रविवार, 18 मई 2025

भगत, किसम-किसम के

भक्त ! यह शब्द सुनते ही जो तस्वीर दिमाग में उभरती है वह होती है किसी ऐसे इंसान की जो प्रभु के प्रति पूर्णतया समर्पित हो ! जो अपने इष्ट के प्रति आस्था, समर्पण तथा अटूट श्रद्धा रखता हो !द्वापर में प्रभु ने भक्तों के चार प्रकार बताए थे ! आज द्वेष-भावना तथा कुंठित मनोदशा के चलते, भक्त जैसे सुंदर शब्द का अर्थभक्ष्य कर, एक  उपसर्ग लगा तीर बना, वक्रोक्ति की तरह अपने राजनितिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा है , आज के तथाकथित ऐसे भक्तों के भी चार ही प्रकार हैं.............!                            

#हिन्दी_ब्लॉगिंग 

भक्त ! यह शब्द सुनते ही जो तस्वीर दिमाग में उभरती है वह होती है किसी ऐसे इंसान की जो प्रभु के प्रति पूर्णतया समर्पित हो ! जो अपने इष्ट के प्रति आस्था, समर्पण तथा अटूट श्रद्धा रखता हो ! प्रभु के बाद गुरु इस श्रेणी में आते हैं ! वैसे तो पूजा, वंदना, कीर्तन, अर्चना करने वाले सभी लोग भक्त कहलाते हैं। गीता में इनके चार प्रकारों का उल्लेख है ! इनमें सच्चा भक्त वह कहलाता है जो निष्काम होता है, उसे अपने प्रभु को छोड़ और कुछ नहीं चाहिए होता ! यह तो हुआ भक्त शब्द का असली अर्थ या उसकी परिभाषा ! 

अपने यहां सदा से ही अलग-अलग विचारधाराओं के राजनितिक दल अपने विपक्षियों को नीचा दिखाने के लिए तरह-तरह के हथकंडों का इस्तेमाल करते रहे हैं ! उन्हीं में से एक है शब्द-बाण यानी बातों के तीर ! आज द्वेष-भावना तथा कुंठित मनोदशा के चलते, भक्त जैसे सुंदर शब्द का अर्थभक्ष्य कर, एक उपसर्ग लगा तीर बना, वक्रोक्ति की तरह अपने राजनितिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा है ! द्वापर में प्रभु ने भक्तों के चार प्रकार बताए थे ! आज के भक्तों के भी चार ही प्रकार हैं ! उन्हीं का विश्लेषण !

आधुनिक भक्त 
अंधभक्त - ये उन लोगों के लिए वितृष्णा के साथ प्रयोग में लाया जाता है, जिन्हें तथाकथित रूप से सत्ता पर काबिज दल के हिमायती के रूप में देखा जाता है ! पर असलियत में ऐसा है नहीं ! कुछेक को छोड़ कर हमारे देश के लोग, जब तक मोह-भंग न हो जाए या असलियत सामने ना आ जाए, तब तक हर उस इंसान या दल का साथ देने को तत्पर रहते हैं, जिसको वह देश-हितैषी समझते हैं ! आजादी के बाद से कई बार इसके उदाहरण मिलते रहे हैं ! ऐसे लोग बहुत भावुक होते हैं। देश के लिए समर्पित। इसीलिए कभी-कभी भावनाओं के वश में हो धूर्तों के वाग्जाल में फंस, धोखे में आ, उनको भी सर पर बैठा लेते हैं ! पर सच सामने आते ही उन्हें धूल चटाने से भी बाज नहीं आते ! कुछ लोग इन्हीं लोगों की भावनाओं से कुंठित और लगातार अपनी अवनति के चलते, उन्हें व्यंग्यात्मक शब्दों का निशाना बना लेते हैं ! पर सच्चाई यही है कि इस श्रेणी के भक्तों के लिए कोई इंसान नहीं, देश सबसे पहले और सर्वोपरि होता है !

