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बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

आम इंसान की समृद्धि में तीर्थों का योगदान,

इस बात पर मंथन आरंभ हो चुका है कि क्यों ना देश के सभी नामी-गिरामी, प्रसिद्ध, श्रद्धा के केंद्रों को  व्यवस्थित और सर्व सुविधायुक्त कर उन्हें और भी लोकप्रिय बनाया जाए ! इससे, पर्यटन बढ़ेगा, लोगों को घर बैठे रोजगार मिलेगा, पलायन रुकेगा, लोग समृद्ध होंगे, समाज में संपन्नता आएगी, खुशहाली बढ़ेगी, निर्धनता कम होगी। इसके साथ ही सरकार की आमदनी बढ़ेगी ! जिससे जन-सुविधाओं का और तेजी से विकास हो पाएगा ! पर सबसे बड़ी बात, अपनी संस्कृति का, अपनी परंपराओं का, अपने सनातन का भी सुचारु रूप से प्रचार-प्रसार हो सकेगा............!

#हिन्दी_ब्लागिंग   

देश को अपनी आर्थिक अवस्था को मजबूत करने का एक नया स्रोत मिल गया है और वह है धार्मिक पर्यटन (Religious Tourism), इसका आभास तो तब ही मिल गया था, जब माता वैष्णव देवी की यात्रा में मूलभूत सुविधाओं का इजाफा होने पर श्रद्धालुओं की संख्या कई गुना बढ़ गई थी ! पर तब की तथाकथित धर्म-निरपेक्ष सरकारों ने अपने निजी स्वार्थों के लिए, इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया था ! पर वर्षों बाद जब काशी विश्वनाथ और उज्जैन के महाकाल कॉरिडोर बने और उनको जनता का जिस तरह का प्रतिसाद मिला, वह एक नई खोज, एक नए विचार का उद्घोषक था ! राम मंदिर निर्माण ने इस विचार को और भी पुख्ता किया तथा इस महाकुंभ ने तो जैसे उस पर मोहर ही लगा एक नई राह ही प्रशस्त कर दी !

श्रीराम मंदिर 
अब देश की दशा-दिशा निर्धारित करने वालों को अपनी आर्थिक स्थित मजबूत करने के लिए एक अकूत खजाना मिल गया है ! उन्हें समझ आ गया है कि देश की धर्म-परायण जनता को यदि पर्याप्त सुरक्षा और सुख-सुविधा मिले तो वह धार्मिक स्थलों के दर्शन के लिए भी उतनी ही तत्पर रहती है, जितनी अन्य किसी पर्यटन स्थल के लिए ! महाकुंभ में श्रद्धालुओं की अनपेक्षित, अविश्वसनीय, अकल्पनीय, मर्यादित उपस्थिति इसका ज्वलंत उदाहरण है ! इसी से प्रोत्साहित हो कर अब इस बात पर मंथन आरंभ हो चुका है कि क्यों ना देश के सभी नामी-गिरामी, प्रसिद्ध, श्रद्धा के केंद्रों को भी व्यवस्थित और सर्व सुविधायुक्त कर उन्हें और भी लोकप्रिय बनाया जाए ! इससे पर्यटन बढ़ेगा ! लोगों को घर बैठे रोजगार मिलेगा ! पलायन रुकेगा ! लोग समृद्ध होंगे ! समाज में संपन्नता आएगी ! खुशहाली बढ़ेगी ! निर्धनता कम होगी ! इसके साथ ही सरकार की आमदनी बढ़ेगी, जिससे जन-सुविधाओं का और तेजी से विकास हो पाएगा ! पर सबसे बड़ी बात, अपनी संस्कृति का, अपनी परंपराओं का, अपने सनातन का भी सुचारु रूप से  प्रचार-प्रसार हो सकेगा ! 
विश्वनाथ मंदिर परिभ्रमण पथ 

महाकाल मंदिर परिसर 
महा कुंभ के दौरान प्रयागराज के हर वर्ग के, हर तबके के लोगों को जो आमदनी हुई वह आँखें चौंधियाने वाली है ! इसमें अब कोई शक नहीं कि सुप्रसिद्ध स्थानों पर होने वाले ऐसे आयोजन या आने वाले समय में उन स्थानों पर बनने वाले एक-एक धार्मिक परिभ्रमण पथ, पर्यटन और मंदिरों की अर्थ-व्यवस्था (Religious Tourism and Temple Economy) देश के वाणिज्य, व्यापार और अर्थव्यवस्था में सुधार की अहम कड़ी होने जा रहे हैं ! कुंभ तिथि तो चार सालों में एक बार आती है पर माघ मेला तो हर साल लगता है ! छठ पूजा तो हर साल होती है ! गंगा दशहरा तो हर साल होता है ! तो ऐसे हर तीज-त्योहारों को भव्य, सुव्यवस्थित व सुरक्षित बना लोगों को आने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा ! 

जन सैलाब 

महाकुंभ 
यह सब जो आगत भविष्य में होने जा रहा है, वही कुछ लोगों के लिए, जो अपनी राजनितिक लड़ाई तो हार ही चुके हैं अपनी पहचान तक गंवाने की कगार तक पहुँच गए हैं, परेशानी का कारण बना हुआ है। उन्हें अपना नामो-निशान मिटता साफ दिखाई पड़ रहा है। इसीलिए वे अपने बचे-खुचे पूर्वाग्रही, भ्रमित वोटरों को बचाए रखने के लिए कुंभ के बहाने सनातन का विरोध कर रहे हैं, अपनी संस्कृति का विरोध कर रहे हैं, अपने ही धर्म का विरोध कर रहे हैं, ! देश वासियों की आस्था, श्रद्धा, उनके संस्कारों की थाह के सामने हर बार मुंहकी खाने के बावजूद बेशर्मी की हद पार कर अनर्गल झूठ फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। अभी तो ऐसे लोगों की तिलमिलाहट और बढ़ेगी जब संभल जैसे कई नए-नए तीर्थ देश और विश्व के नक्शे पर उभर कर सामने आएंगे ! भगवान ऐसे लोगों को सद्बुद्धि दे जिससे ये अपने स्वार्थों से ऊपर उठ देशहितार्थ कुछ कर सकें ! 
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से

