सोमवार, 29 अगस्त 2022

तेरह साल के भ्रष्टाचार को तेरह सेकेंड में खत्म किया जा सकता है, दृढ इच्छाशक्ति होनी चाहिए

अब उन डाक्टरों पर भी नकेल कसी जानी चाहिए जो शिकंजे में फंसे अपने आकाओं को बताते हैं कि कोर्ट के कितनी दूर जाने पर उनको हार्ट अटैक आएगा या कितने दिन पूछ-ताछ पर उनकी यादाश्त चली जाएगी ! उन सी.ए. और आर्थिक सलाहकारों से भी पूछ-ताछ होनी चाहिए जो अपने सरपरस्तों के काले धन के अंबार को ठिकाने लगाने में सहायता करते हैं ! उन वकीलों से भी जिरह होनी चाहिए जो एक पेशी के दसियों लाख की रकम ले, जान-बूझ कर देश द्रोहियों, हत्यारों, कुकर्मियों, जालसाजों, भ्रष्टाचारियों के लिए झूठ को सच का जामा पहन  कानून की पतली गलियों से बचा निकाल ले जाते हैं ! उन पुलिस और कलेक्टर को भी जिम्मेदार मान उन पर कार्यवाही होनी चाहिए, जिनके क्षेत्र में  दंगे-फसाद या कोई भी गंभीर गैर कानूनी हरकतें होती हैं ..........!!         

आखिर दिल्ली के बेहद नजदीक, उत्तर प्रदेश के नोएडा के सेक्टर 93-A  में, 102 मीटर ऊँचे, दबंगई, भ्रष्टाचार, रसूख, धनबल के प्रतीक जुड़वां टॉवरों को जमींदोज कर ही दिया गया ! संरचना में दो जुड़वां टॉवर बने हुए थे, जिनमें एक की ऊंचाई 102 मीटर और दूसरे की 95 मीटर थी ! 32 मंजिला इस इमारत को बनाने में करीब तेरह साल का समय, सैंकड़ों कर्मियों का योगदान तथा तकरीबन 300 करोड़ रुपये खर्च हुए थे ! केस वगैरह ना होते तो आज इसकी कीमत 1000 करोड़ के आस-पास होती !  

नोएडा के जुड़वां स्तूप 

ऐसा कहा जा रहा है कि इन स्तूपों को गिराना भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा संदेश है ! अच्छी बात है ! इसके साथ ही यह भी आभास मिल रहा है कि दृढ इच्छाशक्ति हो तो तेरह साल के भ्रष्टाचार को तेरह सेकेंड में खत्म किया जा सकता है ! पर क्या सिर्फ विष-वृक्ष का तना काट देने से समस्या का निदान हो जाएगा ? जितना ऊँचा यह टॉवर था उससे कहीं गहरी हैं, दुराचरण की जड़ें हमारे देश में ! आज इतने छापे पड़ रहे हैं ! इतनी धर-पकड़ हो रही है ! आरोपियों के घरों से रद्दी कागजों के ढेर की तरह नोटों के टीले बरामद हो रहे हैं ! पर ना लालच खत्म होता दिखता है, नाहीं कहीं कानून का डर काबिज होता नजर आ रहा है !  

आज एक रोजगार से परेशान आम इंसान कहीं एक ठेला लगा ले तो दिन भर में मक्खियों की तरह निगम वाले, पुलिस वाले, सड़क वाले, कार्पोरेशन वाले और ना जाने कौन-कौन अपना रौब गाँठ कर उसको एक मिनट टिकने नहीं देंगे ! क्योंकि वह समाज की सबसे पिछली कतार में खड़ा होने वाला एक अशक्त, बेसहारा, जीव मात्र है ! और इधर तेरह साल तक एक निर्माण होता रहा और उन्हीं रौबीले कारिंदों को ना कुछ दिखाई दिया और ना ही सुझाई ! सुना तो यह जा रहा है कि कोर्ट के निर्देश के बावजूद बिना किसी खौफ के काम जारी रहा ! किसका इतना सशक्त वरदहस्त निर्माता के सर पर था कि वह कानून को भी धत्ता बताता चला गया ! अब इमारत तो गिर गई ! गिरते-गिरते भी तीस करोड़ की चपत लगा गई ! उसके साथ ही उसमें खर्च हुए देश के संसाधन, पैसे, समय और जनबल भी धूल-धूएं-मलबे में बदल कर रह गए ! पता नहीं निर्माता कंपनी का क्या हुआ ! यह भी नहीं पता कि इस सजा से लोग सबक लेंगे भी कि नहीं ! क्योंकि नियम-कानून पर अपराध भारी पड़ता दिखता है ! लोग बिना किसी डर-भय के अनैतिक कार्य करते चले जा रहे हैं ! 

