शुक्रवार, 9 जून 2023

यादगार यात्रा, डलहौजी-खजियार की

पहाड़ों में प्रचलित एक कहावत के अनुसार तीन Unpredictable ''W'' में से एक, Weather, का शाम होते-होते मिजाज बदलने लगा था ! आस-पास की पहाड़ियों पर घने काले बादल छाने व मंडराने लग गए थे ! इसके पहले कि उसका गुस्सा बढ़ता हमने अपने होटल की शरण लेना बेहतर समझा ! परंतु शॉपिंग का प्रेम कुछ लोगों को मॉल की ओर ले तो गया, पर बारिश ने प्रेम पर अपना आँचल डाल दिया, फिर क्या ! वही हुआ जो मंजूरे बरसात था ! कुछ लेना-खरीदना तो दूर जो अपने पास था वह भी पानी-पानी हो गया 😃

#हिन्दी_ब्लॉगिंग 

RSCB के मई के उत्तरार्द्ध के अमृतसर-चिंतपूर्णी यात्रा का अमृतसर के बाद दूसरा पड़ाव था, हिमाचल का खूबसूरत, छोटा सा पहाड़ी शहर डलहौजी ! सफर के दूसरे दिन होटल वगैरह की कार्यवाही निपटा, जालियांवाला बाग में श्रद्धांजलि अर्पित करने और दुर्गयाणा मंदिर के दर्शनों के पश्चात हमारी स्वस्थ-प्रसन्न टोली ने यहां से तक़रीबन 198 किमी दूर स्थित डलहौजी का रूख किया ! सड़क मार्ग से डलहौज़ी दिल्ली से 555 किमी तथा चंबा से 45 किमी है ! इसका निकटतम रेलवे स्टेहन पठानकोट यहां से 85 किमी की दूरी पर है !   

दुर्गियाना मंदिर 

जालियांवाला बाग, प्रवेश द्वार 

जालियांवाला बाग 

डलहौजी, 19वीं शताब्दी में भारत के ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी के नाम पर इसका नामकरण किया गया था ! धौलाधार पर्वत श्रृंखला की पांच पहाड़ियों, कैथलॉग, पोट्रेस, तेहरा, बकरोटा और बोलुन, पर बसा यह शहर, अपने सुरम्य परिदृश्य, अद्भुत वनों, प्राकृतिक दृश्यों, हरी, मृदु घास के मैदानों के लिए पर्यटकों में खासा लोकप्रिय है ! धुंध से घिरी धौलाधार पर्वत की घाटियां, उसकी स्वप्निल चोटियों से निकलती तेज प्रवाह नदियों के अनूठे घुमावदार मोड़, दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं ! यहां के ब्रिटिश कालीन, संरक्षित चर्च अपनी अनोखी वास्तुकला के चलते अभी भी बेहद दर्शनीय हैं ! 

डलहौजी

डलहौजी की शाम 
हाड़ी रास्ते के कारण डलहौजी के निर्धारित होटल तक पहुंचते-पहुंचते रात घिर आई थी ! कुछ बस यात्रा की थकान भी थी, सो कहीं बाहर ना जा, सभी सदस्यों ने चाय के सहारे एक साथ मिल-बैठ कर बेहतरीन समय का आनंद उठाया ! बेतकल्लुफ़ी के माहौल में एक-दूसरे को बेहतर तरीके से समझना-जानना हुआ ! कितनों की दबी-ढकी प्रतिभाएं सामने आईं ! एक-दूसरे के अनुभवों का, जानकारियों का आदान-प्रदान हुआ ! फिर सबने एक-दूसरे से विदा ली ! अगले दिन खजियार भी तो जाना था !

खजियार

खजियार
खजियार, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत में एक से एक खूबसूरत, मनोरम व सकूनदायक पहाड़ी स्थल हैं। उन्हीं में से एक है, हिमाचल के डलहौजी शहर से करीब 24 किमी दूर एक मनोहारी स्थल, खजियार ! जिसने अपनी अत्यधिक प्राकृतिक सुंदरता के कारण, मिनी स्विटरजलैंड का खिताब हासिल किया हुआ है ! चारों ओर से चीड़ के वृक्षों से घिरे इसके बुग्याल में एक मनोरम झील भी है, जिसे खजियार लेक के नाम से जाना जाता है ! झील के पास ही एक नाग मंदिर है, जहां प्रस्तर से बनी नागदेवता की मूर्ति की विधिवत रोजाना पूजा की जाती है ! पहाड़ी स्थापत्य कला में निर्मित 10वीं शताब्दी का यह धार्मिक स्थल खज्जी नाग मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के मंडप के कोनों में पांच पांडवों की लकड़ी की मूर्तियां स्थापित हैं। मान्यता है कि पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान यहां आकर ठहरे थे। यहां की लोक-मान्यता के अनुसार इस जगह का नाम खज्जी नाग  के नाम पर पड़ा है, जिनका मूल निवास आज भी इसी झील में है !

खज्जीनाग मंदिर 
पंचपुला झरने की ओर 

पंचपुला झरना 
एक लोक कथा के अनुसार सदियों पहले पूंपर नामक इस गांव के लोगों को एक बार पहाड़ पर कुछ चमकीली चीज दिखाई दी ! उनके वहां खजाना समझ खुदाई करने पर चार नाग देवता प्रगट हुए ! जिनके आदेशानुसार उन्हें एक डोली में बैठा, नीचे ले आया जाने लगा, पर रास्ते में सुकरेही नामक स्थान पर डोली के अत्यधिक भारी हो जाने के कारण उसे वहीं रख देना पड़ा ! तब चारों नाग देवता वहां से अलग-अलग जगहों, खजियार, नधूईं, चुवाड़ी और जमुहार में जा कर बस गए ! तभी से इस जगह को खज्जी नाग के नाम पर खजियार या खज्जियार कहा जाने लगा ! खजियार के पास ही कई अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं, जिनमें कालाटोप वन्यजीव अभ्यारण्य, पंचपुला, सुभाष बावली इत्यादि प्रमुख हैं !

