शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

हेलो, मैं "मनाली" बोल रही हूँ.

यह पोस्ट है तो पुरानी, पर इस बार फिर जाना हो पा रहा है तो इस लालच में कि शायद कोई "अनदेखा अपना "वहाँ मिल ही जाए सो.................................

नाम तो आपने जरूर सुन रखा होगा, फिर भी अपना परिचय करवाने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही हूँ। मैं मनाली हूं :-

मेरे परिवार हिमाचल में आपका स्वागत है। मेरे परिवार के सारे सदस्य बहुत सुंदर, शांत और आथित्य प्रेमी हैं। मेरे सबसे बड़े भाई शिमले को हिमाचल की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। हम भाई बहन एक से बढ़ कर एक खूबियों के मालिक हैं। मैं और मेरा भाई कुल्लू दोनों जुड़वां हैं। एक राज की बात बताती हूं। कुल्लू थोड़े पूराने विचारों का है। इसीलिए उसकी सारी पूरानी बस्तियां, मंदिर, मोहल्ले वैसे के वैसे ही हैं। पर मेरे बार-बार टोकते रहने पर अब धीरे-धीरे बदलना शुरु कर रहा है। जिसके फलस्वरूप उसे एक फ्लाई-ओवर का पुरस्कार मिला है। इससे पीक सीजन में, अखाड़ा बाजार पर लगने वाले घंटों के जाम से यात्रियों को राहत भी मिल गयी है। उसकी बनिस्पत मैं आधुनिक विचारों की हूं। इसी कारण पर्यटक अब मेरे पास आना ज्यादा पसंद करते हैं। पर इस आधुनिकता का खामियाजा भी मुझे भुगतना पड़ा था, सालों पहले, जब हिप्पी समुदाय के लोगों ने मेरे यहां जमावड़ा डाल, चरस गांजे का अड़्ड़ा बना कर दुनिया भर में मुझे बदनाम कर दिया था। बड़ी मुश्किलों के बाद धीरे-धीरे फिर मैंने अपना गौरव प्राप्त कर लिया है।
कुल्लू से मेरी दूरी 40 किमी की है। व्यास, जिसे नद होने का गौरव प्राप्त है, के दोनों किनारों पर बने सुंदर सड़क मार्ग यात्रियों को मुझ तक पहुंचाते हैं। व्यास के दोनों ओर सैकड़ों गांव बसे हुए हैं पर ठीक बीस किमी पर एक कस्बा पतली कुहल है, जो आस-पास के गांवों की जरूरतों को पूरा करता है। इसी के पास नग्गर नामक स्थान पर विश्व प्रसिद्ध रशियन चित्रकार ‘निकोलस रोरिक’ की आर्ट गैलरी है। रोरिक हिंदी फिल्म जगत की पहली सुपर-स्टार तथा पहले दादा साहब फाल्के पुरस्कार की विजेता देविका रानी के पति थे। पतली कुहल में सरकारी मछली पालन केन्द्र भी है। पर जैसे-जैसे लोगों की आवाजाही बढ़ रही है वैसे-वैसे मेरा प्राकृतिक सौंदर्य भी खतरे में पड़ता जा रहा है। मेरे माल रोड से पांच-सात किमी पहले से ही होटलों की कतारें शुरु हो जाती हैं। जिनकी सारी गंदगी व्यास को भी दुषित बना रही है। यह एक अलग विषय है। अभी आप अपना मूड और छुट्टियां खराब ना कर मेरी अच्छाईयों की तरफ ही ध्यान दें। जहां माल रोड खत्म होता है वहीं से एक सीधी चढ़ाई आप को हिडम्बा माता के मंदिर तक ले जाती है, घबड़ाने की बात नहीं है वहां तक आप अपनी गाड़ी से आराम से पहुंच सकते हैं। इस जगह पहले घना जंगल था पर उसे अब व्यवस्थित कर पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया है। इसकी विस्तृत चर्चा फिर कभी। नीचे मुख्य मार्ग, व्यास को पार कर दूसरे किनारे से आने वाले रास्ते से मिल लाहौल-स्पिति, जो एशिया का सबसे बड़ा बर्फिला रेगिस्तान है, की ओर बढ़ जाता है। इसी पर मेरे माल रोड से एक-ड़ेढ़ किमी की दूरी से एक सड़क उपर उठती चली जाती है महर्षि वशिष्ठ के आश्रम की ओर। यहां उनका प्राचीन मंदिर है। अब कुछ सालों पहले एक राम मंदिर का भी निर्माण हो गया है। यहां एक गर्म पानी का सोता भी है, जिसमें नहाने वालों के चर्म रोगों को मैंने ठीक होते देखा है। जो इस पानी में प्रचूर मात्रा में सल्फर की उपस्थिति से संभव है। पर यहां भी बढ़ती आबादी का दवाब साफ दिखाई पड़ने लगा है। यह सुंदर रमणीक स्थान अब दुकानों घरों से पट गया है। फिर भी प्रकृति ने अपना खजाना मुक्त हस्त से मुझ पर लुटाया है। अभी भी और जगहों की बनिस्पत आप मुझे निसर्ग के ज्यादा पास पाएंगें। बर्फीले पर्वत शिखर उनकी ढ़लानों पर सेवों के बागीचे, सीढ़ी नुमा खेत, खिलौने की तरह के घर और यहां के सीधे-साधे वाशिंदे आपको मोह ना लें तो कहिएगा। अभी भी यहां के हवा-पानी तथा लोगों के दिलों पर बाहरी सभ्यता की बुराईयां पूरी तरह से हावी नहीं हो पायी हैं। हम अपने नाम "देव भूमी" को अभी भी सार्थक करते हैं। अपने बारे में तो कोई भी कहने से नहीं थकता। हो सकता है कि पढ़ने से आप बोर भी हो जायें। पर यह मेरा दावा है कि एक बार यदि आप मेरे पास आयेंगें तो फिर मुझे भूल नहीं पायेंगें। अब तो मुझ तक पहुंचने के लिए हर तरह की सुविधा भी उपलब्ध है।

तो कब आ रहे हैं, मैं इंतजार में हूं।

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

दूर का अमेरिका सुहाना लगता है...

अमेरिका भी अब पहले जैसा नहीं रह गया है। दुनिया भर से सपने संजोये लोगों की आमद, बढ़ती जनसंख्या, दुनिया भर में फैली मंदी ने वहाँ भी अराजकता फैलाने में कोई कसार नहीं छोडी है....................................................

अमेरिका, दुनिया का सबसे शक्तिशाली, अपने आप को संसार का मुखिया मानने वाला, पर हरेक के फटे में टांग अड़ाने वाला, धन कुबेरों का देश कहलाता है इसकी हर क्षेत्र में चाहे कृषि हो, विज्ञान हो, व्यवसाय हो, सुरक्षा हो सब जगह तरक्की का कोई सानी नहीं है।
इसीलिए हमारे जैसे अनेकों पिछड़े या अर्द्ध विकसित या विकासशील देशों के युवाओं के लिए वह धरती के स्वर्ग के समान है। ऐसी सोच है कि वहां जाते ही जाने वाले की हरेक इच्छा पूरी हो जाती है।

पर सिक्के के दो पहलुओं की तरह इसका भी एक अंधेरा पक्ष है।

यहां की आबादी का एक अच्छा खासा हिस्सा या तो अनपढ है या बहुत कम पढा लिखा है। यह बात वहीं की अखबारों की खोज का नतीजा है। करीब 26 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनके पति-पत्नि के संबंधों में दरार के कारण परिवार का जिम्मा या तो माँ के ऊपर है या फिर पिता के ऊपर। हजारों ऐसे लोग हैं जिनके सौतेले माँ या बाप हैं। एक तरह से व्यभिचार को कानूनी मान्यता मिल चुकी है। यहां तक कि पादरी भी विवाहेतर संबंधों को स्वीकृति देने लगे गये हैं। बेरोजगारी का ग्राफ दिनों दिन बढता ही जा रहा है जिससे समाज में अराजकता के पैर जमने लगे हैं। अरबपतियों की बात न करें तो करोड़पतियों की संख्या आबादी के लिहाज से बहुत कम है।

यह तो सिर्फ एक बानगी है।

बुधवार, 28 अप्रैल 2010

आज का धृतराष्ट्र, जो खुद ही बैल को उकसा रहा है।

एक आदमी नदी के किनारे बहुत उदास सा बैठा था। उससे कुछ दूरी पर एक संत भी बैठे थे, अपने प्रभू के ध्यान में। अचानक उनका ध्यान इस दुखी आदमी की ओर गया। संत उठ कर इसके पास आए और पूछा कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग रही उदास भी बहुत हो क्या बात है? संत के प्रेम भरे वचन सुन उस आदमी की आंखों से आंसू बहने लगे, फिर कुछ संयत हो बोला, जब तक मैं काम करता था तो सब मुझसे खुश रहते थे, पर अब बुढा हो चला हूं तो मेरे ही घरवाले मुझे तंग करते हैं, मारते पीटते हैं, हर समय दुत्कारते रहते हैं। इतना कह उसने अपनी पीठ पर लगे निशानों को दिखाया और बोला आज मैं घर से यह सोच कर निकला हूं कि अपनी जिंदगी खत्म कर दूंगा। मैं इस नदी में ड़ूब कर मर जाना चाहता हूं। संत ने उसे ढाढस बंधवाया और कहा, जान देना कायरों का काम है। तुम मेरे साथ चलो तुम्हारे रहने, खाने का सब इंतजाम मेरे आश्रम में हो जाएगा। इस पर वह आदमी चुप रहा। संत ने पूछा क्या सोच रहे हो? चलो। वह आदमी बोला, पर मेरे बिना मेरे घरवालों का क्या होगा?