आज यदि देश-समाज-लोगों में कानून का रौब, खौफ, दहशत तारी करना है तो जड़ों पर प्रहार को करना होगा ! उस खाद-पानी का परिमार्जन करना होगा जो भ्रष्टाचार को पल्ल्वित-पुष्पित होने में सहायक होते हैं ! अपराधियों के साथ ही उन डाक्टरों पर भी नकेल कसी जानी चाहिए जो शिकंजे में फंसे अपने आकाओं को बताते हैं कि कोर्ट के कितनी दूर जाने पर उनको हार्ट अटैक आएगा या कितने दिन पूछ-ताछ पर उनकी यादाश्त चली जाएगी ! उन सी. ए. और आर्थिक सलाहकारों से भी पूछ-ताछ होनी चाहिए जो अपने सरपरस्तों के काले धन के अंबार को ठिकाने लगाने में सहायता करते हैं ! उन वकीलों से भी जिरह होनी चाहिए जो एक पेशी के दसियों लाख की रकम ले, जान-बूझ कर देश द्रोहियों, हत्यारों, कुकर्मियों, जालसाजों, भ्रष्टाचारियों के लिए झूठ को सच का जामा पहना कानून की पतली गलियों से बचा निकाल ले जाते हैं ! कहते हैं कि यदि पुलिस चाहे तो किसी आम नागरिक के घर से कोई झाड़ू तक नहीं चुरा सकता ! तो क्यों नहीं घटना ग्रस्त इलाके का जिम्मेदार वहाँ के कोतवाल को माना जाता ! यदि सरकार विधान बना दे कि किसी भी घटना की जिम्मेदारी वहाँ के थाने और उसके स्टाफ की होगी तो क्या मजाल है कि अपराधी तो क्या चिड़िया भी पर मार जाए या इस तरह देश के संसाधनों और पैसे की बर्बादी हो जाए ! 

माना यह सब कहना-सुनना बहुत आसान है, पर इसको कार्यान्वित करना जरा मुश्किल तो है, पर नामुमकिन कतई नहीं है ! सिर्फ देश प्रेम की भावना और दृढ इच्छाशक्ति की जरुरत है ! कोई ना कोई रास्ता जरूर निकलेगा, निकालना ही होगा जिससे अपराधियों के मन में खौफ जगह बना सके ! कुछ भी गलत करने के पहले उसे दस बार सोचना पड़े ! उसे भविष्य के महलों के ख्वाब से पहले वर्तमान की जेल की सलाखें नजर आएं ! जेल जाते-आते महानुभाव हाथ उठा विजय चिन्ह ना बना सर झुका कर हमारे सामने से निकलें ! उनके वंशधर हिम्मत ना कर सकें कभी सत्ता की कुर्सी की तरफ आँख उठा देखने की ! इसके लिए धर्म-भाषा-जाति से ऊपर उठ कुछ बदलाव तो हमें भी अपने में लाने होंगे ! गलत बातें होते देख मन ही मन कुढ़ने की बजाए आक्रोश तथा विरोध तो जाहिर करना ही होगा ! नहीं तो ऐसे ही निर्माण गिर-गिर कर फिर-फिर बनते रहेंगे !

