीक्षा में बहुत ही सहायक होता है ! इसका प्रत्यक्ष अनुभव, इस विधा से जुड़े देश-विदेश के विद्वानों को हो रहा है। वैदिक गणित की विधियाँ एक ओर जहाँ गणित शिक्षण को सरल एवं रोचक बनाती हैं, वहीं दूसरी ओर नवीन शोध की ओर प्रेरित भी करती हैं। गणित के क्षेत्र में स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ का अद्वितीय योगदान है। उन्होंने 2 फरवरी 1960 में बम्बई में महासमाधि ले ली थी ! वैदिक गणित ग्रंथ का प्रकाशन, स्वामी जी के देहावसान के पश्चात् 1965 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा किया गया ! जो आज विश्व प्रसिद्ध है। 

आश्चर्य के साथ खेद भी होता है कि हमने अपने ऋषि-मुनियों द्वारा रचित, अपनी इस अनमोल, अति उपयोगी, बहुमूल्य धरोहर का अब तक अपने पाठ्यकर्मों में उपयोग कर अपनी पीढ़ियों को लाभान्वित क्यों नहीं किया ! क्यों अभी भी हम विदेशियों द्वारा थोपे गए पाठ्यक्रमो को ढोए जा रहे हैं ! किनके अहम्, गलत सोच या विचारों ने हमें उत्कृष्टता अपनाने से रोक रखा है ! अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है, जरुरत है, स्वामी तीर्थ के आलोचकों और इस ग्रंथ जैसे अनेक ग्रंथों को अवैज्ञानिक मानने वाले, किसी और विचारधारा से ग्रस्त तथाकथित बुद्धिजीवियों को परे धकेल, उनसे किनारा कर, बिना किसी सोच या गुरेज के अपने सनातन ज्ञान को अपना कर अपने देश के भविष्य को और बेहतर बनाने की !

बुजुर्गों से अक्सर पहाड़ों (Tables) के बारे में सुनने को मिलता था कि उनको याद रखने में कितनी मशक्कत करनी पड़ती थी ! सीधे-सादे पहाड़ों की तो बात अलग, उसके पहले ''सवा'' और ''ड़ेढ'' के पहाड़ों को भी रटना पड़ता था ! आज के गैजट्स से सुसज्जित पीढ़ी तो शायद उसकी कल्पना भी नहीं कर सकती ! उस समय देश के कर्णधारों ने यदि वैदिक ग्रंथों की अहमियत समझ ली होती तो शायद हम वर्तमान समय से शायद और भी आगे होते !

ग्रंथ मेंउल्लेखित विधियों की एक झलक -

यदि कोई कहे कि 38 का पहाड़ा सुनाओ तो एक बार तो दिमाग झटका खा ही जाएगा ! तुरंत कैलकुलेटर की खोज शुरू हो जाएगी ! पर इस गणित की सहायता से किन्हीं भी दो अंकों का टेबल तुरंत जाना जा सकता है, उदाहणार्थ  :-  

