शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

तुम्हारे हुस्न का हुक्का बुझ चुका है...............

1, खादी, खाद का काम करती है, तभी तो इसे पहनने वाला हरा भरा हो जाता है।
2, पेड़ जो लगाये गये वे तो बच ना सके, पर फोटो जो खिंचवाए गये वे सुरक्षित रह गये।
3, नयी बनी दिवार दूसरे दिन ही 'आ' रही, ठेकेदार तो बच गया, ठेका दिलाने वाले को दबा गयी।
4, जाने कैसी ऊंगलियां हैं, जाने क्या अंदाज है। तुमने पत्तों को छुआ था, जड़ें हिला कर रख दीं।
5, तुम्हारे हुस्न का हुक्का बुझ चुका है जानम, वह तो हमीं हैं जो गुड़गुड़ाए जाते हैं।

15 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

गुड़गुड़ाते रहिये...बहुत बेहतरीन!!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बढि़या है..

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

हा हा हा
बेहतरीन, मजा आ गया जी।
राम राम

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बढ़िया व्यंग...

दिलीप ने कहा…

sabhi panktiyan jandaar hai...jad hilane wali to bahut khoob...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

P.N. Subramanian ने कहा…

बहुत खूब कही.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

हुक्के की तंबाकू ताजी होनी चाहिये फ़िर क्या?:)

रामराम

राज भाटिय़ा ने कहा…

अजी हुक्के का पानी बदलते रहे..... फ़िर तो बुझा हुक्का भी अच्छा लगता है:)

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

behtareennnnnnn

अन्तर सोहिल ने कहा…

शानदार

दीपक गर्ग ने कहा…

बहुत खूब
मज़ा आ गया

Kumar Jaljala ने कहा…

बहुत ही जाणदार लिखो है आपने। आपको बुहुत-बुहुत मुबारक जी।

Kumar Jaljala ने कहा…

बहुत ही जाणदार लिखो है आपने। आपको बुहुत-बुहुत मुबारक जी।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

good ji

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

जलजला जी,
आपका स्वागत है। भाले की नोक तक गया था पर आपसे मुलाकात नहीं हो सकी। मिल कर खुशी होगी।

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