सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

देश-समाज के प्रति समर्पित लोगों को मिडिया में तवज्जो मिले

मीडिया नौटंकीबाजों को नहीं, देश-समाज के प्रति समर्पित लोगों को तवज्जो दे ! क्या यह जरुरी नहीं है कि जावेद-शबाना की तथाकथित पाक यात्रा को महिमामंडित करने की बजाय देवाशी माणेक और अहमदाबाद के उन व्यापारियों के निर्णय को अवाम के सामने लाया जाए जिन्होंने पाक विरोध में अपने करोड़ों रुपयों की परवाह नहीं की ............! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 
पुलवामा के हादसे से लोग अभी भी आक्रोशित हैं। समझ नहीं पा रहे हैं कि कैसे दिलों में घुमड़ते क्रोध को अमली जामा पहनाया जाए ! हजारों लोग अपने दिल की आवाज पर, जिसके जैसे समझ में आ रहा है वह अपने तौर पर पाकिस्तान के प्रति विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इनमें कुछ ऐसे हैं जिनका मजबूरी में किया गया काम भी सुर्खियां बन जाता है और कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें देश के नाम पर करोड़ों गंवाने के बावजूद लोग जान नहीं पाते। कितने लोगों को पता है कि इस हादसे के बाद सूरत के हीरा व्यापारी श्री देवाशी माणेक ने अपनी बिटिया की शादी में दिए जाने वाले भोज समारोह को रद्द कर उसमें खर्च होने वाले करीब ग्यारह लाख रुपये पुलवामा हादसे के शहीदों के परिवारों को अर्पित कर दिए ! इसके अलावा सहायता कोष में भी पांच लाख रुपयों का योगदान दिया। वहीं अहमदाबाद के व्यापारियों ने एकजुट हो पाकिस्तान से व्यापार ना करने की घोषणा तो की ही साथ ही वहां होने जा रहे कार्यक्रम का भी बहिष्कार कर दिया जिससे उन्हें तकरीबन डेढ़ करोड़ रुपये का नुक्सान भी झेलना पड़ा जो उन सब ने अपनी यात्रा के किराए के लिए खर्च किया था। ये तो भला हो श्री एन रघुरामन जी का जो वे इस बात को प्रकाश में लाए। हमारे चाटुकार मीडिया को कहां फुरसत है ऐसे लोगों और उनकी भावनाओं को तवज्जो देने की ! वह तो पिला पड़ा है, जावेद-शबाना जैसों को महिमामंडित करने में, जो परिस्थिति और मजबूरीवश अपनी पाक यात्रा को रद्द करने के कारण मशहूरियत को प्राप्त हो रहे हैं ! अभी दो-एक दिन पहले ही एक अखबार में शबाना को स्वाइन फ्लू से ग्रस्त होने की बात छपी थी ! क्या ऐसे में वह यात्रा करने लायक है भी ? दूसरी बात, क्या सिद्धू का हश्र देखने के बाद भी ये पकिस्तान जाते ? इतने तो कम-अक्ल नहीं हैं दोनों ! ऐसे में तो गंगा ही उनके घर आ गयी हाथ-मुंह धुलवाने !

उधर मीडिया कोई भी हो, दर्शनीय या छपनीय, उसे बुरा तो जरूर लगता होगा जब लोग उस पर बिकाऊ का लेबल चस्पा करते हैं, बिका हुआ कहते हैं ! पर फिर भी वह अपनी हरकतों से बाज कहां आता है ! अभी दो दिन नहीं हुए जब राजधानी की एक अंग्रेजी अखबार की उसके मुख्य पृष्ट पर हादसे से संबंधित हेडिंग को ले कर लानत-मलानत की गयी थी ! क्या वह ऐसे ही छप गयी थी ? ऐसे ही कुछ दिन पहले एक अखबार के मालिक को कठघरे में खड़ा करवाया गया था ! पर क्या हुआ ?

