शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

रामटेक, श्रीराम को समर्पित क्षेत्र

अब रामटेक ठहरा श्री राम का क्षेत्र ! अब जहां राम हों वहां उनकी सेना ना हो, यह कैसे हो सकता है ! तो वहां भी कपि परिवारों की भरमार है ! उनका आतंक कहना ठीक नहीं होगा पर उनका वर्चस्व पूरी तरह से विद्यमान है ! हमारे हाथों में की पूजा सामग्री के कारण वहां हमें वैसे ही घेर लिया गया, जैसे समुद्र तट पर लंका को छोड़ कर आए विभीषण को घेर लिया गया था ! संजय जी और मैंने तो घबराहट में अपनी सारी सामग्री निहार जी को थमा दी ! अब वे किसी तरह, हाथ ऊपर-नीचे करते हुए, ऐ.....ऐ....! हट....हट...! अरे दे रहा हूँ ना.....! अरे रुक....,,जैसा कुछ-कुछ बोलते, किसी तरह पिंड छुड़ा, मुख्य द्वार से अंदर आ पाए..........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

रामटेक, महाराष्ट्र के नागपुर शहर से तक़रीबन 50 किलोमीटर की दूरी पर, विंध्याचल की रामगिरि नामक पहाड़ी पर, श्री राम को समर्पित है यह प्राचीन तीर्थ स्थल ! इसका विवरण वाल्मीकि रामायण तथा पद्मपुराण में भी उल्लेखित है ! यह जगह श्री राम के वनवास काल से जुड़ी हुई है ! दंडकारण्य से पंचवटी की यात्रा के दौरान प्रभु राम, सीताजी तथा लक्ष्मण जी ने बरसात के मौसम के चार माह यहीं टिक कर गुजारे थे ! इसीलिए इस जगह का नाम ''रामटेक'' पड़ गया ! उसी दौरान माता सीता ने यहीं अपनी पहली रसोई बना ऋषि-मुनियों को भोजन करवाया था ! इसके अलावा यही वह जगह है जहां प्रभु राम की भेंट अगस्त्य ऋषि से हुई थी और उन्होंने श्री राम को ब्रह्मास्त्र प्रदान किया था, जिससे रावण की मृत्यु संभव हो सकी ! ऐसी मान्यता है कि इसी जगह पर महाकवि कालिदास ने अपने सुप्रसिद्ध काव्य मेघदूत की रचना भी की थी ! 

पहाड़ी पर मंदिर 
मंदिर को जाती सीढ़ियां 

प्रवेशद्वार 

परिसर 

लक्ष्मण मंदिर 
पहली बार नब्बे के दशक में यहां जाने का सुयोग बना था, उसके लंबे अर्से के बाद अब जा कर पिछली मई में नागपुर जाना हुआ ! अनुज निहार को रामटेक दर्शन की इच्छा जताई ! प्रभु की मर्जी और निहार जी के प्रयास से तुरंत कार्यक्रम बन गया ! इसके साथ ही एक अच्छी बात और यह हुई कि इसी दौरान संजय जी के रूप में एक मिलनसार, हंसमुख बेहतरीन व्यक्तित्व से मिलने का सुयोग बना ! उनसे पहली बार मिलने के बावजूद एक क्षण को भी ऐसा नहीं लगा जैसे हम पहली बार मिल रहे हों ! उन्हीं के सौजन्य से ही यह दर्शन यात्रा संभव हो सकी ! 

