रविवार, 28 अगस्त 2022

माउजर, जिसने अंत तक चंद्रशेखर आजाद का साथ दिया

रात के घुप्प अंधेरे में, उफनती बंगाल की खाड़ी के अथाह जल में, अकेले बिना किसी सहारे, शचीन्द्रनाथ बक्शी तैरते हुए जहाज तक गए, वहां भुगतान कर हथियार हासिल किए और फिर उतने भार के साथ उसी समय वापस तैर कर किनारे भी आए ! धन्य थे वे लोग ! धन्य थी उनकी वीरता ! धन्य था उनका समर्पण ! यह वही खेप थी, जिसकी एक माउजर पिस्तौल की गोली से वीर राजगुरु ने साण्डर्स को दूसरे लोक पहुंचा दिया था ! यही वह खेप थी जिसकी एक माउजर अमर सेनानी, अजेय, क्रांतिकारियों के महानायक, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के कमांडर-इन-चीफ, चंद्रशेखर  आजाद की अंतिम समय तक साथी रही.........! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 
मानव स्वभाव शायद सारी दुनिया में एक जैसा ही है ! उनको लगता है कि कोई आए और हमारी सारी चिंताएं, परेशानियां, मुसीबतें, कष्ट दूर कर जाए ! इसके बदले में हम साल के दो दिन उसको याद कर फूल अर्पित करते रहें ! पढ़ने-सुनने में अजीब लगता है पर असलियत यही है ! 1857 की असफल जन-क्रांति के बावजूद, देश की आजादी के लिए मर-मिटने वाले जहां कभी हताश-निराश नहीं हुए, वहीं देश की अधिकांश जनता या तो अपने में मशगूल थी या फिर तटस्थ ! उधर राजनीती में दखल रखने वाले ब्रिटिश हुकूमत की दलाली कर राय साहब जैसी उपाधियों को अपनी शान समझने लगे थे ! इसके साथ ही एक अच्छा खासा वर्ग, जो आजादी भी चाहता था, वह अहिंसावादी हो चुका था !
चंद्रशेखर आजाद की माउजर 
ऐसे में आजादी के लिए दिल-ओ-जान से समर्पित क्रान्तिकारियों को अंग्रेजी हुकूमत और उनके गुर्गों से जूझने के लिए अनेकानेक समस्याओं का सामना करना पड़ता था ! उसी में एक थी हथियारों की जरुरत ! हथियार भी ऐसा जो शक्तिशाली भी हो और छुपाया भी जा सके ! काफी सोच-विचार के बाद जर्मनी में बनी माउजर पिस्तौल माफिक पाई गई ! पर उस सस्ते के जमाने में भी उसकी कीमत 75 रुपये थी जो चोरी-छुपे खरीदने पर तीन सौ रुपये में मिलती थी ! तीन सौ रूपये की कीमत इसी से आंकी जा सकती है कि उस समय एक रुपये का 20 सेर दूध, दो सेर शुद्ध घी, 30 सेर गेहूँ तथा सोना 20 रुपये का एक तोला था ! पर जरुरत थी तो हथियार लेना ही था ! वह भी सशक्त ! 
काकोरी काण्ड में प्रयुक्त माउजर 
माउजर, जर्मनी में बनी इस छोटी पर सशक्त पिस्तौल की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसके बट के साथ लकड़ी का बड़ा कुन्दा अलग से जोड़ कर इसे आवश्यकतानुसार किसी रायफल की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता था। इससे इसकी मारक क्षमता बढ़ जाती थी। इसकी दूसरी विशेषता यह थी कि इसके चैम्बर में 6, 10 और 20 गोलियों वाली छोटी या बड़ी कोई भी मैगजीन फिट हो जाती थी। इसके अतिरिक्त इस पिस्तौल की एक विशेषता यह थी कि इसके पीछे लगाया जाने वाला लकड़ी का कुन्दा ही इसके खोल का काम करता था। भारतीय क्रांतिकारी इसकी क्षमता को आजमा भी चुके थे, जब अमर क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने इन्हीं, तीन-तीन सौ रुपयों में खरीदी गईं चार माउजर पिस्तौलों के दम पर, 9 अगस्त 1925 को काकोरी के पास ट्रेन रोक कर सरकारी खजाना लूट लिया था।बाद में यह चीन और स्पेन में भी बनने लगी पर नाम माउजर ही रहा !आज भी इस पिस्तौल का कोई जवाब नहीं है !
