बुधवार, 20 सितंबर 2023

घुटने में अभी भी हेड़ेक है

अब जो होना था, वह हुआ और अच्छा ही हुआ ! क्योंकि इससे एक सच्चाई तो सामने आ गई, कि जो बहुत दिनों से, बहुत बार, बहुतों से बहुतों के बारे में सुनते आ रहे थे कि फलाने का दिमाग घुटने में है और इसको हलके-फुलके अंदाज में ही लिया जाता था, तो अब  पूरा विश्वास हो गया है कि यह मुहावरा यूं ही नहीं बना था इसमें पूरी सच्चाई निहित थी........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

बात कुछ दिनों पहले की है ! दोपहर करीब दो बजे का समय था ! रिमझिम फुहारें पड़ रही थीं ! सो उनका आनंद लेने के लिए पैदल ही ऑफिस से घर की ओर निकल पड़ा ! यही बात इंद्रदेव को पसंद नहीं आई कि एक अदना सा इंसान उनसे डरने की बजाय खुश हो रहा है ! बस, फिर क्या था ! उन्होंने उसी समय अपने सारे शॉवरों का मुंह एक साथ पूरी तरह खोल दिया। अचानक आए इस बदलाव ने मुझे अपनी औकात भुलवा मुझसे सौ मीटर की दौड़ लगवा दी ! उस समय तो कुछ महसूस नहीं हुआ, पर रात गहराते ही घुटने में दर्द ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी !  जिसने मेरे नजरंदाजी रवैये के कारण अगले कुछ दिनों का अवकाश लेने पर मजबूर कर दिया ! पर इलाज करने और मर्ज बढ़ने के मुहावरे को मद्दे नजर रख, मैंने किसी ''डागदर बाबू'' को अपनी जेब की तलाशी नहीं लेने दी ! जुम्मा-जुम्मा करते 12-13 दिन हो गये पर दर्द महाशय घुटने के पेचो-ख़म में ऐसे उलझे कि निकलने का नाम ही नहीं ले रहे थे ! 
अब जैसा कि रिवाज है, तरह-तरह की नसीहतें, हिदायतें तथा उपचार मुफ्त में मिलने शुरू हो गए ! अधिकाँश सलाहें तो दोनों कानों में आवागमन की सुविधा पा हवा से जा मिले, पर कुछ अपने-आप को सिद्ध करने के लिए, दिमाग के आस-पास तंबू लगा बैठ गए ! सर्व-सुलभ उपायों को आजमाया भी गया ! ''फिलिप्स'' की लाल बत्ती का सेक भी दिया गया ! अपने नामों से मशहूर मलहमें भी खूब पोती गईं ! सेंधा नमक की सूखी-गीली गरमाहट को भी आजमाया गया,पर हासिल शून्य बटे सन्नाटा ही रहा ! फिर आए बाबा रामदेव अपनी ''पीड़ांतक" ले कर, उससे कुछ राहत भी मिली, हो सकता है कि शायद अब तक दर्द भी एक जगह बैठे-बैठे ऊब गया हो ! वैसे उसे और भी घुटने-कोहनियां देखनी होती हैं ! खाली-पीली मेरे यहां जमे रह कर उसकी दाल-रोटी भी तो नहीं चलने वाली, सो अब पूर्णतया तो नहीं पर काफी कुछ आराम है। 
अब जो होना था, वह हुआ और अच्छा ही हुआ ! क्योंकि इससे एक सच्चाई तो सामने आ गई कि जो बहुत दिनों से, बहुत बार, बहुतों से बहुतों के बारे में सुनते आ रहे थे कि फलाने का दिमाग घुटने में है और इसको हलके-फुलके अंदाज में ही लिया जाता था तो अब  पूरा विश्वास हो गया है कि यह मुहावरा यूं ही नहीं बना था, इसके पीछे पूरी सच्चाई निहित थी !सवाल उठता है, कैसे ? तो जनाब, इन 12-13 दिनों में बहुत कोशिश की ! बहुतेरा ध्यान लगाया ! हर संभव-असंभव उपाय कर देख लिया पर एक अक्षर भी लिखा ना जा सका। जिसका साफ़ मतलब था कि यह सब करने का जिसका जिम्मा है वह तो हालते-नासाज को लिए घुटने में बैठा था  १ इस हालत में वह अपनी चोट संभालता कि मेरे अक्षरों पर ध्यान देता ! तो लुब्ब-ए-लुबाब यह रहा कि कभी, किसी के घुटने में दिमाग का जिक्र आए तो उसे हलके में मत लें ! 

@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

बुधवार, 13 सितंबर 2023

बेगुनकोदर, एक भूतिया रेलवे स्टेशन

सच्चाई क्या है यह तो पता नहीं ! पर लगभग 42 सालों तक भूतिया डर के चलते बेगुनकोदर रेलवे स्टेशन बंद पड़ा रहा। यहाँ कोई भी नहीं आता था। पर फिर समय कुछ बदला ! लोगों की परेशानियों को देखते हुए 2009 में तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने अफवाहों के शिकार इस बदनसीब रेलवे स्टेशन को दुबारा से हरी झंडी दिखा दी। लेकिन आज भी सूरज ढलने के बाद वहाँ शायद ही कोई व्यक्ति दिखाई पड़ता हो........!     