यह तो एक कहानी थी। पर कहानियां भी तो कहीं ना कहीं सच्चाई समेटे होती हैं।

इस कहानी से बिल्कुल मिलता हुआ वाकया मेरे सामने घट रहा है। मेरे यहां एक दफ्तरी है। उसके दो लड़के हैं। एक 32 के करीब तथा दूसरा 30 के आस-पास है। यह खुद पहले सरकारी नौकरी में कुछ ऐसी जगह था जहां पैसे का स्रोत सूखता नहीं था। पर अवकाश ग्रहण करने के बाद आमदनी कम हो गयी पर खर्चे यथावत रहे। अब अपने लड़कों की कर्महीनता के चलते फिर काम करने पर मजबूर है। उसके बड़े लड़के की पहली शादी टूट चुकी है। जिससे उसके एक बच्चा भी है। तलाक लेने देने में इस भले आदमी की सारी जमा पूंजी स्वाहा हो गयी है। पर पुत्र मोह इतना है कि उनके शराबी-कबाबी होने के बावजूद उनकी सारी फरमाईशें जैसे-तैसे पूरी करने को तैयार रहता है। यहां तक कि उनके कपड़े-लत्ते सब खुद धोता साफ करता है। खुद खाए ना खाए उनके लिए हर व्यंजन का इंतजाम करता है उसके लिए चाहे हर महीने उधार ही क्यूं ना लेना पड़े। अभी पिछले साल लड़कों को तिपहिया ले कर दिया था कि रोजी-रोटी से लगेंगे। पर उसकी कमाई भी शराब-कबाब में चली जाती है। इसके हाथ एक रुपया भी नहीं आता उल्टे उसकी किस्त, टूट-फूट, टैक्स वगैरह भी अपनी जेब से भरता रहता है। शिकायत करने पर लड़के आंख दिखाने लगे हैं। पहले तो पुत्र मोह में पड़ लाड़-प्यार मे उन्हें बिगाड़ दिया अब वे हाथ से निकल गये हैं तो हर समय अपना माथा पीटता रहता है। पर मोह माया फिर भी खत्म नहीं हुई है। एक दो बार उसके पूछने पर मैंने बताया कि बहुत सी ऐसी जगहें व संस्थायें हैं जो आप और आपकी पत्नि को अपने यहां रख आपकी बाकि जिंदगी को चैन से गुजारने में सहयोग करेंगी। फिर आपकी पेंशन है आराम से गुजारा हो जाएगा, पर उपर वाली कहानी की तरह फिर वही चिंता कि मेरे बिना दोनो मर जाएंगें साले। अब फिर खोज-खाज कर जिसका तलाक हुआ था उसकी दोबारा शादी करने जा रहा है, पैसे हैं नहीं ब्याज पर बाजार से रकम उठा यह कार्य पूरा करना चाहता है। वह भी तलाक की बात नये सम्बंधियों से छिपा कर। बहुतों ने समझाया कि इस तरह धोखे में रख कर शादी करना ठीक नहीं है। तो इसका जवाब है कि ऐसे तो "बेचारे" की शादी होगी ही नही।

अब ऐसे आदमी को क्या समझाया जाए या कि वह कुछ समझ भी पाएगा कभी जो खुद ही बैल को उकसा-उकसा कर कह रहा हो, आ, आ मुझे मार।

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

हंसने की कीमत नहीं देनी पड़ती,

कभी-कभी कुछ याद आ जाता है तो बांटने की इच्छा हो जाती है.........................

संता सिंह का बेटा बंटी बहुत देर से नाई की दुकान में बैठा था। जब काफी समय हो गया तो नाई ने पुछा, क्यूं बेटा बहुत देर से बैठे हो क्या बात है?बंटी ने जवाब दिया, मुझसे बंता अंकल की कार का शीशा टूट गया है, वे मुझे गुस्से में ढूंढ रहे हैं। यही एक जगह है जहां वह मेरे होने की उम्मीद नहीं कर सकते।
रोज-रोज की परेशानियों, असफलताओं तथा मुफलिसी से परेशान एक मुसीबत के मारे ने भगवान से प्रार्थना की कि अब तो मुझे उठा ही लो तंग आ गया हूं जिंदगी से।
उसी समय यमदूत प्रगट हो बोला, चलो।
आदमी ने घबड़ा कर पूछा , कहां?
यमदूत ने कहा, तुम्हीं ने तो अभी प्रार्थना की थी न कि मुझे उठा लो।
आदमी ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा, हे प्रभू गरीब आदमी मजाक भी नहीं कर सकता !!!

जंघेल साहब आफिस जाते समय जैसे अपनी बीवी को गले लगा कर विदा होते हैं, तुम्हारी इच्छा नहीं करती कभी ऐसा करने की ? पत्नि ने पूछा।
होती तो बहुत है, पर जंघेल से डर लगता है। पति ने जवाब दिया।

रविवार, 25 अप्रैल 2010

अपनी सेना के वीर जवानों की खातिर इसे पढ़ें और पढवाने की कोशिश जरूर करें.

यह मार्मिक अपील, स्व.ले.सौरभ कालिया, जिन्हें १५.०५.१९९९ को कारगिल में गश्त करते समय पाकिस्तानी सेना ने बंदी बना लिया था तथा बाद में उनकी नृशंस ह्त्या कर दी थी, के पिताजी द्वारा की गयी है। वे वर्षों से इस मुहिम में जुटे हुए हैं जिससे पाकिस्तान का घिनौना और बर्बर चेहरा दुनिया के सामने आ सके। आपसे प्रार्थना है कि सिर्फ पांच मिनट दे इसे पढ़ें और आगे लोगों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें।

ले.सौरभ कालिया पहले अफसर थे जिन्होंने पाक के नापाक इरादों से कारगिल में अतिक्रमण का पर्दाफाश किया था और इसकी सूचना सेना और देश को दी थी।
15.05.1999 को सीमा पर गश्त करते समय LOC के अंदर ही उन्हें और उनके पांच साथियों को पाकिस्तानी सेना ने बंदी बना कारागार में डाल दिया था। जहां उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में तीन हफ्तों तक अमानुषिक रूप से प्रताड़ित किया गया। इस सब के गवाह थे उनके शरीर पर पड़े दाग जो सच्चाई बताने के लिए उनके शवों पर मौजूद थे जब उनके पार्थिव शरीरों को पाक सेना ने वापस किया। उन निशानों से पता चलता है कि पाक सेना अधिकारी पाश्विकता की किस हद तक जा चुके हैं। जवानों के शरीरों पर जगह-जगह जलती सिगरेटों से दागने के निशान अपनी कहानी कहते थे। कानों को किसी नूकीली चीज से बुरी तरह छेदा गया था। आंखें फोड़ कर निकाल दी गयीं थी। दांत और जबड़े की हड़्ड़ियां तोड़ डाली गयी थीं। शरीर के कोमल तथा नाजुक अंगों का तो और भी बुरा हाल कर दिया गया था। यह तो प्रमाण थे शरीर पर हुए जुल्म के पर मानसिक रूप से उन्हें कितनी यंत्रणा दी गयी होगी उसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। पूरे 22 दिनों तक पाश्विक अत्याचार के बाद उन सब को गोली मार मौत के घाट उतार दिया गया। इस बर्बरता पूर्ण हत्याकांड़ में पाक सेना ने किसी भी युद्धबंदियों के लिए बने नियम या कानून की परवाह नहीं कर पूरी दुनिया को ठेंगा दिखाया है।