चौबीस घंटे चलने वाले टी.वी. चैनलों का हाल सबके सामने है ! अब वे भी क्या करें ! उन्हें अपनी सुरसाई भूख का शमन करना होता है यदि वे ''किसी'' की शरण न लें तो दूसरे दिन ही माइक नहीं कटोरा थामे नजर आएंगे ! अब जिसकी शरण ली है उसकी बात टाली जा सकती है भला ! इसके अलावा इनको यह भी पता है कि इनकी एक गलत बात पर यदि सौ जने उंगली उठाएंगे तो दस पक्ष में भी खड़े हो जाएंगे ! उन्हीं दस लोगों की शह पर ये कोई भी कुकर्म करने से बाज नहीं आते। ये तो अवाम के ही ऊपर है जो इन्हें ढंग का सबक सिखाए, उनकी जिम्मेवारी की याद दिलाए, उनको अपने फर्ज से अवगत करवाए ! सोनी का कदम एक ताजा उदाहरण है !      

शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

व्यस्त रहें, मस्त रहें !

अब यह तो पता नहीं कि खाली दिमाग ना मिलने पर शैतान कहां रहता होगा; पर यह जरूर लगता है कि दिमाग में घर बना कर वह इंसान का भला ही करता है, उसे कुछ ना कुछ करने के लिए उकसा कर ! जिससे शरीर चलायमान रहता है। अपनी तरफ से तो वह पूरी कोशिश करता है कि जिस शरीर के दिमाग  को उसने घर बनाया है वह स्वस्थ रहे ! बेशक उसकी नीयत ठीक होती है। पर नाम तो उसका बदनाम है, तो वह जो भी करवाता है, वह शैतानियत ही लगती है। जबकि सच्चाई यह है कि उसी के कारण हमारे व्यस्त व स्वस्थ रहने का सकारात्मक असर हमारे परिवार पर पड़ता है। वह बचा रहता है, हमारे बेवजह के हस्तक्षेप से, बिन मांगी सलाहों से, हमारी टोका-टाकी से, बार-बार की चाय-पानी की फरमाइश से, हमारी दवा-दारु की परेशानी से जिसके फलस्वरूप हमारे आत्मीय सुकून महसूस करते हैं, नतीजतन घर में शांति बनी रहती है.........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
वैसे तो मनुष्य की आदत है अपने भूतकाल को गौरवान्वित करने की ! पर जब इंसान, खासकर सेवा-निवृत्त हुआ, कुछ नहीं करता होता है यानि बेल्ला होता है; और बैठे-बैठे अपने अतीत को खंगालने लगता है तो उस समय खुशनुमा बातें तो कम, बुरी यादें, नाकामियां, आधे-अधूरे प्रसंग,  कष्ट, अभाव व तकलीफ में गुज़रे लम्हों की जैसे फ़िल्मी रील सी चलने लगती है या फिर अनिश्चित भविष्य के खतरे, निर्मूल आशकाएं या अनहोनी घटनाओं का डर उसे घेर लेता है। इस नकारात्मक सोच का दिलो-दिमाग पर गहरा असर पड़ता है। जिससे वह अपने को बीमार सा महसूस करने लगता है। इसलिए इंसान को चाहिए कि वह अपने-आप को सदा व्यस्त तथा किसी भी काम में उलझाए रखे। काम ही सखा, साथी, सहारा बन जाना चाहिए। इससे एक तो नकारात्मक विचारों को दिमाग में घुसने का मार्ग नहीं मिल पाता, ऊल-जलूल बातों पर ध्यान नहीं जाता और सबसे बड़ी बात शारीरिक और मानसिक रूप से थकने के बाद रात को नींद ना आने की बिमारी से भी मुक्ति मिल जाती है। दिमाग दुरुस्त रहता है और शरीर स्वस्थ। इसलिए हरेक को कुछ भी कैसा भी कोई ना कोई शौक, रूचि, ''हॉबी'' जरूर पाल कर रखनी चाहिए। 