बेशर्मभक्त - ये वे अनुयायी होते हैं, जो अपने इष्टों के भूतकालीन कुकर्मो, दुष्कर्मों को जानते हुए भी उसके दुर्गुणों का, उसके दुष्कर्मों का बेशर्मी से बचाव करते नहीं शरमाते ! अपने स्वामी की दुर्बुद्धि को भी विश्वस्तरीय अक्लमंदी स्थापित करने में जी-जान से लगे रहते हैं ! चारणाई में इनका विश्व में कोई सानी नहीं होता ! मालिक बैठने को बोले तो ये लेटने को तत्पर रहते हैं ! इनकी अपनी कोई जमीन नहीं होती, इसलिए अपने स्वामी की दूकान को चलायमान रखने में कोई कसर नहीं छोड़ते ! इनके लिए अपने मालिक की झूठी ही सही, आन-बान के सामने किसी भी चीज यानी किसी भी चीज की कीमत कोई मायने नहीं रखती ! वैसे भक्त की जगह इन्हें जर-खरीद गुलाम कहा जाना ज्यादा सही है !

निर्लज्जभक्त - इनका तो कहना ही क्या ! इनका मालिक यदि नर संहार भी करवा दे तो भी ये मरने वालों को ही दोषी ठहरा उन्हीं को गरियाते रहेंगे ! इनके द्वारा अपने आका को, दुनिया का हर कुकर्म करने के बावजूद सबसे बुद्धिमान, चतुर, सच्चा तथा ईमानदार स्थापित करने का गुर आता है ! ये सदा अपने विरोधी पक्ष को संसार का सबसे बड़ा दुराचारी, भ्रष्टाचारी, देशद्रोही निरूपित करते रहते हैं ! इनके आत्ममुग्ध बॉस के दो चेहरे होते हैं। सार्वजनिक जीवन में वह सदा मुखौटा लगाए रहता है ! दोगलेपन का वह शातिर खिलाड़ी होता है ! इनके चेले अपने विरुद्ध हुए हर दोष का कारण विपक्षी को साबित करने में दिन-रात एक कर देते हैं ! साथ ही दुनिया के किसी भी अच्छे काम का श्रेय खुद लेने और सच को झूठ बनाने में इनका कोई जवाब नहीं होता !  

* स्वार्थी या मतलबीभक्त - जैसा नाम है वैसा ही इनका काम है ! ये किसी के नहीं होते ! इनका मालिक कोई इंसान नहीं, कुर्सी यानी सत्ता होती है ! जिसका प्रभुत्व होता है ये उसी का राग गाते हैं ! इनको सिर्फ अपने हित, अपने स्वार्थ से मतलब रहता है ! जिसकी सत्ता, ये उसी के ये भक्त होते हैं ! दिन में दो बार सत्ता बदल जाए तो ये भी तुरंत तोते की तरह आँख फेर लेते हैं !

इनके अलावा भी एक प्रजाति होती है पर उसे भक्त नहीं कहा जा सकता ! वे पेड कारकून होते हैं ! कई बार सड़कों पर उलटी-सीधी मांगों वाली तख्तियां उठाए ये नजर आ जाते हैं ! कहीं भीड़ इकट्ठी करनी हो ! बवाल मचाना हो ! अराजकता फैलानी हो ! जुलुस निकालना हो ! किसी की जय-जयकार करवानी हो तो इनका ''उपयोग'' किया जाता है ! इनको सिर्फ अपनी तनख्वाह या नोटों से मतलब होता है उसके लिए इनसे कुछ भी करवाया जा सकता है !  

आज की पोस्ट सिर्फ एक निष्पक्ष विश्लेषण है, जो अनुभव के आधार पर किया गया है ! इसमें कोई दुर्भाव, पूर्वाग्रह या किसी से द्वेष का रंचमात्र भी स्थान नहीं है, इसलिए अन्यथा ना लें ! यदि ले भी लेंगे तो भी सच्चाई तो सच्चाई ही रहेगी 😇   