इधर जहां हमें नाज है अपने वीर जवानों पर, उनकी देशभक्ति पर, उनके धैर्य पर, उनके साहस पर, उनकी दृढता पर, उनकी इच्छा शक्ति पर वहीं उनके ऊपर हुए अत्याचार को देख सुन कर भी ढील बरतने वाले देश के कर्णधारों और उन तथाकथित मानवाधिकार के नाम पर अपना उल्लू सीधा करने वालों मतलब परस्तों ने जैसी उदासीनता दिखलाई है उससे ड़र है कि अपने बच्चों को फौज में भेजने की इच्छा रखने वाले माता-पिता को ऐसा करने के पहले दो बार सोचना पड़ेगा। इतना ही नहीं इस तरह के व्यवहार ने फौज को भी कोई अच्छा संदेश या संकेत नहीं भेजा है।

इस घटना को राष्ट्र के सम्मान के साथ जोड़ते हुए हमें देश के कर्णधारों को झिंझोड़ना होगा कि यदि सेना और उसके जवानों के साथ, जो खुद जाग कर हमारे चैन से सोने का इंतजाम करते हैं, जो मौत से दो-दो हाथ इसलिए करते हैं कि हमारी जिंदगियां सुरक्षित रहें, जिनके लिए देश अभी भी "माँ" है, ऐसा ही सलूक होता रहा तो तुम भी महफूज नहीं रह पाओगे। संसार के मानवाधिकार आयोगों के सामने सारी पोल खोलनी होगी जिससे पाकिस्तानी सेना का दो मुंहा चेहरा और उसका गिजगिजा सच बेनकाब हो सके। यदि अब भी हम यूं ही ढील बरतते रहे और दोषियों को दंड़ नहीं दिया गया तो आने वाले समय मे उनकी हरकतों का अंदाज लगाया जा सकता है।
ले.सौरभ कालिया के अलावा उन पांच जवानों, जिन्होंने मातृभूमि के खिलाफ मुंह खोलने से मौत को गले लगाना बेहतर समझा, के नाम हैं :

१, Sep। Arjun Ram s/o Sh। Chokka Ram; Village & PO Gudi। Teh। & Dist.Nagaur, (Rajasthan)2. Sep. Bhanwar Lal Bagaria h/o Smt. Santosh Devi; Village Sivelara;Teh.&Dist.Sikar (Rajasthan)3. Sep. Bhikaram h/o Smt. Bhawri Devi; Village Patasar; Teh. Pachpatva;Distt.Barmer (Rajasthan)4. Sep. Moola Ram h/o Smt. Rameshwari Devi; Village Katori; Teh. Jayal;Dist.Nagaur(Rajasthan)5. Sep. Naresh Singh h/o Smt. Kalpana Devi; Village Chhoti Tallam;Teh.Iglas ; Dist.Aligarh (UP)

द्वारा :
डॉ एन के कालिया
सौरभ नगर, पालमपुर, 176061
हिमाचल प्रदेश।
+९१(०१८९४)32065

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

जय हिंद, जय जवान. इसे जरूर पढ़ें और कोशिश करें कि ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़ सकें.

पोस्ट कुछ बड़ी जरूर है पर पाकिस्तान में हमारे युद्ध बंदी जवानों की दुर्दशा का खुलासा करती है। हम चैन से सो सकें उसके लिए अपने प्राणों की आहूती देने वालों को शत-शत प्रणाम। ई-मेल से सीधे पेस्ट करने के कारण ठीक के व्यवस्थित नहीं हो पाया है, उसके लिए क्षमा चाहता हूँ। पर इसे आगे जरूर बढ़ाएं।
Dear Sir/Madam ,
SPARE 5-MINUTES from ur busy schedule. PLEASE !!!
Lt. Saurabh Kalia of 4 JAT Regiment of the Indian Army laid down his life at the young age of 22 for the nation while guarding the frontiers at Kargil.
His parents, indeed the Indian Army and nation itself, lost a dedicated, honest and brave son.He was the first officer to detect and inform about Pakistani intrusion. Pakistan captured him and his patrol party of 5 brave men alive on May 15, 1999 from the Indian side of LOC.
They were kept in captivity for three weeks and subjected to unprecedented brutal torture, evident from their bodies handed over by Pakistan Army on June 9, 1999.
The Pakistanis indulged in dastardly acts of inflicting burns on these Indian officers with cigarettes, piercing their ears with hot rods, removing their eyes before puncturing them and breaking most of the bones and teeth.
They even chopped off various limbs and private organs of the Indian soldiers besides inflicting unimaginable physical and mental torture.
After 22 days of torture, the brave soldiers were ultimately shot dead. A detailed post-mortem report is with the Indian Army. Pakistan dared to humiliate India this way flouting all international norms.
They proved the extent to which they can degrade humanity. However, the Indian soldiers did not break while undergoing all this unimaginable barbarism, which speaks volumes of their patriotism, grit, determination, tenacity and valour - something all of India should be proud of.
Sacrificing oneself for the nation is an honour every soldier would be proud of, but no parent, army or nation can accept what happened to these brave sons of India . I am afraid every parent may think twice to send their child in the armed forces if we all fall short of our duty in safeguarding the PRISONERS OF WAR AND LET THEM MEET THE FATE OF LT.SAURABH KALIA.
It may also send a demoralising signal to the army personnel fighting for the Nation that our POWs in Pak cannot be taken care of. It is a matter of shame and disgust that most of Indian Human Rights Organisations by and large, showed apathy in this matter.
Through this humble submission, may I appeal to allthe civilized people irrespective of colour, caste, region, religion and political lineage to stir their conscience and rise to take this as a NATIONAL ISSUE !!!
International Human Rights Organizations must be approached to expose and pressure Pakistan to identify, book and punish all those who perpetrated this heinous crime to our men in uniform.
If Pakistan is allowed to go unpunished in this case, we can only imagine the consequences. Below is the list of 5 other soldiers who preferred todie for the country rather than open their mouths in front of enemy -
1. Sep. Arjun Ram s/o Sh. Chokka Ram; Village & PO Gudi. Teh. & Dist.Nagaur, (Rajasthan)
2. Sep. Bhanwar Lal Bagaria h/o Smt. Santosh Devi; Village Sivelara;Teh.&Dist.Sikar (Rajasthan)3. Sep. Bhikaram h/o Smt. Bhawri Devi; Village Patasar; Teh. Pachpatva;Distt.Barmer (Rajasthan)
4. Sep. Moola Ram h/o Smt. Rameshwari Devi; Village Katori; Teh. Jayal;Dist.Nagaur(Rajasthan)
5. Sep. Naresh Singh h/o Smt. Kalpana Devi; Village Chhoti Tallam;Teh.Iglas ; Dist.Aligarh (UP)
Yours truly, Dr. N.K. Kalia (Lt. Saurabh Kalia's father). Saurabh Nagar,Palampur-176061Himachal Pradesh Tel: +91 (01894) 32065
Please sign in by writing your name and then copy and paste it again to forward it to your friends and relatives. Let us give a supporting hand to Dr.Kalia in his efforts to get justice.
Remember, Lt. Kalia and his colleagues died on the front so that we could sleep peacefully in our homes.
PLEASE DON'T BREAK THE ONWARD MOVEMENT OF THIS MAIL.
WE SEND ALL SORTS OF SILLY MAILS TO OUR FRIENDS WHICH COMPEL ONE TO FORWARD BY SAYING THAT IT MAY HARM YOU IF YOU WON'T DO SO. BUT HERE IT IS NOTHING LIKE THAT, IT WILL ONLY BE YOU WHO WILL FEEL SATISFIED IF YOU WILL CONTRIBUTE TO THE CAUSE.
JAI HIND ....Victory to India !!

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

तुम्हारे हुस्न का हुक्का बुझ चुका है...............