एक कहावत भी है, खाली दिमाग शैतान का घर ! अब यह तो पता नहीं कि खाली दिमाग ना मिलने पर शैतान कहां रहता होगा पर यह जरूर लगता है कि दिमाग में घर बना कर वह इंसान का भला ही करता है, उसे कुछ ना कुछ करने के लिए उकसा कर ! जिससे शरीर चलायमान रहे। अब अपनी तरफ से तो वह पूरी कोशिश करता है कि जिस शरीर के दिमाग को उसने घर बनाया है, वह स्वस्थ रहे ! बेशक उसकी नीयत ठीक होती है पर नाम तो उसका बदनाम है सो वह जो भी करवाता है, वह शैतानियत ही लगती है ! जबकि सच्चाई यह है कि उसी के कारण हमारे व्यस्त व स्वस्थ रहने का सकारात्मक असर हमारे परिवार पर पड़ता है। वह बचा रहता है, हमारे बेवजह के हस्तक्षेप से, बिन मांगी सलाहों से, हमारी टोका-टाकी से, बार-बार की चाय-पानी की फरमाइश से, हमारी दवा-दारु की परेशानी से ! जिसके फलस्वरूप हमारे आत्मीय सुकून महसूस करते हैं, नतीजतन घर में शांति बनी रहती है। 

भाग्यवश अपने काम के दौरान ही मेराआभासी दुनिया से नाता जुड़ गया था। थोड़ी-बहुत कम्प्युटर की जानकारी हो गयी, खोलना, लिखना, बंद करना आ गया ! जो अब निवृत्ति के बाद ब्लॉग लेखन में सहायक हुआ तो व्यस्त रहने का एक जरिया मिल गया। जीवन का एक अंग हो गया हो जैसे। दो-चार दिन के लिए भी लैप-टॉप अपनी हारी-बिमारी ठीक करवाने डॉक्टर के पास चला जाए तो ऐसा महसूस होता है जैसे कोई प्रियजन बिछुड़ गया हो ! इतना तो कभी श्रीमती जी के मायके जाने पर (शुरूआती दिनों में) भी सूनापन महसूस नहीं होता था ! हालांकि मोबाईल पर सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं, पर उस छुटकु पर ना ढंग से लिखा जाता है ना हीं पढ़ा !अलबत्ता धकेले-थकेले-अकेले मैसेज कुछ समय जरूर निकलवा देते हैं। पर आनंद देने वाली व्यस्तता नहीं मिल पाती। तो लब्बो-लुआब यह है कि हमारे पास अपने-आप को व्यस्त रखने का कोई ना कोई जरिया जरूर होना चाहिए। और वह भी ऐसा जिसमें व्यस्त रहते हुए ख़ुशी मिले। आनंद महसूस हो। कुछ ज्ञान बढे। सृजनता का आभास हो। समय की बर्बादी न लगे और ना हीं मजबूरी ! ऐसे के साथ बोनस में घरेलू सुख-शांति-सुकून तो हईये है !        

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

मंगता कौन ?

भिखारी तो दोनों ही थे, फर्क सिर्फ इतना था कि एक मजबूर हो कर मांग रहा था और दूसरा मजबूर करवा कर ! एक को देख मन में करुणा, दया का भाव जागृत होता था तो दूसरे को देख नफ़रत, घृणा और क्षोभ ! एक को कुछ दे कर किसी की जेब पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ रहा था जबकि दूसरे को देने से पूरे देश की अर्थ व्यवस्था डांवाडोल हो रही थी ............!

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प्रदेश से आरक्षण की मांग को ले कर रैली को राजधानी तक जाना था। उन तीनों ने भी मुफ्त में खाने-पीने और राजधानी की सैर का मौका लपक लिया। शहर पहुंचते ही पुलिस से मुठभेड़ हुई ! ट्रैक्टर-ट्रालियां, दो पहिया, छोटी गाड़ियां, टपरे-छकड़े सब रोक दिए गए ! नतीजतन नारेबाजी, चक्का जाम. आगजनी, तोड़-फोड़ आदि तो होनी ही थी ! इस सब से मची अफरातफरी के बाद सरकार कसमसाई ! आरक्षण पर आश्वासन और फौरी तौर पर मुफ्त का राशन-पानी-बिजली-मंहगाई भत्ते की घोषणा हुई। भीड़ वापस !