"38" का पहाड़ा 

इसके लिए पहले 3 का टेबल लिख लें, फिर उसके साथ बगल में 8 का टेबल लिख लें 

03      0 8     (3+0)        38

06      1 6     (6+1)        76

09      2 4     (9+2)     114

12      3 2    (12+3)    152

15      4 0    (15+4)    190

18      4 8    (18+4)    228

21      5 6    (21+5)    266

24      6 4    (24+6)    304

27      7 2    (27+7)    342

30      8 0    (30+8)    380

उसी तरह ''87'' का पहाड़ा 

08     0 7   (08+0)       87

16     1 4   (16+1)     174

24     2 1   (24+2)     261

32     2 8   (32+2)     348

40     3 5    (40+3)    435

48     4 2   (48+4)     522

56     4 9   (56+4)     609

64     5 6   (64+5)     696

72     6 3   (72+6)     783

80     7 0   (80+7)     870

उतना ही आसान ''92'' का 

  09        02      (09+0)        92

 18         04      (18+0)      184

  27        06      (27+0)      276

  36        08      (36+0)     368

  45       10       (45+1)     460

  54       12       (54+1)     552

  63       14       (63+1)     644

  72       16       (72+1)    736

  81       18      (81+1)     828

  90       20      (90+2)     920

है ना आसान ! कितनी सहजता से इसी तरह 10 से 99 तक का टेबल  आसानी से बनाया जा सकता है ! ऐसी ही विशेष विधियों का संकलन है इस वैदिक गणित में ! यह है हमारा ज्ञान, विज्ञान, हमारी मेधा, हमारा अनुसंधान ! हमारा देश सदा से बहुमुखी प्रतिभा संपन्न रहा है ! सदियों से विद्या के अकल्पनीय खजाने से भरपूर रही है हमारी धरा ! यूं ही विश्व गुरु कहलाने का हक हमें नहीं मिल गया था ! पता नहीं क्यों कुछ लोगों को अपने देश की बड़ाई, उसका गौरव, उसका मान, रास नहीं आता..........!

@साभार वैदिक गणित

मंगलवार, 28 मार्च 2023

एक नहीं थे, असुर, राक्षस, दैत्य और दानव

विद्वानों का यह भी मानना है कि हो सकता है कि राक्षस जंगलों के रक्षक रहे हों और मानवों द्वारा वनों को जलाने, अतिक्रमण करने, चरागाह और आश्रम बनाने पर उनका विरोध किया हो और दोनों एक दूसरे के दुश्मन बन गए हों ! क्योंकि उनका मिल-जुल कर रहने का भी उल्लेख मिलता है ! यह भी देखने में आता है कि दैत्य, दानव और राक्षसों के कुल में आपसी विवाह तो होते ही थे, साथ ही इनके कुल की कन्याओं ने मानवों से भी विवाह किया था ...........! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

हमारे ग्रंथों में अक्सर चार नाम सामने आते रहते हैं, असुर, राक्षस, दैत्य और दानव ! हम लोग इनको एक दूसरे का एकरूप मानने की भूल कर बैठते हैं और पर्यायवाची की तरह उपयोग में ले आते हैं ! जबकि ये सब अलग-अलग हैं ! वैसे ये व्यक्तियों के नाम ना हो कर जातियों की पहचान बताते हैं ! शायद समय समय पर इन तीनों जातियों के देवताओं से युद्ध करने के कारण इन्हें एक ही समझ, इनकी सामान्य धर्मविरोधी जाति के रूप में छवि बन गई हो ! पर इनमें आपस में काफी अंतर और असमानता है ! 

ऋषि कश्यप 

राक्षस, असुर, दैत्य और दानव, जिन्हें अंग्रेजी में डीमन  शब्द में लपेट दिया गया है ! इन जातियों का हमारे ग्रंथों में विस्तार से विवरण मिलता है ! ये कश्यप ऋषि और उनकी विभिन्न पत्नियों से उत्पन्न संतानें थीं ! दैत्यों की माता दिति, दानवों की माता दनु और‌ राक्षसों की माता सुरसा थीं ! 

असुर, यह एक तरह से प्रतीकात्मक शब्द है ! वे, जो सुर यानी देवता नहीं थे, इसमें विभिन्न जातियों का समावेश हो सकता है ! इसका एक अर्थ यह भी है कि जो सूर्य के बिना रहते हों यानी धरती के नीचे, पाताल में ! ये स्वर्गवासी देवताओं के शत्रु थे ! इनकी मनुष्यों से कोई दुश्मनी नहीं थी, पर जो भी सुरों का सहायक होता था वह इनका शत्रु माना जाता था ! जहाँ तक 'असुर' शब्द का सवाल है इसका प्रयोग विशेष रूप से दैत्यों के लिए और सामान्य रूप से उक्त तीनों देवविरोधी जातियों के लिए होता है। 