                                                                 मस्ती, खुले दिल से           

लौटने का समय हो रहा था ! वैसे भी पहाड़ों में प्रचलित एक कहावत के अनुसार तीन Unpredictable ''W'' में से एक, Weather के स्वभाव में बदलाव आता दिख रहा था ! आस-पास की पहाड़ियों पर घने काले बादल छाने व मंडराने लग गए थे ! इसके पहले कि उसका मिजाज और खराब होता, हमने अपने होटल की शरण लेना श्रेयकर समझा ! परंतु इस हालात में भी शॉपिंग का प्रेम कुछ लोगों को मॉल की ओर ले ही गया ! पर बारिश ने उस प्रेम पर अपना आँचल डाल दिया ! फिर क्या....., वही हुआ जो मंजूरे बरसात था 😃   

-- कल धर्मशाला की ओर 

रविवार, 4 जून 2023

अटारी-वाघा, एक अनूठा अनुभव

देश प्रेम से ओत-प्रोत उस परिवेश में रमे-बसे लोग भूल गए थे गर्मी को, अपनी थकान को, अपनी भूख-प्यास को ! यदि कुछ था तो देश, देश की सेना और देश प्रेम ! यहां आ कर अपने और अपने पडोसी का फर्क साफ दिखाई-सुझाई पड़ने लगा था ! जहां इस ओर नाचते-गाते जयकारा लगाते हजारों-हजार लोग, वातावरण के साथ एकाकार हो रहे थे, वहीं चंद कदमों की दूरी पर, फाटक के दूसरी ओर पाकिस्तानी परिवेश में सन्नाटा पसरा हुआ था ! गिनती के पांच-सात लोग एक कोने में सिमटे बैठे थे ! वे भी शायद इधर की रौनक ही देखने आए लगते थे.........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

इस बार RSCB के कार्यक्रम के तहत मई के उत्तरार्द्ध में अमृतसर-डलहौज़ी-चिंतपूर्णी यात्रा की बागडोर मुझे संभालनी थी ! चूँकि सारी रूपरेखा हफ़्तों पहले से ही तय हो जाती है, इसलिए निर्धारित समय पर पड़ने वाली गर्मी जरा चिंता का विषय तो थी, पर मौसम के अजीबोगरीब उलटफेर के चलते पूरे मई के महीने ने अपने तेवर कुछ हद तक ढीले ही रखे ! हालांकि जब 22 मई की सुबह शताब्दी से चल कर हमारा तीस जनों का ग्रुप अमृतसर स्टेशन पर उतरा तो पारा 42-43 के बीच पींगे ले रहा था !  


अटारी-वाघा बॉर्डर भारत और पाकिस्तान के बीच एक अहम स्थान है। यह भारत और पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है, जो अमृतसर (भारत) और लाहौर (पाकिस्तान) के बीच ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित है। यहां रोजाना एक समारोह का आयोजन होता है जिसे बीटिंग रिट्रीट कहते हैं। जिसके दौरान संध्या समय दोनों देशों के झंडे सम्मान और विधिपूर्वक उतारे जाते हैं ! इस कार्यक्रम के लिए बार्डर को नियमित रूप से रोज पर्यटकों के लिए खोला जाता है। उस दिन यानी 22 मई की शाम वहां हमारी हाजरी लगनी थी ! हमारी यात्रा की रूप-रेखा तैयार करने वाले FOXTRAV ने वहां सीटों की बुकिंग करवा रखी थी ! होटल में सामान वगैरह रख हम सब तकरीबन 4.30 बजे बॉर्डर पर पहुँच अपने निर्धारित स्थानों पर बैठ गए ! 

हमारा ग्रुप 

अपार जन समूह वहां पहले से ही विद्यमान था ! गर्मी के बावजूद ठठ्ठ के ठठ्ठ लोग आए जा रहे थे ! लोगों का अटूट रेला, जिसमें बूढ़े, बच्चे, युवक, युवतियां, महिलाएं सभी शामिल थे, रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था ! ऊँची आवाज में बज रहे, देश प्रेम में पगे गाने लोगों के उत्साह को सातवें आसमान तक पहुंचा रहे थे ! बी.एस.एफ. का एक जवान अपनी तेज-तर्रार शैली में लगातार लोगों में जोश भरे जा रहा था ! उसका कौशल, उसकी ऊर्जा, उसकी शैली देखने लायक थी ! उस माहौल का वहां उपस्थित रह कर ही अनुभव किया जा सकता है ! शब्दों में वर्णन असंभव है ! 


असली भारत 
देश प्रेम से ओत-प्रोत उस परिवेश में रमे-बसे लोग भूल गए थे गर्मी को, अपनी थकान को, अपनी भूख-प्यास को ! यदि कुछ था तो देश, देश की सेना और देश प्रेम ! यहां आ कर अपने और अपने पडोसी का फर्क साफ दिखाई-सुझाई पड़ने लगा था ! जहां इस ओर नाचते-गाते, जयकारा लगाते हजारों-हजार लोग, वातावरण के साथ एकाकार हो गए थे, वहीं चंद कदमों की दूरी पर, फाटक के दूसरी ओर पाकिस्तानी परिवेश में सन्नाटा पसरा हुआ था ! गिनती के पांच-सात लोग एक कोने में सिमटे बैठे थे ! वे भी शायद इधर की रौनक ही देखने आए लगते थे !


उस ओर व्याप्त सन्नाटा 
सीमा पर झंडों को उतारने का समारोह एक दैनिक अभ्यास है ! जो दोनों देशों के सुरक्षा बलों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है। झंडों को उतारने से पहले विशेष ड्रिल का आयोजन होता है जिसमें विस्तृत और लयबद्ध परेड में पैरों को जितना संभव हो उतना ऊंचा उठाना होता है ! यह समारोह हर शाम सूर्यास्त से ठीक पहले दोनों पक्षों के सैनिकों द्वारा धमाकेदार परेड के साथ शुरू होता है ! जैसे ही सूरज ढलता है, सीमा पर लगे लोहे के गेट खोल दिए जाते हैं और दोनों देशों के झंडों को पूरी तरह से समन्वित रूप से एक साथ उतार, सम्मान के साथ लपेट कर ले जाया जाता है ! इसके साथ ही समारोह एक रिट्रीट के साथ समाप्त हो जाता है ! जिसके बाद फाटकों को फिर से बंद कर दिया जाता है। इस अनोखे कार्यक्रम को देखने दोनों ओर के लोगों के साथ ही विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं !   