1, खादी, खाद का काम करती है, तभी तो इसे पहनने वाला हरा भरा हो जाता है।
2, पेड़ जो लगाये गये वे तो बच ना सके, पर फोटो जो खिंचवाए गये वे सुरक्षित रह गये।
3, नयी बनी दिवार दूसरे दिन ही 'आ' रही, ठेकेदार तो बच गया, ठेका दिलाने वाले को दबा गयी।
4, जाने कैसी ऊंगलियां हैं, जाने क्या अंदाज है। तुमने पत्तों को छुआ था, जड़ें हिला कर रख दीं।
5, तुम्हारे हुस्न का हुक्का बुझ चुका है जानम, वह तो हमीं हैं जो गुड़गुड़ाए जाते हैं।

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

एक साक्षात्कार ऐसा भी

"नेट" पर एक साक्षात्कार में शामिल होने का अवसर मिला। आप भी आनंद लीजिए :

OFFICER : WHAT IS YOUR NAME ?
CANDIDATE : M P। SIR
OFFICER : TELL ME PROPERLY
CANDIDATE : MOHAN PAL SIR
OFFICER : YOUR FATHER'S NAME ?
CANDIDATE : M P। SIR
OFFICER : WHAT DOES THAT MEAN ?
CANDIDATE : MANMOHAN PAL SIR
OFFICER : YOUR NATIVE PLACE
CANDIDATE : M P। SIR


OFFICER : IS IT MADHYA PRADESH ?
CANDIDATE : NO, MUNNUR PAL SIR
OFFICER : WHAT IS YOUR QUALIFICATION?
CANDIDATE : M P। SIR
OFFICER : (ANGRILY) WHAT IS IT ?
CANDIDATE : METRIC PASS
OFFICER: WHY DO YOU NEED A JOB ?
CANDIDATE : M P। SIR

OFFICER: AND WHAT DOES THAT MEAN ?
CANDIDATE : MONEY PROBLEM SIR
OFFICER : DESCRIBE YOUR PERSONALITY
CANDIDATE : M P। SIR

OFFICER : EXPLAIN YOURSELF CLEARLY
CANDIDATE : MAGNANIMOUS PERSONALITY SIR
OFFICER : THIS DISCUSSION IS NOWHERE, YOU MAY GO NOW
CANDIDATE : M P। SIR

OFFICER : WHAT IS IT NOW
CANDIDATE : MY PERFORMANCE। ...?

OFFICER : MP !!!
CANDIDATE : WHAT IS THAT SIR॥?

OFFICER : MENTALLY PUNCTURE

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

भाग्य कैसा भी हो, छींका टूटना चाहिए

रेल यात्रा के दौरान मेरी यह कोशिश रहती है कि क्लास कोई भी हो, मौसम कैसा भी हो, यात्रा छोटी हो या बड़ी यदि अकेला हूं तो ऊपर की बर्थ होनी चाहिये। ऊपर वाले की कृपा से तीन-चौथाई यात्राएं ऊपर ही ऊपर की हैं। पर जब से सरकार मेहरबान हो गयी है तब से ऊपर की बर्थ परेशान करने लगी है। कम्प्यूटर भी निवेदन नहीं
मानता है, नीचे की ही जबर्दस्ती थोप देता है। सही भी है, दोनों हाथों में लड़्ड़ू होने से रहे, या तो पैसे कम करवा लो या ऊपर की बर्थ ले लो। पर छींका तो कैसे भी टूटना चाहिए। अभी पांच दिनों की एक त्री-रात्रीय यात्रा से लौटा हूं। वही "बातें तीन रातों की" आपस में बांटना चाहता हूं।  

यात्रा की पहली वाली रात बहुत आसान रही। एक भरी-पूरी फैमिली, छह सदस्यों की। उनके बीच मैं मूसरचंद। क्योंकि उनकी एक बर्थ साइड़ अपर थी। दांत सभी निपोर रहे थे पर उनके मन में कहीं न कहीं हूक थी कि काश छठवीं भी एक साथ होती। बीच बीच में हर सदस्य कनखियों से मुझे देख लेता था पर कुछ कह नहीं पा रहा था। इधर मैं माहौल को अपनी तरफ पा निश्चिंत था कि आज तकदीर पौ-बारह है। कुछ देर बाद जब खाना वगैरह निकलने लगा तो मैंने ही 'बर्फ तोड़ी' कहा, आपलोगों को परेशानी हो रही है तो मैं उधर की बर्थ ले लेता हूं। इतना सुनना था कि पूरे परिवार में जैसे हर्ष की लहर दौड़ गयी। सामने की बर्थ से फटाफट सामान हटाया गया सीट बाकायदा पोछी गयी, मेरे मना करने के बावजूद, जितना भी था, मेरा सामान वहां पहुंचा कर मुझसे विदा ले, पर्दा लगा एक कमरीय सुख को प्राप्त हो लिए।     

दूसरी वाली रात कुछ आड़ी टेढी रही पर मेरी रही। आठ बर्थ। मेरे सिवा दो परिवार, उनके चार से सात वर्षीय, पांच बच्चे वे भी बाप रे बाप। मार पीट, रोना धोना, धमा चौकड़ी, छीना झपटी, यानि बी पी बढाने का सारा सामान। मैं चुपचाप एक पत्रिका में सर घुसाए बैठा था कि सामने वाले ने कुछ पूछा मैं उनसे मुखातिब हुआ ही था कि बगल वाले सज्जन? ने मेरी गोद से पत्रिका झपट ली। होते हैं कुछ लोग जिन्हें किसी भी औपचारिकता पर विश्वास नहीं होता। बुरा लगा पर चुप रहा। कुछ देर बाद उन्होंने पत्रिका अपनी सहगामिनी की ओर बढा दी। पर जब वह वहां से बच्चों के हाथ चली गयी तो मुझसे नहीं रहा गया। मैंने कहा भाई साहब मैं किताब पढ रहा था आधा लेख पढा था पूरा पढ लूं फिर आप ले लिजीयेगा। मेरी बात शायद उन्हें खल गयी उन्होंने तेज आवाज में पत्रिका मंगाई और बोले लीजिए साहब। मैंने मन में सोचा, शर्मा जी आज की रात तो इसी माया जाल में काटनी होगी। पर ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था। कुछ देर में शांति की स्थापना हुई। बच्चे लुढकने लगे नींद में । कोई इधर, कोई उधर, कोई नीचे तो कोई ऊपर। इसी बीच ऊपर की बर्थ पर गहरी नींद में सोया एक बच्चा गाड़ी के हिचकोलों से नीचे टपकने को हुआ पर इसके पहले की बाल सीमा रेखा पार करती मैंने उसे बीच में ही दबोच लिया। फिर क्या था अपनी बल्ले-बल्ले हो गयी। बहनापा, भाएनापा जितने नापे होते हैं जुड़ने लगे। पर अपनी निगाह तो चिडिया की आंख जैसी ऊपरी बर्थ पर थी जो मिल गयी और मैं फिर एक बार दुनिया जहान के झंझटों से मुक्त नीचे की रेलम-पेल से अलग अपनी दुनिया में मग्न हो गया।

यात्रा की तीसरी रात अपेक्षाकृत सबसे आसान रही। मेरे सामने तीन बुजुर्ग, मेरे से भी बड़े, विराजमान थे। कुछ देर बाद उनमें से एक ने अपने टिकट निकाले, कुछ देखा और बोले, मैं चौहतर का। फिर अपने बगल वाले से पूछा तुम कितने साल के हो? उन्होंने कहा, बहत्तर का। फिर तीसरे से पूछा गया, तुम? उन्होंने जवाब दिया अड़सठ का। पहले वाले सज्जन बोले ठीक है तुम हम मे सब से छोटे हो, ऊपर वाली बर्थ पर तुम जाना। अढसठिया सज्जन बोले, नहीं साठ के बाद सब एक जैसे होते हैं, मैं नहीं जाऊंगा। जिसके नाम की सीट है वही जाएगा। हालांकि बातें हंसी मजाक में ही हो रही थीं पर विवशता साफ झलक रही थी। मौके की नजाकत को भांप मैंने कहा कि यदि आप चाहें तो मैं ऊपर की बर्थ ले लेता हूं आप मेरी नीचे वाली सीट ले लीजिए। सामने वाले को जैसे दो आंखें मिल गयी हों उन्होंने तुरंत पूछा, आपको ऊपर चलेगा? मैंने मन ही मन कहा, अजी चलेगा क्या उड़ेगा। पर सामने चेहरे पर एक सौम्य मुस्कान ला गर्दन हिला दी।
तो  भाग्य अपने अपने, छींका फिर एक बार टूट चुका था।

रविवार, 18 अप्रैल 2010

"बैंक" जहां पैसे नहीं कपडे रखे जाते हैं.