रावण 

राक्षस, इन्हें जाति ना कह कर एक पंथ कहा जा सकता है ! कश्यप-सुरसा की वंशावली में रावण ने रक्ष प्रथा या रक्ष पंथ की स्थापना की थी। इस पंथ के अनुयायी, गरीब, कमजोर, विकास के पीछे रह गए लोगों को अपने साथ रखते और अपना विरोध करने वालों का संहार कर देते थे ! रक्ष पंथ को मानने वाले राक्षस कहलाते थे। रामायण और महाभारत ग्रंथों में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के राक्षस योद्धाओं का विवरण है ! वे शक्तिशाली योद्धा, विशेषज्ञ, जादूगर, आकार और रूप प्रवर्तक तथा भ्रम फैलाने की कला के जानकर बताए गए हैं ! महाभारत काल तक आते-आते यह वंश लगभग खत्म हो गया, क्योंकि घटोत्कच के बाद किसी प्रमुख नाम का उल्लेख नहीं मिलता !

प्रह्लाद 

दैत्य :- ये महर्षि कश्यप और दिति की आसुरी प्रवृत्ति की संतानें थीं ! पर इन्हें मान-सम्मान भी बहुत मिला ! इनमें हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष बहुत प्रसिद्ध हुए थे ! इनका अपने सौतेले भाइयों से अक्सर युद्ध होता रहता था ! हिरण्याक्ष का पुत्र कालनेमि था, जिसने द्वापर युग तक श्रीहरि के सभी अवतारों से प्रतिशोध लेने की चेष्टा की और हर बार उनके हाथों मारा गया। बड़े भाई हिरण्यकशिपु के सबसे छोटे पुत्र प्रह्लाद थे, जो महान विष्णु भक्त हुए। उनके पौत्र बलि को सबसे बड़े दानी और प्रतापी राजा के रूप में ख्याति प्राप्त है ! इनके पुत्र बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के साथ हुआ था !

राजा बलि 

दानव :- ऋषि कश्यप और दनु के वंशज दानव कहे जाते हैं। ये दैत्यों और आदित्यों के छोटे भाई थे !  ये दैत्य और राक्षसों की भांति उतने सुसंस्कृत नही होते थे। दनु के चौंतीस पुत्रों के नाम महाभारत में गिनाए गए हैं ! जिनमें विप्रचित्ति सबसे बड़ा था। इनमें वृषपर्वा नाम के दानवराज का नाम भी आया है जो ययाति की पत्नी शर्मिष्ठा के पिता थे। महाभारत में इनका नाम प्रमुखता से आता है। मय दानव को तो सभी जानते हैं जो असुरों के शिल्पी थे। इन्ही की पुत्री मंदोदरी रावण की पत्नी थी। इसी कुल में जन्मा विद्युतजिव्ह रावण की बहन शूर्पणखा का पति था !

मयासुर को पांडवों के लिए भवन निर्माण का निर्देश देते श्रीकृष्ण  

इस प्रकार देखा जाए तो यह जातियां भी विश्व का एक अंग ही थीं ! जिन्हें जाने-अनजाने-परस्थितिवश अच्छाई या बुराई मिली ! मानव समेत उनका मिल-जुल कर रहने का भी उल्लेख मिलता है ! जब तक कि अपने अहम् नियम, कायदे या सिद्धांत के कारण आपसी मतभेद ना पैदा हो गए हों ! विद्वानों का यह भी मानना है कि हो सकता है कि राक्षस जंगलों के रक्षक रहे हों और मानवों द्वारा वनों को जलाने, अतिक्रमण करने, चरागाह और आश्रम बनाने पर उनका विरोध किया हो और दोनों एक दूसरे के दुश्मन बन गए हों ! क्योंकि यह भी देखने में आता है कि दैत्य, दानव और राक्षसों के कुल में आपसी विवाह तो होते ही थे, साथ ही इनके कुल की कन्याओं ने मानवों से भी विवाह किया था !  

@ चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से, साभार 

मंगलवार, 21 मार्च 2023

पंद्रह-सोलह साल का खेल करियर, नो-बॉल एक भी नहीं........ गजबे है भई

आज उत्कृष्ट विशेषज्ञों, उच्च तकनिकी सुविधाओं, दसियों तरह के उपकरणों के बावजूद जब किसी बॉलर द्वारा खेल के तनाव में कभी एक ओवर में दो-दो, तीन-तीन नो-बॉल या वाइड बॉल हो जाती है,  तो कुछ पहले के इसी खेल के महान खिलाड़ियों की याद बरबस ताजा हो आती है ! जो विभिन्न विषम परिस्थियों में भी बिना किसी विशेषज्ञ की सहायता के त्रुटिहीन खेल को अंजाम दिया करते थे ! क्या लगन थी ! क्या समर्पण था ! क्या ही अनुशासन था ! स्तुत्य हैं.........!
 
#हिन्दी_ब्लागिंग 

खेल तो खेल है ! खेल ही होना भी चाहिए ! पर आज कठिन प्रतिस्पर्द्धा के युग में लोगों की आकंक्षाएँ अपने चरम पर हैं ! किसी को भी हार मंजूर नहीं है ! इसीलिए हर खेल का खिलाड़ी अपने साथ तनाव की गठरी लादे चलता है ! उसी का भार आज जब क्रिकेट के उभरते बॉलरों द्वारा कभी-कभी एक ओवर में दो-दो, तीन-तीन नो-बॉल या वाइड बॉल करवा जाता है, तो कुछ पहले के इसी खेल के महान खिलाड़ियों और उनके त्रुटिहीन खेल की याद बरबस ताजा हो आती है ! क्रिकेट के इतिहास में दुनिया में अब तक पांच ऐसे महान बॉलर हुए हैं, जिन्होंने अपने पूरे करियर में एक भी ''नो बॉल'' नहीं डाला है !  ये गर्व की बात है कि इसमें पहला नाम हमारे सर्वकालीन श्रेष्ठ आलराउंडर कपिल देव का है ! 


* कपिल ने 131 टेस्ट और 225 वनडे खेले हैं, पर कभी एक भी नो बॉल नहीं डाला ! ऐसा करने वाले वे अकेले भारतीय हैं ! वैसे भी उनके पांच हजार (+) रन और चार सौ (+) विकेट का रेकार्ड अक्षुण्ण बना हुआ है ! एक बार गावस्कर ने बताया था कि मैच तो मैच, कपिल ने कभी प्रैक्टिस करते हुए भी नो बॉल नहीं फेंका ! यह दर्शाता है कि खेल के प्रति उनका समर्पण, उनकी लगन व उनका अनुशासन किन ऊंचाइयों तक पहुँच चुका था !


* इसमें दूसरे स्थान पर हैं, इंग्लैण्ड के इयान बॉथम ! उन्होंने अपने सोलह साल के करियर में 102 टेस्ट और 116 वन-डे खेले पर कभी अमान्य बॉल नहीं फेंकी !


* तीसरे स्थान पर हमारे पड़ोसी इमरान खान का नाम है ! उन्होंने 88 टेस्ट और 175 वन-डे मैचों में कोई नो बॉल नहीं किया !

* इस कड़ी में चौथे स्थान पर आस्ट्रेलिया के तेज बॉलर डेनिस लिली हैं ! उनके 70 टेस्टों में हर बॉल बेदाग रहा था !

* पांचवें स्थान पर वेस्ट इंडीज के लांस गिब्स हैं, जिन्होंने अपने 79 टेस्ट मैचों और तीन वन डे में अपना कोई भी बॉल, नो बॉल नहीं होने दिया ! टेस्ट में 300 विकेट लेने वाले ये पहले स्पिनर हैं ! रन देने के मामले में उन्हें आज भी दुनिया का सबसे कंजूस गेंदबाज माना जाता है !

एक बात और ऐसा नहीं है कि आज के खिलाड़ी किसी बात में दोयम हैं या उनका समर्पण खेल के प्रति कम है ! पर आज इतनी तकनिकी सुविधाएं, सुरक्षा उपकरण, मैदान पर बेहतरीन चिकित्सा सहायता और विशेषज्ञों के उपलब्ध होने के बावजूद खिलाड़ियों के चोटिल हो मैदान से दूर रहने का प्रतिशत पहले की तुलना में बहुत बढ़ गया है ! हो सकता हो इससे भी खेल में ध्यान भटकता हो ! पर स्तुत्य हैं पहले के खिलाड़ी, जो बिना रक्षा उपकरणों और किसी ताम-झाम के उस समय के एंडी राबर्ट्स, मिशेल स्टार्क, जेफ़ थाम्पसन, ब्रेट ली जैसे तेज बॉलरों की आग उगलती 155-160 की गति की बॉलों का सामना करते थे ! जरुरत है उनकी लियाकत, उनके धैर्य, उनके खेल कौशल से सबक लेने की !