ये तीनों भी रैली और अपनी सफल यात्रा पर इतराते अपने वाहन की खोज में मटरगस्ती कर रहे थे कि एक भिखारी ने अपनी भूख का हवाला दे कर उनसे कुछ देने का अनुरोध किया ! एक-दो बार टालने के बाद तीनों भड़क उठे, ''शर्म नहीं आती भीख मांगते ? कुछ काम क्यों नहीं करते ? मुफ्त में खाने की आदत पड़ गयी है ! चलो आगे जाओ !!''

 भिखारी तो दोनों ही थे, फर्क सिर्फ इतना था कि एक मजबूर हो कर मांग रहा था और दूसरा मजबूर करवा कर ! एक को देख मन में करुणा, दया का भाव जागृत होता था तो दूसरे को देख नफ़रत, घृणा और क्षोभ ! एक को कुछ दे कर किसी की जेब पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ रहा था जबकि दूसरे को देने से पूरे देश की अर्थ व्यवस्था डांवाडोल हो रही थी !!

शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

भगवान को सरल जन ही प्रिय हैं !

बेचारा दौड़ा-दौड़ा महात्मा जी के पास गया और बोला महाराज आज रसोई ठंडी पड़ी है, कुछ बन नहीं रहा ! महात्मा जी बोले, अरे तुम्हें बताना भूल गया था, आज एकादशी है, ना कुछ बनेगा, नाहीं मिलेगा। सबका उपवास रहेगा। ये बोला, मेरा भी ? महात्मा बोले, हाँ ! सभी का। यह बोला, महाराज आपके इतने चेले हैं, उनसे करवा लो ! महात्मा बोले, नहीं सभी को करना होता है। यह घबड़ाया, बोला महाराज यदि मैंने आज एकादशी कर ली तो मैं तो द्वादशी देख ही नहीं पाऊँगा ! महात्मा समझ गए कि ये भूखा नहीं रह सकता...........!

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सरलता का अर्थ है, अंदर-बाहर से एक जैसा होना। मन, वचन और कर्म में समान होना। ऐसे लोगों मे दर्प, दंभ, अहम आदि दुर्गुण नहीं होते ! सरलता में मित्रता है, प्रेम है, अपनापन है, जोड़ने की शक्ति है। यही जोड़ने की शक्ति व्यक्ति को व्यक्ति से, समाज से और फिर परमात्मा तक से जोड़ देती है। पिछले दिनों इसी पर एक कथा पढ़ने को मिली, बहुत अच्छी लगी तो लगा सबसे साझा करनी चाहिए ! कुछ लम्बी जरूर है पर मनोरंजक भी है। 

किसी गांव में एक किसान अपने तीन बेटों के साथ रहा करता था। उसका छोटा बेटा सीधा-सादा, सरल ह्रदय, भोला-भाला था। किसान के दोनों बेटे खेत में अपने पिता का हाथ बटाते थे पर छोटे को भोजन बहुत प्रिय था। उसकी खुराक भी कुछ ज्यादा ही थी। वह खाता था और पड़ा रहता था। समय की मार एक दिन किसान का निधन हो गया। अब दोनों भाइयों को निठ्ठला छोटा भाई भार लगने लगा। काम का ना काज का दुश्मन अनाज का ! उन्होंने उसे एक दिन घर से निकाल दिया। अब वह कहां जाता ! ऐसे ही बिसूरते हुए गांव के बाहर बैठा हुआ था कि उसे एक महात्मा अपने शिष्यों के साथ आते दिखे। सभी हट्टे-कट्टे, स्वस्थ नजर आ रहे थे। इसने सोचा सब मोटे-ताजे, तंदरुस्त नजर आ रहे हैं, यह सब खूब खाते होंगे ! मुझे भी भोजन मिल जाएगा। यही सोच वह महात्माजी के चरणों में लोट गया और अपने को भी चेला बनाने की और साथ ले चलने की विनती करने लगा। महात्मा दयालु थे, उन्होंने उसे तुलसी की माला पहना दी, नाम रख दिया, मंत्र दे दिया ! बोले चलो ! यह ठहरा भोला बंदा, पूछने लगा, करना क्या होगा ? महात्मा बोले, कुछ नहीं, पूजा-आरती में खड़े रहना है। भगवान का नाम लेते रहना है। उनका ध्यान करना है, बस। पर इसको तो अपने भोजन की चिंता थी ! सो फिर पूछा, महाराज खाने को ? महात्मा मुस्कुराए, बोले, दोनों समय प्रेम से, भरपेट ! पर महाराज मेरा दो वक्त से....! महात्मा हंसने लगे, बोले तुम्हें चार बार मिलेगा, अब खुश ! उसको लगा यह तो स्वर्ग मिल गया ! करना कुछ नहीं, खाना भरपूर। वह साथ हो लिया।