#हिन्दी_ब्लागिंग 

भूत, इनके बारे में दावे तो बड़े-बड़े किए जाते हैं, पर ठीक या अच्छी तरह से देखा शायद ही किसी ने हो ! हमारे गांवों में ऐसे कुछ लोग जरूर मिल जाएंगे, जिन्होंने भूतों से कुश्ती लड़ी हो या उनसे भूत ने बीड़ी मांगी हो ! पर वे लोग यह नहीं बता पाते कि उस अशरीरी ने बीड़ी कैसे पी या कुश्ती में कौन सा दांव लगाया ! पर इसके साथ ही भूतों पर एक सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि दुनिया में करीब 45% लोग इन पर विश्वास करते हैं ! इसका कारण भी है, इस विस्मय भरे संसार में हजारों चीजें, बातें, घटनाएं, वारदातें ऐसी हैं या होती रहती हैं, जिनका कोई तर्कसम्मत जवाब या हल नहीं मिल पाता ! जिन्हें महसूस तो किया जाता है पर परिभाषित नहीं किया जा सकता ! विदेशों की बात नाहीं करें, अपने देश में ऐसी दसियों जगहें हैं जो भूतिया नाम से विख्यात हैं ! उन्हीं में से एक है पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में बेगुनकोदर नाम का एक रेलवे स्टेशन !  


पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से करीब 260 किमी दूर, पुरुलिया जिले में 1960 में भारतीय रेलवे ने एक सुनसान व वीरान सी जगह में अपना एक स्टेशन बनाया जिसका नाम रखा गया बेगुनको
दर रेलवे स्टेशन ! हालांकि यह पैसेंजर हॉल्ट था, इसलिए यहां टिकट घर तथा प्रतीक्षालय तो था पर प्लेटफॉर्म नहीं था ! पर पहले स्थानीय लोगों को शहर जाने के लिए तक़रीबन पचास किमी चल कर ट्रेन पकड़नी पड़ती थी, इसके बनने पर इस मुसीबत से उन्हें छुटकारा मिला और समय की बचत भी हुई ! कुछ सालों तक सब ठीक-ठाक चलता रहा पर इसके बनने के करीब सात साल के बाद 1967 में वहाँ तरह-तरह की अफवाहें फैलने लगीं ! दरअसल एक रेलवे कर्मचारी के वहां एक महिला भूत होने के दावे पर लोगों ने विश्वास नहीं किया ! कुछ दिनों बाद ही उस कर्मचारी की मौत हो गई ! लोगों ने उसका संबंध उस भूत से जोड़ दिया ! जिसके बाद कहा जाने लगा कि शाम ढलने के बाद मुसाफिरों को यहां सफ़ेद साड़ी पहने एक महिला नजर आती है, जो ट्रैन के साथ दौड़ लगाती है ! कभी-कभी तो वह गाड़ी से भी तेज दौड़ कर आगे निकल जाती है ! कुछ लोगों ने ट्रैन के सामने पटरी पर भी उसे चलते देखने का दावा किया ! हालांकि किसी भी बात की कभी भी कोई पुष्टि नहीं हुई !

इन सब बातों से डर इतना फैल गया कि लोग शाम होते ही स्टेशन और उसके पास के इलाके से ही दूर चले जाते थे ! सुरज ढलने के बाद यहां कोई रुकना नहीं चाहता था ! शाम पांच-छह बजे के बाद वहां कोई भी इंसान नजर नहीं आता था ! बेगुनकोद रेलवे स्टेशन पर भूत का खौफ धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि कोई भी व्यक्ति सूरज ढलने के बाद वहाँ नहीं उतरता था, चढ़ने की तो बात ही दूर ! गाड़ियां वहाँ से जरूर गुजरती थीं पर उनकी रफ़्तार बढ़ा दी जाती थी ! स्टेशन आने के पहले यात्री ट्रेन की खिड़कियाँ बंद कर लिया करते थे, उनका मानना था कि इस स्टेशन को देखना भी खतरे से खाली नहीं है ! वहाँ काम करने वाले कर्मचारी भी विभाग में अपना ट्रांसफर करने की अर्जी देने लग गए। कोई भी कर्मचारी बेगुनकोदर रेलवे स्टेशन पर काम करने को तैयार नहीं था। जो भी नए कर्मचारी यहाँ आते वो भी जल्दी ही वापस लौट जाते थे । कर्मचारियों के बिना किसी भी रेलवे स्टेशन को चलाना कैसे संभव हो पाता सो इन सबके चलते स्टेशन को ही बंद कर दिया गया ! बेगुनकोदर भूतिया रेलवे स्टेशन के रूप में कुख्यात हो चुका था ! 