रविवार, 28 अगस्त 2022

माउजर, जिसने अंत तक चंद्रशेखर आजाद का साथ दिया

रात के घुप्प अंधेरे में, उफनती बंगाल की खाड़ी के अथाह जल में, अकेले बिना किसी सहारे, शचीन्द्रनाथ बक्शी तैरते हुए जहाज तक गए, वहां भुगतान कर हथियार हासिल किए और फिर उतने भार के साथ उसी समय वापस तैर कर किनारे भी आए ! धन्य थे वे लोग ! धन्य थी उनकी वीरता ! धन्य था उनका समर्पण ! यह वही खेप थी, जिसकी एक माउजर पिस्तौल की गोली से वीर राजगुरु ने साण्डर्स को दूसरे लोक पहुंचा दिया था ! यही वह खेप थी जिसकी एक माउजर अमर सेनानी, अजेय, क्रांतिकारियों के महानायक, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के कमांडर-इन-चीफ, चंद्रशेखर  आजाद की अंतिम समय तक साथी रही.........! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 
मानव स्वभाव शायद सारी दुनिया में एक जैसा ही है ! उनको लगता है कि कोई आए और हमारी सारी चिंताएं, परेशानियां, मुसीबतें, कष्ट दूर कर जाए ! इसके बदले में हम साल के दो दिन उसको याद कर फूल अर्पित करते रहें ! पढ़ने-सुनने में अजीब लगता है पर असलियत यही है ! 1857 की असफल जन-क्रांति के बावजूद, देश की आजादी के लिए मर-मिटने वाले जहां कभी हताश-निराश नहीं हुए, वहीं देश की अधिकांश जनता या तो अपने में मशगूल थी या फिर तटस्थ ! उधर राजनीती में दखल रखने वाले ब्रिटिश हुकूमत की दलाली कर राय साहब जैसी उपाधियों को अपनी शान समझने लगे थे ! इसके साथ ही एक अच्छा खासा वर्ग, जो आजादी भी चाहता था, वह अहिंसावादी हो चुका था !
चंद्रशेखर आजाद की माउजर 
ऐसे में आजादी के लिए दिल-ओ-जान से समर्पित क्रान्तिकारियों को अंग्रेजी हुकूमत और उनके गुर्गों से जूझने के लिए अनेकानेक समस्याओं का सामना करना पड़ता था ! उसी में एक थी हथियारों की जरुरत ! हथियार भी ऐसा जो शक्तिशाली भी हो और छुपाया भी जा सके ! काफी सोच-विचार के बाद जर्मनी में बनी माउजर पिस्तौल माफिक पाई गई ! पर उस सस्ते के जमाने में भी उसकी कीमत 75 रुपये थी जो चोरी-छुपे खरीदने पर तीन सौ रुपये में मिलती थी ! तीन सौ रूपये की कीमत इसी से आंकी जा सकती है कि उस समय एक रुपये का 20 सेर दूध, दो सेर शुद्ध घी, 30 सेर गेहूँ तथा सोना 20 रुपये का एक तोला था ! पर जरुरत थी तो हथियार लेना ही था ! वह भी सशक्त ! 
काकोरी काण्ड में प्रयुक्त माउजर 
माउजर, जर्मनी में बनी इस छोटी पर सशक्त पिस्तौल की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसके बट के साथ लकड़ी का बड़ा कुन्दा अलग से जोड़ कर इसे आवश्यकतानुसार किसी रायफल की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता था। इससे इसकी मारक क्षमता बढ़ जाती थी। इसकी दूसरी विशेषता यह थी कि इसके चैम्बर में 6, 10 और 20 गोलियों वाली छोटी या बड़ी कोई भी मैगजीन फिट हो जाती थी। इसके अतिरिक्त इस पिस्तौल की एक विशेषता यह थी कि इसके पीछे लगाया जाने वाला लकड़ी का कुन्दा ही इसके खोल का काम करता था। भारतीय क्रांतिकारी इसकी क्षमता को आजमा भी चुके थे, जब अमर क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने इन्हीं, तीन-तीन सौ रुपयों में खरीदी गईं चार माउजर पिस्तौलों के दम पर, 9 अगस्त 1925 को काकोरी के पास ट्रेन रोक कर सरकारी खजाना लूट लिया था।बाद में यह चीन और स्पेन में भी बनने लगी पर नाम माउजर ही रहा !आज भी इस पिस्तौल का कोई जवाब नहीं है !
विडंबना है कि किस्मत से, छींका टूटने से जब हमारी झोली में आजादी आ ही गिरी तो उसका सारा श्रेय, बिना किसी हिचक, बिना किसी अपराधबोध के, बिना किसी शर्म के हमने खुद को ही देते हुए बड़ी सरलता से उन सैकड़ों हजारों वीरों के उत्सर्ग को, उनके समर्पण को, उनकी देशप्रेम की मिसाल को भुलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी 
भारत में माउजर की खरीद-फरोख्त खतरा खड़ा कर सकती थी ! इसके लिए किसी का जर्मनी जाना जरुरी था ! वह भी कोई आसान काम नहीं था ! पर जहां चाह होती है, वहां कोई ना कोई राह निकल ही आती है ! काशी में लम्बी तैराकी की प्रतियोगिताओं को क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ बक्शी नामक युवक ने प्रारंभ करवाया था ! जो कि खुद भी बहुत अच्छे तैराक थे और तैराकी संघ के मंत्री भी ! संघ क्रांतिकारियों के लिए एक आड़ का काम भी करता था ! संस्था के एक अन्य बहुत ही कुशल तैराक थे, केशव चक्रवर्ती ! इन्हें सब कुछ समझा-बुझा कर जर्मनी में होने वाली तैराकी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने भेज दिया गया ! केशव अपना काम कर वापस भारत आ गए ! 
माउजर और उसका खोल 
असले का इंतजाम तो हो गया था पर उसे हासिल करने के लिए पैसों की भी जरुरत थी ! उसी के इंतजाम का नतीजा था, काकोरी ट्रेन कांड ! इसी से मिली रकम को ले कर शचीन्द्रनाथ बक्शी और राजेंद्र लाहिड़ी कलकत्ता रवाना हो गए, पार्सल छुड़वाने के लिए ! पर बात इतनी आसान नहीं थी कि गए, पैसे दिए और सामान ले लिया ! कलकत्ता बंदरगाह पर तो ऐसा करना सोचा भी नहीं जा सकता था ! उन दिनों अंतराष्ट्रीय कानून अनुसार भारत की समुद्री सीमा तीन मील थी ! उसके बाद अस्थाई तौर पर सागर का वह हिस्सा उस देश का माना जाता था जिसका जहाज हो और जब तक हो ! इसलिए पानी में देश से तीन मील दूर तक जा कर ही सामान लिया जा सकता था ! 
श्री शचीन्द्रनाथ बक्शी 
उसका एक ही उपाय था ! वही किया गया ! रात के घुप्प अंधेरे में, उफनती बंगाल की खाड़ी के अथाह जल में, अकेले बिना किसी सहारे, शचीन्द्रनाथ बक्शी तैरते हुए जहाज तक गए, वहां भुगतान कर हथियार हासिल किए और फिर उतने भार के साथ, उसी समय वापस तैर कर किनारे आए ! धन्य थे वे लोग ! धन्य थी उनकी वीरता ! धन्य था उनका समर्पण ! यही वह खेप थी, जिसकी एक माउजर पिस्तौल की गोली से वीर राजगुरु ने साण्डर्स को दूसरे लोक पहुंचा दिया था ! यही वह खेप थी जिसकी एक माउजर अमर सेनानी, क्रांतिकारियों के नायक, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के कमांडर-इन-चीफ, अजेय, चंद्रशेखर आजाद की अंतिम समय तक साथी रही ! 
काकोरी स्टेशन 
उन वीरों की हिम्मत, समर्पण, त्याग, देशप्रेम का कोई सानी नहीं था ना है और शायद ही आगे कभी हो पाएगा ! आजादी के बाद होना तो यह चाहिए था कि उनकी बिना किसी अपेक्षा के देशप्रेम की भावना को हम पीढ़ी दर पीढ़ी अक्षुण रखते ! पर विडंबना है कि किस्मत से, छींका टूटने से जब हमारी झोली में आजादी आ ही गिरी तो उसका सारा श्रेय, बिना किसी हिचक, बिना किसी अपराधबोध के, बिना किसी शर्म के हमने खुद को ही देते हुए बड़ी सरलता से उन सैकड़ों हजारों वीरों के उत्सर्ग को, उनके समर्पण को, उनकी देशप्रेम की मिसाल को भुलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी ! जनता तब भी ऐसी थी, अब भी वैसी ही है ! सिर्फ अपने मतलब से मतलब..............😢