शुक्रवार, 9 अगस्त 2024

जो कभी नहीं जाती, उसी को जाति कहते हैं

नहीं भईया जी ! आप गलत सोच लिए ! माँ कसम ! हमहूँ ऐसा करना नहीं चाहते थे ! सच तो ई है कि चाह कर भी अइसा नहीं कर पाते ! हमारा आत्मा हमें करने ही नहीं देता ! पर थोड़ा समय के लिए मन डगमगा गया था ! का है ना कि हमसे अपने पिताजी और माँ का हालत देखा नहीं जाता ! इस उमर में भी दिन-रात खटते हैं ! फिर भी ना खाना ढंग का मिलता है ना हीं रहना ! हमहूँ इधर कुछ ज्यादा नहीं कर पा रहे ! उनको कुछ हो गया तो हम अपने को कभी माफ़ नहीं कर पाएंगे ! ऐ ही वास्ते मन बेचैन रहता है ! ऊही से थोड़ा भटक गए थे...........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

आज बहुत दिनों बाद बिनोद आया था ! देखने से स्वस्यचित्त नजर आ रहा था ! पर हाव-भाव से कुछ ऐसा भी महसूस हो रहा था कि कुछ कहना चाह रहा है पर झिझक और संकोच उसे रोक रहे थे ! प्रसंगवश बतला दूँ कि बिनोद मूलतः झारखंड का निवासी है। पूरा नाम बिनोद कुमार झा है। स्नातक है। वर्षों से दिल्ली में आजीविका के लिए संघर्ष कर रहा है ! माँ-बाप गुमला, झारखंड, में रहते हैं ! थोड़ी-बहुत गुजारे लायक जमीन है।  बिनोद सात-आठ साल से मेरे संपर्क में है ! सीधा, सरल, नेक, अविवाहित युवक है ! मुझ से अपने हर मसले को साझा करता रहता है ! हमारे बीच एक अनजाना सा रिश्ता पनप गया है।  पर आज करीब आधे घंटे से मेरे पास बैठे रहने के बावजूद खुल नहीं पा रहा था ! मैंने ऐसे ही उसे कुरेदा,

क्या बात है, सब ठीक है ना ?"                       

हाँ भइया, सब वइसा ही चल रहा है''

पर तुम्हें देख, लग तो नहीं रहा !'' मैं मुस्कुराया, वह कुछ झेंप सा गया ! कुछ देर चुप रहा, फिर जैसे उसने अपने संकोच को परे धकेल दिया, बोला,

भइया जी, हम सोच रहे हैं कि अपना जाति बदल लिया जाए, एस टी या एस सी बन जाऊं ?''

मैं जैसे छत से गिरा ! हक्का-बक्का रह गया ! बोल क्या रहा है यह लड़का ! पगला क्या है क्या ?

क्या कह रहे हो ?''

भईया का है ना, उसमें बहुते तरह का फायदा रहता है ! तरह-तरह का सहूलियत मिलता है ! नौकरी भी लग जाता है ! ई, झा-वा में कुच्छो नहीं रखा !'' 

मुझे तो जैसे सांप सूँघ गया हो ! उसको कैसे समझाऊं, जब खुद ही कुछ नहीं समझ पा रहा था ! बिनोद जवाब के लिए मेरा मुंह जोह रहा था ! कुछ तो मुझे बोलना ही था......! किसी तरह कहा,

अरे ! ऐसा थोड़े ही होता है, यह कोई नाम या धर्म थोड़े ही है, जो जब चाहे बदल लिया ! जाति एक ऐसी व्यवस्था है जो हमारे यहां कर्म से नहीं जन्म से निर्धारित होती है। इसलिए कोई इंसान अपनी जाति कभी भी नहीं बदल सकता ! यदि ऐसा हो जाए तो पूरे समाज का ढांचा बिगड़ जाएगा ! अफरा-तफरी मच जाएगी ! वैसे यह गैर कानूनी भी है !''

पर भइया जी, हमारे जान-पहचान के एक नेता टाइप के मनई हैं, उनका राजनीती में बहुत चलता है ! बड़का-बड़का लोग से जान-पहचान है ! ऊ कह रहे थे, एक रास्ता है ! उससे सब मैनेज हो जाएगा ! थोड़ा खर्चा और समय लगेगा ! हम सोचे पहले भइया जी से पूछ लें, इसीलिए सलाह लेने आए थे !'' 

देखो, बिनोद ! मैं इतना जानता हूँ कि यह काम पूरी तरह से गैर कानूनी है ! पर इसके किसी लूप होल से यदि कोई ऐसा कर भी लेता है तो वह भी हर दृष्टि से गलत ही होगा ! इसलिए मेरी यही सलाह है कि ऐसे किसी पचड़े में मत पड़ना ! समय और पैसा दोनों बर्बाद कर दोगे ! जो भी तुम्हें ऐसा हो जाने का आश्वासन दे रहा है, वह गलत कर रहा है ! हमारे देश में किसी भी जाति में पैदा हुआ व्यक्ति कितनी ही कोशिश कर ले, अपने रहने की जगह बदल ले, नाम बदल ले या धर्म ही बदल ले, वह अपनी जाति से पीछा नहीं छुड़वा सकता।''

पर भईया जी, यदि कोई अपना धर्म बदल ले, तब तो उसका जाति खत्म ना हो जाता है ?'' 

क्या कहना चाहते हो ?''    

यही कि यदि हम धर्म बदल लें तो हमारा जाति ऑटोमेटेक्लि खत्म हो जाएगा और फिर हम अपना धर्म में वापस आ जाएं तो ?''