@सभी चित्र अंतर्जाल से, साभार 

शनिवार, 11 मार्च 2023

"शांति" का उच्चारण तीन बार क्यों किया जाता है :

शांति एक प्राकृतिक प्रक्रिया है ! यह सब जगह सदा विद्यमान रहती है, जब तक इसे हमारे या हमारे क्रिया-कलापों द्वारा भंग ना किया जाए ! इसका यह भी अर्थ है कि हमारी गति-विधियों से ही शांति का क्षय होता है ! पर जैसे ही यह खत्म होता है, शांति पुन: बहाल हो जाती है ! यह जहां भी होती है, वहाँ सदा खुशियों  का डेरा रहता है ! इसीलिए शांति की प्राप्ति के लिए हम प्रार्थना करते हैं, जिससे हमारी मुसीबतों, दुखों, तकलीफों का अंत होता है और मन को सुख की अनुभूति होती है ...................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

आज शाम टहलने निकला तो रास्ते में पंडित राम शरण त्रिपाठी मिल गए ! स्नेहवश हम सब उन्हें रामजी कह कर बुलाते हैं ! विद्वान पुरुष हैं ! ग्रंथों का गहन अध्ययन किया हुआ है ! किसी भी बात को प्रमाण के साथ ही प्रस्तुत करते हैं ! उनके साथ बतियाते हुए भोलेनाथ के मंदिर प्रांगण में पहुँच गया।  वहां कुछ लोग शिवलिंग की प्रदक्षिणा कर रहे थे, तो वैसे ही राम जी से पूछ लिया कि हम प्रदक्षिणा क्यों करते हैं ?

रामजी ने बताया कि जिस तरह सूर्य को केंद्र में रख सारे ग्रह उसका चक्कर लगाते हैं जिससे सूर्य की ऊर्जा उन्हें मिलती रहे, उसी तरह प्रभू यानी सर्वोच्च सत्ता, जो सारे विश्व का केंद्र है, उसकी परिक्रमा कर उनकी कृपा प्राप्त करने का विधान है ! वही कर्ता है, वही सारी गतिविधियों का संचालक है, उसी की कृपा से हम अपने नित्य प्रति के कार्य पूर्ण कर पाते हैं, उसी से हमारा जीवन है ! फिर प्रभू समदर्शी हैं, अपने सारे जीवों पर एक समान दया भाव रखते हैं ! इसका अर्थ है कि हम सभी उनसे समान दूरी पर स्थित हैं और उनकी कृपा, बिना भेद-भाव के सब पर बराबर बरसती है। परिक्रमा करना भी उनकी पूजा अर्चना का एक हिस्सा है, जो उनके प्रति अपनी कृतज्ञतायापन का एक भाव है ! उन्हें अपने प्रेम-पाश में बांधने की एक अबोध कामना है ! केवल प्रभू  ही नहीं, जिनका भी हम आदर करते हैं, जो बिना किसी कामना के हमें लाभान्वित करते हैं, उनके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए हम उनकी परिक्रमा करते हैं ! चाहे वे हमारे माता-पिता हों, गुरुजन हों, अग्नि हो या वृक्ष हों ! वैसे ही एक परिक्रमा खुद की भी होती है, जो घर इत्यादि में पूजा की समाप्ति पर एक जगह खड़े होकर घूमते हुए की जाती है, जो याद दिलाती है कि हमारे भीतर भी वही प्रभू, वही शक्ति, वही परम सत्य विराजमान हैं, जिनकी प्रतिमा की हम अभी-अभी पूजा-अर्चना किए हैं !