संदर्भ व आभार -
*क्रान्तिकारी आन्दोलन - धर्मेन्द्र गौड़ जी 
*अंतर्जाल 

शनिवार, 20 अगस्त 2022

वामनराव बलिराम लाखे

उन दिनों स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े क्रांतिकारियों की गोपनीयता के चलते उनको उनके नाम से नहीं, बल्कि एक अलग उपनाम या कोड से पहचाना जाता था ! ऐसे में कुछ लोग अपने उपनाम से ही प्रसिद्ध हो उसी नाम से जाने लग गए थे ! 1930 में जब महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की तो छत्तीसग़ढ के रायपुर जिले में उसकी बागडोर वामनराव लाखे, महंत लक्ष्मीनारायण दास, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, शिवदास डागा और मौलाना रऊफ ने संभाली ! प्रचलन के तहत इन पाँचों को पांच पांडव के नाम से जाना जाने लगा, जिनमें वामनराव जी को युधिष्ठिर के रूप में जाना जाता था...........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

सन 1857 की असफल जन-क्रांति के बावजूद, देश की जनता आजादी पाने के लिए सदा प्रयास रत रही थी ! इस मुहीम के यज्ञ में हजारों-हजार आजादी के परवानों की बिना किसी अपेक्षा के आहुतियां पड़नी बदस्तूर जारी थीं ! पर दुःख इस बात का है कि गुलामी से मुक्ति मिलते ही हम अपने कर्म-कांडों में ऐसे उलझे कि उन शूरवीरों को भूलाते चले गए ! आज हालत यह है कि नई पीढ़ी से यदि देश पर न्योछावर हुए वीरों के नाम पूछे जाएं, तो शायद हाथों की उंगलियां ज्यादा पड़ जाएंगी ! हालत तो ऐसी भी है कि लोगों को अपने ही शहर में स्थित किसी स्मारक का नाम, जो किसी क्रांतिवीर के नाम पर हो, तो पता होता है, पर उसके इतिहास के बारे में कोई जानकारी नहीं होती ! हर राज्य में ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे ! हर राज्य पर काबिज राजनैतिक दल का, चाहे वह किसी भी विचारधारा से संबंधित हो, फर्ज बनता है कि वह अतीत की धुंध में खो गए उन महानायकों का परिचय वर्तमान पीढ़ी से करवाए ! उन्हें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वे जो कुछ भी आज है वो उन्हीं की बदौलत हैं !