मैं समझ गया कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए इसको किसी ने पूरी पट्टी पढ़ा दी है ! अपना हित साधने के लिए इसे मोहरा बना रहा है ! इसलिए इस मामले की गंभीरता को देखते हुए उसको कहा, 

देखो बिनोद, किसी के बहकावे में मत आ जाना ! यह सब इतना सरल नहीं है ! हर धर्म में उसके कुछ अपने नियम और विभाग होते हैं ! वह एक अलग और गहन विषय है ! पर तुम इतना समझ लो कि यदि कोई इस तरह का उल्टा-सीधा रास्ता अख्तियार करता है, तो भी अपनी मन-मर्जी नहीं कर सकता ! यदि ऐसा कर वह किसी जाति विशेष को अपनाता है, तो पहले यह देखा जाएगा कि उस जाति के लोग उसे स्वीकार करते भी हैं कि नहीं ! दूसरा इस तरह जाति बदलने वाले को पहले खुद को उसी जाति का होने का प्रमाण भी देना पड़ता है ! ऐसे बहुत से केस हो चुके हैं और किसी को भी कानूनी तौर पर सफलता नहीं मिली है ! मैं फिर कहता हूँ कि इस पचड़े में मत पड़ो ! कोई जरुरी नहीं कि यह सब उटपटांग करने के बाद भी भाग्य तुम पर मेहरबान हो ही जाएगा !''

ठिक्के कह रहे हैं आप ! ई सब यदि एतना ही सहज होता तो कोई भी, जब भी चाहता अपनी जाति बदल लिए होता ! तब तो बहुते भसान मच जाता ! पर भईया जी, अपने देश में अइसे बहुते लोग हैं जो सालों से अपना नाम-उपनाम बदल कर मजे से जीवन बिता रहे हैं ! केतना लोग पकड़ा भी गया है ! तिस पर ई भी तो सच्चे है कि रसूखवाला, पइसावाला, ताकतवाला लोग ही ज्यादा गलत काम करता है ! हमको भी हमारे पिताजी मना किए थे ई सब करने से ! बोले थे, बिटवा किसी लालच में आ कर अंधे कूऐं में झलांग मत लगाना ! भगवान जो दिया है, उसमें खुश रहो ! मेहनत करते रहो, उसी से सफलता मिलेगी ! देक्खे रहे हो केतना गरीब-गुरबा का बच्चा लोग अपना मेहनत से कहां का कहां पहुंच गया ! बस, मेहनत से जी मत चुराना !''

फिर भी तुम चल पड़े ?''

नहीं भईया जी ! आप गलत सोच लिए ! माँ कसम ! हमहूँ ऐसा करना नहीं चाहते थे ! सच तो ई है कि चाह कर भी अइसा नहीं कर पाते ! हमारा आत्मा हमें करने ही नहीं देता ! पर थोड़ा समय के लिए मन डगमगा गया था ! का है ना कि हमसे अपने पिताजी और माँ का हालत देखा नहीं जाता ! इस उमर में भी दिन-रात खटते हैं ! फिर भी ना खाना ढंग का मिलता है ना हीं रहना ! हमहूँ तो इधर कुछ ज्यादा नहीं कर पा रहे हैं  !उनको कुछ हो गया तो हम अपने को कभी माफ़ नहीं कर पाएंगे !  ऐ ही वास्ते मन बेचैन रहता है ! ऊही से थोड़ा भटक गए थे.....!

बिनोद की आँखें भर आईं थीं ! मैं समझ रहा था, एक बेटे का अपने माता-पिता से लगाव ! उनके प्रति उसका अपना कर्तव्य ! उसका दर्द ! उसकी छटपटाहट ! उसकी मजबूरी ! उसकी हताशा !    

मैंने उसके सर पर हाथ रखा ! वह फफक पड़ा ! कुछ देर बाद अपने को संभाल बोला,

भईया जी, हमको माफ कर दीजिए''

अरे ! किस बात की माफ़ी ? तुमने क्या किया है ? तुम तो खुद ही समझदार हो ! उठो ! मुंह-हाथ धो लो ! फिर एक-एक कप चाय हो जाए, भाभी को बोल दो पकौड़ों के लिए ! 

बाहर बारिश की झमाझम सुखद लगने लगी थी !   

गुरुवार, 23 मई 2024

क्यों.....?

पर जब देशभगतों की जगह देशद्रोहियों को तरजीह दी जाने लगे ! जिस देश की आजादी के लिए लोगों ने अपने परिवार के परिवार होम कर दिए, उसी देश के टुकड़ों की कामना करने वालों को जब नेता बनाया जाने लगे ! सनातन धर्म को ही जब गालियां दी जाने लगें ! अपने ही देवी-देवताओं पर सवाल उठाए जाने लगें ! देश की मान-मर्यादा को विदेशों में उछाला जाने लगे ! अपने मतलब के लिए अपने धुर विरोधियों के सामने समर्पित होने की नौबत आने लगे ! तो भईया जी बताइए कौन उस पार्टी का साथ देगा और क्यों...........??

#हिन्दी_ब्लागिंग 

बेतहाशा गर्मी की अपरान्ह बेला में घंटी की ध्वनि पर दरवाजा खोला, तो सामने बिनोद खड़ा था ! बहुत दिनों पर आया था ! अंदर बुला, बैठाया और पूछा, अरे बिनोद ! कहां थे इतने दिनों तक ? नजर नहीं आए !''

गांव गया था, भईया !'' 

गांव ! कहां पर ! इतनी गर्मी में ? 

गिरिडीह, झारखंड ! ऊ का है कि.........वोट देने खातिर गया था !''

सिर्फ वोट देने ! इतनी दूर ! पर पहले तो तुम ...........!''

नहीं ! इस बार सोचे कि वोट देना जरुरी है ! आपहिं तो बताए थे कि कइसे एक ठो वोट से भी केतना फर्क पड़ जाता है ! 

मैं आश्चर्य से उसका चेहरा देख रहा था ! जो अपने परिवार की हारी-बिमारी में भी तीन बार सोचता था घर जाने को, वह इस बार चुनाव में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने का, मौसम की विपरीत परिस्थितियों में भी, मन बना गया ! ठीक है इसी बहाने घर-परिवार से मिलना-जुलना भी हो गया पर वह प्राथमिकता नहीं थी ! सच कहूं तो यह बदलाव यह जागरूकता सुखद भी लगी ! 