ऐसे
ही लगभग 42 सालों तक अफवाहों के चलते बेगुनकोद
 रेलवे स्टेशन बंद पड़ा रहा। यहाँ कोई भी नहीं आता था। पर फिर समय कुछ बदला ! लोगों की परेशानियों को देखते हुए 2009 में तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने अफवाहों के शिकार इस बदनसीब रेलवे स्टेशन को दुबारा से हरी झंडी दिखा दी। लेकिन आज भी सूरज ढलने के बाद वहाँ शायद ही कोई व्यक्ति दिखाई पड़ता हो ! 

@सौजन्य अंतर्जाल 

गुरुवार, 7 सितंबर 2023

एक था भाई, नाम था, शकुनि

शकुनी ने जो कुछ भी किया, वह सब खुद के लिए नहीं किया बल्कि सारे बुरे कर्म, षड्यंत्र, छल, कपट अपनी बहन के साथ हुए अन्याय और अपने परिवार के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए किया ! पर विडंबना यह रही कि जिस बहन के लिए उसने जमाने से, युगों-युगों की बदनामी, नफ़रत, कुत्सा, घृणा मोल ली, उसी बहन ने युद्धोपरांत अपने पुत्रों की मृत्यु का जिम्मेदार ठहराते हुए उसे श्राप दे डाला, वह भी ऐसा श्राप जो आज भी फलीभूत है............!

#हिन्दी_ब्लागिंग

आज तक देवता हो या इंसान, समय से ना हीं कोई पार पा सका, ना हीं उसे कोई समझ पाया ! इसके चक्र में कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी करवट ले लेती हैं कि अच्छा-भला इंसान भी हैवान निरूपित कर दिया जाता है ! जिससे कभी देश-समाज की रक्षा की अपेक्षा होती है, वही अपने लोगों की मृत्यु का सबब बन जाता है ! हजारों साल पहले शायद ऐसा ही हुआ गांधार के राजकुमार शकुनि के साथ ! जिसे द्वापर में हुए महाभारत युद्ध के भीषण नरसंहार का मुख्य कारण मान, हजारों वर्षों बाद, आज भी द्वापर के सबसे बड़े खलनायक के रूप में जाना जाता है !  

शकुनि 
उन दिनों गांधार, आज के अफगानिस्तान का कंधार क्षेत्र, के राजा थे सुबल और उनकी पत्नी का नाम सुदर्मा था ! उनके सौ बेटे और एक बेटी गांधारी थी ! शकुनि उन सब में सबसे छोटे थे, सौवां पुत्र होने के कारण उनका नामकरण सौबाला के रूप में किया गया था ! बचपन से ही उनकी भगवान शिव में गहरी आस्था थी ! वे बहुत ही कुशाग्र, बुद्धिमान और मेधावी थे ! इसी कारण वे अपने पिता को सर्वाधिक प्रिय थे ! मान्यता है कि शकुनि के पासे उनके पिता की रीढ़ की हड्डी से बने थे ! पिता के स्नेह के कारण सदा शकुनि के मनोरूप ही परिणाम आता था ! उनके एक और नाम शकुनि का अर्थ भले ही षड्यंत्रकारी के रूप में लिया जाता हो, पर इसका एक अर्थ नभचर भी होता है, पर समय की गति, शकुनि कुटिलता का पर्याय बन कर रह गया ! पर शुरू में शकुनि बुरे ख्यालों या कुटिल नीतियों वाले व्यक्ति नहीं थे ! वे अपने परिवार और खास कर अपनी बहन गांधारी से अत्यधिक स्नेह रखते थे ! 

धृतराष्ट्र-गांधारी 
सब ठीक-ठाक ही चल रहा था ! पर समय कहां और कब एक सा रहा है ! गांधारी सुंदर, सुशील, कार्यनिपुण, विदुषी व आज्ञाकारी महिला थीं ! इसके अलावा उन्हें सौ पुत्रों का वरदान प्राप्त था ! इन्हीं गुणों के कारण भीष्म पितामह ने सोचा कि वह धृतराष्ट्र की अच्छी तरह से देखभाल करते हुए जीवन भर उसका साथ देगी, और उनके सौ पुत्र धृतराष्ट्र का संबल बनेंगे, इसीलिए उन्होंने एक तरह से जबरन यह विवाह करवाया ! जब भीष्म पितामह गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से करने का प्रस्ताव लेकर गांधार आए तो शकुनि नहीं चाहते थे कि उनकी बहन की शादी नेत्रहीन धृतराष्ट्र से हो और वे एक अंधे युग में धकेल दी जाएं ! लेकिन भीष्म के विरोध की क्षमता गांधार में नहीं थी, सो मजबूरीवश शकुनि को धृतराष्ट्र से अपनी बहन का विवाह करवाना पड़ा ! पर दवाब और मजबूरी के चलते इस बेमेल विवाह को वे जन्म भर स्वीकार नहीं कर पाए ! कुरु वंश के प्रति उनके मन में नफ़रत और विद्वेष ने गहरी जगह बना ली थी ! विवाहोपरांत ही शकुनि ने इस अपमान का बदला लेने के लिए कुरु वंश के समूल नाश का प्रण ले लिया था ! !उनका एकमात्र उद्देश्य भीष्म पितामह के पूरे परिवार को नष्ट करना था। उसी क्षण से उन्होंने कुरुवंश की जड़ को खोदना शुरू कर दिया और उसे कुरुक्षेत्र के महारण में उतार दिया !  