वामनराव बलिराम जी लाखे

उन दिनों स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े क्रांतिकारियों की गोपनीयता के चलते उनको उनके नाम से नहीं, बल्कि एक अलग उपनाम या कोड से पहचाना जाता था ! ऐसे में कुछ लोग अपने उपनाम से ही प्रसिद्ध हो उसी नाम से जाने लग गए थे ! 1930 में जब महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की तो छत्तीसग़ढ के रायपुर जिले में उसकी बागडोर वामनराव लाखे, महंत लक्ष्मीनारायण दास, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, शिवदास डागा और मौलाना रऊफ ने संभाली ! प्रचलन के तहत इन पाँचों को पांच पांडव के नाम से जाना जाने लगा ! सबसे बड़े और सामाजिक कार्यों में अग्रणी होने के कारण वामनराव जी, जिनका पूरा नाम वामनराव बलिराम लाखे था, को युधिष्ठिर भी कहा जाने लगा था ! जिनका जन्म दिन सितम्बर महीने में पड़ता है ! आज उन्हीं के बारे में संक्षिप्त जानकारी !  

श्री वामनराव बलिराम लाखे का जन्म 17 सितम्बर, 1872 को रायपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ था। उनके पिता पंडित बलिराम गोविंदराव लाखे जी ने अपने कठोर परिश्रम से अपने परिवार की माली हालत सुधारी थी ! जब वामनराव जी का जन्म हुआ, उस समय तक उनके परिवार की गणना रायपुर क्षेत्र के समृद्ध घरानों में होने लगी थी। रायपुर से मैट्रिक पास करने और जानकी बाई जी से विवाहोपरांत वामनराव जी ने नागपुर से कानून की परीक्षा पास कर वापस रायपुर आ सार्वजनिक, सामाजिक व राजनीतिक कार्यों के साथ ही वकालत भी करनी शुरू की ! पर उनका उद्देश्य पैसे का अर्जन ना हो कर जन-साधारण की सेवा ही था, जिसमें उनकी पत्नी ने भी हमेशा उनका साथ दिया था।

वामनराव जी ने उस दौरान लोगों को जागरूक करने हेतु आंदोलनों के अलावा पत्रकारिता का भी सहारा लेते हुए माधवराव सप्रे जी, जो उनके स्कूल के साथी थे, के सहयोग से  "छत्तीसगढ़ मित्र", जो इस क्षेत्र की पहली पत्रिका थी, के प्रकाशन के द्वारा राष्ट्रिय चेतना का विकास करते हुए युवाओं को एक नई दिशा प्रदान की थी

श्री वामनराव बलिराम लाखे जी की निर्भीकता अनुकरणीय है ! एक सभा में उन्होंने अंग्रेजी शासन को गुण्डों का राज कह दिया था जिसके फलस्वरूप उन्हें एक साल की सजा और 3000 रुपये जुर्माना हुआ था ! 1941 में रायपुर के पास सिमगा में सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार कर चार महीनों के लिए नागपुर जेल भेज दिया गया था ! उस वक्त उनकी उम्र 70 वर्ष की थी ! इसके छह साल बाद जब देश आजाद हुआ तो उन्होंने 15 अगस्त को रायपुर के गाँधी चौक में तिरंगा फहराया !

वामनराव लाखे स्कूल, रायपुर 
श्री वामनराव जी अपने मृदु स्वभाव और सामाजिक कार्यों के कारण लोगों में अति लोकप्रिय थे ! उन्होंने उस समय सहकारिता के क्षेत्र में जो कार्य किए थे, उन प्रयासों का लाभ आज भी छत्तीसगढ़ के किसानों को मिल रहा है ! उन्होंने उस दौरान लोगों को जागरूक करने हेतु आंदोलनों के अलावा पत्रकारिता का भी सहारा लेते हुए माधवराव सप्रे जी, जो उनके स्कूल के साथी थे और उनके नाम पर भी एक जाना-माना स्कूल रायपुर में है, के सहयोग से  "छत्तीसगढ़ मित्र", जो इस क्षेत्र की पहली पत्रिका थी, के प्रकाशन के द्वारा राष्ट्रिय चेतना का विकास करते हुए युवाओं को एक नई दिशा प्रदान की थी ! इन्होंने ही रायपुर में कोऑपरेटिव सेन्ट्रल बैंक की स्थापना की थी ! बलौदा बाजार स्थित 75 वर्ष पुराना सहकारी किसान राइस मिल लाखेजी की यादगार कर्मठता और संगठन क्षमता की निशानियां हैं। उम्र भर खादी धारण करने वाले वामनराव जी ने बच्चों व युवाओं को शिक्षित करने के लिए स्कूल-कॉलेज भी खुलवाए ! रायपुर में "ए.वी.एम. स्कूल" की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था ! इसीलिए उनकी मृत्यु के पश्चात, उनके सम्मानार्थ इस स्कूल का नाम बदलकर "श्री वामनराव लाखे उच्चतर माध्यमिक शाला" कर दिया गया !