@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

बुधवार, 7 मई 2025

इसके पहले कि ऊँट तम्बू हथियाए

एक बहुत पुरानी कहानी है, पर अभी भी सामयिक है और सबक लेने लायक है कि असल जिंदगी में कहानी के रूपक ऊंट की नकेल समय रहते कस देनी चाहिए नहीं तो ये खुद को ही मालिक समझ व्यक्ति, देश, समाज सभी के लिए खतरा बन उन्हें मुसीबत में डाल सकता है ! हमने देखा भी है कि कैसे ऐसे ऊंट रूपी मनुष्यों, संस्थाओं, विचारधाराओं ने अपना हित साधने हेतु देश की प्रगति को बाधित किया है, उसकी उन्नति में रोड़े नहीं पत्थर अटकाए हैं ................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

हुआ कुछ यूं ! एक आदमी अपने ऊँट के साथ किसी रेगिस्तान से हो कर गुजर रहा था। चलते-चलते रात होने को आई तो उसने एक जगह रुक कर ऊँट को बांधा और तम्बू गाड़ उसमें अपने लिए रात बिताने का इंतजाम किया। रेगिस्तान की रातें बहुत ठंडी होती हैं, तो जैसे-जैसे रात गहराई ठंड भी बढ़ने लगी। बाहर ऊँट को ठंड लगी तो उसने धीरे से कहा, मालिक, बाहर बहुत ठंड है, क्या मैं अपनी नाक तम्बू के अंदर कर लूँ ? आदमी दयालु था ! उसे तरस आ गया, उसने कहा, ठीक है, कर लो ! 

मालिक रहम करो 

थोड़ी देर बाद ऊँट ने पूछा, क्या मैं अपना सिर भी साथ ला सकता हूँ ? आदमी ने फिर आज्ञा दे दी ! कुछ ही देर बाद ऊँट ने फिर पूछा, मालिक, क्या मैं अपनी गर्दन भी अंदर कर लूँ. बाहर ठंड कुछ ज्यादा ही है ! आदमी को अपने ऊँट से बहुत लगाव था, उसने इसकी भी इजाजत दे दी !  

हक बनती सुविधाएं 

पर ऊँट कहां रुकने वाला था ! उसकी मांग बढ़ती गई और धीरे-धीरे उसने अपने अगले पैर, फिर धड़ और फिर पूरा शरीर ही तम्बू के अंदर कर लिया ! उसके अंदर आ जाने से तम्बू पूरा भर गया और उस आदमी के लिए ही जगह नहीं बची ! ऐसा देख ऊँट ने उस आदमी यानी अपने मालिक से कहा कि इसमें हम दोनों के लिए जगह नहीं बची है, इसलिए तुम्हें बाहर निकल जाना चाहिए !

तो भाई लोग ! हर बात पर बिना सोचे-समझे सहमति प्रदान नहीं करनी चाहिए ! नाहीं बातों को छोटा समझ अनदेखा करना चाहिए ! दया-करुणा दिखाने के पहले पात्र का परिक्षण तो अति आवश्यक हो गया है ! क्योंकि ऐसे दी गईं सहूलियतों को हक मान लिया जाता है और ऐसी छोटी-छोटी भूलें ही आगे चल कर विकराल समस्याओं का रूप ले लेती हैं ! यदि इस भाई ने पहले ही ऊँट की थूथन पर छड़ी मार दी होती तो भविष्य में वह कभी भी ऐसी हिमाकत ना करता !  

@कार्टून अंतर्जाल के सौजन्य से 

बुधवार, 23 अप्रैल 2025

सपूत

हेमंत जब चुप हुआ तो रामगोपाल जी उससे आँखें नहीं मिला पा रहे थे ! अपने आप को बेटे के सामने बौना महसूस कर रहे थे ! लाज आ रही थी उन्हें अपनी सोच और निराधार विचारों पर ! आक्रोश था अपने पर कि कैसे उन्होंने अपने बेटे के बारे में गलत सोच लिया ! क्या उन्हें खुद अपने  दिए संस्कारों पर भी भरोसा नहीं रह गया था ! वे उठे और बेटे को कस कर गले से लगा लिया, आँखों से आंसू लगातार बहे जा रहे थे ! हेमंत उन्हें ऐसे संभाल रहा था जैसे वह उनका पिता हो........!