चलो बहुत अच्छा किया, सबसे मिल भी आए ! पर यह तो बताओ किसको वोट दिए ? अब तो दे ही आए हो छिपाने की कोई बात ही नहीं है, बता सकते हो !''

नहीं छिपाने का कोनो बात ही नहीं है इसमें भईया जी, भाजपा को दिए हैं !''     

भाजपा को ? पर तुम और तुम्हारा परिवार तो कट्टर कांग्रेस समर्थक रहे हो सदा से !''

बिनोद मुंह नीचे किए बैठा रहा ! जैसे भीतर चल रहे अंतर्द्वंद्व से जूझ रहा हो ! फिर गहरी सांस ली, बोला- 

हम जैसे लोगों के लिए बहुत मुश्किल होता है भईया जी, इस तरह का बदलाव ! किसी परंपरा को, किसी चलन को, किसी आस्था को झटके से बदलना आसान नहीं होता ! हम लोग आजकल के नेताओं की तरह तो हैं नहीं ! जिनकी आत्मा सुबह किसी के, तो शाम किसी और के प्रति समर्पित हो जाए ! जो सिर्फ अपने व्यक्तिगत मतलब या स्वार्थ के कारण अपनी वफादारी बदल लें ! हम जुड़े होते हैं अपने अतीत से, अपने अनुभवों से, अपनी सच्चाई से ! मेरा परिवार देश के अनगिनत लोगों की तरह देश की आजादी की लड़ाई का हिस्सा रहा है ! मेरे दादा-दादी दुन्नो अंग्रेजों की जेल में रहे थे ! हमारे बुजुर्गों ने देखा है, लोगों को आजादी के यज्ञ में होम होते ! विभाजन का दर्द भोगा है ! जीया है उन पलों को ! पैबस्त हैं वे दर्दनाक लम्हें हमारे जिगर में ! उस समय कांग्रेस ही सामने थी, उसीका संघर्ष दिखलाई पड़ता था ! देश का हर बड़ा नेता उसी से जुड़ा हुआ था ! इसीलिए हमारी पिछली पीढ़ियां उसके प्रति समर्पित हो गईं ! समर्पण भी ऐसा कि यदि सत्य भी शरीर धारण कर सामने आ, उसके विरुद्ध कुछ बोले तो किसी को स्वीकार्य नहीं था !  किसी नेता के निधन हो जाने पर घर में खाना नहीं बनता था ! हमारे बुजुर्गों के लिए पार्टी की बात धर्म वाक्य की तरह होती थी ! अपने जीवन के अंत तक उन्होंने उसका दामन थामे रखा था !''

कुछ उदास हो उसको चुप होते देख मैंने पूछ ही लिया, 

फिर यह बदलाव कैसे ?''

बिनोद ने सर उठाया ! सीधे मेरी आँखों में देखा ! उसकी दृष्टि से एक बार तो मैं भी असहज हो गया ! उसकी धीर-गंभीर आवाज ऐसे लगी जैसे किसी गहरे कुएं से आ रही हो !

भईया जी ! वह देश प्रेम था जिसके लिए लोगों ने बेपरवाह हो अपनी जानें कुर्बान कर दीं ! अपने परिजनों को खो दिया ! फिर उसी देश के टुकड़े हो गए ! जैसे किसी ने माँ को बांट दिया हो ! पिछली पीढ़ियों में वह घाव कभी भरा नहीं ! फिर भी वे पुराने नेताओं को याद कर इस दल के साथ ही बने रहे ! समय बदला, नेता मतलबपरस्त होने लगे ! देश पीछे छूटता गया व्यक्ति व परिवार व उसका अहम हावी होते चले गए ! आजादी की लड़ाई लड़ने वाली पार्टी अपनी अंदरूनी लड़ाई में लिप्त हो गई ! पुराने लोगों का मोहभंग होने लगा, कार्यकर्त्ता दल छोड़-छोड़ कर जाने लगे !  फिर भी बहुत से लोगों ने धैर्य बनाए रखा कि शायद कुछ सुधार हो ही जाए ! 

पर जब देशभगतों की जगह देशद्रोहियों को तरजीह दी जाने लगे ! जिस देश की आजादी के लिए लोगों ने अपने परिवार के परिवार होम कर दिए, उसी देश के टुकड़ों की कामना करने वालों को जब नेता बनाया जाने लगे ! सनातन धर्म को ही जब गालियां दी जाने लगें ! अपने ही देवी-देवताओं पर सवाल उठाए जाने लगें ! और तो और श्री राम तक को सम्मान देने से कतराने लगें! देश की मान-मर्यादा को विदेशों में उछाला जाने लगे ! अपने मतलब के लिए अपने धुर विरोधियों के सामने समर्पित होने की नौबत आने लगे ! तो भईया जी बताइए कौन उस पार्टी का साथ देगा और क्यों...........??

बिनोद चुप हो गया ! उसका यह रूप मैंने पहली बार देखा था ! आजतक उसको अपनी रोजी-रोटी के लिए जूझते एक युवा के तौर पर ही तवज्जो दी थी ! पर ऐसी सोच ! ऐसा विश्लेषण ! इतना आक्रोश पहली बार देखा था ! वह पहचान बन रहा था, आजकी युवा पीढ़ी का ! वह मिसाल का रूप ले रहा था, आज की पीढ़ी की जागरूकता का ! और सबसे बड़ी बात यह उद्घोष था, हर उस नेता के विरुद्ध, चाहे वह किसी भी पार्टी या दल का हो, जो खुद को देश, देश के संविधान और उसकी व्यवस्था के ऊपर खुद को रख, अवाम को नासमझ मान, अपना उल्लू सीधा करने की फिराक और गलतफहमी में रह किसी भी तरह सत्ता को हथियाने का उपक्रम करता रहता है !