विडंबना है कि किस्मत से, छींका टूटने से जब हमारी झोली में आजादी आ ही गिरी तो उसका सारा श्रेय, बिना किसी हिचक, बिना किसी अपराधबोध के, बिना किसी शर्म के हमने खुद को ही देते हुए बड़ी सरलता से उन सैकड़ों हजारों वीरों के उत्सर्ग को, उनके समर्पण को, उनकी देशप्रेम की मिसाल को भुलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी 
भारत में माउजर की खरीद-फरोख्त खतरा खड़ा कर सकती थी ! इसके लिए किसी का जर्मनी जाना जरुरी था ! वह भी कोई आसान काम नहीं था ! पर जहां चाह होती है, वहां कोई ना कोई राह निकल ही आती है ! काशी में लम्बी तैराकी की प्रतियोगिताओं को क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ बक्शी नामक युवक ने प्रारंभ करवाया था ! जो कि खुद भी बहुत अच्छे तैराक थे और तैराकी संघ के मंत्री भी ! संघ क्रांतिकारियों के लिए एक आड़ का काम भी करता था ! संस्था के एक अन्य बहुत ही कुशल तैराक थे, केशव चक्रवर्ती ! इन्हें सब कुछ समझा-बुझा कर जर्मनी में होने वाली तैराकी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने भेज दिया गया ! केशव अपना काम कर वापस भारत आ गए ! 
माउजर और उसका खोल 
असले का इंतजाम तो हो गया था पर उसे हासिल करने के लिए पैसों की भी जरुरत थी ! उसी के इंतजाम का नतीजा था, काकोरी ट्रेन कांड ! इसी से मिली रकम को ले कर शचीन्द्रनाथ बक्शी और राजेंद्र लाहिड़ी कलकत्ता रवाना हो गए, पार्सल छुड़वाने के लिए ! पर बात इतनी आसान नहीं थी कि गए, पैसे दिए और सामान ले लिया ! कलकत्ता बंदरगाह पर तो ऐसा करना सोचा भी नहीं जा सकता था ! उन दिनों अंतराष्ट्रीय कानून अनुसार भारत की समुद्री सीमा तीन मील थी ! उसके बाद अस्थाई तौर पर सागर का वह हिस्सा उस देश का माना जाता था जिसका जहाज हो और जब तक हो ! इसलिए पानी में देश से तीन मील दूर तक जा कर ही सामान लिया जा सकता था ! 
श्री शचीन्द्रनाथ बक्शी 
उसका एक ही उपाय था ! वही किया गया ! रात के घुप्प अंधेरे में, उफनती बंगाल की खाड़ी के अथाह जल में, अकेले बिना किसी सहारे, शचीन्द्रनाथ बक्शी तैरते हुए जहाज तक गए, वहां भुगतान कर हथियार हासिल किए और फिर उतने भार के साथ, उसी समय वापस तैर कर किनारे आए ! धन्य थे वे लोग ! धन्य थी उनकी वीरता ! धन्य था उनका समर्पण ! यही वह खेप थी, जिसकी एक माउजर पिस्तौल की गोली से वीर राजगुरु ने साण्डर्स को दूसरे लोक पहुंचा दिया था ! यही वह खेप थी जिसकी एक माउजर अमर सेनानी, क्रांतिकारियों के नायक, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के कमांडर-इन-चीफ, अजेय, चंद्रशेखर आजाद की अंतिम समय तक साथी रही ! 
काकोरी स्टेशन 
उन वीरों की हिम्मत, समर्पण, त्याग, देशप्रेम का कोई सानी नहीं था ना है और शायद ही आगे कभी हो पाएगा ! आजादी के बाद होना तो यह चाहिए था कि उनकी बिना किसी अपेक्षा के देशप्रेम की भावना को हम पीढ़ी दर पीढ़ी अक्षुण रखते ! पर विडंबना है कि किस्मत से, छींका टूटने से जब हमारी झोली में आजादी आ ही गिरी तो उसका सारा श्रेय, बिना किसी हिचक, बिना किसी अपराधबोध के, बिना किसी शर्म के हमने खुद को ही देते हुए बड़ी सरलता से उन सैकड़ों हजारों वीरों के उत्सर्ग को, उनके समर्पण को, उनकी देशप्रेम की मिसाल को भुलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी ! जनता तब भी ऐसी थी, अब भी वैसी ही है ! सिर्फ अपने मतलब से मतलब..............😢