#हिन्दी_ब्लागिंग    

शाम की चहलकदमी के बाद रामगोपाल जी घर आ, नम आँखों के साथ पत्नी रमा की फोटो के सामने बहुत देर तक खड़े रहे ! आज उन्हें बिछुड़े हुए पूरा एक साल हो गया था ! पत्नी के देहावसान के पश्चात वे इस शहर में बिलकुल अकेले रह गए थे ! इकलौता बेटा हेमंत अपनी पत्नी स्नेहा और तीन साल की बिटिया के साथ दिल्ली में रहता है ! उसने कई बार कहा, कितनी बार समझाया, इन बारह महीनों में बीसियों बार मनाने की कोशिश की कि पापा हमारे पास आ जाओ ! पर रामगोपाल जी ने, इस उम्र में अकेले रहना ठीक नहीं है, जानते हुए भी दिल्ली जाना गवारा नहीं किया ! वैसे तो वर्षों से उनके साथ रह रहा सहायक दीनू तो था, पर उसकी भी काफी उम्र हो चुकी थी ! 

अलौकिक अनुभूति 
ऐसा  नहीं है कि रामगोपाल जी परिवार के साथ रहना नहीं चाहते थे या उनका आपस में प्रेम नहीं था ! बेटे और उसके परिवार पर वे दिलो-जान से न्योछावर थे ! वो तो पोती को सदा अपने कंधे पर बैठाए, उसका घोड़ा बना रहना चाहते थे ! उसकी एक-एक हरकत को संजो लेना चाहते थे ! उसकी मासूमियत को यादगार बना लेना चाहते थे ! पर आए दिन अखबारों में छपने वाली खबरें उन्हें आशंकित और विचलित कर देती थीं ! उनके दिल में एक अनजाना डर, एक काल्पनिक खौफ घर कर गया था ! रोज ही कोई ना कोई ऐसी घटना सामने आ जाती थी, जिसमें सारी सम्पत्ति हथिया या पूरी जमीन-जायदाद अपने नाम कर बेटा-बहू, माँ-बाप को किसी स्टेशन या एयर पोर्ट पर लावारिस छोड़ गायब हो जाते हैं ! यदि कोई घर ले भी जाता है तो मतलब निकलते ही पालकों को शेष जीवन बिताने के लिए वृद्धाश्रम में छोड़ आता है ! उन्हें अपने बेटे पर विश्वास तो था पर दिल का क्या करें, जो उलटे-सीधे विचारों से इधर-उधर भटकाता रहता था ! 

तभी  फोन की घंटी बजती है ! हेमंत था दूसरी तरफ ! उसने बिना इनको कुछ कहने का मौका दिए, फरमान सुना दिया कि वह दो दिन बाद आ रहा है उनको लेने ! इस बार कोई बहाना नहीं चलने वाला और वे उसके साथ जा रहे हैं ! रामगोपाल जी जानते थे कि बेटा पूर्णतया उन पर गया है जो ठान लिया उसे पूरा करना ही होता है ! इन्होंने सोचा कि चलो कुछ दिन रह आता हूँ, हफ्ते दस दिन में लौट आऊंगा ! पर बेटे ने तो कुछ और ही सोच रखा था।  

पिता-पुत्र 
अगले  कुछ दिन तो बवंडर भरे थे ! उस तूफान में कब सामान पैक हुआ, कब मकान का निपटारा हुआ, कब सारी औपचारिकताएं पूरी हो गईं, कब दिल्ली घर पहुंच गए, पता ही नहीं चला ! जैसे किसी ने सम्मोहित कर दिया हो ! लाख चाह कर भी विरोध नहीं कर पाए रामगोपाल जी ! होश तब आया जब पोती किलकारी मारती हुई उछल कर दद्दू की गोद में चढ़ गई ! उस स्वर्गिक पल में रामगोपाल जी ने सब प्रभु पर छोड़ दिया, जो होगा देखा जाएगा !  

पर मन में एक खटका बना ही हुआ था, क्योंकि उन्हें अपना सामान नजर नहीं आ रहा था ! हेमंत से पूछने पर उसने कहा आप जहां रहेंगे वहां रखवा दिया है ! रामगोपाल जी समझ गए कि मुझे यहां नहीं रहना है ! सामान पहले ही वृद्धाश्रम भिजवा दिया गया है ! आज नहीं तो कल तो जाना ही था, पहले से ही पहुंचा दिया गया है ! तभी हेमंत बोला, पापा आपके लिए एक सरप्राइज है ! रामगोपाल जी ने मन में सोचा काहे का सरप्राइज बेटा, मैं सब जानता हूँ ! तुम भी दुनिया से अलग थोड़े ही हो ! पैसा क्या कुछ नहीं करवा लेता है ! खुद पर क्रोध भी आ रहा था कि सब जानते-समझते भी सब बेच-बाच कर यहां क्यों चले आए ! पर अब तो जो होना था हो चुका था !

तभी हेमंत की आवाज सुनाई पड़ी, पापा चलिए ! रामगोपाल जी के पैर मन-मन भारी हो गए थे, किसी तरह खुद को घसीटते हुए बाहर आ खुद को लिफ्ट में समो दिया ! पर यह क्या ! लिफ्ट नीचे ना जा ऊपर की ओर चल अगले माले पर रुक गई ! उन्हें कुछ समझ नहीं आया ! तभी हेमंत ने बाहर निकल सामने के फ्लैट की घंटी बजाई ! दरवाजा खुला, जिसने खोला उसे देख रामगोपाल जी झटका खा गए, सामने दीनू खड़ा था ! दीनू यहां ? उन्हें बोध ही नहीं हो रहा था कि क्या हो रहा है ! वे कहां हैं ! क्या देख रहे हैं और जो देख रहे हैं वह सच भी है या नहीं ! पर अभी तो कुछ और भी हैरतंगेज होने वाला था !

हेमंत ने अंदर जा आवाज लगाई, काका बाहर आ जाओ, पापा आ गए हैं ! और अंदर से जो आया उसे देख कर तो रामगोपाल जी चकरा कर गिरते-गिरते बचे ! उनके सामने उनके बचपन का, भाई समान, जिगरी यार निशिकांत चला आ रहा था ! निशिकांत ने लपक कर उन्हें गले लगा लिया ! वर्षों के बिछुड़े दोस्तों के मिलन पर सभी की आँखें भीग गईं ! फोन से तो बात होती थी पर मिले अरसा बीत चुका था ! आज ईश्वर की कृपा हुई थी ! पर रामगोपाल जी पूरी तरह असमंजस में थे ! उन्हें सब कुछ किसी नाटक की तरह लग रहा था, जिसमें वे भी थे, पर नहीं थे ! तभी नीचे से बहू का संदेश आ गया, खाना तैयार है !

जब सब खाने की मेज पर इकठ्ठा हुए तो हेमंत ने सारी कहानी का खुलासा किया ! उसने बताया कि उसके अनेक प्रयासों के बावजूद पापा यहां आने के लिए मान नहीं रहे थे ! वह उनके लिए सदा परेशान रहता था। पर कोई हल नहीं निकल पा रहा था ! पर पिछले पखवाड़े जब निशिकांत काका का फोन आया और पता चला कि उनकी तबियत ठीक नहीं रहती, तो मैं उनसे मिलने गया ! वे भी बिलकुल अकेले रहते थे ! उन्होंने शादी वगैरह नहीं की थी ! मैंने उनके पास जा कर सारी परिस्थितियों का जायजा लिया और उसी समय  स्नेहा से मश्विरा कर एक योजना बना डाली।  उसी के तहत निशिकांत काका को भी अपने साथ ले आया ! यह ऊपर वाला फ्लैट भी उन दिनों बिकाऊ था, इसे ले लिया गया ! उसके बाद पापा को यहां कैसे लाया यह आप सब को पता ही है ! रही दीनू काका की बात तो उन्हें इस उम्र में अकेला छोड़ने का तो सोचा भी नहीं जा सकता था ! उनके लिए भी यहां एक अलग कमरे की व्यवस्था है, कोई दिक्कत नहीं होगी ! अब हम सब एक साथ रहेंगे ! मेरा सपना पूरा हुआ ! इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है ! 