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2023

अनियमितता, एक अनिश्चितताओं से भरे खेल की

क्रिकेट की एक और दिलचस्प खासियत यह है कि इसकी पिच, जिस पर इसे खेला जाता है, उसकी लंबाई और चौड़ाई (22 गज x 10 फिट) तो तय होती है, पर मैदान का आयाम, जो कहीं गोल होता है तो कहीं अंडाकार यानी ओवल शेप में, तो कहीं अनियमित आकार लिए हुए, उसका कोई निश्चित माप नहीं होता ! हॉकी, फुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन जैसे दूसरे खेलों के मैदानों के आकार या माप जिस तरह तय रहते हैं, वैसा क्रिकेट में नहीं होता ! इस अनिश्चितताओं से भरे खेल में यह एक ऐसी अनियमितता है, जिस पर शायद ही कभी बात होती हो...........! 

#हिन्दी_ब्लागिंग      

इन दिनों एक दिवसीय क्रिकेट की एक बड़ी या कह सकते हैं महा-प्रतियोगिता चल रही है ! अब क्रिकेट का माहौल है तो जाहिर है, उसकी बातें चहुं-ओर होनी ही हैं ! हमारे देश के लोग तो वैसे भी इस खेल के कुछ अतिरिक्त ही दिवाने हैं ! भारत में क्रिकेट को इसके प्रशंसकों द्वारा एक धर्म ही बना दिया गया है, जहां क्रिकेटरों को भगवान की तरह माना जाने लगा है ! ऐसी प्रतियोगिताओं में हजारों-हजार लोग स्टेडियम में हो-हल्ला मचाने तो पहुंचते ही हैं, उनसे कहीं ज्यादा लोग घर में बैठ अपना रक्तचाप और दिल की धड़कनों को अनियमित बनवाते रहते हैं ! ऐसे ही दीवाने अब्दुल्लों के भरोसे टीवी पर इसका सीधा प्रसारण करने वाले अतिरिक्त कमाई की खातिर अपनी दुकान, खेल शुरू होने के दो घंटे पहले ही खोल कर बैठ जाते हैं ! मजे की बात यह है कि उस दुकान पर कुछ ऐसे लोग भी ज्ञान बेचने का मौका पा जाते हैं जिन्होंने अपने समय में हाई स्कूल की परीक्षा भी पास नहीं की होती ! कुछ सदा के फिस्सडी यहां विशेषज्ञ बने नजर आते हैं ! इस खेल की महानता है कि यह अपने से जुड़े किसी भी बंदे को निराश नहीं करता कुछ ना कुछ उपलब्ध करवा ही देता है !  

बात की बात में बात कहां तक चली गई ! बात हो रही थी खेल की ! तो यह खेल अपनी अनिश्चितताओं के लिए प्रसिद्ध है ! यही विशेषता इसे अन्य खेलों से कुछ अलग भी बनाती है ! यह एक मात्र खेल है, जहां अपनी एक भूल को भी सुधारने का कोई और मौका नहीं मिलता, खास कर बैटर को ! आउट....तो.....आउट ! दुनिया के हर खेल में, खेल के दौरान खिलाडियों को अपनी गलती या कहिए गलतियां सुधारने के और भी अवसर मिल जाते हैं पर इस क्रूर खेल में एक गलती हो गई तो बस, सब खल्लास.......! कई बार तो वह एक गलती खिलाड़ी के जीवन भर के कैरियर को ही बर्बाद कर बैठती है ! पर यही क्रूरता इस खेल को और भी लोकप्रिय बनाती चलती है ! ___________________________________________________________________________

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आपकी आँखें हमारे लिए अनमोल हैं 
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क्रिकेट की एक और दिलचस्प खासियत यह है कि इसकी पिच, जिस पर इसे खेला जाता है, उसकी लंबाई और चौड़ाई (22 गजx10 फिट) तो तय होती है, पर मैदान का आकार, जो कहीं गोल होता है तो कहीं अंडाकार यानी ओवल शेप में, तो कहीं अनियमित आकार लिए हुए, उसका कोई निश्चित माप नहीं होता ! हॉकी, फुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन जैसे दूसरे खेलों के मैदानों के आकार-आयाम जिस तरह तय रहते हैं, वैसा क्रिकेट में नहीं होता ! इस अनिश्चितताओं से भरे खेल में यह एक ऐसी अनियमितता है, जिस पर शायद ही कभी बात होती हो ! हाँ, बाउंड्री 65 मीटर से कम और 90 मीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा पुरुषों के क्रिकेट के लिए मैदान का व्यास आमतौर पर 450 फीट (137 मीटर) से 500 फीट (150 मीटर) के बीच और महिला क्रिकेट के लिए 360 फीट (110 मीटर) से 420 फीट (130 मीटर) के बीच होता है।  

वैसे आजकल यह खेल भी पैसा कमाने के अहम जरिए का रूप लेता जा रहा है ! दर्शकों को आकर्षित और रोमांचित करने की तरकीबें खोजी जाने लगी हैं ! भद्र पुरुषों का खेल कहलवाने वाले क्रिकेट का मूल स्वभाव बदलवाया जा रहा है ! इस खेल का बैटिंग वाला पक्ष वो हिस्सा है जो इस खेल को रफ्तार देता है, यही चीज दर्शकों और क्रिकेट प्रेमियों को ज्यादा पसंद भी है ! इसी कारण इस खेल में बैटर का दबदबा बढ़ता चला जा रहा है और बॉलर धीरे-धीरे गौण होते जा रहे हैं ! आज बैटर को ध्यान में रख नियम-कानून बनते हैं ! बैटिंग के लिहाज से पिचें तैयार करवाई जाने लगी हैं ! नियम बनाने वालों का सारा ध्यान खेल के तीनों रूपों में ज्यादा से ज्यादा रन बनवाने और चौके-छक्के लगवाने में ही रहता है ! चलो, बैटर को अपनी गलती सुधारने का मौका भी तो नहीं मिलता है, ऐसी रियायत ही सही ! इससे रोमांच तो बढ़ा ही है ! ठठ्ठ के ठठ्ठ लोग तमाशा देखने उमड़े भी पड़ रहे हैं ! 