अगस्त्य आश्रम 


वराह प्रतिमा 

समय के साथ-साथ होने वाले बदलावों से रामटेक भी अछूता नहीं है ! पिछली बार जब जाना हुआ था, तब भी निहार जी के प्रयास से यह संभव हो पाया था, तब और अब के परिदृश्य में जमीन-आसमान का फर्क आ चुका है ! सुनसान सी जगह में अब रौनक नजर आने लगी है ! ऊपर तक जाने के लिए उत्तम सड़क मार्ग बन गया है ! परिसर में कई दुकानें खुल चुकी हैं ! लोगों का हुजूम नजर आने लगा है ! अन्य धार्मिक स्थलों की तरह यहां भी रेलिंग वगैरह लगा दी गई है ! उस खुले ऊँचे स्थान को, जहां मान्यता है कि कालिदास जी ने अपना महाकाव्य लिखा था, किसी अनहोनी से बचाव हेतु घेर दिया गया है ! यहां से नीचे का विंहगम दृश्य मन मोह लेता है ! मई की उस गर्मी में भी वहां हम जैसे सैंकड़ों लोग उपस्थित थे ! 

हम 

निहार जी के साथ 


अब रामटेक ठहरा श्री राम का क्षेत्र ! अब जहां राम हों वहां उनकी सेना ना हो, यह कैसे हो सकता है ! तो उसी के अनुसार यहां कपि परिवारों की भरमार है ! उनका आतंक कहना ठीक नहीं होगा पर उनका वर्चस्व यहां पूरी तरह से विद्यमान है ! अब जैसी प्रथा है, हमने भी प्रभु अर्पण के लिए कुछ सामग्री ली थी ! जाहिर है जिसे हम तीनों के हाथों में ही रहना था ! पर उसी से आकर्षित हो वहां हमें वैसे ही घेर लिया जैसे समुद्र तट पर लंका को छोड़ कर आए विभीषण को घेर लिया गया था !  जामा-तलाशी होने लगी ! संजय जी और मैंने तो घबराहट में अपनी सारी सामग्री निहार जी को थमा दीं ! अब वे किसी तरह, हाथ ऊपर-नीचे करते हुए, ऐ.....ऐ....! हट....हट...! अरे दे रहा हूँ ना.....! अरे रुक....,,जैसा कुछ-कुछ बोलते, किसी तरह मुख्य द्वार के भीतर आए तो रहत की सांस आई !  
 
दबदबा 
   
संजय जी के साथ 

करीब छह सौ साल पुराने इस मंदिर की अद्भुत खासियत यह है कि इसका निर्माण सिर्फ पत्थरों से किया गया है, जो आपस में जुड़े हुए नहीं हैं, बल्कि जिन्हें एक दूसरे के ऊपर रख कर इस भव्य इमारत का निर्माण किया गया है और जो वर्षों से इसे जस का तस सहेजे खड़े हैं ! स्थानीय लोग इसे भगवान राम की ही कृपा बताते हैं ! जमीन से तकरीबन साढ़े तीन सौ मीटर ऊपर मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब सात सौ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, हालांकि अब मंदिर तक सड़क मार्ग बन चुका है और गाडी से आसानी से ऊपर जाना संभव हो गया है, फिर भी कुछ श्रद्धालुगण अभी भी सीढ़ियों का प्रयोग करते हैं ! इस भव्य मंदिर के परिसर की बनावट एक किले की तरह है, इसलिए इसे गढ़ मंदिर भी कहा जाता है !  
   
                                          
विहंगम दृश्य 
इस विशाल परिसर में कई मंदिर हैं, जैसे राम मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, हनुमान मंदिर, सत्यनारायण मंदिर ! इसके साथ ही रामायण व कृष्ण लीला की खूबसूरत प्रतिमाएं भी सुसज्जित हैं ! मंदिर के प्रवेश द्वार के साथ ही अगस्त्य ऋषि का आश्रम विद्यमान है ! इसके निकट ही वराह की एक विराट मूर्ति स्थित है जो एक ही शिलाखंड से उकेर कर बनाई गई है ! यहीं एक ऐसा तालाब भी है, जिसका पानी पूरे साल एक समान रहता है, चाहे कितनी भी गर्मी हो उसका पानी कम नहीं होता ! रामनवमी, हनुमान जन्मोत्सव जैसे त्योहारों पर यहां लोगों का अपार हुजूम उमड़  पड़ता है ! कभी नागपुर जाने का मौका मिले तो यहां जरूर जाएं ! पर एक बात का ध्यान रहे कि यहां की राम सेना सदा अतिथियों के स्वागत के लिए तत्पर रहती है ! इसलिए सावधान व सचेत रहने की भी जरूरत है !