उस दिन परेड की शुरुआत दो महिला कैडेट को करते देख, वहां उपस्थित हर देशवासी उनका अभिनंदन करने से खुद को नहीं रोक पा रहा था ! पड़ोस के देश में जहां महिलाओं का सांस लेना दूभर होता जा रहा है वहीं अपने यहां उनको देश की सुरक्षा में खड़ा देख हर नागरिक का मस्तक गर्व से ऊँचा हो जाता है ! 

जय हिंद, जय हिंद की सेना !

बुधवार, 31 मई 2023

नागपुर का जीरो माइल स्टोन स्मारक

भारत के इस भौगोलिक केंद्र का उपयोग नागपुर से दूसरे राज्‍यों की दूरियों को नापने के लिए भी किया जाता था। इसीलिए विभिन्न प्रदेशों के फासलों को दर्शाता एक पत्‍थर स्‍थापित किया गया था, जिसे ‘जीरो माइल स्टोन’ कहा गया। यह दर्शनीय स्थल नागपुर में विधानभवन के दक्षिण-पूर्व, सिविल लाइन पर स्थित है.........!   

#हिन्दी _ब्लागिंग 

जीरो माइल किसी भी शहर, गांव या देश की वह जगह होती है, जहां से अन्य शहर, गांव या देश के साथ उसकी दूरी मापी जाती है। अब शहर अपने-आप में खासे बड़े, लम्बे-चौड़े होते हैं सो उनमें एक ख़ास जगह निर्धारित की जाती है जहां से दूसरे शहरों की दूरी को आँका जाता है ! पहले किसी भी शहर के मुख्य डाकघर के स्थान को ज़ीरो मान कर वहाँ से अन्य दूरियां नापी जाती थीं ! फिर समय के साथ कुछ बदलाव हुए और विभिन्न शहरों के विभिन्न स्थानों को जीरो माइल का दर्जा दे दिया गया ! जैसे दिल्ली का जीरो माइल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का समाधि स्थल, राजघाट है। कोलकाता का राजभवन है ! मुंबई का चर्च गेट है ! पटना का बड़ी पहाड़ी के पास है ! पुणे का जी.पी.ओ. है ! देहरादून का घंटाघर माना जाता है ! चेन्नई के फोर्ट रेलवे स्टेशन के पास मुथुस्वामी रोड पर स्थित है। परन्तु सभी जगह जीरो दर्शाता सिर्फ एक पत्थर भर स्थापित है ! पर नागपुर का जीरो माइल स्टोन सेंटर, देश में इस नाम से संबंधित सबसे ज्यादा व्यवस्थित, दर्शनीय, अनुरक्षित, प्रसिद्ध व लोकप्रिय है !  



नागपुर, संतरों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध यह शहर यूं तो अपने-आप में अनेकानेक खूबियों को समेटे हुए है, पर एक खूबी ऐसी भी है जो अपने-आप में और भी विशिष्ट है ! वह है एक ऐतिहासिक स्मारक, जिसे जीरो माइल यानी शून्‍य मील का पत्‍थर के नाम से जाना जाता है।दरअसल, जब 1907 में जी.टी.एस. (Great Trigonometrical Survey) के दौरान अंग्रेजों ने भारत को अलग-अलग स्‍टेट में विभाजित किया तो इस विभाजन के बाद नागपुर को पूरे देशभर का केंद्र माना गया था। भारत के इस भौगोलिक केंद्र का उपयोग नागपुर से दूसरे राज्‍यों की दूरियों को नापने के लिए भी किया जाता था। इसीलिए विभिन्न प्रदेशों के फासलों को दर्शाता एक पत्‍थर यहां स्‍थापित किया गया, जिसे ‘जीरो माइल स्टोन’ का नाम दिया गया ! यह दर्शनीय स्थल नागपुर में विधानभवन के दक्षिण-पूर्व, वर्धा रोड़, सिविल लाइंस पर स्थित है ! 


हालांकि कुछ प्रतिवेदनों के अनुसार भारत विभाजन होने और पाकिस्‍तान बनने के बाद नागपुर भारत का केंद्र नहीं रहा है। उन रि‍पोर्ट के मुताबि‍क भारत का केंद्र अब मध्‍यप्रदेश के एक छोटे से गांव करैन्‍दी में आ गया है, जो मध्‍यप्रदेश के जबलपुर जिले के सिहोरा से करीब 40 किमी दूर है। जो भी हो नागपुर की इस जगह की ऐतिहासिकता तो है ही ! वैसे भी नागपुर देश के चार महानगरों (दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई) के केंद्र में स्थित है ! इस जगह को अब लाल नियोन की रौशनी से सजे एक तिकोने पार्क का स्वरूप दे दिया गया है, जहां बलुआ पत्थर से बना, लगभग 25 फिट का एक स्तंभ, एक मील का पत्थर, जिस पर विभिन्न शहरों की दूरियां अंकित हैं और प्लास्टर से बने चार घोड़े, जिन्हें बाद में जोड़ा गया, स्थापित हैं ! 



देश के विभिन्न भागों से आने वाले लोगों के लिए नागपुर का जीरो माइल सेंटर, अब आकर्षण का केंद्र बन गया है या यूं कह लीजिए कि पर्यटकों के लिए यहां का जीरो माइल अब उनके लिए एक ''माइल स्टोन'' बन गया है ! जिसे देखना अपने आप में एक अनोखा अनुभव है !