संदर्भ व आभार -
*क्रान्तिकारी आन्दोलन - धर्मेन्द्र गौड़ जी 
*अंतर्जाल 

19 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी लिखी रचना सोमवार 29 अगस्त 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

रोचक जानकारी देता आलेख। वीर क्रांतिकारियों को नमन।

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२९-०८ -२०२२ ) को 'जो तुम दर्द दोगे'(चर्चा अंक -४५३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संगीता जी
बहुत बहुत धन्यवाद🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी
हार्दिक आभार आपका🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विकास जी
आपका सदा स्वागत है🙏🏻

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

प्रेरणादायक आलेख !
सच्चे देशभक्तों को नमन !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

गोपेश जी
"कुछ अलग सा" पर आपका सदा स्वागत है🙏

उषा किरण ने कहा…

रोचक व प्रेरणादायी आलेख…नमन क्राँतिवीरों को🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

उषा जी
ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका🙏🏻

Onkar ने कहा…

रोचक जानकारी.देशभक्तों को नमन.

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

माउजर पिस्तौल के बारे में रोचक और अविस्मरणीय जानकारी देते हुए क्रांतिकारियों को समर्पित सराहनीय आलेख ।बधाई आदरणीय।

रेणु ने कहा…

गगन जी,आपके लेख ने दिल जीत लिया।महान क्रान्तिकारी शचींद्रनाथ सरीखे विस्मृत वीरों को आज की पीढी क्या जाने।उनके फौलादी इरादे भारत की आजादी की नींव बने।निसन्देह माऊज़र पिस्तौल ने अविस्मरणीय योगदान दिया है देश की आजादी में। जो राजगुरु,आजाद की साथी रही हो उस माऊज़र की कीमत का अन्दाजा लगाना कहाँ मुमकिन है।इस तरह की रोचक और गर्व की अनुभूति करवाती जानकारियाँ अपने आप में बहुमूल्य और अविस्मरणीय हैं।इनके बारे में सबको पता होना चाहिए।आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस भावपूर्ण आलेख के लिए 🙏🙏

Sudha Devrani ने कहा…

आज जिस, आजादी का ऐसा दुरुपयोग किया जा रहा है उस आजादी की कीमत भूल चुके है सभी..।बस अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बेशर्मी की हद पार करने पर उतारू हैं...उन्हें आजादी की कीमत और क्रांतिकारियों के बलिदान की याद दिलाने के लिए के ऐसे ही लेखन की आवश्यकता है ।
बहुत ही ज्ञानवर्धक लाजवाब लेख ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ओंकार जी
हार्दिक आभार आपका 🙏🏻

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

जिज्ञासा जी
सदा स्वागत है आपका 🙏🏻

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रेणु जी
ऐसे असंख्य लोग गुमनाम रहते हुए बिना किसी अपेक्षा के अपना सर्वस्व लुटा कर गुमनामी में ही विलीन हो गए ! खेद तो यही है कि मतलब तथा मौकापरस्तों ने कभी इन लोगों की खोज-खबर भी नहीं लेने दी !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुधा जी
खेद तो यही है कि मतलब तथा मौकापरस्तों ने कभी इन लोगों की खोज-खबर भी नहीं लेने दी ! अब लगता तो है कि समय के बदलाव के साथ इन वीर सपूतों के बारे में भी लोग जान पाएंगे !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

जो चुप रहेगी जबान-ए-खंजर, लहू पुकारेगा आस्तीन का..... कभी तो

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