ज्यादातर यही समझा जाता है कि बैंकों में पैसा या कीमती सामान ही रखा जाता है। पर झारखंड के जमशेदपुर मे एक बैंक ऐसा है जिसका पैसों से कोई लेना-देना नहीं है। इस अनोखे बैंक में इंसान की मूलभूत जरूरत कपड़े रखे जाते हैं तथा इसे कपड़ों के बैंक के नाम से जाना जाता है।

करीब एक दशक से ज्यादा पुराने इस बैंक "गूंज" का मुख्य उद्देश्य देश के उन लाखों गरीब तथा जरूरतमंद लोगों को कपड़े उपलब्ध करवाना है, जो उचित वस्त्रों के अभाव मे अपमान और स्वास्थ्य संबंधी जोखिम का सामना करते हैं। पूरी दुनिया में अनगिनत लोगों को कपड़ों के अभाव में शारिरिक व मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है। भारत के ही कुछ भागों में महिलाओं को उचित वस्त्रों के अभाव में अनेकों बार अप्रिय परिस्थियों से गुजरना पड़ता है। इसी तरह की परेशानियों से लोगों को रोज दो-चार होता देख, कुछ लोगों का मिल कर इसका हल निकालने की सोच ने जो रूप लिया वही है "गूंज"। इसी तरह यदी छोटी-छोटी धाराएं अस्तित्व में आती रहें तो गरीबी के रेगिस्तान में कहीं-कहीं तो नखलिस्तान उभर कर कुछ तो राहत प्रदान कर ही सकता है। सिर्फ मन में सर्वहारा क लिए सच्चा प्रेम तथा उनके लिए कुछ कर गुजरने की भावना होनी चाहिए।

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

आने वाला समय एक नई तस्वीर दिखाएगा, दुनिया की

वर्तमान समय बदलाव का समय है, हर पांच दस सालों में नयी-नयी इजादें सामने आती चली जा रही हैं। आने वाले कुछ सालों में भी हमारी दुनिया की तस्वीर में कुछ नये बदलाव आने वाले हैं। जिनमें प्रमुख हैं --

1:- विज्ञापन आकाश में छा जाएंगे। जी हां आकाश में लेज़र के जरिए विज्ञापन दिखाने की तकनीक पर बाकायदा काम चल रहा है।

2:- कैंसर और एड्स का निदान संभव हो जाएगा।

3:- विमानों का रूप उडनतश्तरी की तरह हो जाएगा। इसके उपर भारतीय मूल के सुब्रत राय शोध कर रहे हैं। उन्होंने इस विमान को "वीव" नाम दिया है।

4:- आने वाले समय में कारें हाइड्रोजन गैस से चलेंगी। हाइड्रोजन इंजन काम करेंगे प्रोटोन एक्सचेंज में बने फ़्यूल सेल से। जमाना होगा छोटी कारों का। नयी तकनीक जीवन को सुविधाजनक और सुरक्षित बना देगी।

5:- जोखिम के काम रोबोट करने लग जाएंगे। खान, निर्माण, बिजली, नाभिकीय संयंत्रों, हथियारों के परीक्षण, सेना, ट्रैफ़िक पुलिस जैसे स्थानों में रोबोट्स छा जाएंगे। अफसोस की बात यह हो जाएगी कि इन पर किसी नेता या उनके चमचों की धौंस नहीं चलेगी। आपको यह जान कर हैरानी के साथ-साथ खुशी भी होगी कि बहुत सी भारतीय कंपनियां घरेलू रोबोट के विकास में जुटी हुई हैं।

6:- प्रदूषण रहित सौर ऊर्जा का इस्तेमाल होने लगेगा।

7:- बुढ़ापे को रोकना तो नहीं पर जवानी को देर तक कायम रखना संभव हो जाएगा। शरीर पर बढ़ती उम्र के असर को काफी हद तक कम करने में सफ़लता मिल जाएगी।

8:- हो सकता है कि किसी अंजान सभ्यता के रेडिओ संदेश पाने में हम सफ़ल रहें। यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी ने तीन ऐसे सौरमंडल खोज निकाले हैं, जिनमें दर्जनों विशाल ग्रह मौजूद हैं। इनमें से 45 प्रकाश वर्ष दूर तो एक सितारा ऐसा है, जिसकी पृथ्वी जैसे तीन ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं। पृथ्वी जैसा एक ग्रह तो महज 15 प्रकाश वर्ष दूर मिला है। अभी दो-तीन दिन पहले कुछ ऐसी ही खबर मिली भी है कि कुछ रेडिओ संकेत जैसा प्राप्त हुआ है।

9:- कंप्युटर और भी शक्तीशाली हो जाएंगे। ऊर्जा की खपत काफी घट जाएगी। यह संभव हो पाएगा गैलियम नाईट्राइड से जो सिलिकन चिप का स्थान ले लेगा।

पर अच्छाइयों के साथ-साथ हमें कुछ बुराईयों का भी सामना करना पडेगा जैसे, पानी की कमी का सामना करना पड सकता है। आक्सीजन खरीदनी पड सकती है। कुछ नयी बिमारियां सामने आ सकती हैं। संतानोत्पति की क्षमता घटने का डर है। सार्स और बर्ड फ्लू के अलावा चेचक, प्लेग, मलेरिया और हैजा जैसी पुरानी बिमारियां नये रूप में धावा बोल सकती हैं। रोबोट के आने से घरेलू नौकरों की वजह से होने वाले अपराध तो कम हो जायेंगे पर किसी और जोखिम के बारे में तो अभी सिर्फ़ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। फिर भी हमें यही आशा रखनी है कि इंसान सारी मुसीबतों से पार पाने का रास्ता निकाल ही लेगा।

देखते हैं कब क्या होता है।

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

एक चौंकाऊ खबर, पक्षियों में भी "गे" होने लगे

एक हैरतंगेज खबर आज ही पढने को मिली। विश्वास तो नहीं होता पर खबर तो खबर है, कुछ तो सच्चाई होगी।

बात है इंग्लैंड़ की। वहां डोरसेट की एबट्सबरी की हंसों की नर्सरी में एक नर हंसों का जोड़ा ऐसा है जिसे मादा साथियों में कोई दिलचस्पी नहीं है। नर्सरी के प्रवक्ता 'ड़ेव व्हिलर' बताते हैं कि 2002 से दोनों पक्षी अंड़ों से निकले हैं तभी से साथ-साथ रहते आये हैं। दोनों मार्च के महीने में मिल कर अपना घोंसला बनाते हैं। हसों के प्रजनन काल में आपस में आम पक्षियों की तरह सारी दिनचर्या पूरी करते हैं। यहां तक की अपने घोंसले में इस तरह बैठते हैं जैसे अंडे देने वाले हों।

नर्सरी के प्रबंधक जान ह्युस्टन हंसते हुए कहते हैं कि यहां के 1000-1200 पक्षियों में यह एक मात्र जोड़ा "गे" है। इनकी हरकतें देख कर बहुत मजा आता है। कभी-कभी ये दोनों लड़ भी पड़ते हैं।

अब यह तो शोध का विषय है कि ऐसा आचरण पहले मनुष्यों में आया या पशु पक्षी पहले से ही ऐसा व्यवहार करते थे। जिसका पता इंसान को अब तक नहीं लग पाया था। या यह "अप्राकृतिक" कृत्य मनुष्य की ही देन है जो यहां से वहां और ना जाने कहां तक फैलता जा रहा है।

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

जानी-मानी पत्रिकाओं की वादा खिलाफी

बहुत बार किसी खास मौके पर आप किसी पत्रिका या पत्रिकाओं ने कुछ आर्टिकल वगैरह भेज देते होंगे, वे छप भी जाते होंगें। मानदेय मिले या ना मिले इस पर ध्यान नहीं दिया जाता। पर कुछ स्थापित पत्रिकाएं किसी खास विषय या विषयों पर रचनाएं आमंत्रित करती रहती हैं नियमित रूप से और नीचे बाकायदा कुछ ना कुछ प्रोत्साहित करने के लिये देने का वादा भी रहता है। पर इधर अच्छी खासी लब्धप्रतिष्ठ पत्रिकाएं भी वादा खिलाफी करने लग गयीं हैं। मैं तीन जानी-मानी पत्रिकाओं का जिक्र कर रहा हूं।

1, रीडर्स डाईजेस्ट : इस जगत प्रसिद्ध पत्रिका का मैं ग्राहक रहा हूं। इसकी कुछ अच्छी पुस्तकें भी मंगवाई हुई हैं मैंने। अभी पिछले दिनों साल भर का अग्रिम भुगतान कर देने के दो महिने बाद से ही इसकी ओर से पत्र आने शुरु हो गये अगले साल की बुकिंग के लिये। जब तीन-चार बार ऐसे पत्र आये तो मैने उन्हें लिखा कि भाई अभी दूसरा अंक आपने भेजा नहीं और भविष्य की चिंता शुरु हो गयी, ई का ठीक बात है? इसके कुछ दिनों बाद एक पार्सल आया और मेरी गैरहजिरी में घर में बच्चों द्वारा ले लिया गया। मैने उन्हें लिखा कि जब मैने इन किताबों को भेजने को नहीं कहा तो आपने क्यों भेजी। पर उधर से कोई जवाब नहीं आया। पर कुछ दिनों बाद बिल भेजने शुरू कर दिये। अंत में तंग आकर मैंने उन्हें पैसों के साथ एक पत्र भी ड़ाला जिसमें उनकी इस हरकत को गलत ठहराते हुए अपनी ग्राहकता खत्म करने को कह दिया।अभी कुछ दिनों पहले खबर थी कि योरोप में इस पत्रिका का कारोबार सिमटने की कगार पर है। इस तरह की हरकतों से तो ऐसा ही होगा।