शकुनि के पासे 
पौराणिक कथा के अनुसार ज्योतिषियों और विद्वानों का मत था कि गांधारी का पहला विवाह बेहद अशुभ परिणाम लाएगा ! इसीलिए उनका पहला विवाह एक बकरे के साथ कर दिया गया था, जिसकी बाद में बलि दे दी गई ! जिससे बाद में उनका जीवन सुरक्षित और निरापद रहे ! धृतराष्ट्र को इस घटना के बारे में उनकी शादी के बहुत बाद पता चला और अपने को गांधारी का दूसरा पति मान वे अत्यंत क्रोधित हो गए और सजा के रूप में, उन्होंने राजा सुबल को परिवार सहित कारागार में डाल दिया ! इतना ही नहीं उनमें से प्रत्येक को प्रतिदिन खाने के लिए सिर्फ एक मुट्ठी चावल दिया जाता था, जिससे भूख के कारण उन सब की मृत्यु हो जाए ! अंत को सामने देख राजा सुबल और उनका समस्त परिवार अपना सारा भोजन सबसे छोटे शकुनि को देने लगे, जिससे वह उनकी मौत का बदला लेने के लिए जीवित रह सके ! यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह बदला लेना हमेशा याद रखेगा, उनके पिता ने उनका एक पैर तोड़ उसे स्थायी रूप से लंगड़ा बना दिया ! अंतिम सांस लेने से पहले सुबल ने धृतराष्ट्र से शकुनि को मुक्त करने की विनती की तथा वादा किया कि उनका बेटा, बदले में, हमेशा धृतराष्ट्र के बेटों की देखभाल और रक्षा करेगा। उस समय तक धृतराष्ट्र सौ पुत्र और एक पुत्री के पिता बन चुके थे ! उन्हें अपने श्वसुर पर दया आ गई और उन्होंने  शकुनि को रिहा कर अपने पास ही नहीं रखा बल्कि उनकी बुद्धिमत्ता देख अपना सलाहकार भी बना लिया ! धीरे-धीरे शकुनि ने  दुर्योधन को वश में कर पूरे हस्तिनापुर को अपने कब्जे में ले लिया ! उनका प्रभाव इतना ज्यादा था कि विदुषी गांधारी सब समझते हुए भी विवश हो कर रह गई थी ! शायद समय की भी यही मंशा थी ! 

फिर जो हुआ उसे तो सारा संसार जानता है ! पर शकुनी ने जो कुछ भी किया, वह सब खुद के लिए नहीं किया, बल्कि सारे बुरे कर्म, षड्यंत्र, छल, कपट अपनी बहन के साथ हुए अन्याय और अपने परिवार के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए किया ! पर समय ने फिर भी उसके साथ न्याय नहीं किया ! यह विडंबना ही रही कि जिस बहन के लिए उसने जमाने से युगों-युगों की बदनामी, नफ़रत, कुत्सा, घृणा मोल ली, उसी बहन ने युद्धोपरांत अपने कुल के नाश का जिम्मेदार ठहराते हुए उसे श्राप दे डाला कि मेरे 100 पुत्रों को मरवाने वाले गांधार नरेश तुम्‍हारे राज्‍य में भी कभी शांति नहीं रहेगी ! वह हमेशा युद्धों में ही उलझा रहेगा ! तुम्हारी प्रजा कभी चैन की सांस नहीं ले पाएगी ! लोगों को मानना है कि गांधारी के उसी श्राप के चलते आज भी अफगानिस्तान में शान्ति स्थापित नहीं हो पा रही है !

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

शुक्रवार, 1 सितंबर 2023

पटनीटॉप, रमणीयता का पर्याय

पटनी टॉप के नामकरण बारे में कुछ ऐसी जानकारी मिलती है कि इसका प्राचीन नाम ''पाटन दा तालाब'' हुआ करता था, जिसका अर्थ है ''राजकुमारी का तालाब'' ! इसे राजकुमारी का तालाब इसलिए कहा जाता था, क्योंकि यह स्थानीय राजा की राजकुमारी की नहाने की पसंदीदा जगह थी ! अंग्रेजों के समय में उच्चारण की दुविधा के कारण ''पाटन दा तालाब'' धीरे-धीरे पटनीटॉप के रूप में परिवर्तित होता चला गया...........!   