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

मैं, मेरा चश्मा और बंदर कृष्णभूमि के

पर इस बार अपहरणकर्ता की फिल्डिंग कमजोर थी ! हो सकता है नौसिखिया हो ! क्योंकि उसकी ओर जैसे ही फ्रूटी फेंकी गई, उसने चश्मा नीचे फेंक, माल लपकना चाहा और हड़बड़ी में ना माया मिली ना राम ! बेचारे का चेहरा देखने लायक था ! पर यहां कुछ सवाल भी खड़े होते हैं कि यहां के वानरों ने अपने सदा से प्रिय केले और चने जैसे खाद्यों को छोड़ यह फ्रूटी की लत कैसे पाल ली ! जिससे ना तो उनका पेट भरता होगा नाहीं भूख मिटती होगी  ! क्या यह कोई सोची-समझी साजिश तो नहीं .............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

पिछले दिनों RSCB के सौजन्य से वृन्दावन-मथुरा जाने का सुयोग बना ! संयोगवश ग्रुप की अगुवाई की बागडोर मेरे ही हाथों में थी ! चलने के पहले मिली हिदायतों में सबसे अहम् बात जो बताई गई वह थी, दोनों जगहों के बंदरों से सावधानी बरतने की ! खासकर वृन्दावन के इन स्वच्छंद जीवों से, जहां इनका उत्पात खौफ का रूप ले चुका है ! इनका आतंक मथुरा में भी है पर वृन्दावन की तुलना में कुछ कम !  हम सब ने इस बात की अच्छी तरह गांठ बांध ली थी ! जिसका असर भी रहा ! दोपहर तक पहुंचने के बाद गुफा मंदिर, प्रेम मंदिर और इस्कॉन मंदिर के दर्शनों में रात का पहला पहर बिना किसी विघ्न-बाधा के गुजर गया ! सब लोग निश्चिंतता के बावजूद सावधान भी थे !   

रात के नौ बजे के लगभग, भारी भीड़ के बीच हम सब भी बांके बिहारी जी के दर्शनार्थ, कतारों में लगे हुए थे ! वहां पहली बार वानर-चश्मा प्रेम के दर्शन हुए ! इतनी भीड़, जहां पैर रखने की जगह तक मिलना मुश्किल हो रहा था, उसके बावजूद ये चपल प्राणी, बड़ी सफाई और बिजली की फुर्ती से, बिना किसी को संभलने का मौका दिए, उनके चश्मों को हथिया जा रहे थे ! जिनके साथ यह घट रहा था, उनको छोड़ बाकी सब इस मुफ्त के शो का मजा ले रहे थे ! चश्मा लौटता था पर ''साहब को फ्रूटी'' की रिश्वत देने के बाद ! हम सब सुरक्षित थे !

बांकेबिहारी जी के दर्शनों के बाद हम सब कुछ अलग-थलग पड़ गए थे ! सब को इकठ्ठा करना था ! गलियों में रौशनी कम थी ! रात घिर आई थी ! मैंने सोचा ''भाई लोग'' भी आराम करने चले गए होंगें सो चश्मा कान पर चढ़ा लिया ! जरा सी देर बाद लगा जैसे किसी ने कंधे पर हाथ रखा हो, मैं समझा साथी मनोज जी होंगे...! जब तक पलटा चश्मा सामने के घर की मुंडेर तक जा पहुंचा था ! वहां से गुजर रहे एक दो बच्चों ने कहा, अंकल उसे फ्रूटी दीजिए ! पास ही दूकान बंद होने-होने को थी, वहाँ से फ्रूटी ले, उसी बच्चे को देने को कहा ! बच्चे ने फ्रूटी फेंकी......बंदर ने लपकी और बजाए चश्मा फेंकने के और ऊपर चढ़ गया ! बच्चे ने कहा, अंकल एक और दीजिए ! एक और ले कर दी गई, पर वह तो और आगे खिसक गया और चश्मे की डंडी को चबाना शुरू कर दिया ! अब मुझे परेशानी का अनुभव हुआ ! चश्मा ''प्रोग्रेसिव'' था, यूँही छोड़ते नहीं बन रहा था ! उसी बच्चे ने फिर एक और फ्रूटी देने को कहा, कोई और चारा भी तो नहीं था ! तीसरी भेंट दी गई और आश्चर्य इस बार अगले ने चश्मा जमीन पर दे मारा ! बच गया, उसी बच्चे ने लपक लिया था ! अब जब ऊपर ध्यान गया तो देखा वहां तीन सदस्य विराजमान थे ! जब तक तीनों को ''गिफ्ट'' नहीं मिला बंधक को छोड़ा नहीं गया था ! 


दूसरे दिन दिन-दहाड़े निधिवन के बाहर रात की नाटिका का रि-मंचन हो गया ! कंधे पर हल्का सा दोस्ताना स्पर्श हुआ और चश्मा इतनी कोमलता और सफाई से उतारा गया, जितने प्यार से मैंने खुद भी कभी नहीं उतारा होगा ! अब गफलत में चूक हो गई थी, खामियाजा तो उठाना पड़ना ही था ! इस बार एहतियातन दो फ्रुटियाँ ले लीं ! फिर एक बच्चे को मुहीम पर लगाया ! पर इस बार ऐनकहरणकर्ता की फिल्डिंग कमजोर थी ! हो सकता है नौसिखिया हो ! क्योंकि उसकी ओर जैसे ही फ्रूटी फेंकी गई, उसने चश्मा नीचे फेंक, माल लपकना चाहा और हड़बड़ी में ना माया मिली ना राम.....! बेचारे का चेहरा देखने लायक था ! इसी बीच हमारे ही ग्रुप के एक और सज्जन भी बिना किसी नुक्सान के इस अनुभव को संजो चुके थे ! एक बार तो इन आतंकियों ने मथुरा के डी. एम. की भी ऐनक उतार पुलिस वालों की जान सांसत में डाल दी थी ! बड़ी मुश्किलों के बाद फ्रुटियों ने ही वापस दिलवाई थी !

