उन दिनों स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े क्रांतिकारियों की गोपनीयता के चलते उनको उनके नाम से नहीं, बल्कि एक अलग उपनाम या कोड से पहचाना जाता था ! ऐसे में कुछ लोग अपने उपनाम से ही प्रसिद्ध हो उसी नाम से जाने लग गए थे ! 1930 में जब महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की तो छत्तीसग़ढ के रायपुर जिले में उसकी बागडोर वामनराव लाखे, महंत लक्ष्मीनारायण दास, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, शिवदास डागा और मौलाना रऊफ ने संभाली ! प्रचलन के तहत इन पाँचों को पांच पांडव के नाम से जाना जाने लगा, जिनमें वामनराव जी को युधिष्ठिर के रूप में जाना जाता था...........!
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सन 1857 की असफल जन-क्रांति के बावजूद, देश की जनता आजादी पाने के लिए सदा प्रयास रत रही थी ! इस मुहीम के यज्ञ में हजारों-हजार आजादी के परवानों की बिना किसी अपेक्षा के आहुतियां पड़नी बदस्तूर जारी थीं ! पर दुःख इस बात का है कि गुलामी से मुक्ति मिलते ही हम अपने कर्म-कांडों में ऐसे उलझे कि उन शूरवीरों को भूलाते चले गए ! आज हालत यह है कि नई पीढ़ी से यदि देश पर न्योछावर हुए वीरों के नाम पूछे जाएं, तो शायद हाथों की उंगलियां ज्यादा पड़ जाएंगी ! हालत तो ऐसी भी है कि लोगों को अपने ही शहर में स्थित किसी स्मारक का नाम, जो किसी क्रांतिवीर के नाम पर हो, तो पता होता है, पर उसके इतिहास के बारे में कोई जानकारी नहीं होती ! हर राज्य में ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे ! हर राज्य पर काबिज राजनैतिक दल का, चाहे वह किसी भी विचारधारा से संबंधित हो, फर्ज बनता है कि वह अतीत की धुंध में खो गए उन महानायकों का परिचय वर्तमान पीढ़ी से करवाए ! उन्हें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वे जो कुछ भी आज है वो उन्हीं की बदौलत हैं !
वामनराव बलिराम जी लाखे |
उन दिनों स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े क्रांतिकारियों की गोपनीयता के चलते उनको उनके नाम से नहीं, बल्कि एक अलग उपनाम या कोड से पहचाना जाता था ! ऐसे में कुछ लोग अपने उपनाम से ही प्रसिद्ध हो उसी नाम से जाने लग गए थे ! 1930 में जब महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की तो छत्तीसग़ढ के रायपुर जिले में उसकी बागडोर वामनराव लाखे, महंत लक्ष्मीनारायण दास, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, शिवदास डागा और मौलाना रऊफ ने संभाली ! प्रचलन के तहत इन पाँचों को पांच पांडव के नाम से जाना जाने लगा ! सबसे बड़े और सामाजिक कार्यों में अग्रणी होने के कारण वामनराव जी, जिनका पूरा नाम वामनराव बलिराम लाखे था, को युधिष्ठिर भी कहा जाने लगा था ! जिनका जन्म दिन सितम्बर महीने में पड़ता है ! आज उन्हीं के बारे में संक्षिप्त जानकारी !
श्री वामनराव बलिराम लाखे का जन्म 17 सितम्बर, 1872 को रायपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ था। उनके पिता पंडित बलिराम गोविंदराव लाखे जी ने अपने कठोर परिश्रम से अपने परिवार की माली हालत सुधारी थी ! जब वामनराव जी का जन्म हुआ, उस समय तक उनके परिवार की गणना रायपुर क्षेत्र के समृद्ध घरानों में होने लगी थी। रायपुर से मैट्रिक पास करने और जानकी बाई जी से विवाहोपरांत वामनराव जी ने नागपुर से कानून की परीक्षा पास कर वापस रायपुर आ सार्वजनिक, सामाजिक व राजनीतिक कार्यों के साथ ही वकालत भी करनी शुरू की ! पर उनका उद्देश्य पैसे का अर्जन ना हो कर जन-साधारण की सेवा ही था, जिसमें उनकी पत्नी ने भी हमेशा उनका साथ दिया था।
वामनराव जी ने उस दौरान लोगों को जागरूक करने हेतु आंदोलनों के अलावा पत्रकारिता का भी सहारा लेते हुए माधवराव सप्रे जी, जो उनके स्कूल के साथी थे, के सहयोग से "छत्तीसगढ़ मित्र", जो इस क्षेत्र की पहली पत्रिका थी, के प्रकाशन के द्वारा राष्ट्रिय चेतना का विकास करते हुए युवाओं को एक नई दिशा प्रदान की थी
श्री वामनराव बलिराम लाखे जी की निर्भीकता अनुकरणीय है ! एक सभा में उन्होंने अंग्रेजी शासन को गुण्डों का राज कह दिया था जिसके फलस्वरूप उन्हें एक साल की सजा और 3000 रुपये जुर्माना हुआ था ! 1941 में रायपुर के पास सिमगा में सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार कर चार महीनों के लिए नागपुर जेल भेज दिया गया था ! उस वक्त उनकी उम्र 70 वर्ष की थी ! इसके छह साल बाद जब देश आजाद हुआ तो उन्होंने 15 अगस्त को रायपुर के गाँधी चौक में तिरंगा फहराया !
वामनराव लाखे स्कूल, रायपुर |
स्कूल का अंदरूनी भाग |
जय हिंद -
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
4 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया लेख।
नमन।🙏🌻
शिवम जी
हार्दिक आभार🌹🙏
सार्थक विचारणीय लेख।
सच इस दिशा में प्रतिबद्धता से कार्य होना चाहिए।
हमें और हमारे बच्चों को इन बलिदानियों और देश के लिए मिटने वालों को सम्मान से जानना चाहिए।
बहुत सुंदर।
कुसुम जी
हार्दिक आभार आपका🙏
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