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विडंबना है कि मैदान भले ही छोटा हो, पर दर्शक दीर्घाएं और-और बड़ी होने लगी हैं ! जिससे असीमित लोगों को समेटा जा सके ! टिकटों की कीमतें आकाश छूने लगी हैं ! पैसा बरस रहा है ! खेल व्यवसाय बन गया है  ! खिलाड़ी मशीन ! उन पर अब सर्दी-गर्मी-बरसात-धूप-लू, अँधेरे-उजाले किसी भी व्याधि का कोई असर नहीं पड़ता ! इधर खेल अपनी भावना को ले कर अचंभित सा कहीं दुबका पड़ा है !   

बुधवार, 6 जुलाई 2022

विडंबना, हमारी........देश की

उसे पता ही नहीं चलता कि कब उनमें से ही एक लगने वाले के नीचे से सायकिल की गद्दी खिसक कर हवाई जहाज की सीट आ जाती है ! कब उन्हीं से मांग कर बीड़ी-चाय पीने वाले की दसियों फैक्ट्रियां बन जाती हैं ! कब उसके और "उसके अपने" के बीच कमांडो की फौज आ खड़ी हो जाती है ! वह जुमलों, आश्वासनों और दिखाए जा रहे दिवास्वप्नों से ऐसा सम्मोहित हो जाता है कि उसे आभास ही नहीं होता कि उसकी एकलौती कमीज तो चीथड़ों में बदल गई है पर उसके खेवनहार के शरीर को रेशम सहलाने लगा है.......!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
हमारे देश में कुछ लोग सदा से अनपढ़, अर्धशिक्षित, मूढ़ व भोले-भाले लोगों के अज्ञान और उनकी सरलता का लाभ उठा, उन्हें जाति-धर्म-वर्ण के मायाजाल में उलझा, वर्षों से अपना उल्लू सीधा करते आए हैं। अपनी परिस्थितियों को अपनी नियति मान लेने वाले उनके पिछ्ल्गुओं को कभी यह ख्याल तक नहीं आता कि हमारा भला चाह-चाह कर "दुबले" होने वाले हमारे किसी एक नेता ने भी आज तक क़भी अपने बेटे या बेटी की शादी किसी सर्वहारा से कर उसके परिवार से नाता क्यों नहीं जोड़ा ?  क्यों किसी नेता की औलाद आज तक सेना में नहीं गई ? क्यों नहीं उनके परिवार किसी सदस्य को आम इंसान की तरह किसी नौकरी की तलाश में जूतियां घिसनी पड़तीं ? क्यों जरा सी छींक आने पर भी ये विदेश भागने लगते हैं ? क्यों इनकी संतानें, लायक ना भी हों तो भी, विदेशों में शिक्षा पाने पहुँच जाती हैं ? क्यों इनकी नस्लें देश को अपनी बपौती मान लेती हैं ? क्यों इनके शहजादे ही राजा बनने का हक पा जाते हैं ? क्यों तो बहुत सारे हैं पर धर्म, जाती, भाषा की अफीम में उनको ऐसा गाफिल कर दिया जाता है कि वह सामने वाले की तरक्की को ही अपनी सफलता समझने लगता है !     

उस एक वोट की शक्ति वाले को आश्वासनों के सुनहरे संसार में ऐसा दिग्भर्मित कर दिया जाता है कि वह कुछ देख-समझ ही नहीं पाता ! उसे पता ही नहीं चलता कि कब उनमें से ही एक लगने वाले के नीचे से सायकिल की गद्दी खिसक कर हवाई जहाज की सीट आ जाती है ! कब उन्हीं से मांग कर बीड़ी-चाय पीने वाले की दसियों फैक्ट्रियां बन जाती हैं ! कब उसके और "उसके अपने" के बीच कमांडो की फौज आ खड़ी हो जाती है ! वह अपने नेता के जुमलों, उसके आश्वासनों, उसके द्वारा दिखाए जा रहे दिवास्वप्नों में ऐसा सम्मोहित हो जाता है कि उसे आभास ही नहीं होता कि उसकी एकलौती कमीज तो चीथड़ों में बदल गई है पर उसके खेवनहार के शरीर को रेशम सहलाने लगा है !   

ऐसा नहीं है कि किसी ने इनको समझाने की कोशिश नहीं की या ऐसा पहली बार लिखा जा रहा है ! कोशिशें तो बेशुमार हुईं, पर उनको नाकाम करने की पुरजोर कोशिश भी साथ-साथ हुई ! अपना दबदबा, अपनी सियासत, अपना रुआब, अपना राजपाट कौन छोड़ना चाहता है ! गाहे-बगाहे इस टकराव का भीषण परिणाम देश-समाज को झेलना पड़ता रहा है ! उधर जिनके हित के लिए प्रयास किए जाते हैं उन पर धर्म-भाषा-जाति की कॉकटेल का नशा इतना हावी है कि उनकी समझने-विचारने की क्षमता लुप्तप्राय हो गई है ! मदमत्त यही देख-सुन कर आह्लादित होता रहता है कि उसकी जाती-धर्म वाले की हैसियत राज करने वाली है !   

हर बार विभिन्न मंचों से घोषणाएं होती रहती हैं कि अशिक्षा का अंधकार दूर होना चाहिए, किया जाएगा ! पर ऐसा बोलने वाला भी कब चाहता है कि अँधेरा दूर हो ! क्योंकि तम हटते ही उसके खम जगजाहिर हो जाएंगे ! पर कोई भी चीज-समय-परिस्थिति स्थाई नहीं होती ! इसीलिए उस सुबह का आना भी तय है, जब अज्ञानता का अँधेरा छंटेगा, ज्ञान का सूरज सभी दिशाओं को आलोकित करेगा ! शायद थोड़ा सा और इंतजार करना पड़े पर बदलाव आना निश्चित है.......!

