तकरीबन 35 साल पहले फिल्म “शोले" ने जो तहलका मचाया था उसकी तपिश, उसका सरूर अभी तक लोग भुले नहीं हैं। इंसान तो इंसान जानवरों पर भी उसका जादू सर चढ कर बोला था।
कलकत्ता के सामने हुगली नदी के पार “बांधाघाट” का इलाका। उस कस्बाई इलाके के एक साधारण से सिनेमाघर “अशोक” में कई दिनों से शोले बदस्तूर चल रही थी। सिनेमाघर बहुत साधारण सा था। सड़क के किनारे बने उस हाल की एक छोटी सी लाबी थी। उसी में टिकट घर, उसी में प्रतिक्षालय, उसी में उपर जाने की सीढियां। वहीं अंदर जाने के लिये दो दरवाजे थे। जिसमें एक हाल के अंदर की पिछली कतारों के लिये था तथा दूसरा पर्दे के स्टेज के पास ले जाता था। उन पर मोटे काले रंग के पर्दे टंगे रहते थे। गर्मी से बचने के लिये अंदर सिर्फ पंखों का ही सहारा था। शाम को अंधेरा घिरने पर हाल के दरवाजे खुले छोड़ दिये जाते थे जिससे दिन भर बंद हाल में शाम को बाहर की ठंड़ी हवा से कुछ राहत मिल सके।
दोपहर में गर्मी से बचने के लिये दो-चार “रोड़ेशियन" कुत्ते लाबी में आ कर सीढियों के निचे दुबके रहते थे। लोगों के आने-जाने से, शाम को दरवाजे खुले होने से वे भी गानों इत्यादि को सुनने के आदी हो गये थे। पर दैवयोग से उन्होंने अपने से सम्बंधित संवाद नहीं सुना था।
उस इलाके में कोई भी फिल्म एक दो हफ्ते से ज्यादा नहीं चलती थी क्योंकि अधिकांश लोग शहर जा सुविधायुक्त हाल की ठंड़क में फिल्म का मजा लेते थे। पर जब महीने भर यहां से शोले नहीं उतरी तो हमारे इन “रोड़ेशियन” को भी आश्चर्य हुआ क्योंकि वे भी कुछ दिनों बाद नये पोस्टर देखने के आदी हो गये थे। फिर दूसरी बात यह कि उन्हें अंदर से आती फिल्म की आवाजों को कई लोगों को दोहराते सुना तो उन्होंने भी एक एतिहासिक फैसला लिया कि हम भी अंदर जा यह फिल्म देखेंगे कि इसमें ऐसा क्या है जो लोग इसे बार-बार देख रहे हैं। पर अंदर जाना और उतनी देर छिप कर बैठे रहना बहुत मुश्किल काम था। किसी ने देख लिया तो लाबी की दोपहर की नींद से भी हाथ धोना पड़ सकता था। सो यह फैसला किया गया कि सब जने नहीं जायेंगें एक जना टुकड़े-टुकड़े मे पिक्चर देखेगा और रात को सब को उसके बारे में बताएगा।
तो एक दिन हमारा शेरदिल कालू रात के शो में छिपता-छिपाता अंदर चला ही गया। पर आधे घंटे के बाद ही बाहर आ खड़ा हुआ। सबने आश्चर्य से पूछा कि क्या हो गया? उसने कहा कि बस मार खाने से बच कर आ रहा हूं। सब फिर बोले अरे हुआ क्या था बताओ तो सही। तब कालू ने जवाब दिया कि मैं अंदर मुंह उठाए देख रहा था, तभी वहां एक गंदा सा आदमी आया, उसके हाथ में लंबा मोटा सा कुछ हंटर जैसा कुछ था। उसके सामने खंबे से एक आदमी बंधा हुआ था। वहीं एक सुंदर सी लड़की भी खडी थी। गंदे से आदमी ने उस लड़की से कहा, छमिया नाच के दिखा। तो खंबे से बंधा हट्टा-कट्टा आदमी बोला, नहीं बासंती, इस कुत्ते के सामने मत नाचना। अब बोलो अंदर हाल में इतने लोग नाच देखने को इकट्ठे हुए थे। उधर वह गंदा सा आदमी और बहुत से लोग बंदुके लिये खड़े थे अब मेरे कारण नाच नहीं हो पाता तो सबने मिल कर मुझे मारना ही था सो मैं भाग आया।
सब चुप हो गये समय की नजाकत को देख। पर वह जादू ही क्या जो सर पर ना चढ जाए। कुछ दिनों बाद फिर एक श्वान पुत्र के खून ने जोश मारा। उसने एलान किया कि जो भी हो वह आज रात फिल्म देख कर ही रहेगा। रात का शो शुरु होने के कुछ देर बाद वह अगले दरवाजे से अंदर दाखिल हो गया। पर दस मिनट बाद ही ड़र से कांपता हुआ अपनी पूंछ को पिछले पैरों में दबाये बाहर निकला और भागता ही चला गया। उसके साथी हैरान-परेशान उसके पीछे-पीछे भागे और एक सुनसान गली में उसे जा घेरा। वह अभी भी ड़र से कांप रहा था। सबने उससे कारण पूछा पर उसके मुंह से बोल ही नहीं फूट रहे थे। कुछ देर बाद उसने कहना शुरू किया कि मैं छिप कर ही अंदर गया था पर पता नहीं कैसे उस हट्टे-कट्टे आदमी ने मुझे देख लिया और मेरी तरफ ऊंगली उठा कर बोला, कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा। वह शायद समझा होगा कि मैं ही हूं जिसके कारण पिछली बार नाच ना हो पा रहा था सो इस बार तो वह मुझे मार देने पर ही उतारू हो गया था। वह तो मुझे मार ही देता यदि मैं भाग ना आया होता।
इसके बाद उन शेरदिल श्वान पुत्रों की "अशोक हाल" तक जाने की तब तक हिम्मत नहीं पड़ी जब तक कि शोले वहां से उतर ना गयी।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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16 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
हमने सुना कि बाद में उन्होंने धरमिन्दर जी पर मोकदमा ठोक दिया था ...
अजय कुमार झा
शोले और कुत्तों का कॉम्बिनेशन अच्छा है।
यह तो अनोखी बात रही जी!
बढ़िया वयंग्य!
कुत्तों का सिनेमा प्रेम
ये है कुछ अलग सा ...
एकदम नए तेवर के साथ लिखा व्यंग्य। बधाई।
बेचारा कालू पिक्चर नहीं देख पाया....
बहुत ही गजब का लिखा शर्मा जी. जबरदस्त.
रामराम.
मनोज जी, धन्यवाद।
अजय जी, फिर तो तारीख पे तारीख.......! :)
@Jandunia....Shodo combo
शास्त्री जी, आभार
@वाणी गीत....तभी तो हर तीसरी-चौथी फिल्म में दिखते रहते हैं
Ajit Gupta ji, aabhar
पल्लवी जी, जान है तो जहान है 😃
ताऊ जी, स्नेह बना रहे
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