#हिन्दी_ब्लागिंग

पटनी टॉप, जम्मू और कश्मीर की पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला में स्थित एक रमणीय पर्यटक स्थल है, जो श्रीनगर की तरफ जाते हुए उधमपुर के बाद आता है। यह जम्मू से लगभग 112 किमी तथा 6,640 फ़ुट की ऊँचाई पर चेनाब नदी के समीप स्थित है ! यह अपने शांत परिवेश, ऊंचे चीड़ के वृक्षों, जंगलों से ढके पहाड़ों तथा चारों ओर से घिरे हरे-भरे खेतों की वजह से दिन प्रति दिन पर्यटकों की पसंदीदा जगह बनता जा रहा है ! यहां कैंपिंग, ट्रैकिंग और हाइकिंग जैसी साहसिक गतिविधियों का आनंद भी लिया जा सकता है ! सर्दियों में यह बर्फ की चादर ओढ़ लेता है ! अलबत्ता यहां किसी भी प्रकार की खरीदारी की गुंजायश नगण्य सी है, उसके लिए कुछ दूर कुद तक जाना पड़ सकता है ! 

पटनीटॉप 

होटल 
सत्रहवीं शताब्दी में यहां डोगरा राजा ध्रुव का शासन हुआ करता था ! जिन्होंने अपने क्षेत्र में सांस्कृतिक विरासत को बहुत बढ़ावा दिया था ! जिसका अभी भी एक प्रमाण यहां का 600 साल पुराना नाग मंदिर है ! पटनी टॉप के नामकरण बारे में कुछ ऐसी जानकारी मिलती है कि इसका प्राचीन नाम ''पाटन दा तालाब'' हुआ करता था, जिसका अर्थ है ''राजकुमारी का तालाब'' ! इसे राजकुमारी का तालाब इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह स्थानीय राजा की राजकुमारी की नहाने की पसंदीदा जगह थी ! अंग्रेजों के समय में उच्चारण की सुविधा के कारण ''पाटन दा तालाब'' धीरे-धीरे पटनीटॉप के रूप में परिवर्तित होता चला गया ! 
प्रकृति 

पिछले दिनों अपने अभिन्न मित्रों के साथ ऐसे ही अनुभवों को संजोने का अविस्मरणीय अनुभव प्राप्त हुआ ! वहां हमारा दो दिनी निवास पटनीटॉप हाइट्स होटल में था ! जिसका अपना परिवेश भी मनमोहक था ! पटनीटॉप के आस-पास कई दर्शनीय अछूते से स्थल हैं, जहां पहुँचने पर पर्यटक विभिन्न ऐतिहासिक, प्राकृतिक, आधुनिक व वैज्ञानिक अनुभवों को संजो सकते हैं ! 

गोंडोला 
गोंडोला स्टेशन 

गोंडोला राइड, नवीनतम तकनीक से निर्मित, स्काईव्यू गोंडोला एशिया में सबसे ऊंचे गोंडोला में से एक है, जो पूरे वर्ष भर हर मौसम में अपनी सेवाएं प्रस्तुत कर सकता है ! पटनीटॉप से संगीत घाटी की 2.8 किमी की रोमांचक दूरी करीब 12 मिनट में करवाने वाली विज्ञान की यह अद्भुत तकनीक है ! इसका निर्माण इस क्षेत्र की फ्रांस की अग्रणी कंपनी POMA के साथ मिल कर किया गया है ! 65 मीटर से अधिक ग्राउंड क्लीयरेंस और 2 टावरों के बीच 849 मीटर की सबसे लंबी दूरी वाला भारत में एकमात्र गोंडोला है ! चारों ओर पारदर्शी होने के कारण, पहली बार इसमें यात्रा करने वाले की हालत कुछ देर के लिए तो देखने लायक हो जाती है ! अपने स्टेशन पर पर्यटकों के चढने और उतरते समय इनकी गति बेहद धीमी हो जाती है पर ये रुकते नहीं हैं लगातार चलायमान रहते हैं ! इसकी सवारी आकर्षक परिदृश्य और मनमोहक विहंगम दृश्य और अपनी अनूठी तकनीक से लोगों को आश्चर्यचकित के साथ-साथ गौरवान्वित होने का एहसास भी कराती है ! 

सनासार झील 


सनासार, पटनीटॉप से करीब 20 किमी की दूरी पर, भारत के सबसे दूरस्थ जगहों में से एक, मिनी गुलमर्ग के नाम से प्रसिद्ध, शांता रिज नामक पर्वत की तलहटी में बसा, एक क़स्बा है, जो सना और सार नामक दो गांवों के मेल से बना है ! यह अपनी झील के लिए विख्यात है ! इस दो-अढ़ाई किमी के इलाके का भ्रमण घोड़ों की सवारी कर किया जा सकता है ! यहां पहुँचाने के लिए नाथाटॉप हो कर गुजरना पड़ता है, जो इस इलाके की सबसे ऊंचाई वाला क्षेत्र है ! यहीं भारतीय वायुसेना का सबसे ऊंचाई पर स्थित वायुसेना बेस है ! हमारे उधर से गुजरते वक्त सारा इलाका घने बादलों से आच्छादित था ! 

मेघाच्छादित 

नाग मंदिर, पटनीटॉप के प्राचीन मंदिरों में से एक यह मंदिर करीब 600 साल पुराना बताया जाता है ! यह मंतलाई में एक पहाड़ की चोटी पर स्थित है। यह मंदिर नाग देवता को समर्पित है। लोग यहां सांपों की पूजा, प्रार्थना और अपनी मन्नतें पूरी करवाने आते हैं ! नाग पंचमी के दौरान हजारों तीर्थयात्री इस मंदिर में पहुंचते हैं। उस समय यहां सांपों की पारंपरिक रूप से पूजा की जाती है।इसमें नाग देवता और नाग देवी की प्रतिमाएं हैं ! इसका संबंध माँ पार्वती और देवाधिदेव शिवशंकर भोलेनाथ जी से भी जोड़ा जाता है !

नाग मंदिर 

चेनानी नाशरी सुरंग या  पटनीटॉप सुरंग, यह देश की सबसे लंबी सुरंगों में से एक है ! मुख्य सुरंग का व्यास 13 मीटर है, जबकि सामांतर निकासी सुरंग का व्यास 6 मीटर है। दोनों सुरंगों में 29 जगहों पर मार्ग बनाए गए हैं, जो हर 300 मीटर की दूरी पर स्थित  हैं। खास बात है सुरंग के भीतर लगे कैमरों में। इन कैमरों की मदद से 360 डिग्री तक फोटो लिए जा  सकते हैं। इस सुरंग के बनने के बाद जम्मू और श्रीनगर की दूरी मात्र 30.11 किमी रह गई है ! 

पटनीटॉप सुरंग 

इनके अलावा पटनीटॉप के आस-पास कई और भी दर्शनीय स्थल हैं जैसे, बुद्ध अमरनाथ मंदिर ! बिल्लो की पावरी, माधोटाप इत्यादि ! यदि काश्मीर जाने का सुयोग बने और समय हो, तो कुछ वक्त यहां जरूर गुजारा जा सकता है !

शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

रामटेक, श्रीराम को समर्पित क्षेत्र

अब रामटेक ठहरा श्री राम का क्षेत्र ! अब जहां राम हों वहां उनकी सेना ना हो, यह कैसे हो सकता है ! तो वहां भी कपि परिवारों की भरमार है ! उनका आतंक कहना ठीक नहीं होगा पर उनका वर्चस्व पूरी तरह से विद्यमान है ! हमारे हाथों में की पूजा सामग्री के कारण वहां हमें वैसे ही घेर लिया गया, जैसे समुद्र तट पर लंका को छोड़ कर आए विभीषण को घेर लिया गया था ! संजय जी और मैंने तो घबराहट में अपनी सारी सामग्री निहार जी को थमा दी ! अब वे किसी तरह, हाथ ऊपर-नीचे करते हुए, ऐ.....ऐ....! हट....हट...! अरे दे रहा हूँ ना.....! अरे रुक....,,जैसा कुछ-कुछ बोलते, किसी तरह पिंड छुड़ा, मुख्य द्वार से अंदर आ पाए..........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

रामटेक, महाराष्ट्र के नागपुर शहर से तक़रीबन 50 किलोमीटर की दूरी पर, विंध्याचल की रामगिरि नामक पहाड़ी पर, श्री राम को समर्पित है यह प्राचीन तीर्थ स्थल ! इसका विवरण वाल्मीकि रामायण तथा पद्मपुराण में भी उल्लेखित है ! यह जगह श्री राम के वनवास काल से जुड़ी हुई है ! दंडकारण्य से पंचवटी की यात्रा के दौरान प्रभु राम, सीताजी तथा लक्ष्मण जी ने बरसात के मौसम के चार माह यहीं टिक कर गुजारे थे ! इसीलिए इस जगह का नाम ''रामटेक'' पड़ गया ! उसी दौरान माता सीता ने यहीं अपनी पहली रसोई बना ऋषि-मुनियों को भोजन करवाया था ! इसके अलावा यही वह जगह है जहां प्रभु राम की भेंट अगस्त्य ऋषि से हुई थी और उन्होंने श्री राम को ब्रह्मास्त्र प्रदान किया था, जिससे रावण की मृत्यु संभव हो सकी ! ऐसी मान्यता है कि इसी जगह पर महाकवि कालिदास ने अपने सुप्रसिद्ध काव्य मेघदूत की रचना भी की थी ! 

पहाड़ी पर मंदिर 
मंदिर को जाती सीढ़ियां 

प्रवेशद्वार 

परिसर 

लक्ष्मण मंदिर 
पहली बार नब्बे के दशक में यहां जाने का सुयोग बना था, उसके लंबे अर्से के बाद अब जा कर पिछली मई में नागपुर जाना हुआ ! अनुज निहार को रामटेक दर्शन की इच्छा जताई ! प्रभु की मर्जी और निहार जी के प्रयास से तुरंत कार्यक्रम बन गया ! इसके साथ ही एक अच्छी बात और यह हुई कि इसी दौरान संजय जी के रूप में एक मिलनसार, हंसमुख बेहतरीन व्यक्तित्व से मिलने का सुयोग बना ! उनसे पहली बार मिलने के बावजूद एक क्षण को भी ऐसा नहीं लगा जैसे हम पहली बार मिल रहे हों ! उन्हीं के सौजन्य से ही यह दर्शन यात्रा संभव हो सकी ! 

अगस्त्य आश्रम 


वराह प्रतिमा 

समय के साथ-साथ होने वाले बदलावों से रामटेक भी अछूता नहीं है ! पिछली बार जब जाना हुआ था, तब भी निहार जी के प्रयास से यह संभव हो पाया था, तब और अब के परिदृश्य में जमीन-आसमान का फर्क आ चुका है ! सुनसान सी जगह में अब रौनक नजर आने लगी है ! ऊपर तक जाने के लिए उत्तम सड़क मार्ग बन गया है ! परिसर में कई दुकानें खुल चुकी हैं ! लोगों का हुजूम नजर आने लगा है ! अन्य धार्मिक स्थलों की तरह यहां भी रेलिंग वगैरह लगा दी गई है ! उस खुले ऊँचे स्थान को, जहां मान्यता है कि कालिदास जी ने अपना महाकाव्य लिखा था, किसी अनहोनी से बचाव हेतु घेर दिया गया है ! यहां से नीचे का विंहगम दृश्य मन मोह लेता है ! मई की उस गर्मी में भी वहां हम जैसे सैंकड़ों लोग उपस्थित थे ! 

हम 

निहार जी के साथ 


अब रामटेक ठहरा श्री राम का क्षेत्र ! अब जहां राम हों वहां उनकी सेना ना हो, यह कैसे हो सकता है ! तो उसी के अनुसार यहां कपि परिवारों की भरमार है ! उनका आतंक कहना ठीक नहीं होगा पर उनका वर्चस्व यहां पूरी तरह से विद्यमान है ! अब जैसी प्रथा है, हमने भी प्रभु अर्पण के लिए कुछ सामग्री ली थी ! जाहिर है जिसे हम तीनों के हाथों में ही रहना था ! पर उसी से आकर्षित हो वहां हमें वैसे ही घेर लिया जैसे समुद्र तट पर लंका को छोड़ कर आए विभीषण को घेर लिया गया था !  जामा-तलाशी होने लगी ! संजय जी और मैंने तो घबराहट में अपनी सारी सामग्री निहार जी को थमा दीं ! अब वे किसी तरह, हाथ ऊपर-नीचे करते हुए, ऐ.....ऐ....! हट....हट...! अरे दे रहा हूँ ना.....! अरे रुक....,,जैसा कुछ-कुछ बोलते, किसी तरह मुख्य द्वार के भीतर आए तो रहत की सांस आई !  
 
दबदबा 
   
संजय जी के साथ 

करीब छह सौ साल पुराने इस मंदिर की अद्भुत खासियत यह है कि इसका निर्माण सिर्फ पत्थरों से किया गया है, जो आपस में जुड़े हुए नहीं हैं, बल्कि जिन्हें एक दूसरे के ऊपर रख कर इस भव्य इमारत का निर्माण किया गया है और जो वर्षों से इसे जस का तस सहेजे खड़े हैं ! स्थानीय लोग इसे भगवान राम की ही कृपा बताते हैं ! जमीन से तकरीबन साढ़े तीन सौ मीटर ऊपर मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब सात सौ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, हालांकि अब मंदिर तक सड़क मार्ग बन चुका है और गाडी से आसानी से ऊपर जाना संभव हो गया है, फिर भी कुछ श्रद्धालुगण अभी भी सीढ़ियों का प्रयोग करते हैं ! इस भव्य मंदिर के परिसर की बनावट एक किले की तरह है, इसलिए इसे गढ़ मंदिर भी कहा जाता है !  
   
                                          
विहंगम दृश्य 
इस विशाल परिसर में कई मंदिर हैं, जैसे राम मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, हनुमान मंदिर, सत्यनारायण मंदिर ! इसके साथ ही रामायण व कृष्ण लीला की खूबसूरत प्रतिमाएं भी सुसज्जित हैं ! मंदिर के प्रवेश द्वार के साथ ही अगस्त्य ऋषि का आश्रम विद्यमान है ! इसके निकट ही वराह की एक विराट मूर्ति स्थित है जो एक ही शिलाखंड से उकेर कर बनाई गई है ! यहीं एक ऐसा तालाब भी है, जिसका पानी पूरे साल एक समान रहता है, चाहे कितनी भी गर्मी हो उसका पानी कम नहीं होता ! रामनवमी, हनुमान जन्मोत्सव जैसे त्योहारों पर यहां लोगों का अपार हुजूम उमड़  पड़ता है ! कभी नागपुर जाने का मौका मिले तो यहां जरूर जाएं ! पर एक बात का ध्यान रहे कि यहां की राम सेना सदा अतिथियों के स्वागत के लिए तत्पर रहती है ! इसलिए सावधान व सचेत रहने की भी जरूरत है !