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2022

कहां पगड़ी और कहां हिजाब

अक्ल के अंधे और गाँठ के पूरे, अपने को देश वासियों से अलग और ऊपर मानने वाले कुछ फिल्मी लोग भी अपनी समझदानी की डिबिया खोल ज्ञान बघारने लगे ! तुलना करने वालों को मुंह खोलते शर्म भी नहीं आई ! कहां पगड़ी और कहां हिजाब ! यह पगड़ी यानी दस्तार सिर्फ कपडे का टुकड़ा नहीं है ! सिक्ख धर्म का अनिवार्य हिस्सा है यह उस बहादुर कौम के शरीर का ही एक अंग है ! यह सबसे बड़ी पहचान है, सिक्खों की, जिसे वर्षों तक अत्याचारों, अन्यायों, शोषणों व ज्यादितियों के विरुद्ध असंख्य कुर्बानियों, शहादतों व त्यागों के बाद हासिल किया गया है ! गुरु आज्ञा से धारण किया जाने वाला दस्तार सिखों की मान-मर्यादा-सम्मान और गौरव का प्रतीक है.............. ! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

देश के टुकड़े हो गए ! अंग्रेज स्थूल रूप से चले गए, पर जिन्होंने राज हथियाया, उन पर उनका प्रतीयमान सदा हावी रहा ! ''फूट डालो और राज करो'' को गुरु मंत्र की तरह अंगीकार कर लिया गया ! राज करने वालों की सिर्फ चमड़ी का रंग बदला, कार्य प्रणाली वही रही ! आजादी पाने की ख़ुशी में सब कुछ भूले अवाम को इस कदर अपने आभा मंडल से सम्मोहित कर दिया गया कि उसे "हर तरफ तू ही तू" नजर आने लगा ! धीरे-धीरे धर्म-जाति-भाषा रूपी अफीम चटाई जाने लगी ! लिहाजा वो अवाम जो कभी देश के लिए एक आवाज पर एकजुट हो कंधे से कंधा मिला खड़ा हो जाता था, अब बड़े से बड़े घटनाक्रम पर भी आँख मीचे अपने खोल में दुबका रहने लगा है ! सत्ता-पिपासु जो चाहते थे, वही हुआ ! 

अब चुनाव लियाकत की बजाय भीड़ की बदौलत जीते जाने लगे हैं ! उस भीड़ को बरगलाने के लिए तरह-तरह की शोशेबाजियों का सहारा लिया जाने लगा है ! कोई भी चुनाव आते ही तरह-तरह जुमले उछलने लगते हैं ! साधारण सी स्थानीय बात को कुछ लोगों की अज्ञानता का लाभ उठा, उनकी भावनाओं को भड़का, पैसे के बल पर राष्ट्रीय मुद्दा बना देश में अराजकता फैलाने का कुत्सित प्रयास शुरू हो जाता है ! हाल के पांच राज्यों के चुनाव में यह खेल फिर नजर आया है ! इस बार हिजाब का सहारा ले लोगों को भड़काने का कुचक्र रचा गया है ! मूर्खता की अति तो तब हो गई, जब इसकी तुलना सिक्खों की पगड़ी से कर दी गई ! जबकि दोनों कि कोई तुलना हो ही नहीं सकती ! क्योंकि एक है जो देश-दुनिया में शान से अपनी पहचान उजागर करवाती है तो दूसरी ओर वह है जो पहचान को छुपाने का काम करता है !

तुलना करने वाली इस जमात में तथाकथित बुद्धिजीवी, सदा से देश के खिलाफ रहे साम्यवादी, मौकापरस्त राजनीतिज्ञ, पैसे के गुलाम न्याय-भक्षक या देश विरोधी ताकतें तो शामिल थी हीं, साथ ही अक्ल के अंधे और गाँठ के पूरे, अपने को देश वासियों से अलग और ऊपर मानने वाले कुछ फिल्मी लोग भी अपनी समझदानी की डिबिया खोल ज्ञान बघारने लगे ! तुलना करने वालों को मुंह खोलते शर्म भी नहीं आई ! कहां पगड़ी और कहां हिजाब ! यह पगड़ी यानी दस्तार सिर्फ कपडे का टुकड़ा नहीं है ! सिक्ख धर्म का अनिवार्य हिस्सा है !  यह सबसे बड़ी पहचान है सिक्खों की, जिसे वर्षों तक अत्याचारों, अन्यायों, शोषणों व ज्यादितियों के खिलाफ असंख्य कुर्बानियों, शहादतों व त्यागों के बाद हासिल किया गया है ! यह उस बहादुर कौम के शरीर का ही एक अंग है ! गुरु आज्ञा से धारण किया जाने वाला दस्तार सिखों की मान-मर्यादा-सम्मान और गौरव का प्रतीक है !

दूसरी तरफ हिजाब महिलाओं द्वारा लोगों से बात करते समय ओट के लिए काम आने वाला एक पर्दा है ! ठीक है, कई तरह के लोगों से महिलाओं का वास्ता पड़ता है, इससे अवांछित लोगों से आड़ बनी रहती है ! इससे आज तक किसी को कोई परेशानी भी नहीं थी ! पर अब इसी की आड़ में असमाजिक तत्वों द्वारा अपनी पहचान छुपा देश-समाज में अराजकता फैलाने की कोशिश हो रही है ! इसीलिए यह अब विवाद का विषय बन गया है ! वैसे इसे किसी के निजी जीवन से हटाने की किसी की मंशा नहीं है पर विद्यालय-महाविद्यालय जैसी जगहों में जहां अनुशासन प्राथमिकता है वहां के लिए जिद करना बेमानी है ! यदि इसके पक्ष में खुद के परिधान पहनने की मौलिक अधिकार की दुहाई दी जा रही है, तो "एमयू" के द्वारा जारी ड्रेस-कोड को क्या कहा जाएगा, जिसमें वहां की छात्राओं को सिर्फ सलवार-कमीज और दुपट्टा ही पहनना अनिवार्य है ! इसे क्या कहेंगे ! वहां क्यों नहीं विरोध होता ? दोहरी मानसिकता तो कबूल नहीं की जा सकती !