मैंने फिर पूछा कि परिक्रमा प्रतिमा को दाहिने रख कर यानी घड़ी की सूई की चाल के अनुसार ही क्यों की जाती है ?  यह सुन कर वहाँ बैठे एक सज्जन बोले कि इससे आपस में लोग भिड़ने से बचे रहते हैं नहीं तो कोई दाएं से चलेगा और कोई बांए से आएगा तो मार्ग अवरुद्ध होने लगेगा !रामजी मुस्कुरा कर बोले, आपकी बात आंशिक रूप से अपनी जगह ठीक है, पर आराध्य को दाहिने तरफ रख परिक्रमा करने का मुख्य कारण यह है कि हमारे यहाँ दाएं भाग को ज्यादा पवित्र और सकारात्मक माना जाता है ! इसीलिए जो हमारी सदा रक्षा करते हैं, हर ऊँच-नीच से बचाते हैं, सदा हमारा ध्यान रखते हैं, उन प्रभू को हम अपनी दाईं और रख अपने आप को सदा सकारात्मक रहने की याद दिलाते हुए, उनकी परिक्रमा करते हैं।


आज मन में पता नहीं क्यूँ एक के बाद एक प्रश्न अपना सर उठा रहे थे ! ऐसे ही एक सवाल के बारे में मैंने पंडितजी से फिर पूछ लिया कि पूजा समाप्ति पर हम "शांति" का उच्चारण तीन बार क्यों करते हैं ?
रामजी ने बताया कि शांति एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह सब जगह सदा विद्यमान रहती है। जब तक इसे हमारे या हमारे क्रिया-कलापों द्वारा भंग ना किया जाए। इसका यह भी अर्थ है कि हमारी गति-विधियों से ही शांति का क्षय होता है पर जैसे ही यह सब खत्म होता है, शांति पुन: बहाल हो जाती है। यह जहां भी होती है वहां सदा खुशियों का डेरा रहता है। इसीलिए शांति की प्राप्ति के लिए हम प्रार्थना करते हैं. जिससे हमारी मुसीबतों, दुखों, तकलीफों का अंत होता है और मन को सुख की अनुभूति होती है ! जीवन में कुछ ऐसी  प्राकृतिक आपदाएं होती हैं जिन पर किसी का वश नहीं चलता, जैसे भूकंप, बाढ़ इत्यादि। कुछ ऐसी विपदाएं होती हैं जो हमारे द्वारा या हमारी गलतियों से घटती हैं जैसे प्रदूषण, दुर्घटना, जुर्म इत्यादि ! कुछ शारीरिक और मानसिक परेशानियां होती हैं ! सारे दुखों, तकलीफों, अड़चनों, परेशानियों या रुकावटों का कारण तीन स्रोत, आदि-दैविक, आदि-भौतिक और आध्यात्मिक या मानसिक हैं ! इसलिए हम प्रभू से प्रार्थना करते हैं कि वे हमारे दुखों, तकलीफों तथा जीवन में आने वाली अड़चनों का शमन करें ! चूँकि ये मुसीबतें तीन ओर से आती हैं, इसीलिए शांति का उच्चारण भी तीन बार किया जाता है। वैसे भी प्राचीन काल से यह मान्यता चली आ रही है कि ''त्रिवरम सत्यमं'' यानी किसी भी बात को तीन बार कहने से वह सत्य हो जाती है, इसलिए अपनी बात को बल देने  के लिए ऐसा किया जाता है !  


 
शाम गहरा गई थी ! पंडितजी को भी मंदिर का अपना कार्य पूरा करना था ! इधर घर पर मेरा इंतजार भी शुरू हो चुका था ! इसलिए उनसे आज्ञा और नई जानकारियां ले मैं भी घर की ओर रवाना हो लिया !

@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

विशिष्ट पोस्ट

मैं, मेरा चश्मा और बंदर कृष्णभूमि के

पर इस बार अपहरणकर्ता की फिल्डिंग कमजोर थी ! हो सकता है नौसिखिया हो ! क्योंकि उसकी ओर जैसे ही फ्रूटी फेंकी गई, उसने चश्मा नीचे फेंक, माल लपकन...