कभी आपने इन कैदी जीवों के चेहरों को ध्यान से देखा है ? जहां हर जीव के चेहरे पर बेबसी, छटपटाहट, निराशा, उदासी, थकावट, उकताहट जैसे भाव स्थाई हो कर रह गए होते हैं ! यहां इन्हें आहार बिना किसी उपक्रम के मिल जाता है ! इसलिए बिना दौड़-भाग के सिर्फ खाने और सोने के कारण उनकी शारीरिक क्रियाऐं दिन ब दिन शिथिल होती चली जाती हैं और ये समय से पहले बूढ़े, बीमार होते चले जाते हैं.........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
इंसान सदा से एक फितरती प्राणी रहा है ! वह अपने आप को संसार के सभी जीवों से उत्कृष्ट मानता आया है ! उसे लगता है कि वही इस जगत का स्वामी है, बाकी सारे जीव-जंतु उसकी मिल्कियत हैं ! इतना ही नहीं यदि वह सक्षम व सशक्त भी हो जाए तो वह तो निरीह इंसानों तक को नहीं बख्शता,उनको अपना दास बना लेता है, जानवर क्या चीज हैं ! इसी मानसिकता के चलते कई लोग अपने शौक की पूर्ती के लिए जानवरों के बच्चों को पालते हैं ! जिनमें कई खूंखार जंगली नस्लें भी होती हैं ! शौक-शौक है ! बस, उसे पूरा करने की क्षमता होनी चाहिए ! संसार में ऐसे सक्षमों की कोई कमी नहीं है !
जानवरों को पालना कोई बुरी बात नहीं है ! देश-विदेश में ऐसा वर्षों से होता आया है ! यदि पशु-पक्षी बेसहारा हो, अपने परिवार से बिछुड़ा हुआ हो या उसकी जान को खतरा हो तो उसकी रक्षा करना, उसका जीवन बचाना पुण्य का काम माना जाता है ! परंतु सिर्फ अपने शौक को पूरा करने के लिए जंगली जानवरों के शावकों, पशु-पक्षियों या अन्य जीवों को सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए बंदी बनाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता !
शुरू-शुरू में पशु शावकों और इंसानों में सौहार्द बना रहता है, बच्चों को दुलार, प्यार, सेवा, सुरक्षा सब मिलता है, परंतु जब वही शावक कुछ बड़े हो जाते हैं और उनमें उनकी नैसर्गिक क्षमताएं, आदतें और प्रवित्तियां उभरने लगती हैं तो इंसानों को वे अपने लिए खतरा लगने लगते हैं और उन्हीं से डर कर उन्हें पिंजड़ों में बंदी बना नारकीय जीवन जीने पर मजबूर कर दिया जाता है !
चिड़ियाघर भी कुछ ऐसी ही जगह है ! फर्क इतना ही है कि वहां शौक नहीं बल्कि इंसान के जानने, समझने के नाम पर बेकसूर जीवों को छोटे-बड़े पिजरों में आजन्म कैद कर रखा जाता है ! जहां सबसे बड़ी मुसीबत सरीसृप जाति को होती है जो अपने आकार से कहीं छोटे कांच के बक्सों में कैद होते हैं ! भले ही कुछेक जानवरों के बाड़े बड़े होते हैं पर कैद, कैद होती है। आजादी, आजादी !
कभी आपने इन कैदी जीवों के चेहरों को ध्यान से देखा है ? जहां हर जीव के चेहरे पर बेबसी, छटपटाहट, निराशा, उदासी, थकावट, उकताहट जैसे भाव स्थाई हो कर रह गए होते हैं ! यहां इन्हें आहार बिना किसी उपक्रम के मिल जाता है ! इसलिए बिना दौड़-भाग के सिर्फ खाने और सोने के कारण उनकी शारीरिक क्रियाऐं दिन ब दिन शिथिल होती चली जाती हैं और ये समय से पहले बूढ़े, बीमार होते चले जाते हैं !
हालांकि हम सब में इस को लेकर थोड़ी बहुत जागरूकता तो आई है पर वह ना के बराबर है ! इन प्राणियों को भी प्रेम, प्यार, करुणा और आजादी की उतनी ही जरुरत है, जितनी कि हमें !
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
1 टिप्पणी:
सोचनीय | हम भी कभी कभी ऊपर वाले के चिड़ियाघर में पाते हैं खुद को :)
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