*जय श्री राम*

सोमवार, 21 अगस्त 2023

सीख, अपने-अपने बापू की

व्यापारी का लड़का सोच मे पड़ गया कि क्या बापू ने झूठ कहा था कि बंदर नकल करते हैं ! उधर बंदर सोच रहा था कि आज बापू की सीख काम आई कि मनुष्यों की नकल कर कभी बेवकूफ मत बनना ! इसके साथ एक बात तो तय हो गई कि यदि आज संसार में जागरूकता बढ़ रही है, शिक्षा का प्रसार हो रहा है तो हमें किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि सिर्फ हम ही समझदार हो रहे हैं.........😄😄

#हिन्दी_ब्लागिंग 


बहुत समय पहले की बात है ! तब नाहीं हर चीज की इतनी दुकाने हुआ करती थीं, नाहीं यातायात के इतने सर्वसुलभ साधन ! ज्यादातर व्यापारी अपनी सायकिल से या पैदल ही घूम-घूम कर अपने सामान की बिक्री किया करते थे ! उन्हीं दिनों एक वणिक, रोजमर्रा के काम आने वाले कपड़ों बेचने निकला ! उसकी गठरी में चमकीली रंग-बिरंगी  छोटी-बड़ी टोपियां भी थीं ! एक गांव से दूसरे गांव घूमते-घूमते दोपहर होने पर वह एक पेड़ के नीचे सुस्ताने के लिए रुक गया। भूख भी लग आई थी, सो उसने अपनी पोटली से खाना निकाल कर खाया और थकान दूर करने के लिए वहीं लेट गया। थका होने की वजह से उसकी आंख लग गई। कुछ देर बाद नींद खुलने पर वह यह देख भौंचक्का रह गया कि उसकी गठरी खुली पड़ी थी और उसकी सारी टोपियां अपने सिरों पर उल्टी-सीधी लगा कर बंदरों का एक झुंड़ पेड़ों पर टंगा बैठा था ! व्यापारी ने सुन रखा था कि बंदर नकल करने में माहिर होते हैं ! भाग्यवश उसकी अपनी टोपी उसके सर पर सलामत थी। उसने अपनी टोपी सर से उतार कर जमीन पर पटक दी। देखा-देखी सारे बंदरों ने भी वही किया ! व्यापारी ने सारी टोपियां समेटीं और अपनी राह चल पड़ा !


समय गुजरता गया ! व्यापारी बूढ़ा हो गया ! उसके बेटे ने अपना पुश्तैनी काम संभाल लिया ! वह भी अपने बाप की तरह दूर-दूर जगहों पर व्यापार के लिए जाने लगा !  दैवयोग से एक बार वह भी उसी राह से गुजरा जिस पर उसके पिता का सामना बंदरों से हुआ था। जैसे इतिहास खुद को दोहरा रहा हो, भाग्यवश व्यापारी का बेटा भी उसी पेड़ के नीचे सुस्ताने जा बैठा ! उसने भी वहीं अपना कलेवा कर थोड़ा आराम करने के लिए आंखें बंद कर लीं। कुछ ही देर बाद हल्के से कोलाहल से उसकी तंद्रा टूटी तो उसने पाया कि उसकी गठरी खुली पड़ी है और टोपियां बंदरों के सर की शोभा बढ़ा रही हैं। पर इससे वह जरा भी विचलित नहीं हुआ क्योंकि उसके बापू ने व्यापार के गुर बताते हुए उसके दौरान आने वाली ऐसी घटनाओं का तोड़ भी बतला दिया था ! पिता की सीख के अनुसार उसने अपने सर की एक मात्र टोपी को जमीन पर पटक दिया ! पर यह क्या !!! एक मोटा सा बंदर झपट कर आया और उस टोपी को भी उठा कर पेड़ पर चढ़ गया। 
व्यापारी का लड़का सोच मे पड़ गया कि क्या बापू ने झूठ कहा था कि बंदर नकल करते हैं ! उधर बंदर सोच रहा था कि आज बापू की सीख काम आई कि मनुष्यों की नकल कर कभी बेवकूफ़ मत बनना ! इसके साथ एक बात तो तय हो गई कि यदि आज संसार में जागरूकता बढ़ रही है, शिक्षा का प्रसार हो रहा है तो हमें किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि सिर्फ हम ही समझदार हो रहे हैं.........😄