पर उसे क्या पता था की यहां भी मुसीबत आएगी। एक दिन उठ कर देखा तो भंडार में सब वैसे ही पड़ा था, चूल्हे भी ठंडे पड़े थे, कोई हलचल नहीं। बेचारा दौड़ा-दौड़ा महात्मा जी के पास गया और बोला महाराज आज रसोई ठंडी पड़ी है, कुछ बन नहीं रहा ! महात्मा जी बोले, अरे तुम्हें बताना भूल गया था, आज एकादशी है, ना कुछ बनेगा, नाहीं मिलेगा। सबका उपवास रहेगा। ये बोला, मेरा भी ? महात्मा बोले, हाँ ! सभी का। यह बोला, महाराज आपके इतने चेले हैं, उनसे करवा लो ! महात्मा बोले, नहीं सभी को करना होता है। यह घबड़ाया, बोलै महाराज यदि मैंने आज एकादशी कर ली तो मैं तो द्वादशी देख ही नहीं पाऊँगा ! महात्मा समझ गए कि ये भूखा नहीं रह सकता ! बोले नियमानुसार तो भोजन नहीं बन सकता पर भगवान के भोग के रूप में बना लो और उनका भोग जरूर लगाना। जाओ भंडारे से सामान ले कर बाहर जा बना लो। बंदा खुश उसने सामान लिया, नदी किनारे जा, जैसा बन पड़ा बना, भोग लगाने को प्रभु को पुकारने लगा कि आइए भोग लगा लीजिए ! उसे लगा कि यूँ ही बुलाने पर भगवान आते होंगे और भोजन ग्रहण करते होंगे ! पर प्रभू नहीं आए ! इसको लग रही थी भूख ! बार-बार बुलाने पर भी जब प्रभू नहीं आए तो इसे लगा कि इस रूखे-सूखे भोजन को देख वे नहीं आ रहे हैं सो इसने ऊँची आवाज में कहा, सुनो आज मंदिर के भरोसे मत रहना, आज पूरी हलवा नहीं मिलेगा। आज एकादशी है वहां कुछ नहीं बना, भूखे रह जाओगे ! आज तो यही सूखी रोटी और नदी का पानी है। जल्दी आ जाओ, मुझे भी जोरों की भूख लगी है। उसकी इस सरलता पर प्रभू रीझ गए और प्रकट हो गए। पर वे अकेले नहीं आए, उनके साथ सीता माता भी थीं। अब जब इसने प्रभू और सीता माता को देखा तो उनकी सुंदर जोड़ी को देखता ही रह गया, तन-मन आनंद से भर गए पर साथ ही उदास भी हो गया ! सोचने लगा गुरु जी ने एक भगवान के लिए कहा था ये तो दो आ गए ! अब वो कभी भगवान जी को देखता तो कभी भोजन की ओर ! प्रभू भी कौतुक कर रहे थे, बोले क्या हुआ ? बोला, कुछ नहीं एक के इंतजाम की बात थी, आप दो जने आ गए ! थोड़ी एकादशी तो करवा ही दोगे ! चलो कोई बात नहीं ! विराजो। भगवान बैठ गए ! भोजन परोस दिया। बोला, मैं कुछ भूखा तो रहा पर आपको देख कर बहुत अच्छा लगा ! चलो आज का तो हो गया, मैं समझ गया कि आप दो आते हो; अगली एकादशी पर मैं ज्यादा इंतजाम कर के रखुंगा। पर आज की तरह परेशान मत करना जल्दी आ जाना। भगवान ने कहा, ठीक है और चले गए।