हेमंत जब चुप हुआ तो रामगोपाल जी उससे आँखें नहीं मिला पा रहे थे ! अपने आप को बेटे के सामने बौना महसूस कर रहे थे ! लाज आ रही थी उन्हें अपनी सोच और निराधार विचारों पर ! आक्रोश था अपने पर कि कैसे उन्होंने अपने बेटे के बारे में गलत सोच लिया ! उस बेटे के बारे में जो उनका ही नहीं उनसे जुड़े लोगों का भी भला सोचता हो ! क्या उन्हें खुद अपने दिए संस्कारों पर भी भरोसा नहीं रह गया था ! वे उठे और बेटे को कस कर गले लगा लिया, आँखों से आंसू लगातार बहे जा रहे थे ! हेमंत उन्हें ऐसे संभाल रहा था जैसे वह उनका पिता हो ! बहू उनकी पीठ सहला रही थी ! इधर मासूम छुटकी जो यह जान कर ठुमक रही थी कि दादू अब यहीं रहेंगे उसको अब यह सब देख समझ ही नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है !

कुछ दिनों बाद आज फिर रामगोपाल जी पत्नी की तस्वीर के सामने खड़े थे ! सामने कप बोर्ड पर उनके तथा निशिकांत जी के नाम के फिक्स्ड डिपॉज़िट के पेपर रखे हुए थे, जो हेमंत ने दोनों घरों को बेच कर मिली राशि से बनवाए थे ! निशिकांत जी जैसे पत्नी को बता रहे थे कि तुम चिंता मत करना तुम्हारे लायक बेटे ने बिना बोले, अघोषित रूप से  मेरे सा-साथ दीनू तथा निशिकांत हम तीनों की जिम्मेदारी ले ली है ! भगवान उसे सदा सुखी रखें !

@दो चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025

इस फ्रायडे को गुड क्यों कहा जाता है ?

हर गुड फ्रायडे के दिन वह वर्षों पुराना वाकया फिर याद आ जाता है ! गुड़ फ्रायडे का दिन था, मैं अपने कार्यालय के ऑफिस में बैठा था, तभी एक सहकर्मी अंदर आए और छूटते ही बोले, ''सर हैप्पी गुड फ्रायडे।'' मुझसे कुछ बोलते नहीं  बन पड़ा ! यह भी संयोग ही था कि मेरा स्टेनो मसीह उस समय वहां उपस्थित नहीं था ! मैंने धीरे से उन्हें कहा कि  भाई, बोला तो गुड फ्रायडे ही जाता है, लेकिन है यह  एक दुखद,  शोक दिवस।  इसी दिन ईसा मसीह को मृत्यु दंड दिया गया था। किसी  क्रिश्चियन दोस्त को बधाई  मत दे बैठना............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्हें सिर्फ छुट्टी या मौज-मस्ती से मतलब होता है। उन्हें उस दिन विशेष के इतिहास या उसकी प्रासंगिकता से कोई लेना-देना नहीं होता ! ऐसा ही कुछ "हादसा" मेरे संस्थान में होते-होते बचा था, जब एक भले आदमी ने, जैसा कि अन्य त्योहारों पर होता है, ऑफिस आते ही सबको इस दिन की बधाई देनी शुरू कर दी ! समझाने पर उनका तर्क था कि जब गुड कहा जाता है, तो इसका मतलब अच्छा ही हुआ ना ? तुर्रा यह कि उन महाशय ने इतिहास में M.A. की डिग्री ले रखी थी !   