2, दैनिक भास्कर की सहयोगी पत्रिका है "आहा जिंदगी" : इसमें तरह-तरह के लेखन पर तरह-तरह के उपहारों को देने की बात शुरु से ही लिखी जाती रही है। पर इसने मेरे छपे आर्टिकल पर कभी भी कुछ भेजने की जरुरत नही समझी।

3, तीसरी पत्रिका है "कादम्बिनी" : इसनें शुरु में एकाधिबार छपने पर अपना वादा निभाया। पर अभी पांच-छह महिने पहले कुछ छपने पर भी उन्होंने अपना लिखा वादा पूरा करने की आवश्यकता नहीं समझी। एक दो बार याद दिलाने पर उन्होंने भेजा तो कुछ नहीं, हां, वादे वाली लाईन ही हटा दी।

यह सब बातें इन की प्रतिष्ठा को ही ठेस पहुंचाती हैं। पर हो सकता है कि आजकल की गला काट स्पर्धा में इन पर भी खर्च की कटौती की समस्या हो। ठीक है ऐसा है हर कोई पैसा बचाना चाहता है तो भाई लिखो ही मत ना, जैसा "कादम्बिनी" ने किया। "आहा जिंदगी" सीख लेगी?

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

क्या ऐसे भी भुखमरी दूर होगी ?

खबर कुछ पुरानी है फिर भी ध्यान देने लायक है कि भुखमरी से निजात पाने का रास्ता बिहार सरकार ने ढ़ूंढ़ निकाला है। अब लोगों को चूहे का मांस खाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। जल्दी ही सड़क छाप ढाबों पर चूहे के मांस से बनने वाले उत्पाद, जैसे रैट टेल पास्ता, रैट कीमा, रैट बर्गर इत्यादी मिलना शुरु हो जायेंगे।

बिहार में मुसहर नाम की जाति है, जो चूहों का भक्षण करती है। यह शायद दुनिया की सबसे पिछडी जातियों मे से एक है। बिहार सरकार के अनुसार चूहे के मांस को खाद्य रूप में बढ़ावा देने से मुसहरों के उत्थान का रास्ता खुल जाएगा {पता नहीं कैसे}। बिहार के समाज कल्याण विभाग ने दावा किया है कि सरकार के इस कदम से मुसहर समुदाय आगे बढ़ेगा और अमीर हो जायेगा {लगता है चुनाव नजदीक हैं}। चूहे जो देश का पचास प्रतिशत अनाज चट कर जाते हैं उसकी बचत होगी। सभी को भरपूर प्रोटीन मिल पाएगा। उनके अनुसार यदी इसे सही तरीके से प्रचारित किया जाए तो देश की खाद्य समस्या का हल निकल जायेगा। इसके लिए फ़ूड फ़ेस्टिवल का आयोजन करने की योजना बनाई जा रही है। विदेशों के चूहामार होटलों से संपर्क किया जा रहा है इस जीव के मांस को स्वादिष्ट बनाने के तरीकों को जानने के लिए। रसूख वाले लोगों ने अपने लगे-बंदों द्वारा संचालित एन जी ओ से करोड़ों रुपये खर्च कर चूहा गणना करवाई जिससे पता चला कि देश में आठ अरब चूहे हैं और उनकी प्रजनन क्षमता अद्भुत है {लो भाई ऐश हो गयी। हां पैसे का हिसाब मत मांगियेगा} सो सप्लाई की कोई कमी नहीं रहेगी।

तो अब गाय, बकरी, भेड, कुत्ता, बिल्ली, चिडीयां, तोते, मछली, केंकडे और ना जाने क्या-क्या के साथ चूहों का नाम जुडने जा रहा है।इसके बाद शायद तिलचट्टों का नंबर होना चाहिए, क्योंकी वे तो खरबों की सख्या में मौजूद हैं।

क्या ख्याल है आप का?

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

विश्वास करें तो पूरा करें :-)

विश्वास करें तो पूरा करें, नहीं तो न करें :-)

दो दोस्त जंगल में ट्रैकिंग के लिये गये। अचानक एक बेहोश हो कर गिर पड़ा और मर गया, दूसरे ने घबड़ा कर मोबाईल से हेल्प लाईन पर फोन कर मदद मांगी कि मेरा दोस्त घने जंगल में मर गया है मुझे सहायता की जरूरत है। उधर से पूछा गया कि क्या तुम्हे विश्वास है कि वह मर गया है। फोन पर एक पल की चुप्पी के बाद गोली चलने की आवाज आई,
फिर जवाब आया, हां।

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तीन दोस्तों को जंगल में घूमते-घूमते रात हो गयी और वे रास्ता भूल गये। पहले ने प्रार्थना की कि हे प्रभू किसी भी तरह मुझे घर पहुंचा दो, घर पर सब चिंता कर रहे होंगे। प्रभू ने उसकी बात सुनी और वह वहां से गायब हो घर पहुंच गया। दूसरे ने भी अपने भगवान को याद कर इस मुसीबत से छुटकारा मांगा, वह भी गायब हो अपने घर पहुंच गया। अब तीसरा डर के मारे रोने लगा। उसको रोता देख आकाशवाणी हुई कि बच्चे क्यों रो रहा है, बोल मैं तेरी क्या सहायता करूं। ये बोला प्रभू बहुत डर लग रहा है मेरे दोस्तों को मेरे पास भेज दो। अगले पल ही उसकी इच्छा पूरी हो गयी।

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एक भला आदमी रात में दुर्घटना ग्रस्त हो खाई में गिर पडा। गिरते हुए किसी तरह उसके हाथ में एक पेड़ की डाल आ गयी जिसे पकड़ कर वह लटक गया और चिल्लाने लगा कि कोई है मुझे बचाओ। उसे इस हालत में देख भगवान को दया आ गयी और आकाशवाणी हुई कि बच्चे जिस डाल को पकड रक्खा है उसे छोड दे तेरे नीचे जगह है बचने की। उस भले आदमी ने आवाज सुनी, फिर दूसरी तरफ़ मुंह कर चिल्लाया,
अरे कोई है, मुझे बचाओ!!!

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

कुत्तों ने "शोले" देखी. पर क्या देखी !!!

तकरीबन 35 साल पहले फिल्म “शोले" ने जो तहलका मचाया था उसकी तपिश, उसका सरूर अभी तक लोग भुले नहीं हैं। इंसान तो इंसान जानवरों पर भी उसका जादू सर चढ कर बोला था।
कलकत्ता के सामने हुगली नदी के पार “बांधाघाट” का इलाका। उस कस्बाई इलाके के एक साधारण से सिनेमाघर “अशोक” में कई दिनों से शोले बदस्तूर चल रही थी। सिनेमाघर बहुत साधारण सा था। सड़क के किनारे बने उस हाल की एक छोटी सी लाबी थी। उसी में टिकट घर, उसी में प्रतिक्षालय, उसी में उपर जाने की सीढियां। वहीं अंदर जाने के लिये दो दरवाजे थे। जिसमें एक हाल के अंदर की पिछली कतारों के लिये था तथा दूसरा पर्दे के स्टेज के पास ले जाता था। उन पर मोटे काले रंग के पर्दे टंगे रहते थे। गर्मी से बचने के लिये अंदर सिर्फ पंखों का ही सहारा था। शाम को अंधेरा घिरने पर हाल के दरवाजे खुले छोड़ दिये जाते थे जिससे दिन भर बंद हाल में शाम को बाहर की ठंड़ी हवा से कुछ राहत मिल सके।

दोपहर में गर्मी से बचने के लिये दो-चार “रोड़ेशियन" कुत्ते लाबी में आ कर सीढियों के निचे दुबके रहते थे। लोगों के आने-जाने से, शाम को दरवाजे खुले होने से वे भी गानों इत्यादि को सुनने के आदी हो गये थे। पर दैवयोग से उन्होंने अपने से सम्बंधित संवाद नहीं सुना था।