इन सब बातों से जो बात सामने आई, वह कुछ सवाल भी खड़े करती है ! सबसे अहम् तो यही है कि वानरों ने अपने सदा से प्रिय केले और चने जैसे खाद्यों को छोड़ यह फ्रूटी की लत कैसे पाल ली ! जिससे ना तो उनका पेट भरता है नाहीं भूख मिटती होगी ! तो क्या दुकानदारों ने अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए इनका दुरोपयोग किया ! क्योंकि मेरे साथ जहां भी छिनताई हुई वहां बगल में ही किराने की दुकान थी ! सदा ही इनका 99 % लक्ष्य चश्मा ही होता है जो शरीर पर कुछ कम सुरक्षित जगह पर रहता है ! हालांकि मोबाईल और हाथ में पकड़े छोटे-छोटे सामान भी जाते हैं पर बहुत ही कम, क्योंकि हाथ से सामान लेने पर कभी ''देने'' भी पड़ सकते हैं ! इसके अलावा वहां के स्थानीय रहवासी तुरंत घटनाग्रस्त इंसान से फ्रूटी ही देने की सिफारिश करता है ! खैर जो भी हो, आप-हम यदि पैक्ड फ्रूटी पिएं तो हो सकता है कि उसमें कुछ द्रव्य बच जाए, पर मजाल है कि एक बूँद भी चिपकी रह जाए, जब डिब्बा इन कपिवंशियों के हाथ में हो !

@ फोटो अंतर्जाल के सौजन्य से 

रविवार, 23 अप्रैल 2023

फोन से लगाव, रिश्तों में अलगाव (मोबिकेट)

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब बातों को जानते भी हैं, पर फिर भी जाने-अनजाने चूक हो ही जाती है ! आज की दुनिया में यह भले ही एक वरदान है, लेकिन इसका अनुचित प्रयोग कभी-कभी दूसरों की परेशानी का सबब बन जाता है ! खास कर तब, जब यह बिना एहसास दिलाए आपकी लत में बदल चुका हो ! आज खुद को भोजन मिले ना मिले पर इसका 'पेट'भरे रहना, इसकी चार्जिंग की ज्यादा चिंता रहती है ! इसलिए यह जरुरी  हो गया है कि अभिभावक बचपन से ही अपने बच्चों को "मोबिकेट" से अवगत कराते रहें............!     

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कल मेरे एक मित्र घर आए ! मैं लैप-टॉप पर अपना कुछ काम कर रहा था ! उनके आते ही मैंने उसे बंद कर उनका अभिवादन किया ! अभी आधे मिनट की दुआ-सलाम भी ठीक तरह से नहीं हुई थी कि उनका फोन घनघना उठा और वे उस पर व्यस्त हो गए ! बात खत्म होने के बाद भी वे उसमें निरपेक्ष भाव से अपना सर झुकाए कुछ खोजने की मुद्रा बनाए रहे ! इधर मैं उजबक की तरह उनको ताकता बैठा था ! बीच में एक बार मैंने एक मैग्जीन उठा उसके एक-दो पन्ने पलटे कि शायद भाई साहब को मेरी असहजता का कुछ एहसास हो ओर पर वे वैसे ही निर्विकार रूप से अपने प्रिय के साथ मौन भाव से गुफ्तगू में व्यस्त बने रहे ! हार कर मैं भी अपने कम्प्यूटर को दोबारा होश में ले आया ! हालांकि मुखातिब उनकी ओर ही रहा ! पर पता नहीं उन्हें क्या लगा या क्या याद आ गया कि वे अचानक उठ कर बोले, अच्छा चला जाए ! मैंने कहा, बस ! बैठो ! बोले, नहीं फिर कभी आऊंगा !   

मोबाइल फोन, आज हर आम और खास के लिए यह कितना महत्वपूर्ण बन गया है, इसके बारे में बात करना समय बर्बाद करना है ! आज खुद को भोजन मिले ना मिले पर इसका ''पेट'' भरे रहना, इसकी चार्जिंग, जरुरी है ! आज की दुनिया में यह भले ही एक वरदान है, लेकिन इसका अनुचित प्रयोग कभी-कभी दूसरों की परेशानी का सबब बन जाता है ! और खास कर तब, जब यह बिना एहसास दिलाए आपकी लत में बदल चुका हो ! सोचिए आप किसी के घर गए हैं, तो वह अपने दस काम छोड़ आपकी अगवानी करता है और आप हैं कि आपका फोन आपको छोड़ ही नहीं रहा ! मान लीजिए इसका उल्टा हो जाए, आप किसी के यहां जाएं और वह अपने फोन पर व्यस्त रहे, तो.......! इस लत के तहत, अनजाने ही सही, यदि किसी के साथ बात करते या सामने बैठे हुए आप अपने फोन पर ''अन्वेषण'' करते हैं तो सामने वाला अपने को उपेक्षित समझ, भले ही मुंह से कुछ न बोले, बुरा मान बैठता है !  

जानकारों ने, मनोवैज्ञानिकों ने, इस लत के लिए कुछ सुझाव दिए हैं ! उन पर अमल करना तो हमारा काम है, जिससे फिजूल की परिस्थितियां या माहौल पनपने ना पाएं ! इन सुझावों पर बात करना फिलहाल ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जाए ! पर यह जरुरी भी है कि अभिभावक शुरू से ही अपने बच्चों को "मोबिकेट" की जानकारी से अवगत कराते रहें ! 

सबसे पहले तो फोन आने या करने पर अपना स्पष्ट परिचय दें ! ''पहचान कौन'' या ''अच्छा ! अब हम कौन हो गए'' जैसे वाक्यों से सामने वाले के धैर्य की परीक्षा ना लें ! हो सकता है कि आपने जिसे फोन किया हो उसके बजाए सामने कोई और हो, जो आपकी आवाज ना पहचानता हो !फोन करते समय सामने वाले का गर्मजोशी और खुशदिली से अभिवादन करें ! आपका लहजा ही आपकी छवि घडता है ! स्पष्ट, संक्षिप्त और सामने वाले की व्यस्तता को देख बात करें ! बात करते समय किसी का भी तेज बोलना या चिल्लाना अच्छा नहीं माना जाता, फिर भले ही वह आपका लहजा हो या फिर फोन की रिंग-टोन ! हमेशा विनम्र रहें और अभद्र भाषा के प्रयोग तथा किसी को कभी भी फोन करने से बचें। गलती से गलत नंबर लग जाए तो क्षमा जरूर मांगें !

