करीब 85 साल पहले लाला अमरनाथ ने 1933 में इंग्लैंड के साथ अपना पहला टेस्ट खेलते हुए 118 रन बनाए थे। यह किसी भारतीय द्वारा क्रिकेट में बनाया गया पहला शतक भी था। इसके बाद दीपक शोधन, ऐ. जी, कृपाल सिंह, अब्बास अली बेग, हनुमंत सिंह, सुरेंद्र अमरनाथ जैसे बेहतरीन खिलाड़ियों ने क्रिकेट जगत में अपने शतक के साथ प्रवेश तो किया पर अपने खेल के जीवन काल में वे फिर कभी शतक नहीं बना सके ! इसीलिए क्रिकेट जगत में एक ''मिथ'' बन गया कि अपने पदार्पण पर शतक बनाने वाला खिलाड़ी फिर कभी दूसरा शतक नहीं लगा पाता ! इस धारणा को छत्तीस वर्ष बाद 1969 में बेहतरीन खिलाड़ी गुंडप्पा विश्वनाथ ने अपने कीर्तिमानों से तोड़ा। फिर तो मो. अजहरुद्दीन, प्रवीण आमरे, सौरव गांगुली, वीरेंद्र सहवाग, सुरेश रैना, शिखर धवन व रोहित शर्मा ने यह कमाल कर दिखाया और प्रवीण आमरे को छोड़ इन सभी ने अनेकानेक शतकों को अंजाम दिया.............
#हिन्दी_ब्लागिंग
भारत, वेस्ट इंडीज के बीच दो टेस्ट मैचों की श्रृंखला के पहले मैच के पहले दिन 18 वर्षीय पृथ्वी शॉ के रूप में एक और होनहार खिलाड़ी ने अपने पदार्पण मैच में ही शतक जड़, भारतीय क्रिकेट जगत में एक धमाके के साथ अपना
नाम दर्ज करवा लिया। ऐसा करने वाले वे भारत के पन्द्रहवें खिलाड़ी बन गए हैं। जाहिर है तारीफों के पुल बंधने थे, चर्चाएं होनी थीं, मिडिया में छा जाना था ! ऐसा ही हुआ भी और होना भी चाहिए होना भी चाहिए; उभरते हुए खिलाड़ियों की हौसला-अफजाई होनी ही चाहिए ! जिससे उनका मनोबल बढ़ता है और अच्छा करने की प्रेणना मिलती है। पर शुरुआत में ही उसकी तुलना किसी महान खिलाड़ी से नहीं कर देनी चाहिए ! उसको कुछ समय देना चाहिए, अपनी प्रतिभा को निखारने और अपने आत्मबल को पुख्ता करने का। पर हमारा मिडिया खासकर टी.वी. चैनल वाले हर समय जल्दी में रहते हैं, जैसे आज नहीं तो कभी नहीं ! इधर खेल ख़त्म भी नहीं होता और वे शुरू हो जाते हैं अपने तथाकथित विशेषज्ञों के साथ बेतुका तुलनात्मक विश्लेषण करने में ! बिना कुछ सोचे-समझे ऐसा करने में उन्हें महारत हासिल है ! उनको एक क्षण के लिए भी यह अहसास नहीं होता कि ऐसा कर वह नवागत पर अतिरिक्त मानसिक तनाव डाल रहे हैं। ऐसी बातों से चौंधियाया हुआ खिलाड़ी कभी-कभी मैदान में दवाब में रहते हुए हुए अपना नैसर्गिक खेल नहीं खेल पाता।
भारत, वेस्ट इंडीज के बीच दो टेस्ट मैचों की श्रृंखला के पहले मैच के पहले दिन 18 वर्षीय पृथ्वी शॉ के रूप में एक और होनहार खिलाड़ी ने अपने पदार्पण मैच में ही शतक जड़, भारतीय क्रिकेट जगत में एक धमाके के साथ अपना
नाम दर्ज करवा लिया। ऐसा करने वाले वे भारत के पन्द्रहवें खिलाड़ी बन गए हैं। जाहिर है तारीफों के पुल बंधने थे, चर्चाएं होनी थीं, मिडिया में छा जाना था ! ऐसा ही हुआ भी और होना भी चाहिए होना भी चाहिए; उभरते हुए खिलाड़ियों की हौसला-अफजाई होनी ही चाहिए ! जिससे उनका मनोबल बढ़ता है और अच्छा करने की प्रेणना मिलती है। पर शुरुआत में ही उसकी तुलना किसी महान खिलाड़ी से नहीं कर देनी चाहिए ! उसको कुछ समय देना चाहिए, अपनी प्रतिभा को निखारने और अपने आत्मबल को पुख्ता करने का। पर हमारा मिडिया खासकर टी.वी. चैनल वाले हर समय जल्दी में रहते हैं, जैसे आज नहीं तो कभी नहीं ! इधर खेल ख़त्म भी नहीं होता और वे शुरू हो जाते हैं अपने तथाकथित विशेषज्ञों के साथ बेतुका तुलनात्मक विश्लेषण करने में ! बिना कुछ सोचे-समझे ऐसा करने में उन्हें महारत हासिल है ! उनको एक क्षण के लिए भी यह अहसास नहीं होता कि ऐसा कर वह नवागत पर अतिरिक्त मानसिक तनाव डाल रहे हैं। ऐसी बातों से चौंधियाया हुआ खिलाड़ी कभी-कभी मैदान में दवाब में रहते हुए हुए अपना नैसर्गिक खेल नहीं खेल पाता।
अपने पहले ही टेस्ट में शतक जड़ने वाले, पृथ्वी शॉ, सबसे कम उम्र के जरूर हैं पर ऐसा कारनामा, चौदह भारतीय खिलाड़ी उनसे पहले भी कर चुके हैं। जिसकी शुरुआत करीब 85 साल पहले लाला अमरनाथ ने 1933 में इंग्लैंड के साथ खेलते हुए 118 रन बना कर की थी। संयोग से किसी भारतीय द्वारा क्रिकेट में बनाया गया यह पहला शतक भी था। पर इसके साथ ही एक ''मिथ'' भी जुड़ गया कि भारतीय क्रिकेट में अपने पदार्पण पर शतक बनाने वाला खिलाड़ी फिर कभी दूसरा शतक नहीं लगा पाता ! क्योंकि लाला अमरनाथ के बाद दीपक शोधन, ऐ. जी, कृपाल सिंह, अब्बास अली बेग, हनुमंत सिंह, सुरेंद्र अमरनाथ जैसे बेहतरीन खिलाड़ियों ने क्रिकेट जगत में अपने शतक के साथ प्रवेश तो किया पर अपने खेल के जीवन काल में वे फिर कभी शतक नहीं बना सके ! इस धारणा को टूटने में तक़रीबन छत्तीस वर्ष लग गए जब 1969 में खेल में पदार्पण करने वाले भारत के बेहतरीन खिलाड़ी गुंडप्पा विश्वनाथ ने इसे अपने कीर्तिमानों से तोड़ा। फिर तो मो. अजहरुद्दीन, प्रवीण आमरे, सौरव गांगुली, वीरेंद्र सहवाग, सुरेश रैना, शिखर धवन व रोहित शर्मा ने यह कमाल कर दिखाया और प्रवीण आमरे को छोड़ इन सभी ने अनेकानेक शतकों को अंजाम दिया।
यहां पृथ्वी के खेल को ले कर कोई शक ओ शुबहा नहीं है, ना हीं उसके प्रयास और उयलब्धि को कम कर के आंकना है ! बस गुजारिश इतनी सी है कि मीडिया उसे बक्शे ! उसे समय दे, अपने को तराशने का, खेल प्रेमियों को अपना सामर्थ्य दिखाने का, दिलो-दिमाग से परिपक्व होने का और सबसे बड़ी बात टीम में अपना स्थान निश्चित करवाने का ! क्योंकि लाला अमरनाथ को भी एक अनूठा, कभी ना टूटने वाला कीर्तिमान बनाने के बावजूद दोबारा टीम में लौटने में बारह वर्ष लग गए थे ! इसके अलावा हमारे सामने ऐसे बहुत से खिलाड़ी हुए हैं जो अपनी शोहरत को पचा न पाने के कारण असमय ही हाशिए पर चले गए ! सभी में तो गावस्कर, कपिल, सचिन, द्रविड़ या धोनी जैसा माद्दा तो नहीं ना होता है !
यहां पृथ्वी के खेल को ले कर कोई शक ओ शुबहा नहीं है, ना हीं उसके प्रयास और उयलब्धि को कम कर के आंकना है ! बस गुजारिश इतनी सी है कि मीडिया उसे बक्शे ! उसे समय दे, अपने को तराशने का, खेल प्रेमियों को अपना सामर्थ्य दिखाने का, दिलो-दिमाग से परिपक्व होने का और सबसे बड़ी बात टीम में अपना स्थान निश्चित करवाने का ! क्योंकि लाला अमरनाथ को भी एक अनूठा, कभी ना टूटने वाला कीर्तिमान बनाने के बावजूद दोबारा टीम में लौटने में बारह वर्ष लग गए थे ! इसके अलावा हमारे सामने ऐसे बहुत से खिलाड़ी हुए हैं जो अपनी शोहरत को पचा न पाने के कारण असमय ही हाशिए पर चले गए ! सभी में तो गावस्कर, कपिल, सचिन, द्रविड़ या धोनी जैसा माद्दा तो नहीं ना होता है !
6 टिप्पणियां:
मिडिया के विशेषज्ञ जो तुलनात्मक विचार प्रस्तुत करते हैं..उनका अपना मानसिक संतुलन डगमगाया हुआ होता है.
ऐसा अक्सर देखने को मिलता है.
आपकी बातों से शत प्रतिशत सहमत हैं.
नाफ़ प्याला याद आता है क्यों? (गजल 5)
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/10/2018 की बुलेटिन, 'स्टेंड बाई' मोड और रिश्ते - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
रोहितास जी, जिन्होंने उन तथाकथित ''विशेषज्ञों'' को खेलते देखा है, उन्हें आज ज्ञान झाड़ते देख और कोफ़्त होती है !
शिवम जी, आपका और ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक आभार
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-10-2018) को "शरीफों की नजाकत है" (चर्चा अंक-3117) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, तहे दिल से शुक्रिया !
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