बुधवार, 16 अगस्त 2023

टमाटर तो बहाना है

वो टमाटर जो कभी बाकि सब्जियों के साथ चुपचाप सलाद के ढेर में दुबका रहता था ! वही आज कुछ मौकापरस्त लोगों के लिए राजनीतिक शस्त्र बन बैठा है ! पर क्या इसमें टमाटर की कोई गलती है ? क्या उसने खुद अपने दाम बढ़वाए हैं ? कभी प्याज, कभी टमाटर, कभी और कोई जिंस, परिस्थितिवश बढ़ी उनकी कीमतों को मुद्दा तो तुरंत बना दिया जाता है पर कारण नहीं बताए जाते ! टमाटर तो बहाना है, मौका मिल जाता है, हाशिए पर खिसका दिए गए दलों के छुटभइए, तथाकथित नेताओं को इनके सहारे, लोगों को गुमराह करने हेतु, विभिन्न मंचों पर पहुंच  बहसियाने का ! टमाटर के कीमतें तो कुछ दिनों में वश में आ जाएंगी, जरुरत है इनके सहारे लोगों को गुमराह करने वाले मौकापरस्तों को काबू कर सीख देने  की  ............!     

#हिन्दी_ब्लागिंग  

ज्ञानी, गुणी, विवेकशील लोग कह गए हैं कि अरे क्या खाने के लिए जीता है ! सिर्फ थोड़ा-बहुत जीने के लिए खा लिया कर ! अब उनको क्या बताएं कि दोनों अवस्थाओं में खाना तो खाना ही पड़ेगा और खाना सुरुचिपूर्ण होने के लिए रसना को रस मिलना जरुरी है ! अब यह तीन इंची इंद्रिय बस देखने-कहने को ही छोटी है, कारनामे इसके बड़े-बड़े होते हैं। ये चाहे तो महाभारत करवा दे ! यह चाहे तो घास-पात को अनमोल बनवा दे। बोले तो, पूरी की पूरी मानवजाति इसके इशारों पर नाचती है। भले ही उसके लिए कुछ भी, कोई भी, कैसी भी कीमत चुकानी पड़े।

वैसे इस दुनिया में कब  कोई फर्श से अर्श (इसका उल्टा भी) तक पहुँच जाए, कभी भी नहीं कहा जा सकता ! अब टमाटर को ही ले लीजिए जो साल दो साल पहले की प्याजों की राह पर चल पड़ा है ! जो चीज चमगादड़ की तरह कभी सब्जी और कभी फल के बीच झूलती रही हो ! कुछ दिनों पहले जिसे कोई टके का भाव ना दे रहा हो ! जिसे किसान सडकों पर फेंक रहे हों ! वही आज टनटनाते हुए सैकड़ों के भाव को छू रहा है ! जिस तरह प्याज ने बिना खुद को छिलवाए, लोगों के आंसू निकलवाए दिए थे, उसी तरह इसने भी बिना खुद को ग्रेवी बनवाए, लोगों की चटनी बना दी है ! पर इसके इस तरह अनमोल हो जाने में इसकी क्या गलती है ?  क्या इसने खुद अपनी कीमत बढ़वाई है ? क्या यह खुद लोप हो गया ? कभी प्याज, कभी टमाटर, कभी और कोई जिंस, परिस्थितिवश बढ़ी उनकी कीमतों को मुद्दा तो तुरंत बना दिया जाता है पर कारण नहीं बताए जाते ! टमाटर तो बहाना है, इसके कंधे के जोर से कुछेक को अपनी बंद दुकानों का शटर उठवाना है ! 