जब भी आपसे कोई आमने-सामने बात कर रहा हो तो मोबाईल पर बेहद जरुरी कॉल को छोड़ ना ज्यादा बात करें नाहीं स्क्रॉल करें ! वहीं ड्राइविंग के वक्त, खाने की टेबल पर, बिस्तर या टॉयलेट में तो खासतौर पर मोबाइल न ले जाएं । इसके अलावा अपने कार्यस्थल या किसी मीटिंग के दौरान फोन साइलेंट या वाइब्रेशन पर रखें और मेसेज भी न करें ! कुछ खास जगहों या अवसरों, जैसे धार्मिक स्थलों, बैठकों, अस्पतालों, सिनेमाघरों, पुस्तकालयों, अन्त्येष्टि इत्यादि पर बेहतर है कि फोन बंद ही रखा जाए  !

इन सब के अलावा कुछ बातें और भी ध्यान देने लायक हैं ! कईयों की आदत होती है दूसरों के फोन में ताक-झांक करने की जो कतई उचित नहीं है नाहीं बिना किसी की इजाजत उसका फोन देखने लगें ! बिना वजह कोई भी एसएमएस दूसरों को फारवर्ड ना करें, जरूरी नहीं कि जो चीज आपको अच्छी लगे वह दूसरों को भी भाए ! आजकल मोबाइल में कैमरा, रिकॉर्डर और ऐसी अनेक सुविधाएं होती हैं। इन सुविधाओं का बेजा इस्तेमाल न कर जरूरत के वक्त ही इस्तेमाल करें !  

आज ध्यान में रखने की बात यह है कि यदि आधुनिक यंत्रों का आविष्कार यदि हमें तरह-तरह की सुख-सुविधा प्रदान कर रहा है, तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हमारी सहूलियतें दूसरों की मुसीबत या असुविधा ना बन जाएं !  

गुरुवार, 13 अप्रैल 2023

नजरबट्टू, क्या या कौन है ये

प्राचीन काल से ही यह मान्यता चली आ रही है कि किसी के प्रति मन की बुरी भावनाएं यथा द्वेष, ईर्ष्या, जलन इत्यादि नकारात्मक ऊर्जा के रूप में आँखों के जरिए बाहर आ दूसरों का अहित कर सकती हैं ! जिसे आम बोल-चाल की भाषा में नजर लगना कहा जाता है ! इसके प्रतिकार के लिए नजरबट्टू का उपयोग किया जाता रहा है ! यह एक पाम या ताड़ प्रजाति के वृक्ष के काले रंग का फल है जो दक्षिण भारत में प्रचुरता के साथ पाया जाता है, जिसकी माला लोग अपने बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिये पहनाते हैं.........!


#हिन्दी_ब्लागिंग 


इंसान की फितरत है कि वह किसी अनजाने डर से सदा त्रस्त रहता है ! इसीलिए विश्वास-अंधविश्वास उस पर सदा हावी रहते हैं ! तर्क और अंधविश्वास की मुठभेड़ में सदा अंधविश्वास ही भारी पड़ता है ! वैसे भी सभी को लगता है कि जरा सा टोटका करने से शायद, यदि अनहोनी टल ही जाए तो इसमें नुक्सान या बुराई क्या है ! यह भी देखा गया है कि इससे एक संबल, एक सुरक्षा की भावना भी मिलती है, जिससे दिलो-दिमाग को कुछ राहत का एहसास हो जाता है ! यही कारण है कि सदियों से दुनिया भर में टोन-टोटके आजमाए जाते रहे हैं !


नजरबट्टू के फल 

प्राचीन काल से ही यह मान्यता चली आ रही है कि किसी के प्रति मन की बुरी भावनाएं यथा द्वेष, ईर्ष्या, जलन इत्यादि नकारात्मक ऊर्जा के रूप में आँखों के जरिए बाहर आ दूसरों का अहित कर सकती हैं ! जिसे आम बोल-चाल की भाषा में नजर लगना कहा जाता है ! इसके प्रतिकार के लिए नजरबट्टू का उपयोग किया जाता रहा है ! यह एक पाम या ताड़ प्रजाति के वृक्ष के काले रंग का फल है जो दक्षिण भारत में प्रचुरता के साथ पाया जाता है, जिसकी माला लोग अपने बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिये पहनाते हैं ! ऐसी मान्यता है कि आँखों की नकारात्मक तरंगों से इस फल में दरार आ जाती है और पहनने वाला विपरीत प्रभाव से बच जाता है ! 


नजरबट्टू को बजर बट्ट या बिजूका भी कहा जाता है। अक्सर अधिकांश नए और सुंदर बने भवनों पर किसी हांडी या तख्ती पर बना एक ड़रावना काले रंग का चेहरा, छत के पास टंगा नजर आता है। जिसमें बड़ी-बड़ी मूंछें, लाल-लाल आंखें और बाहर निकले दांत दर्शाए गए होते हैं। ऐसी सोच है कि यह नये बने भवन को बुरी नजर से बचाता है। कुछ किसान अपने खेतों की फसल को पक्षियों से बचाने के लिए जो बिजूका लगाते हैं। वह भी एक तरह से बजरबट्टू ही है जो जानवरों को इंसान का भ्रम दे उन्हें फसल से दूर रखता है ! इसी का एक रूप ट्रकों या गाड़ियों के पीछे लटकते जूते भी हैं। वैसे इस उद्देश्य के लिए कई चीजों को काम में लाया जाता रहा है जो मुख्य वस्तु पर दृष्टि पड़ने के पहले ही नज़र को भटका दें !

नजरबट्टु का पौधा

क्या या कौन है, यह बजरबट्टू और कैसे यह बचाता है बुरी नजर से, यदि होती है तो ! इसके बारे में पुराणों में एक कथा या विवरण मिलता है ! 