स्कूल का अंदरूनी भाग 
अब रायपुर की इस ऐतिहासिक शाला को ही लें ! इस लोकप्रिय स्कूल का नाम तो बहुत प्रसिद्ध है, पर वामनराव जी के बारे में लोगों को उतनी जानकारी नहीं है ! ऐसी एक नहीं हजारों धरोहरें देश भर में बिखरी पड़ी हैं ! जिनका संबंध किसी राजनैतिक दल से नहीं बल्कि देश से जुड़ा हुआ है ! पर बीतते समय के साथ उनका स्वर्णिम इतिहास धीरे-धीरे काल के गाल में समाता जा रहा है ! हम सब की हर प्रांत के मुखियाओं से यही प्रार्थना है कि वे बिना किसी भेद-भाव के, मातृभूमि को सदियों की गुलामी से मुक्ति दिलाने में सर्वस्व समर्पित करने वाले बलिदानियों की उपेक्षित पावन स्मृतियों को संरक्षण प्रदान करें ! उन्हें सहेजें ! उनका प्रचार करें ! उनकी तथा उनसे जुड़े लोगों की विशेषता बतलाने का इंतजाम करें, जिससे पश्चिमोत्तर मुखी हमारी वर्तमान पीढ़ी इतिहास के सच से अवगत हो सके ! गर्व कर सके अपने पूर्वजों पर, जिनके प्रयास से ही हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं ! 

जय हिंद -

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

बुधवार, 17 अगस्त 2022

हमें अपने बचपन को बचाए रखना है

हमारे विद्वान ऋषि-मुनियों ने अपने ग्रंथों में शिक्षा देते समय मानवता पर, इंसानियत पर जोर दिया है ! यदि इंसान इंसानियत ना छोड़े, मानव; महामानव बनने की लालसा में मानवता से दूर ना चला जाए, तो इस धरा पर कभी भी शांति, सौहार्द, परोपकार का माहौल खत्म ना हो ! ना किसी युद्ध की आशंका हो ! ना प्रकृति के दोहन या उससे छेड़-छाड़ की गुंजाइश बचे ! नाहीं कायनात को अपना रौद्र रूप धारण करने की जरुरत हो..........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

अब तो साफ लगने लग गया है कि प्रकृति हमसे रुष्ट हो चुकी है ! खफा तो बहुत पहले से ही थी, जिसका समय-समय पर एहसास भी दिलाती रही है ! पर अपने दर्प में चूर हमने कभी उसकी चेतावनियों पर ध्यान ही नहीं दिया ! इस धरा पर, प्रकृति पर लगातार बिना किसी अपराधबोध के जुल्म ढाते रहे ! उसके दिए अनमोल संसाधनों का शोषण करते रहे ! पर हर चीज की एक हद होती है ! आखिर कायनात ने भी हमें सबक सिखाने की ठान ही ली ! दुनिया भर में मौसम बदलने शुरू हो गए हैं ! कहीं अति वृष्टि, तो कहीं भयंकर सूखा ! कहीं पहाड़ दरक गए तो कहीं बादल फट गए ! कही बाढ़ ने कहर ढा दिया ! जहां सदियों से लोगों ने 25-30 से ऊपर तापमान ना देखा हो वहां पारा 45 के ऊपर जा टिका है ! पहाड़ों में जहां कभी घरों की छत में पंखा टांगने के हुक की जरुरत महसूस नहीं हुई, वहां कूलर बिकने शुरू हो गए हैं ! सागरों ने अपना अलग रौद्र रूप धारण कर लिया है !  पर बाज हम फिर भी नहीं आ रहे !