इधर इसने आ कर गुरु जी से कुछ नहीं बताया क्योंकि इसे लग रहा था भगवान ऐसे ही आते होंगे, गुरु जी को मालुम ही होगा, इसमें बताने वाली बात ही क्या है। इतना सरलचित्त ! अगली एकादशी आई तो महात्मा जी से बोला, गुरूजी कुछ सामान बढ़वाओ ! उन्होंने पूछा, क्यों ? तो बोला, वहां दो भगवान आते हैं। गुरूजी समझे इस बार भूखा रह गया होगा; इसी से ऐसा कह रहा है। उन्होंने सामान बढ़वा दिया। अब इसने सारा सामान ले, नदी किनारे पहुंच, भोजन बना, प्रभू को पुकारा ! भगवान तो इंतजार ही कर रहे थे। प्रकट हो गए। पर इस बार साथ में लक्ष्मण जी भी थे ! अब इसने जो तीन को देखा तो बोला, हद हो गयी; एक को बुलाओ तो दो आते हैं; दो का इंतजाम करो तो तीन आते हैं ! अब यह कौन है ? प्रभू बोले, ये मेरे छोटे भाई लक्ष्मण हैं। भोले बंदे को शक ! पूछने लगा, सच कह रहे हो या ऐसे ही पकड़ लाए हो ? प्रभू मुस्कुराते हुए बोले, नहीं-नहीं, सच में मेरे छोटे भाई हैं। ये परेशान, बोला, गुरु जी ने तो सिर्फ ठाकुर जी को भोग लगाने को कहा था, यहां तो पूरा परिवार ही आ गया ! उसकी बात पर प्रभू और सीता मैया तो खूब हँसे पर लक्ष्मण जी सोचने लगे, प्रभू कहाँ ले आए ! क्या स्वागत हुआ है। बंदा बोला, चलो कोई बात नहीं, भूखा भले ही रह जाऊं, पर आपलोगों को देख कर मुझे अच्छा बहुत लगता है। चलिए विराजिए, एक ही तो ज्यादा है, हो जाएगा। सबने भोग लगाया। प्रभू जब चलने लगे तो इसने बार-बार उनके चरणों में सर नवाया, बोलने लगा, आप लोग बहुत अच्छे लगते हो, बहुत सुंदर हो ! कहते-कहते उसकी आँखों में आंसू भर आए। तभी अचानक उसने भगवान से कहा, प्रभू , अगली एकादशी का अभी से बता जाओ कितने आओगे, ताकि मैं उतने का इंतजाम कर रखूँ। यही एक बात है पहले से बता दिया करो कितने आओगे ! और कोई परेशानी नहीं है। प्रभू तो कौतुक कर ही रहे थे, बोले, तुम चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा, हम आ जाएंगे !