जिनका है वे तो हिजाब के पक्ष में खड़े होंगे ही, शुरू से ही उन्हें इसकी आदत है ! पर सिर्फ अपने मतलब के लिए इस विवाद को हवा दे, उनका साथ देने वाले विघ्नसंतोषी, मौकापरस्त ! क्या उन्हें अपना इतिहास नहीं मालुम ? क्या उन्हें सिक्ख धर्म की स्थापना क्यों और कैसे हुई, इसका ज्ञान नहीं ? क्या भूल गए ये लोग गुरुओं की परपरा को, उनकी वाणी को, उनके त्याग को, उनकी कुर्बानियों को ? क्या इन कुटिलों को पगड़ी की महत्ता का एहसास नहीं है ? क्या उन्हें नहीं मालुम की एक सिक्ख जान दे सकता है पर अपनी पगड़ी अपने दस्तार पर आंच नहीं आने दे सकता ! एक बार मुंह खोलते समय तनिक भी हिचकिचाहट नहीं हुई इन लोगों को तुलना करते हुए कि मैं क्या बोलने जा रहा हूँ ! क्रोध नहीं, घिन्न आती है ऐसे लोगों पर !

सही बात तो यह है कि अब आम देशवासी भी सब देखने समझने लग गया है ! उसे पहले की तरह भरमा या बेवकूफ बना कर नहीं रखा जा सकता ! इस खेल को भी सब समझ रहे हैं कि कौन-कैसे अपनी ओछी मानसिकता और लिप्सा के कारण क्यों और क्या कर रहा है ! किसको देश-समाज-सर्वहारा की चिंता है और किसे सिर्फ और सिर्फ अपनी ! आशा है हाशिए पर सरका दिए जाने के बावजूद अपने गुमान के नशे में खोए लोग जल्द असलियत की धरती पर उतर उसकी कठोरता का आभास पा सकेंगे !

बुधवार, 18 मार्च 2020

प्रभु कभी अपने बच्चों को नहीं बिसारते

आज  कोरोना की भयावकता को देख युद्ध स्तर पर इसके खिलाफ मुहीम छेड़ी जा चुकी है ! जिसके तहत कई मंदिरों को बंद कर दिया गया है तो कुछ में अत्यधिक सावधानी बरती जा रही है। इस पर कुछ अति बुद्धिमान तथा आत्मश्लाघी विद्वान भगवान का मजाक उड़ाने से भी बाज नहीं आ रहे ! इसी पर एक पुरानी कहानी याद आ गयी...............! 

#हिन्दी_ब्लागिंग
देश के एक हिस्से में बरसात के दिनों में तूफ़ान आ जाने से हाहाकार मचा हुआ था ! सैलाब ने हर ओर तबाही मचा दी थी ! बड़े-बड़े घर जमींदोज हो गए थे ! धन-जन की बेहिसाब क्षति हुई थी। इंसान-पशु-मवेशी सब बाढ़ की चपेट में आ जान गंवा रहे थे। ऐसे में भगवान में गहरी आस्था रखने वाला एक आदमी किसी तरह खुद को बचाते हुए एक पेड़ पर बैठा प्रभु से खुद को बचाने की गुहार लगा रहा था। उसे पूरा विश्वास था कि भगवान् उसकी रक्षा जरूर करेंगे। तभी उधर से एक नाव गुजरी और उसे देख उन्होंने पुकार कर कहा कि नौका में आ जाओ ! पर उसने जवाब दिया कि आप जाओ, मुझे मेरे भगवान बचा लेंगे। उसे ना आता देख नाव आगे बढ़ ली। कुछ देर बाद वहां से लोगों को पानी से बचा सुरक्षित जगह तक ले जाता हुआ एक स्टीमर गुजरा, उसमें बैठे कर्मियों के उसे बुलाने पर उसने उनको भी वही जवाब दिया, कि उसे उसके प्रभु बचा लेंगे ! उसको समझाने का कोई असर ना होते देख वे भी आगे चले गए। इधर शाम घिरने लगी थी, ऐसे में कुछ देर बाद उधर से सेना के जवान अपनी मोटर बोट से निकले और इसे देख बोले कि इधर के सभी लोगों को बचा लिया गया है, यह अंतिम प्रयास है ! तुम ही बचे हो आ जाओ ! पर इस भोले भक्त ने फिर वही राग अलाप कर ईश्वर की दुहाई दी ! लाख समझाने पर भी उसके ना मानने और अपने राहत कार्य में विलंब होता देख वे लोग भी आगे बढ़ गए।

रात घिर आई, पानी का वेग बढ़ गया और वह पेड़ जिसका सहारा उस आदमी ने लिया था उखड कर पानी में जा गिरा ! दिन भर के भूखे-प्यासे, थके-हारे उस आदमी की पानी से संघर्ष ना कर पाने से मौत हो गयी। मरणोपरांत जब वह ऊपर भगवान के सामने हाजिर हुआ तो गुस्से से भरा हुआ था ! उसने चिल्ला कर शिकायत की कि मैं तुम्हारा भक्त, मुसीबत में पड़ा, गहरी आस्था से तुम्हें पुकार रहा था ! मुझे पूरा विश्वास था कि तुम मुझे बचा लोगे ! पर तुमने तो मेरी एक ना सुनी और मुझे मार ही डाला, ऐसा क्यों ?
प्रभु बोले, अरे मुर्ख ! मैंने तो तेरी हर पल सहायता करनी चाही ! पहले एक नाव भेजी, तूने उसे नकार दिया ! फिर मैंने स्टीमर भेजा, तू उसमें भी नहीं चढ़ा ! फिर मैंने सेना के जवानों को तुझे बचाने भेजा, पर तू कूढ़मगज तब भी नहीं माना ! तो क्या मैं खुद गरुड़ पर सवार हो तुझे बचाने आता ? चल जा अपने लेखे-जोखे का हिसाब होने तक अपने अगले जन्म का इंतजार कर !

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