बाढ़ की विभीषिका 
अभी हाल ही के गर्म मौसम ने सबकी ऐसी की तैसी कर धर दी थी ! विभिन्न इलाकों में गर्मी ने तकरीबन 2000 से अधिक लोगों को मौत की नींद सुला दिया ! कुछ वर्ष पहले तक गर्मी से बचने लोग पहाड़ों का रुख किया करते थे, पर अब वहाँ भी पारे का 40 डिग्री तक पहुँच जाना आम बात हो गई है ! उस पर पानी की बेहद तंगी ! ऐसे में मैदानी भागों के हाल का अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है ! 
 
गर्मी से दरकी जमीन 
विड़बना है कि हमारे जीवन से सादगी और सहजता पूरी तरह से तिरोहित हो चुकी है ! सहजता का मतलब जो जैसा है, वैसा ही सबको स्वीकार्य हो ! कोई भेद-भाव नहीं ! क्या प्रकृति के पाँचों मूल तत्व किसी से भेदभाव करते है ? हम भले ही उन्हें उनके रूप में ना स्वीकारें पर उनकी तरफ से कोई भेद-भाव नहीं होता ! उनके लिए पेड़-पौधे, लता-गुल्म, पशु-पक्षी, जानवर-इंसान सब एक बराबर हैं ! धरा ने अपने आँचल में सभी को समेट कर रखा है ! हरेक के लिए भोजन-आश्रय का प्रबंध किया है ! पानी सबको शीतलता प्रदान करता है, प्यास बुझाता है ! वायु प्राणिमात्र को समान राहत देती है, ऐसा नहीं कि वो मानव का ज्यादा ख्याल रखती हो और कंटीली झाड़ियों को बिना छुए निकल जाती हो ! अग्नि अपने दहन में कोई भेद-भाव नहीं करती ! आकाश सभी को अपनी गोद समान रूप से उपलब्ध करवाता है ! ऐसे में माँ प्रकृति की भी यही इच्छा रहती है कि जगत के समस्त प्राणी सबके हों सबके लिए हों ! पर मानव ने अपने हित के लिए सभी को हर तरह का नुक्सान ही पहुंचाया है !  
ढहते पहाड़ 
सृष्टि ने बनाया तो मानव को भी सहज, निश्छल, सरल बनाया है ! शैशवावस्था में उसमें कोई छल-कपट, वैर, अहम् नहीं होता ! प्रकृति के सारे, सहजता, सरलता, सादगी, निश्छलता जैसे गुण उसमें मौजूद होते हैं ! बचपन में ये सारे गुण उसमें सुरक्षित रहते हैं ! इसीलिए वह सबसे हिल-मिल जाता है ! सबसे एक जैसा प्रेमल व्यवहार करता है ! किसी को हानि पहुंचाने की तो वह सोच भी नहीं सकता ! पर जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है, आस-पास के माहौल, परिस्थितियों व अन्य कारणों से वह इन सब को भूलता चला जाता है ! सहजता की जगह आडंबर ले लेता है ! अहम् सर चढ़ बोलने लगता है ! परोपकार की जगह स्वार्थ ले लेता है ! खुद को ही महान समझने लगता है ! यहीं से वह प्राणिमात्र तो क्या प्रकृति का भी दुश्मन बन जाता है !  
भोला मासूम बचपन 
इसीलिए हमारे विद्वान ऋषि-मुनियों ने अपने ग्रंथों में शिक्षा देते समय मानवता पर, इंसानियत पर जोर दिया है ! यदि इंसान इंसानियत ना छोड़े, मानव; महामानव बनने की लालसा में मानवता से दूर ना चला जाए, तो इस धरा पर कभी भी शांति, सौहार्द, परोपकार का माहौल खत्म ना हो ! ना किसी युद्ध की आशंका हो ! ना प्रकृति के दोहन या उससे छेड़-छाड़ की गुंजाइश बचे ! नाहीं कायनात को अपना रौद्र रूप धारण करने की जरुरत हो ! इसके लिए हमें सिर्फ अपने बचपन को बचाए रखना है ! 

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

रविवार, 14 अगस्त 2022

स्वतंत्रता दिवस और लाल किला

ब्रिटिश हुकूमत ने आजाद हिंद फौज के जांबाजों, जी एस ढिल्लन, कैप्टन शाहनवाज तथा कैप्टन सहगल पर यहीं मुकदमा चला उन्हें सजा देने की कोशिश की थी, पर उस समय सारा देश उनके पीछे खड़ा हो गया था। प्रचंड विरोध छा गया था पूरे देश में और डर के मारे अंग्रेजों को उन वीरों को मुक्त करना पड़ गया था। देश में विजयोत्सव मनाया गया और लाल किला उस विजय का प्रतीक बन गया। इसीलिए जब हमें आजादी मिली तब देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु ने सर्वसम्मति से इसे पहले स्वतंत्रता दिवस पर झंडोतोलन के लिए सबसे उपयुक्त स्थल मान यहां से सारे राष्ट्र को संबोधित किया.......!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

