वो टमाटर जो कभी बाकि सब्जियों के साथ चुपचाप सलाद के ढेर में दुबका रहता था ! वही आज कुछ मौकापरस्त लोगों के लिए राजनीतिक शस्त्र बन बैठा है ! पर क्या इसमें टमाटर की कोई गलती है ? क्या उसने खुद अपने दाम बढ़वाए हैं ? कभी प्याज, कभी टमाटर, कभी और कोई जिंस, परिस्थितिवश बढ़ी उनकी कीमतों को मुद्दा तो तुरंत बना दिया जाता है पर कारण नहीं बताए जाते ! टमाटर तो बहाना है, मौका मिल जाता है, हाशिए पर खिसका दिए गए दलों के छुटभइए, तथाकथित नेताओं को इनके सहारे, लोगों को गुमराह करने हेतु, विभिन्न मंचों पर पहुंच बहसियाने का ! टमाटर के कीमतें तो कुछ दिनों में वश में आ जाएंगी, जरुरत है इनके सहारे लोगों को गुमराह करने वाले मौकापरस्तों को काबू कर सीख देने की ............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
ज्ञानी, गुणी, विवेकशील लोग कह गए हैं कि अरे क्या खाने के लिए जीता है ! सिर्फ थोड़ा-बहुत जीने के लिए खा लिया कर ! अब उनको क्या बताएं कि दोनों अवस्थाओं में खाना तो खाना ही पड़ेगा और खाना सुरुचिपूर्ण होने के लिए रसना को रस मिलना जरुरी है ! अब यह तीन इंची इंद्रिय बस देखने-कहने को ही छोटी है, कारनामे इसके बड़े-बड़े होते हैं। ये चाहे तो महाभारत करवा दे ! यह चाहे तो घास-पात को अनमोल बनवा दे। बोले तो, पूरी की पूरी मानवजाति इसके इशारों पर नाचती है। भले ही उसके लिए कुछ भी, कोई भी, कैसी भी कीमत चुकानी पड़े।
वैसे इस दुनिया में कब कोई फर्श से अर्श (इसका उल्टा भी) तक पहुँच जाए, कभी भी नहीं कहा जा सकता ! अब टमाटर को ही ले लीजिए जो साल दो साल पहले की प्याजों की राह पर चल पड़ा है ! जो चीज चमगादड़ की तरह कभी सब्जी और कभी फल के बीच झूलती रही हो ! कुछ दिनों पहले जिसे कोई टके का भाव ना दे रहा हो ! जिसे किसान सडकों पर फेंक रहे हों ! वही आज टनटनाते हुए सैकड़ों के भाव को छू रहा है ! जिस तरह प्याज ने बिना खुद को छिलवाए, लोगों के आंसू निकलवाए दिए थे, उसी तरह इसने भी बिना खुद को ग्रेवी बनवाए, लोगों की चटनी बना दी है ! पर इसके इस तरह अनमोल हो जाने में इसकी क्या गलती है ? क्या इसने खुद अपनी कीमत बढ़वाई है ? क्या यह खुद लोप हो गया ? कभी प्याज, कभी टमाटर, कभी और कोई जिंस, परिस्थितिवश बढ़ी उनकी कीमतों को मुद्दा तो तुरंत बना दिया जाता है पर कारण नहीं बताए जाते ! टमाटर तो बहाना है, इसके कंधे के जोर से कुछेक को अपनी बंद दुकानों का शटर उठवाना है !
वह आधा किलो टमाटर ले रही है ! जरूर उसके पास ब्लैकमनी होगा ! (तीस साल पहले का कार्टून ) |
हालांकि स्थिति सोचनीय है ! जबरदस्त मंहगाई की मार में यह एक और थपेड़ा है ! हम यह सोच कर निश्चिन्त नहीं हो सकते कि हम अकेले नहीं हैं, यह विपदा संसार भर में है ! पर सिमित आय, बढ़ती मंहगाई कब तक धैर्य धरवा सकेगी ? कब तक मध्यम वर्ग अपने खर्चों में कटौती करता रहेगा ? कब तक अति जरुरी चीजों को भी अपनी औकात से बाहर जाता देखता रहेगा ! कब तक अमीर और गरीब जैसे दो विशाल, कठोर, निर्मम पाटों के मध्य यह अभिशप्त बीच वाला वर्ग पिसता रहेगा ! हर चीज की सीमा होती है ! फिलहाल अभी तो आलम यह है कि ''उठाए जा उनके सितम और जिए जा, यूँ ही मुस्कुराए जा और पैसे खर्च किए जा ! (आंसू पिए जा !)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें