एक दिन एक फोन इंटरव्यू पर जब कार्टर से किसी ने उस बच्ची के बारे में पूछा, तो केविन ने कहा कि मुझे नहीं मालुम, मैं रुका नहीं था, क्योंकि मुझे अपनी फ्लाइट पकड़नी थी ! इस पर इंटरव्यू लेने वाले व्यक्ति ने कहा कि मिस्टर कार्टर उस दिन वहां एक नहीं दो गिद्ध मौजूद थे, जिसमें एक के हाथ में कैमरा था ! इस कथन से कार्टर को अपनी भयंकर भूल का एहसास हुआ, वह इतना विचलित हो गया कि गहरे अवसाद में चला गया और कुछ दिनों बाद उसने आत्महत्या कर ली। ऐसा शायद इसलिए हुआ क्योंकि उसकी अंतरात्मा अभी जीवित थी। शायद वह भी आज जीवित होता यदि उसने उस बच्ची को उठा कर किसी फीडिंग सेंटर तक पहुंचा दिया होता.........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
आज फिर अखबार में एक खबर थी कि एक सड़क दुर्घटना में घायल हुए युवक की सहायता करने की बजाए लोग उसकी तस्वीरें लेते रहे ! आए दिन ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं ! हम ऐसे संवेदनहीन कैसे हो गए हैं ? एक आदमी मौत से जूझ रहा होता है और हम उस पल को अपने कैमरे में कैद कर रहे होते हैं ! क्यों ? सिर्फ सनसनी फैलाने के लिए ? सरकार को गलियाने के लिए ? पुलिस की लेट-लतीफी दर्शाने के लिए ? या फिर इसलिए कि अपने दोस्त-मित्रों को वे फोटो भेज कर बतला सकें कि मेरे सामने ऐसा हुआ और इस तरह अपने को ख़ास होने का अनुभव करवाने के लिए ? और यह सब एक इंसान की जान की एवज में ? फिर विडंबना यह कि कुछ ही देर बाद वही फोटो किसी बेकार-बेकाम चीज की तरह ''कूड़ेदान'' के हवाले कर दी जाती है और उसी के साथ सब कुछ भूला दिया जाता है ! लगता है जैसे होड़ सी मची हुई है ! कुछ ऐसा दिखाने को बेताब जिसे किसी ने मुझसे पहले ना देखा हो ! दूसरों से आगे होने-रहने की इसी बेताबी के चलते रोज किसी ना किसी के हताहत या दिवंगत होने की ख़बरें भी आने लगीं हैं।
हमारी अंतरात्मा भी क्या हमें कोसने-समझाने के बदले अपनी ''सेल्फी'' लेने लग गयी है ? आज फिर बड़ी बुरी तरह याद आ रही है ''केविन कार्टर'' की ! 1990 की बात है सूडान बुरी तरह अकाल की गिरफ्त में था। 1993 की शुरुआत होते-होते उसके दक्षिणी इलाके की तक़रीबन आधी आबादी मौत के जबड़े में जकड़ी जा चुकी थी। रोज 10-15 लोगों के भूख से मरने की ख़बरें आ रहीं थीं। इससे परेशान हो, लोगों में जागरूकता बढ़ाने, अपनी गंभीर स्थिति को संसार के सामने लाने तथा अधिक से अधिक सहायता पाने की अपेक्षा से वहां की सरकार ने दुनियाभर के फोटो-पत्रकारों को अपने यहां आमंत्रित किया। जिससे वे वहां के हालात को संसार के सामने प्रमाणिक तौर पर रख सकें। इनमें साऊथ अफ्रिका का पत्रकार केविन कार्टर भी शामिल था। उसने वहां की यात्रा के दौरान भूख से पीड़ित एक नन्हीं बच्ची की तस्वीर खींची, जो बेहोशी के आलम में लगभग मृतप्राय थी ! उसी के ठीक पीछे एक गिद्ध बैठा हुआ था जो उसके मरने की बाट जोह रहा था। यह फोटो सबसे पहले The New York Times में 26 मार्च 1993 को छपी थी। इसे नाम दिया गया था, ''The vulture and the little girl''। छपते ही यह फोटो दुनिया भर में केविन को भी अपने साथ मशहूर करवा गयी थी। उसे पुलित्जर सम्मान से भी नवाजा गया था। पर कुछ महीनों बाद ही केविन कार्टर ने आत्महत्या कर ली थी !
ऐसा क्या हुआ था ? जब वह अपनी उपलब्धि पर जश्न मना रहा था तब दुनिया भर के चैनलों और नेट पर उसकी चर्चा भी हो रही थी। ऐसे ही एक दिन एक फोन इंटरव्यू पर जब उससे किसी ने उस बच्ची के बारे में पूछा कि ''फिर उस बच्चे का क्या हुआ ?'' तो केविन ने कहा कि ''मुझे नहीं मालुम, मैं रुका नहीं, क्योंकि मुझे अपनी फ्लाइट पकड़नी थी !'' इस पर इंटरव्यू लेने वाले व्यक्ति ने कहा कि ''मिस्टर कार्टर उस दिन वहां एक नहीं दो गिद्ध मौजूद थे, जिसमें एक के हाथ में कैमरा था !'' इस कथन से कार्टर को अपनी भयंकर भूल का एहसास हुआ, वह इतना विचलित हो गया कि गहरे अवसाद में चला गया और कुछ दिनों बाद उसने आत्महत्या कर ली। ऐसा शायद इसलिए हुआ क्योंकि उसकी अंतरात्मा अभी जीवित थी। शायद वह भी आज जीवित होता यदि उसने उस बच्ची को उठा कर किसी फीडिंग सेंटर तक पहुंचा दिया होता !
पर हम अपने आप को क्या कहें ? क्या यह जरुरी नहीं कि कुछ हासिल करने के पहले हमारी इंसानियत, हमारी मानवता, हमारी संवेदनाएं सामने आएं जो सिद्ध करें कि हम अच्छे फोटोग्राफर हों ना हों पर एक बेहतर इंसान अवश्य हैं !
#हिन्दी_ब्लागिंग
आज फिर अखबार में एक खबर थी कि एक सड़क दुर्घटना में घायल हुए युवक की सहायता करने की बजाए लोग उसकी तस्वीरें लेते रहे ! आए दिन ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं ! हम ऐसे संवेदनहीन कैसे हो गए हैं ? एक आदमी मौत से जूझ रहा होता है और हम उस पल को अपने कैमरे में कैद कर रहे होते हैं ! क्यों ? सिर्फ सनसनी फैलाने के लिए ? सरकार को गलियाने के लिए ? पुलिस की लेट-लतीफी दर्शाने के लिए ? या फिर इसलिए कि अपने दोस्त-मित्रों को वे फोटो भेज कर बतला सकें कि मेरे सामने ऐसा हुआ और इस तरह अपने को ख़ास होने का अनुभव करवाने के लिए ? और यह सब एक इंसान की जान की एवज में ? फिर विडंबना यह कि कुछ ही देर बाद वही फोटो किसी बेकार-बेकाम चीज की तरह ''कूड़ेदान'' के हवाले कर दी जाती है और उसी के साथ सब कुछ भूला दिया जाता है ! लगता है जैसे होड़ सी मची हुई है ! कुछ ऐसा दिखाने को बेताब जिसे किसी ने मुझसे पहले ना देखा हो ! दूसरों से आगे होने-रहने की इसी बेताबी के चलते रोज किसी ना किसी के हताहत या दिवंगत होने की ख़बरें भी आने लगीं हैं।
हमारी अंतरात्मा भी क्या हमें कोसने-समझाने के बदले अपनी ''सेल्फी'' लेने लग गयी है ? आज फिर बड़ी बुरी तरह याद आ रही है ''केविन कार्टर'' की ! 1990 की बात है सूडान बुरी तरह अकाल की गिरफ्त में था। 1993 की शुरुआत होते-होते उसके दक्षिणी इलाके की तक़रीबन आधी आबादी मौत के जबड़े में जकड़ी जा चुकी थी। रोज 10-15 लोगों के भूख से मरने की ख़बरें आ रहीं थीं। इससे परेशान हो, लोगों में जागरूकता बढ़ाने, अपनी गंभीर स्थिति को संसार के सामने लाने तथा अधिक से अधिक सहायता पाने की अपेक्षा से वहां की सरकार ने दुनियाभर के फोटो-पत्रकारों को अपने यहां आमंत्रित किया। जिससे वे वहां के हालात को संसार के सामने प्रमाणिक तौर पर रख सकें। इनमें साऊथ अफ्रिका का पत्रकार केविन कार्टर भी शामिल था। उसने वहां की यात्रा के दौरान भूख से पीड़ित एक नन्हीं बच्ची की तस्वीर खींची, जो बेहोशी के आलम में लगभग मृतप्राय थी ! उसी के ठीक पीछे एक गिद्ध बैठा हुआ था जो उसके मरने की बाट जोह रहा था। यह फोटो सबसे पहले The New York Times में 26 मार्च 1993 को छपी थी। इसे नाम दिया गया था, ''The vulture and the little girl''। छपते ही यह फोटो दुनिया भर में केविन को भी अपने साथ मशहूर करवा गयी थी। उसे पुलित्जर सम्मान से भी नवाजा गया था। पर कुछ महीनों बाद ही केविन कार्टर ने आत्महत्या कर ली थी !
केविन कार्टर |
पर हम अपने आप को क्या कहें ? क्या यह जरुरी नहीं कि कुछ हासिल करने के पहले हमारी इंसानियत, हमारी मानवता, हमारी संवेदनाएं सामने आएं जो सिद्ध करें कि हम अच्छे फोटोग्राफर हों ना हों पर एक बेहतर इंसान अवश्य हैं !