पहले भी अति वर्षा, मौसम या अन्य कई कारणों से खेती प्रभावित होती रही है ! वैसे ही कुछ कारणों से वो टमाटर जो कभी बाकि सब्जियों के साथ चुपचाप सलाद के ढेर में दुबका रहता था, वही आज टुच्ची राजनीती का शस्त्र बन बैठा है ! हाशिए पर खिसका दिए गए छुटभइए तथाकथित नेता इसको साथ ले, लोगों को गुमराह करने हेतु, मंचों पर बहसियाने पहुँच रहे हैं ! जब लुटे-पिटे दलों के ये प्रवक्ता बेशर्मी से जेब से टमाटर निकाल लोगों को दिखा-दिखा कर जबरन उसे मुद्दा बनाने के प्रयास में नौटंकी करते हैं तो  देखने वाले को तरस आने लगता है, इन जैसों की हालत पर ! टमाटर के कीमतें तो कुछ दिनों में वश में आ जाएंगी, पर जरुरत है इनके सहारे लोगों को गुमराह करने वाले मौकापरस्तों को काबू कर सीख देने  की !                                                                            

वह आधा किलो टमाटर ले रही है ! जरूर उसके पास ब्लैकमनी होगा !
(तीस साल पहले का कार्टून )

हालांकि स्थिति सोचनीय है ! जबरदस्त मंहगाई की मार में यह एक और थपेड़ा है ! हम यह सोच कर निश्चिन्त नहीं हो सकते कि हम अकेले नहीं हैं, यह विपदा संसार भर में है ! पर सिमित आय, बढ़ती मंहगाई कब तक धैर्य धरवा सकेगी ? कब तक मध्यम वर्ग अपने खर्चों में कटौती करता रहेगा ? कब तक अति जरुरी चीजों को भी अपनी औकात से बाहर जाता देखता रहेगा ! कब तक अमीर और गरीब जैसे दो विशाल, कठोर, निर्मम पाटों के मध्य यह अभिशप्त बीच वाला वर्ग पिसता रहेगा ! हर चीज की सीमा होती है !  फिलहाल अभी तो आलम यह है कि ''उठाए जा उनके सितम और जिए जा, यूँ ही मुस्कुराए जा और पैसे खर्च किए जा ! (आंसू पिए जा !) 

बुधवार, 9 अगस्त 2023

सच्चाई का बीज पनपता जरूर है

सच्चाई का बीज ! उसे चाहे कितनी भी  गहराई में क्यों न दबा दिया जाए, परिस्थितियां चाहे कितनी भी विपरीत हों, सतह चाहे कितनी भी कठोर हो, वह पनपता जरूर है। हो सकता है इसमें समय लग जाए पर वह दफन नहीं होता और असत्य को अपनी करनी का फल भोगना ही पडता है। इसमें कोई शक-ओ-शुब्हा नहीं है...........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

जीवन को तरह-तरह से परिभाषित किया गया है। कोई इसे प्रभू की देन कहता है, कोई सांसों की गिनती का खेल, कोई भूल-भुलैया, कोई समय की बहती धारा तो कोई ऐसी पहेली जिसका कोई ओर-छोर नहीं। कुछ लोग इसे पुण्यों का फल मानते हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो इसे पापों का दंड समझते हैं। 