*जय श्री राम*

सोमवार, 21 अगस्त 2023

सीख, अपने-अपने बापू की

व्यापारी का लड़का सोच मे पड़ गया कि क्या बापू ने झूठ कहा था कि बंदर नकल करते हैं ! उधर बंदर सोच रहा था कि आज बापू की सीख काम आई कि मनुष्यों की नकल कर कभी बेवकूफ मत बनना ! इसके साथ एक बात तो तय हो गई कि यदि आज संसार में जागरूकता बढ़ रही है, शिक्षा का प्रसार हो रहा है तो हमें किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि सिर्फ हम ही समझदार हो रहे हैं.........😄😄

#हिन्दी_ब्लागिंग 


बहुत समय पहले की बात है ! तब नाहीं हर चीज की इतनी दुकाने हुआ करती थीं, नाहीं यातायात के इतने सर्वसुलभ साधन ! ज्यादातर व्यापारी अपनी सायकिल से या पैदल ही घूम-घूम कर अपने सामान की बिक्री किया करते थे ! उन्हीं दिनों एक वणिक, रोजमर्रा के काम आने वाले कपड़ों बेचने निकला ! उसकी गठरी में चमकीली रंग-बिरंगी  छोटी-बड़ी टोपियां भी थीं ! एक गांव से दूसरे गांव घूमते-घूमते दोपहर होने पर वह एक पेड़ के नीचे सुस्ताने के लिए रुक गया। भूख भी लग आई थी, सो उसने अपनी पोटली से खाना निकाल कर खाया और थकान दूर करने के लिए वहीं लेट गया। थका होने की वजह से उसकी आंख लग गई। कुछ देर बाद नींद खुलने पर वह यह देख भौंचक्का रह गया कि उसकी गठरी खुली पड़ी थी और उसकी सारी टोपियां अपने सिरों पर उल्टी-सीधी लगा कर बंदरों का एक झुंड़ पेड़ों पर टंगा बैठा था ! व्यापारी ने सुन रखा था कि बंदर नकल करने में माहिर होते हैं ! भाग्यवश उसकी अपनी टोपी उसके सर पर सलामत थी। उसने अपनी टोपी सर से उतार कर जमीन पर पटक दी। देखा-देखी सारे बंदरों ने भी वही किया ! व्यापारी ने सारी टोपियां समेटीं और अपनी राह चल पड़ा !


समय गुजरता गया ! व्यापारी बूढ़ा हो गया ! उसके बेटे ने अपना पुश्तैनी काम संभाल लिया ! वह भी अपने बाप की तरह दूर-दूर जगहों पर व्यापार के लिए जाने लगा !  दैवयोग से एक बार वह भी उसी राह से गुजरा जिस पर उसके पिता का सामना बंदरों से हुआ था। जैसे इतिहास खुद को दोहरा रहा हो, भाग्यवश व्यापारी का बेटा भी उसी पेड़ के नीचे सुस्ताने जा बैठा ! उसने भी वहीं अपना कलेवा कर थोड़ा आराम करने के लिए आंखें बंद कर लीं। कुछ ही देर बाद हल्के से कोलाहल से उसकी तंद्रा टूटी तो उसने पाया कि उसकी गठरी खुली पड़ी है और टोपियां बंदरों के सर की शोभा बढ़ा रही हैं। पर इससे वह जरा भी विचलित नहीं हुआ क्योंकि उसके बापू ने व्यापार के गुर बताते हुए उसके दौरान आने वाली ऐसी घटनाओं का तोड़ भी बतला दिया था ! पिता की सीख के अनुसार उसने अपने सर की एक मात्र टोपी को जमीन पर पटक दिया ! पर यह क्या !!! एक मोटा सा बंदर झपट कर आया और उस टोपी को भी उठा कर पेड़ पर चढ़ गया। 
व्यापारी का लड़का सोच मे पड़ गया कि क्या बापू ने झूठ कहा था कि बंदर नकल करते हैं ! उधर बंदर सोच रहा था कि आज बापू की सीख काम आई कि मनुष्यों की नकल कर कभी बेवकूफ़ मत बनना ! इसके साथ एक बात तो तय हो गई कि यदि आज संसार में जागरूकता बढ़ रही है, शिक्षा का प्रसार हो रहा है तो हमें किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि सिर्फ हम ही समझदार हो रहे हैं.........😄

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