उस इलाके में कोई भी फिल्म एक दो हफ्ते से ज्यादा नहीं चलती थी क्योंकि अधिकांश लोग शहर जा सुविधायुक्त हाल की ठंड़क में फिल्म का मजा लेते थे। पर जब महीने भर यहां से शोले नहीं उतरी तो हमारे इन “रोड़ेशियन” को भी आश्चर्य हुआ क्योंकि वे भी कुछ दिनों बाद नये पोस्टर देखने के आदी हो गये थे। फिर दूसरी बात यह कि उन्हें अंदर से आती फिल्म की आवाजों को कई लोगों को दोहराते सुना तो उन्होंने भी एक एतिहासिक फैसला लिया कि हम भी अंदर जा यह फिल्म देखेंगे कि इसमें ऐसा क्या है जो लोग इसे बार-बार देख रहे हैं। पर अंदर जाना और उतनी देर छिप कर बैठे रहना बहुत मुश्किल काम था। किसी ने देख लिया तो लाबी की दोपहर की नींद से भी हाथ धोना पड़ सकता था। सो यह फैसला किया गया कि सब जने नहीं जायेंगें एक जना टुकड़े-टुकड़े मे पिक्चर देखेगा और रात को सब को उसके बारे में बताएगा।

तो एक दिन हमारा शेरदिल कालू रात के शो में छिपता-छिपाता अंदर चला ही गया। पर आधे घंटे के बाद ही बाहर आ खड़ा हुआ। सबने आश्चर्य से पूछा कि क्या हो गया? उसने कहा कि बस मार खाने से बच कर आ रहा हूं। सब फिर बोले अरे हुआ क्या था बताओ तो सही। तब कालू ने जवाब दिया कि मैं अंदर मुंह उठाए देख रहा था, तभी वहां एक गंदा सा आदमी आया, उसके हाथ में लंबा मोटा सा कुछ हंटर जैसा कुछ था। उसके सामने खंबे से एक आदमी बंधा हुआ था। वहीं एक सुंदर सी लड़की भी खडी थी। गंदे से आदमी ने उस लड़की से कहा, छमिया नाच के दिखा। तो खंबे से बंधा हट्टा-कट्टा आदमी बोला, नहीं बासंती, इस कुत्ते के सामने मत नाचना। अब बोलो अंदर हाल में इतने लोग नाच देखने को इकट्ठे हुए थे। उधर वह गंदा सा आदमी और बहुत से लोग बंदुके लिये खड़े थे अब मेरे कारण नाच नहीं हो पाता तो सबने मिल कर मुझे मारना ही था सो मैं भाग आया।

सब चुप हो गये समय की नजाकत को देख। पर वह जादू ही क्या जो सर पर ना चढ जाए। कुछ दिनों बाद फिर एक श्वान पुत्र के खून ने जोश मारा। उसने एलान किया कि जो भी हो वह आज रात फिल्म देख कर ही रहेगा। रात का शो शुरु होने के कुछ देर बाद वह अगले दरवाजे से अंदर दाखिल हो गया। पर दस मिनट बाद ही ड़र से कांपता हुआ अपनी पूंछ को पिछले पैरों में दबाये बाहर निकला और भागता ही चला गया। उसके साथी हैरान-परेशान उसके पीछे-पीछे भागे और एक सुनसान गली में उसे जा घेरा। वह अभी भी ड़र से कांप रहा था। सबने उससे कारण पूछा पर उसके मुंह से बोल ही नहीं फूट रहे थे। कुछ देर बाद उसने कहना शुरू किया कि मैं छिप कर ही अंदर गया था पर पता नहीं कैसे उस हट्टे-कट्टे आदमी ने मुझे देख लिया और मेरी तरफ ऊंगली उठा कर बोला, कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा। वह शायद समझा होगा कि मैं ही हूं जिसके कारण पिछली बार नाच ना हो पा रहा था सो इस बार तो वह मुझे मार देने पर ही उतारू हो गया था। वह तो मुझे मार ही देता यदि मैं भाग ना आया होता।

इसके बाद उन शेरदिल श्वान पुत्रों की "अशोक हाल" तक जाने की तब तक हिम्मत नहीं पड़ी जब तक कि शोले वहां से उतर ना गयी।

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

इंसान तो इंसान जानवर भी "शोले" देखने के लिए आतुर थे

उन दिनों तो अपने ताऊ जी भी कलकत्ते में ही थे। उन्हें भी तो याद होगा वह नजारा, क्यों बड़े भाई?

बात बहुत पुरानी है। पर दिमाग के कोल्ड स्टोर में होने की वजह से आज भी ताजा और बामजा है। करीब 35 साल पहले फिल्म “शोले” ने रीलीज हो कर कैसे बाक्स आफिस मे आग लगाई थी, यह तो उस समय उसकी तपिश का मजा लेने वालों को आज भी याद होगा। उस समय उसका जादू सर चढ कर बोलता था। लोग पगलाये रहते थे उसको देखने के लिये। एक बार, बार-बार। सिनेमा घरों के सामने इतनी लंम्बी लाईने लगती थीं कि अंतिम छोर पर खड़े लोगों को तीन-तीन, चार-चार घंटे लग जाते थे खिड़की तक पहुंचने में, फिर भी टिकट मिल ही जाएगी इसका विश्वास नहीं होता था। लोग किसी खास शो के लिये लाईन नहीं लगाते थे वे तो जिस दिन का भी हो, जिस किसी शो का भी हो, बस मिल जाए इसलिये खड़े होते थे। आप सोच रहे होंगे कि क्या लोगों के पास काम-धाम नहीं था, तो यह बतला दूं कि यह उस महानगर की बात है जहां क्रिकेट के किसी भी फार्मेट के मैच के लिए लोग रात में ही लाईन मे आ खड़े होते थे। देर से आने वालों के लिये जगह भी बिकती थी। यहां तक कि टेस्ट मैच के पहले दिन भी 60-70 हजार की भीड़ जुट जाना मामुली बात थी। जी हां आज के कोलकाता और तब के कलकत्ता की बात कर रहा हूं।

बात हो रही थी “शोले” की। यह शायद पहली फिल्म थी जिसके संवादों तक की कैसटें भी बनाई गयी थीं और उनकी बिक्री भी बेहिसाब हुए थी। इतनी कैसटें बिकी थीं कि आधी से ज्यादा आबादी गब्बर सिंह बन गयी थी। हर गली मोहल्ले में ,”तेरा क्या होगा कालीया”, “कितने आदमी थे”, “अब गोली खा” जैसे संवादों का लोग पारायण करने लग गये थे। अपने ताऊजी भी तो शायद उन दिनों कलकत्ते मे ही थे , उन्हें तो याद ही होगा उस समय का माहौल, क्यों बड़े भाई सच कह रहा हूं ना?

कलकत्ता अजब शहर है। वहां आईन (कानून) और लाईन का बड़ा महत्व है। वहां का हर वाशिंदा दूसरे से आईन मुताबिक चलने की अपेक्षा करता है और लाईन तो वहां के रोजमर्रा के कामों का एक हिस्सा हैं। दुर्गा पूजा के दिनों में जूते के साथ चप्पल मुफ्त, 500 बंदे खड़े हैं लाईन में, आसाम की चाय का नया ब्रांड आया है 378 भद्रपुरुष घर जाने के पहले लाईन में लगे हैं, मोहनबागान का ईस्टबंगाल से फुटबाल का मैच है 7000 की भीड़ लाईन में लगी है, किसी भी मशहूर हीरो की नयी रीलीज है घंटों लोग लाईन लगाये हैं। आलू सस्ता लाईन लगी है, बरसात आनेवाली है छाता लेने के लिये लाईन में खड़े रहो, भले ही पानी बरस कर भिगो जाय। टिकट लेना है तो लाईन, राशन लेना है तो लाईन, चढना है तो लाईन ,उतरना है तो लाईन। यहां तो मर कर भी लाईन से पीछा नहीं छूटता, विश्वास ना हो तो नीमतल्ला घाट का नजारा देख लें।