कोई चाहे कितना भी इसे समझने और समझाने का दावा कर ले, रहता यह अबूझ ही है। यह एक ऐसे सर्कस की तरह है जो बाहर से सिर्फ एक तंबू नज़र आता है पर जिसके भीतर अनेकों हैरतंगेज कारनामे होते रहते हैं। ऐसा ही एक कारनामा है इंसान का सच से आंख मूंद अपने को सर्वोपरि समझना।
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आँख की शल्य-चिकित्सा का बेहतरीन संस्थान 
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इंसान जब पैदा होता है तो अजब-गजब भविष्य-वाणियों के बावजूद कोई नहीं जानता कि वह बडा होकर क्या बनेगा या क्या करेगा, पर यह निर्विवादित रूप से सबको पता रहता है कि उसकी मौत जरूर होगी। इतने बडे सत्य को जानने के बाद भी इंसान इस छोटी सी जिंदगी में तरह-तरह के हथकंडे अपना कर अपने लिए सपनों के महल और दूसरों के लिए कंटक बीजने में बाज नहीं आता। कभी कभी अपने क्षण-भंगुर सुख के लिए वह किसी भी हद तक गिरने से भी नहीं झिझकता। लोभ, लालच, अहंकार, ईर्ष्या उसके ज्ञान पर पर्दा डाल देते हैं। वह अपने फायदे के लिए किसी का किसी भी प्रकार का अहित करने से नहीं चूकता। वह भूल जाता है कि बंद कमरे में बिल्ली भी अपनी जान बचाने के लिए उग्र हो जाती है। मासूम सी चिडिया भी हाथ से छूटने के लिए चोंच मार देती है। नीबूं से ज्यादा रस निकालने की चाहत उसके रस को कडवा बना डालती है। यहां तक कि उसे भगवान की उस लाठी का डर भी नहीं रह जाता जिसमें आवाज नहीं होती। उस समय उसे सिर्फ और सिर्फ अपना हित नजर आता है। असंख्य ऐसे उदाहरण हैं कि ऐसे लोगों को उनके दुष्कर्म का फल मिलता भी जरूर है पर विडंबना यह है कि उस समय उन्हें अपनी करतूतें याद नहीं आतीं। 

ऐसे लोगों के कारण मानव निर्मित न्याय व्यवस्था भी अब निरपेक्ष नहीं रह गयी है। कोई कितना भी कह ले कि हम मानव न्याय का सम्मान करते हैं तो सम्मान भले ही करते हों मानते नहीं हैं। उसमें इतने छल-छिद्र बना दिए गये हैं कि आदमी कभी-कभी बिल्कुल बेबस, लाचार हो जाता है अन्याय के सामने। न्याय को पाने के लिए समय के साथ-साथ पैसा पानी की तरह बहता तो है पर मिली-भगत से उसका हश्र भी वैसा ही होता है जैसे शुद्ध पीने का पानी गटर में जा गिरे। यूंही किस्से-कहानियों में या फिल्मों में न्याय व्यवस्था का मजाक नहीं बनाया जाता। ज्यादातर झूठ तेज तर्रार वकीलों की सहायता से सच को गलत साबित करने में सक्षम हो जाता है। सच कहीं दुबक जाता है झूठ के विकराल साये में। सामने वाला इसे अपनी जीत समझने लगता है, भूल जाता है समय चक्र को, भूल जाता है इतिहास को, भूल जाता है अपने ओछेपन को। पर सत्य  रूपी बीज, उसे चाहे कितना भी नीचे क्यों न  दबाया गया हो,  सतह कितनी भी कठोर क्यों ना हो उसे फोड कर पनपता जरूर है। चाहे परिस्थितियां कितनी भी विपरीत हों। समय कितना भी लग जाए, असत्य को अपनी करनी का फल भोगना जरूर पडता है। इसमें कोई शक-ओ-शुब्हा नहीं है।
और फिर अंजाम कुछ ऐसा होता है कि..........!

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विडंबना या समय का फेर

भइया जी एक अउर गजबे का बात निमाई, जो बंगाली है और आप पाटी में है, ऊ बोल रहा था कि किसी को हराने, अलोकप्रिय करने या अप्रभावी करने का बहुत सा ...