स्वतंत्र भारत की पहली सुबह की अगवानी ! सारा देश रात भर सो ना पाया था ! अंग्रेजों के चंगुल से लहूलुहान स्वतंत्रता को छीन लाने में हजारों-हजार देशवासी मौत का आलिंगन कर चुके थे ! आखिर उनकी शहादत रंग लाई थी ! सारा देश जैसे सड़कों पर उतर आया था। लोगों की आंखें भरी पड़ी थीं खुशी और गम के आंसूओं से ! खुशी आजादी की, गम प्रियजनों के बिछोह का... !

आजादी का जश्न 
दिल्ली तो जैसे पगला सी गई थी। होती भी क्यों ना, आजाद देश की राजधानी जो थी ! रात के अँधेरे में भी नाचते-गाते लोगों के हुजूम के हुजूम, ठट्ठ के ठट्ठ बढ़े चले जा रहे थे, लाल किले की ओर ! हवा में भी जैसे स्वतंत्रता की भीनी-भीनी सुगंध घुल गई थी !आज यह एतिहासिक किला भी फूला नहीं समा रहा था अपने भाग्य पर ! बहुत उतार- चढ़ाव देख रखे थे, इसने अपने जीवन काल में ! जबसे शाहजहां, ने उस जमाने में करीब एक करोड़ की लागत से इसे नौ सालों में बनवा कर पूरा किया था, तब से आज तक यह अनगिनत घटनाओं का साक्षी रहा है ! देश के प्रमुख किले के खिताब का गौरव  इसे ऐसे ही नहीं मिल गया ! 
जहां यह किला मुगलों की शानो-शौकत का गवाह रहा था, वहीं करीब दो सौ साल बाद, अंतिम मुग़ल बादशाह की दर्दनाक मौत का अभिसाक्षी भी इसे बनना पड़ा ! सन 1857 की क्रांति में स्वतंत्रता संग्राम के वीरों ने अंग्रेजों को मात दे कर यहीं बहादुर शाह जफर को अपना सम्राट चुना था ! किला गवाह है, उस इतिहास का कि कैसे बदला लेने के लिए अंग्रेजों ने मौत का तांडव शुरु कर दिया था ! हजारों निहत्थे, बेकसूर, मासूम लोग मौत के घात उतार दिए गए ! कितनों को फांसी पर लटका दिया गया ! सैंकडों को काला पानी नसीब हुआ ! बुढे, बीमार, मजलूम बादशाह को कैद कर रंगून भेज दिया गया ! कितनी मांगें सूनी हो गईं ! कितनी गोदें उजड़ गईं ! कितनी आँखों का पानी सूख गया था ! जिनका कोई हिसाब नहीं ! इंसान का वहशीपन जैसे सजीव हो उठा था ! 
ऐसा नहीं है कि इसके पहले या बाद में इस दुर्ग ने जुल्मों-सितम नहीं देखे ! सालों बाद एक बार फिर 1945 में ब्रिटिश हुकूमत ने आजाद हिंद फौज के जांबाजों, जी एस ढिल्लन, कैप्टन शाहनवाज तथा कैप्टन सहगल पर यहीं मुकदमा चला उन्हें सजा देने की कोशिश की थी ! पर उस समय सारा देश उनके पीछे खड़ा हो गया था ! प्रचंड विरोध छा गया था पूरे देश में ! डर के मारे अंग्रेजों को उन वीरों को मुक्त करना पड़ गया था ! देश में विजयोत्सव मनाया गया और लाल किला उस विजय का प्रतीक बन गया ! इसीलिए जब हमें आजादी मिली तब देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु ने सर्वसम्मति से इसे पहले स्वतंत्रता दिवस पर झंडोत्तोलन के लिए सबसे उपयुक्त स्थल मान, यहां से सारे राष्ट्र को संबोधित किया था ! उसके बाद से आज तक देश का हर प्रधान मंत्री यहां से झंडा फहरा कर अपने आप को गौरवांन्वित महसूस करता है ! यह किला हमारी आन-बान-शान का प्रतीक बन, गर्व से सर उठाए खड़ा है !
आप सभी को, असंख्य विडंबनाओं के बावजूद, देश की आजादी की 75 वीं सालगिरह पर अनेकानेक शुभकामनाएं ! हमारा देश दुनिया का सिरमौर बने ! सभी देशवासी सदा सुरक्षित, सुखी, स्वस्थ व प्रसन्न रहें ! यही कामना है !

वंदे मातरम, जय हिंद  

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