इस बार भी इसने महात्मा जी को कुछ नहीं बताया। अगली एकादशी भी आ गयी। अब गुरु जी से सामान कैसे बढ़वाऊं यह सोच कर परेशान था। इसे कुछ उदास सा देख महात्मा जी ने ही पूछ लिया, क्या बात है बच्चा ? कोई परेशानी हो तो बताओ ! जब उन्होंने पूछ ही लिया तो इसने कहा, क्या बताएं, वहाँ बहुत से भगवान आते हैं, हर बार भोजन कम पड जाता है। राशन दोगुना करवा दें। महात्मा जी ने सोचा, इतना तो यह खा नहीं सकता ! जरूर बेच देता होगा। पर बोले कुछ नहीं और उसके कहे मुताबिक़ राशन दिलवा दिया। पर करता क्या है यह देखने उसके पीछे-पीछे जाने की ठानी। यह सरल ह्रदय सामान ले जा पहुंचा नदी तट पर। पर इस बार उसने भोजन बनाया नहीं, सोचा पहले बुला कर देख लूँ, कितने आते हैं, फिरउसी हिसाब से बनाऊंगा। सो इसने प्रभू को पुकारा ! इसके पुकारते ही भगवान भी आ गए। पर अकेले नहीं इस बार लक्ष्मण जी के साथ-साथ भरत जी, शत्रुघ्न जी तथा हनुमान जी भी साथ थे, यानी पूरा राम दरबार ! इसने देखा तो परेशान, बोला, प्रभू यह तो हद है ! एक को बुलाया तो दो आए, फिर तीन आज तो इतने सारे ! इंसान तो इंसान आप तो वानर को भी साथ ले आए। तो सुन लो मैंने भी भोजन नहीं बनाया है ! प्रभू ने पूछा,  ऐसा क्यों ? तो बोला, जब मुझे मिलना ही नहीं, तो मैं क्यों बनाऊँ ? यह सारा सामान पड़ा है, बनवा लो और भोग लगा लो ! इतना कह वो एक किनारे पेड़ के नीचे जा कर बैठ गया। भगवान भी भक्त के वश ! भोजन व्यवस्था संभाल ली गयी। भरत जी और हनुमान जी ने सफाई वगैरह की, लक्ष्मण जी लकड़ी-पानी ले कर आए। शत्रुघ्न जी ने सामान व्यवस्थित किया और सीता जी ने रसोई संभाली। अब जब साक्षात अन्नपूर्णा को भोजन बनाते देखा तो जितने ऋषि-मुनि-संत-महात्मा थे वे सब भी आ उपस्थित हुए, माँ के हाथों का प्रसाद पाने को। उधर इतना कुछ हो रहा था और इधर हमारा भक्त आँख बंद किए बैठा था। जब प्रभू ने पूछा, भाई आँख क्यों मूँदे बैठे हो ? तो बोला, पहले तो कुछ मिल भी जाता था आज इतनी भीड़ में जब कुछ मिलना ही नहीं है तो देखने से क्या फायदा !

इधर गुरु जी भी यह देखने पहुँच गए कि देखें ये सामान का करता क्या है ! तो देखते क्या हैं कि ये आँखें मूंदे बैठा है और सामने सामान यूँ ही पड़ा हुआ है ! अचरज में पड़ वे बोले, क्यों बच्चा, क्या हो रहा है ? उनकी आवाज सुन ये उठा और बोला आपने तो अच्छी मुसीबत में डाल दिया ! देखिए कितने भगवान आए हुए हैं ! गुरु जी ने इधर-उधर देखा उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दिया, बोले, यहाँ तो कोई भी नहीं है ! तुम दिख रहे हो और सामान दिख रहा है बस ! सामने खड़े प्रभू मुस्कुरा रहे थे। इसने सामने खड़े भगवान से कहा, गुरु जी ने तो मुझसे एक भी एकादशी नहीं करवाई, तुमने पूरी करवा दी और उन्हें पता भी नहीं लगने दे रहे हो ! इनको क्यों नहीं दिखते ? इनको भी दिखो ! प्रभू बोले, मैं इनको नहीं दिख सकता ! क्यों नहीं दिख सकते ? ये मेरे गुरु हैं, विद्वान हैं, नेक हैं, महान हैं। प्रभू बोले, इसमें कोई संदेह नहीं, तुम्हारे गुरु बहुत महान हैं, विद्वान हैं, योग्य हैं, भजनानंदी हैं फिर भी मैं उन्हें नहीं दिखूंगा ! आँखों में आंसू ला वह बोला, इतना सब है फिर क्यों नहीं दिखोगे ? इसलिए क्योंकि वे तुम्हारी तरह सरल नहीं हैं। मैं तो सरल के लिए सरलता से मिलता हूँ। उसको बड़बड़ाते देख गुरूजी ने पूछा, क्या हुआ बच्चा ? क्यों रो रहे हो ? तो बोला, भगवान् कह रहे हैं कि आप सरल नहीं हो ! इतना सुनते ही गुरु जी की आँखों से अविरल जल बहने लगा ! बोले, सचमुच सब कुछ जीवन में मिला पर सरलता नहीं मिल पाई ! जिससे भगवान् के दर्शन होते थे वही नहीं मिला तो मेरा तप-पूजा-पाठ यहां तक कि जीवन भी व्यर्थ है ! उनके आंसू थमते नहीं थे ! उनका ऐसा पश्चाताप देख प्रभू भी पिघल गए और उन्हें भी दर्शन दे कृतार्थ किया।          

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