खबर कुछ पुरानी है फिर भी ध्यान देने लायक है कि भुखमरी से निजात पाने का रास्ता बिहार सरकार ने ढ़ूंढ़ निकाला है। अब लोगों को चूहे का मांस खाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। जल्दी ही सड़क छाप ढाबों पर चूहे के मांस से बनने वाले उत्पाद, जैसे रैट टेल पास्ता, रैट कीमा, रैट बर्गर इत्यादी मिलना शुरु हो जायेंगे।
बिहार में मुसहर नाम की जाति है, जो चूहों का भक्षण करती है। यह शायद दुनिया की सबसे पिछडी जातियों मे से एक है। बिहार सरकार के अनुसार चूहे के मांस को खाद्य रूप में बढ़ावा देने से मुसहरों के उत्थान का रास्ता खुल जाएगा {पता नहीं कैसे}। बिहार के समाज कल्याण विभाग ने दावा किया है कि सरकार के इस कदम से मुसहर समुदाय आगे बढ़ेगा और अमीर हो जायेगा {लगता है चुनाव नजदीक हैं}। चूहे जो देश का पचास प्रतिशत अनाज चट कर जाते हैं उसकी बचत होगी। सभी को भरपूर प्रोटीन मिल पाएगा। उनके अनुसार यदी इसे सही तरीके से प्रचारित किया जाए तो देश की खाद्य समस्या का हल निकल जायेगा। इसके लिए फ़ूड फ़ेस्टिवल का आयोजन करने की योजना बनाई जा रही है। विदेशों के चूहामार होटलों से संपर्क किया जा रहा है इस जीव के मांस को स्वादिष्ट बनाने के तरीकों को जानने के लिए। रसूख वाले लोगों ने अपने लगे-बंदों द्वारा संचालित एन जी ओ से करोड़ों रुपये खर्च कर चूहा गणना करवाई जिससे पता चला कि देश में आठ अरब चूहे हैं और उनकी प्रजनन क्षमता अद्भुत है {लो भाई ऐश हो गयी। हां पैसे का हिसाब मत मांगियेगा} सो सप्लाई की कोई कमी नहीं रहेगी।
तो अब गाय, बकरी, भेड, कुत्ता, बिल्ली, चिडीयां, तोते, मछली, केंकडे और ना जाने क्या-क्या के साथ चूहों का नाम जुडने जा रहा है।इसके बाद शायद तिलचट्टों का नंबर होना चाहिए, क्योंकी वे तो खरबों की सख्या में मौजूद हैं।
क्या ख्याल है आप का?
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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7 टिप्पणियां:
यदि ये सरकार का फैसला है तो गलत है। हम तो विरोध करते हैं.
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
भोपाल में एक मानव संग्रहालय है जो बहुत ही बड़े भू भाग में फैला हुआ है. यहाँ देश के विभिन्न प्रान्तों का प्रतिनिधित्व है. नागालैंड के कुछ रिहायसी मकान बने हुए थे. उनकी मरम्मत के लिए नागालैंड से कुछ लोगों को यहाँ बुलाया गया था. यहाँ के कैंटीन में खाना खाते समय हमने देखा था कि कुत्तों की एक फौज भी है जो आपके द्वारा छोड़े हुए खाद्य सामग्री पर निर्भर है. नागालैंड से आये हुए कलाकारों के प्रवास के बाद अब एक भी कुत्ता परिसर में नहीं दिखता.
हम तो कहेंगे कि बिहार सरकार का प्रयास सराहनीय ही है. श्याम देश हो या चीन, वहां हर प्राणी का बख्षण होता है. तो फिर हमारे मांसाहारी लोग क्यों पीछे रहें?
सुब्रमनियन जी,
अच्छा लगा आपको यहां पाकर।
पिछले साल छत्तीसगढ में नक्सली हरकतों की वजह से नागा बटालियन आयी थी। जहां उनकी पोस्टिंग थी वहां के गावों के सारे कुत्ते गायब? हो गये थे।
अजब गजब निर्णय !!
इसके विरोध में हमारा भी स्वर है!
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