बजरबट्टू
जालंधर नाम का एक दैत्य था। उसने ब्रह्माजी को अपने तप द्वारा प्रसन्न कर असीम बल प्राप्त कर लिया था। जिसकी बदौलत उसने देवताओं को भी पराजित कर स्वर्ग पर अपना अधिकार जमा लिया जिससे उसे अत्यधिक घमंड़ हो गया और वह अपने समक्ष सबको तुच्छ समझने लग गया ! अहंकारवश वह नीति अनीती सब भुला बैठा था। हद तो तब हो गई जब उसने अपने दूत के द्वारा भगवान शिव को पार्वतीजी को अपने हवाले कर देने का संदेश भिजवाया ! स्वभाविक ही था कि शिवजी भयंकर रूप से क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया ! नेत्र से भीषण तेज की ज्वाला निकली जिससे एक भयंकर दानव की उत्पत्ति हुई ! उस ड़रावनी आकृति ने जैसे ही दूत पर आक्रमण किया, वह तुरंत शिवजी की शरण में चला गया, इससे उसकी जान तो बच गई पर उस दानव की जान पर बन आई जो भूख से बुरी तरह व्याकुल था ! उसने भगवान शिव से अपनी क्षुधा शांत करने की विनती की ! तत्काल कोई उपाय ना हो पाने के कारण शिवजी ने उसे अपने ही अंगों को खाने का कह दिया ! भूख से विचलित उस दानव ने धीरे-धीरे अपने मुख को छोड़ अपना सारा शरीर खा ड़ाला।

 कीर्तीमुख
वह आकृति शिवजी से उत्पन्न हुए थी इसलिए प्रभू को बहुत प्रिय थी। उन्होंने उससे कहा, आज से तेरा नाम कीर्तीमुख होगा और तू सदा मेरे द्वार पर रहेगा। इसी कारण पहले कीर्तीमुख सिर्फ शिवालयों पर लगाया जाता था। धीरे-धीरे फिर इसे अन्य देवालयों पर भी लगाया जाने लगा। समयांतर पर इसे बुराई दूर करने का प्रतीक मान लिया गया और यह आकृति बुराई या बुरी नजर से बचने के लिए भवनों पर भी लगाई जाने लगी। पता नहीं कब और कैसे यह मुखाकृति हांड़िंयों या तख्तियों पर उतरती चली गई। जैसा कि आजकल मकानों पर टंगी दिखती हैं। जिनकी ओर अनायास ही पहले नजर चली जाती है। इनके लगाने का आशय भी यही होता है।
  
बिजुका
इंसान किसी अनहोनी, असंभाव्य या अनजान डर से, यह जानते हुए भी कि ऐसा कुछ नहीं होगा फिर भी इतना भयभीत रहता है कि कुछ ना कुछ तर्कहीन कार्य-कलापों का सहारा ले ही लेता है ! ऐसे में ही यदि कुछ अच्छा घट जाता है तो हमारा विश्वास उन चीजों पर और भी बढ़ जाता है ! देखा जाए तो यदि मष्तिष्क को सकून मिलता है, डर थोड़ा तिरोहित होता है, किसी का कोई नुक्सान नहीं होता तो दिल को समझाने के लिए ऐसी चीज का उपयोग बुरा भी नहीं है , पर वही सही है ऐसा दिलो-दिमाग पर छा जाना भी उचित नहीं है ! वैसे यह भी एक तरह का फोबिया ही है !

मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

हमारा वैदिक गणित

आश्चर्य के साथ खेद भी होता है कि हमने अपने ऋषि-मुनियों द्वारा रचित, अपनी इस अनमोल, अति उपयोगी, बहुमूल्य धरोहर का अब तक अपने पाठ्यकर्मों में उपयोग कर अपनी पीढ़ियों को लाभान्वित क्यों नहीं किया ! क्यों अभी भी हम विदेशियों द्वारा थोपे गए पाठ्यक्रमो को ढोए जा रहे हैं ! किनके अहम्, गलत सोच या विचारों ने हमें उत्कृष्टता अपनाने से रोक रखा है ! आज जरुरत है, इस ग्रंथ जैसे अनेक ग्रंथों को अवैज्ञानिक मानने वाले, किसी और विचारधारा से ग्रस्त तथाकथित बुद्धिजीवियों को परे धकेल, उनसे किनारा कर, बिना किसी सोच या गुरेज के अपने सनातन ज्ञान को अपना कर अपने देश के भविष्य को और बेहतर बनाने की............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

यह तो लंबे समय से ज्ञात है कि भारतीय गणित की समृद्धि शून्य की खोज से भी आगे तक फैली हुई है। उसी समृद्ध खजाने की एक कड़ी है वैदिक गणित, एक अद्भुत, चमत्कारी एवं क्रान्तिकारी ग्रन्थ ! जिसमें अथर्ववेद के परिशिष्ट के एक हिस्से में उल्लेखित 16 सूत्र तथा 13 उपसूत्रों के सहारे शीघ्र गणना करने की अद्भुत व नितांत अलग सी विधियां बहुत ही सरल ढंग से सिखाई गई हैं ! इस ग्रंथ की यह विशेषता है कि यह किसी भी व्यक्ति की सरल और जटिल दोनों प्रकार की गणितीय समस्याओं को तेजी से सुलझाने में मदद करता है। यह कठिन अवधारणाओं को याद रखने के बोझ को भी कम करता है। 

वैदिक गणित की रचना का श्रेय स्वामी भारती कृष्णतीर्थ को जाता है ! उनका जन्म 14 मार्च 1884 को तिन्निवेलि, तमिलनाडु के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि कृष्ण तीर्थ ने बी.ए.और एम.ए. की परीक्षाओं में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए थे। केवल बीस वर्ष की आयु में सन् 1904 में उन्होंने अमेरिकन कॉलेज ऑफ साइंस रोचेस्टर, न्यूयार्क के बम्बई केन्द्र से इतिहास, संस्कृत, दर्शन, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान जैसे विषयों में एक साथ सर्वोच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया था। अपने प्रिय विषय वैदिक गणित को वे व्यावहारिक विद्या के रूप में प्रस्तुत करते थे। ज्ञान, आयु और अनुभव की प्रौढ़ता प्राप्त कर लेने के बाद 35 वर्ष की आयु में शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी त्रिविक्रम तीर्थ महाराज ने 4 जुलाई सन् 1919 को उन्हें काशी में सन्यास की दीक्षा दी और नाम दिया स्वामी भारतीकृष्ण तीर्थ। 