इसी लाईनदार शहर मेंएक दिन “वेलिंगटन” की तरफ जाते हुए मुझे, उस व्यस्ततम सड़क के किनारे से लगी एक लाईन का सिरा नजर आया। वहां ऐसा कुछ नहीं था जो लाईन लगानी पड़े सो मैने पूछा कि किस बात की लाईन है तो पता चला कि “ज्योति”सिनेमा में लगी शोले के टिकट के लिये बंदे खड़े हैं। मैं चकित ज्योति हाल तो वहां से कम से कम एक नहीं तो पौन की मी तो दूर था ही। चकित सा मैं आगे बढ कर हाल के पास पहुंचा तो वहां तो कुंभ का मेला लगा हुआ था। गेट के सामने से गुजरने की जगह ही नहीं थी। मेरे देखते-देखते कैइयों के एक्स्ट्रा टिकट जेब से बाहर आते-आते ही चिंदियों मे बदल गये। टिकट दिखते ही लोग उस हाथ पर गिद्धों की तरह लपकते और टिकट “था” हो जाता। मैं किनारे खड़ा तमाशा देख ही रहा था कि एक लड़का मेरे पास आ धीरे से मेरे कान में बंगला में फुसफुसाया, “भाई पिक्चर देखोगे? मैंने कहा नहीं मैं देख चुका हूं। पर वह फिर बोला, दोबारा देख लो। मेरे पास समय था, मैंने कहा , चलो, ठीक है, टिकट दो, वह महौल से इतना ड़रा हुआ था कि टिकट निकालने में डर रहा था और टिकट के पैसे भी जाया नहीं होने देना चाहता था, बोला टिकट नहीं निकालूंगा, आप मेरे साथ भीतर चलो। उस दिन पिक्चर देख पता चला कि शोले 35मी मी के साथ साथ 75मी मी में भी बनाई गयी थी तथा इसके दो अंत थे।

यह सारी भूमिका मैने इस लिये बयान की है क्योंकि यह दुनिया की पहली फिल्म थी जिसे देखने के लिये इंसान तो इंसान जानवर भी आतुर थे।
मजाक थोड़े ही कर रहा हूँ, अगले अंक में बताऊँगा कि दो कुत्तों ने भी शोले देखी थी।

रविवार, 4 अप्रैल 2010

न कोई सार न ही तत्व, सिर्फ सनसनाहट

बच्ची अपने पूरे प्रवास में "फेंटा" ही पीती रही। तरस आता है ऐसे माँ-बाप की सोच पर !!!

गर्मी दरवाजे पर दस्तक देने लग गयी है। कहीं-कहीं तो दरवाजे खुल भी गये हैं। अब जब सर पर आ पड़ी है तो उससे निपटने के तरह-तरह के इंतजामात भी किये जा रहे हैं। टी।वी. ने तो अपको इस मौसम मे तरोताजा रखने के लिये जैसे कमर ही कस ली है। लगता है यह ना होता तो शायद सब गर्मी की भेंट चढ जाता। तन को, मन को दिमाग को ठंड़ा रखने के उपाय हर पांच मिनट बाद आप को समझाए जा रहे हैं। वहीं साथ ही साथ प्यास बुझाने के लिये तरह-तरह के शीतल पेय आपकी सेवा में हाजिर किए जाते जा रहे हैं। हैं। अब कोई बार-बार इसरार करेगा तो आप मना भी तो नहीं कर सकते। खास कर बच्चे तो इनके आकर्षण में फंस ही जाते हैं। फिर माँ-बाप भी पीछे नहीं रहते अपने लाड़लों की इच्छओं को पूरा करने में। शौक पूरा करना अलग बात है पर उसकी आदत पड़ जाना तो खतरे की घंटी है।

अभी कुछ दिनों पहले देश के बाहर से मेरी एक रिश्तेदार आईं थीं। साथ में उनकी 10-12 साल की बिटिया भी थी। बच्ची जितने दिन भी यहां रही वह "फैंटा" नामक शीतल पेय ही पीती रही। उसकी 'मम्मी' को बहुतेरी बार समझाने की कोशीश की कि यह ठीक नहीं है, पर खुद यहां पली, बढी वर्षों यहां का टनों पानी पीने के बाद भी भली, चंगी तंदरुस्त रहने वाली उस महिला को यहां के पानी पर एतबार नहीं था।

यह बताने का मतलब यही था कि हम ही बच्चों में उल्टी-सीधी आदतें ड़ालने के लिए जिम्मेदार हैं। यहां भी मेरी छोटी भाभी के बच्चों के हाथ में कोई भी नया विज्ञापित खाद्य का पैकेट उसका दूसरी बार विज्ञापन आने के पहले आ जाता है। नतीजा भी सामने है, बच्चों की भूख कम हो गयी है, घर का खाना अच्छा नहीं लगता, आए दिन तबियत ढीली रहती है, पर मां का प्यार पैकटों में भर-भर कर आना जारी है। कहीं भी बाहर आना जाना हो तो बच्चों के लिये शीतल पेय की बड़ी बोतल सफर का एक अभिन्न अंग होती है।

सब पढे-लिखे हैं। अच्छा-बुरा समझने की ताकत भगवान ने दी है तो ऐसे किसी भी पेय को हाथ लगाने से पहले सोच तो सकते हैं कि क्या पानी, प्यास बुझाने का इससे बेहतर विकल्प नहीं है? पानी जिसमें ना कोई कैलोरी होती है ना कोई गैस ना मिलावटी रंग। इसके विपरीत कोला में कार्बन डाई आक्साइड, इथीलीन आक्साइड पालीमर चीनी या सैक्रीन के साथ साथ कैफीन भी होती है। सेहत चिंतकों के लिये चिंता बढाने वाली कैलोरी की मात्रा भी 95-100 के लगभग रहती है। ऐसे पेय पीने से कुछ देर के लिये प्यास बुझती सी लगती है क्योंकि इसमें स्थित गैसें पेट पर दवाब ड़ाल ऐसा एहसास दिला देती हैं। कोला में कैफीन की मात्रा भी काफी होती है जो किसी की सेहत के लिये भी ठीक नहीं होती। ऐसे पेय पदार्थों में कोई “Food Value" नहीं होती, उल्टे बच्चों के द्वारा इनका ज्यादा उपयोग करने से उनका हाजमा तो बिगड़ता ही है उनकी भूख भी मर जाती है।कोला के अलावा जो दूसरे पेय पदार्थ टी वी पर आ-आ कर लुभाने की कोशिश करते हैं वे भी पूरी तरह दोष मुक्त नहीं होते। उनमें भी साईट्रिक एसिड़ के साथ-साथ रंगों, गंधों और जायकों का मिश्रण पीने वाले की सेहत से खिलवाड़ करने का पूरा ताम-झाम समेटे रहता है।


सो इन गर्मियों में अपने घरेलू, हानिरहित, पारंपरिक सचमुच ठंडक प्रदान करने वाले पेय का ही इस्तेमाल करें और बच्चों को भी समझा कर असलियत बता कर उसकी आदत ड़लवाएं।

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

नदी ने कहा जब तक तुझमें मिठास न आ जाए !!!

जिन्दगी जीने के सबके अपने-अपने फलसफे हैं :-

* जीवन में कामयाब होने के लिए तीन कारखाने लगाने की जरूरत है :-

1) दिमाग में बर्फ का कारखाना।

2) जुबान पर चीनी का कारखाना।

3) दिल में प्यार का कारखाना।



* एक दिन सागर ने नदी से पूछा, "कब तक मिलती रहोगी मुझ खारे पानी वाले से?"
नदी ने जवाब दिया, "जब तक तुझ में मिठास न आ जाये तब तक" !!!



* एक पेड़ से एक लाख माचिस की तीलियां बन सकती हैं। पर सिर्फ एक माचिस की तीली एक लाख पेड़ों को जला कर राख कर सकती है। उसी तरह एक नकारात्मक सोच सैकड़ों सपनों का नाश कर देती है।

इसलिये सदा सकारात्मक सोच को दिमाग में जगह दें।


* एक दोस्त ने मुझसे पूछा ,तुम सबको ई-मेल भेजते हो ? तुम्हे क्या मिलता है? मैंने हंस कर कहा, देना लेना तो व्यापार है, जो देकर कुछ न मांगे, वो ही तो प्यार है।

* अपने गम को अपने चेहरे की मुस्कान के पीछे छुपाओ,

बातें करो पर अपना दुख ना बताओ,

खुद ना रूठो कभी पर सब को मनाओ,

यही राज है जिंदगी का बस ऐसे ही जीते जाओ।

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

जो सब को मारे वह भगवान

GOD
G :- Generator
O :- Operator
D :- destroyer

कुछ अलग सा :-

१, जो किसी एक को मारे - खूनी

सारा समाज, क़ानून, सारे लोग उसके विरुद्ध खड़े होते हैं।

२, जो किन्हीं दस को मारे - पुलिस

उनके काम पर भी ऊंगलियाँ उठती हैं। उन्हें अपने कृत्य की सफाई में कई पापड बेलने पड़ते हैं।

३, जो सौ को मारे - फौजी या सैनिक

सारे संसार की नजरें रहती है। भले-बुरे का जवाब देना और भुगतना पड़ता है।

४, जो सब को मारे - भगवान

कुछ भी हो जाए, दुनिया तहस-नहस हो जाए। फिर भी पूजा-अर्चना में कमी न आ कर और बढोत्तरी ही होती है।

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