आज का समय तीव्र प्रतिस्पर्द्धा का है ! जिसमें सफल होने के लिए समय एक बहुत बड़ा कारक है ! किसी भी स्पर्द्धा में सफल होने के लिए गति एवं सटीकता की सबसे ज्यादा जरुरत होती है। वैदिक गणित के सूत्रों और नियमों का अभ्यास किसी भी स्पर्धा व परीक्षा में बहुत ही सहायक होता है ! इसका प्रत्यक्ष अनुभव, इस विधा से जुड़े देश-विदेश के विद्वानों को हो रहा है। वैदिक गणित की विधियाँ एक ओर जहाँ गणित शिक्षण को सरल एवं रोचक बनाती हैं, वहीं दूसरी ओर नवीन शोध की ओर प्रेरित भी करती हैं। गणित के क्षेत्र में स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ का अद्वितीय योगदान है। उन्होंने 2 फरवरी 1960 में बम्बई में महासमाधि ले ली थी ! वैदिक गणित ग्रंथ का प्रकाशन, स्वामी जी के देहावसान के पश्चात् 1965 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा किया गया ! जो आज विश्व प्रसिद्ध है। 

आश्चर्य के साथ खेद भी होता है कि हमने अपने ऋषि-मुनियों द्वारा रचित, अपनी इस अनमोल, अति उपयोगी, बहुमूल्य धरोहर का अब तक अपने पाठ्यकर्मों में उपयोग कर अपनी पीढ़ियों को लाभान्वित क्यों नहीं किया ! क्यों अभी भी हम विदेशियों द्वारा थोपे गए पाठ्यक्रमो को ढोए जा रहे हैं ! किनके अहम्, गलत सोच या विचारों ने हमें उत्कृष्टता अपनाने से रोक रखा है ! अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है, जरुरत है, स्वामी तीर्थ के आलोचकों और इस ग्रंथ जैसे अनेक ग्रंथों को अवैज्ञानिक मानने वाले, किसी और विचारधारा से ग्रस्त तथाकथित बुद्धिजीवियों को परे धकेल, उनसे किनारा कर, बिना किसी सोच या गुरेज के अपने सनातन ज्ञान को अपना कर अपने देश के भविष्य को और बेहतर बनाने की !

बुजुर्गों से अक्सर पहाड़ों (Tables) के बारे में सुनने को मिलता था कि उनको याद रखने में कितनी मशक्कत करनी पड़ती थी ! सीधे-सादे पहाड़ों की तो बात अलग, उसके पहले ''सवा'' और ''ड़ेढ'' के पहाड़ों को भी रटना पड़ता था ! आज के गैजट्स से सुसज्जित पीढ़ी तो शायद उसकी कल्पना भी नहीं कर सकती ! उस समय देश के कर्णधारों ने यदि वैदिक ग्रंथों की अहमियत समझ ली होती तो शायद हम वर्तमान समय से शायद और भी आगे होते !

ग्रंथ मेंउल्लेखित विधियों की एक झलक -

यदि कोई कहे कि 38 का पहाड़ा सुनाओ तो एक बार तो दिमाग झटका खा ही जाएगा ! तुरंत कैलकुलेटर की खोज शुरू हो जाएगी ! पर इस गणित की सहायता से किन्हीं भी दो अंकों का टेबल तुरंत जाना जा सकता है, उदाहणार्थ  :-  

"38" का पहाड़ा 

इसके लिए पहले 3 का टेबल लिख लें, फिर उसके साथ बगल में 8 का टेबल लिख लें 

03      0 8     (3+0)        38

06      1 6     (6+1)        76

09      2 4     (9+2)     114

12      3 2    (12+3)    152

15      4 0    (15+4)    190

18      4 8    (18+4)    228

21      5 6    (21+5)    266

24      6 4    (24+6)    304

27      7 2    (27+7)    342

30      8 0    (30+8)    380

उसी तरह ''87'' का पहाड़ा 

08     0 7   (08+0)       87

16     1 4   (16+1)     174

24     2 1   (24+2)     261

32     2 8   (32+2)     348

40     3 5    (40+3)    435

48     4 2   (48+4)     522

56     4 9   (56+4)     609

64     5 6   (64+5)     696

72     6 3   (72+6)     783

80     7 0   (80+7)     870

उतना ही आसान ''92'' का 

  09        02      (09+0)        92

 18         04      (18+0)      184

  27        06      (27+0)      276

  36        08      (36+0)     368

  45       10       (45+1)     460

  54       12       (54+1)     552

  63       14       (63+1)     644

  72       16       (72+1)    736

  81       18      (81+1)     828

  90       20      (90+2)     920

है ना आसान ! कितनी सहजता से इसी तरह 10 से 99 तक का टेबल  आसानी से बनाया जा सकता है ! ऐसी ही विशेष विधियों का संकलन है इस वैदिक गणित में ! यह है हमारा ज्ञान, विज्ञान, हमारी मेधा, हमारा अनुसंधान ! हमारा देश सदा से बहुमुखी प्रतिभा संपन्न रहा है ! सदियों से विद्या के अकल्पनीय खजाने से भरपूर रही है हमारी धरा ! यूं ही विश्व गुरु कहलाने का हक हमें नहीं मिल गया था ! पता नहीं क्यों कुछ लोगों को अपने देश की बड़ाई, उसका गौरव, उसका मान, रास नहीं आता..........!

@साभार वैदिक गणित

विशिष्ट पोस्ट

यादगार यात्रा, डलहौजी-खजियार की

पहाड़ों में प्रचलित एक कहावत के अनुसार तीन U npredictable ''W'' में से एक, Weather, का शाम होते-होते  मिजाज बदलने लगा था ! आस...