वैसे यह सवाल बच्चों को तो क्या बड़ों को भी उलझन में डाल देता है कि जब इस दिन इतनी दुखद घटना घटी थी, तो इसे "गुड" क्यों कहा जाता है ? इसका यही जवाब है कि यहां "गुड" का अर्थ "HOLY" यानी पावन के अर्थ में लिया गया है ! क्योंकि इसी दिन यीशु ने सच्चाई का साथ देने और लोगों की भलाई के लिए, उनमें सत्य, अहिंसा और प्रेम की भावना जगाने के लिए, अपने प्राण त्यागे थे। इस दिन उनके अनुयायी उपवास रख पूरे दिन प्रार्थना करते हैं और यीशु को दी गई यातनाओं को याद कर उनके वचनों पर अमल करने का संकल्प लेते हैं।

यीशु
वैसे भी शुक्रवार का दिन बाइबिल में अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ा हुआ है। उसके अनुसार सृष्टि में पहले मानव का जन्म शुक्रवार को हुआ माना जाता है। प्रभु की आज्ञाओं का उल्लंघन करने पर आदम व हव्वा को शुक्रवार के दिन ही अदन के बाग से बाहर निकाला गया था। ईसा शुक्रवार को ही गिरफ्तार हुए थे। जैतून पर्वत पर अंतिम प्रार्थना उन्होंने शुक्रवार को ही की थी और उन पर मुकदमा भी शुक्रवार के दिन ही चलाया गया था और शुक्रवार के ही दिन, निर्दोष होते हुए भी उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया गया था !  
यह कोई जरुरी नहीं कि हरेक को हर चीज का ज्ञान हो ही ! पर उसको व्यवहार में लाते या उपयोग करते वक्त उसकी जानकारी जरूर ज्ञात कर लेनी चाहिए नहीं तो कई बार विचित्र और विकट स्थितियों का सामना करना पड़ जाता है ! 

@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

क्षणिक बैराग्य

हमारे पहले भी वक्त यूँ ही चला करता था, हमारे बाद भी ऐसे ही चलता रहेगा, क्योंकि समय के पास तो अपने लिए भी समय नहीं होता ! हर सौ साल में मनुष्यों की पूरी दुनिया बदल जाने के बावजूद कायनात यूँ ही कायम रहती आई है ! वर्षों के बाद हमारी आगामी पीढ़ी हमारी ही फोटो देख पूछेगी, यह लोग कौन थे ? तब उन्हें हमारे संबंध में बतलाया जाएगा और ऊपर बैठे हम अपने आंसू छिपाए यह सोचेंगे, क्या इन्हीं के लिए हमने अपनी जिंदगी खपाई थी जो हमें पहचानते ही नहीं ! यह भी एक तरह का बैराग्य ही है, जो परिस्थियोंवश कुछ समय के लिए दिलो-दिमाग पर छा जाता है................! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

बै राग्य यानी राग रहित ! वह स्थिति जब किसी विषय-वस्तु से लगाव खत्म हो जाए ! इसके कई प्रकार बताए गए हैं ! जैसे कारण बैराग्य, विवेक बैराग्य, श्मशान बैराग्य, मर्कट बैराग्य इत्यादि ! अधिकतर लोग मर्कट बैराग्य के वशीभूत होते रहते हैं ! जो कुछ समय के लिए ही प्रभावी रहता है ! जैसे ही स्थिति, परिस्थिति, माहौल बदलता है, इसका असर खत्म हो जाता है !  


कुछ दिनों पहले एक समागम में सम्मलित होने का मौका मिला था। उत्तराखंड से कुछ प्रबुद्ध लोगों का आगमन हुआ था, सभी पढ़े-लिखे ज्ञानी जन थे। प्रवचन चल रहे थे ! बीच में नेताओं की, उनके कुकर्मों की बातें आ गईं ! फिर वही सब दोहराया जाने लगा कि सभी यह जानते हैं कि एक दिन सब को जाना ही है और वह भी खाली हाथ, फिर भी संचय की लालसा नहीं मिटा पाता कोई भी ! पाप करने से खुद को रोक नहीं पाता, यही दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य है !

प्र वचन जारी था, "सोचने की बात है कि दिन-रात मेहनत कर हम अपना कमाया हुआ धन शादी-ब्याहों में पानी की तरह बहाते हैं, पर किस को याद रहता है कि पिछली दो शादियों में जिनमें शिरकत की थी, उनमें कितना धन खर्च हुआ था या वहां क्या खाया था ? सब भूल चूका होता है ! अपनी जरुरत से कहीं ज्यादा जमीं-जायदाद खरीद कर हम किसे प्रभावित करना चाहते हैं ? कौन सा सकून पाना चाहते हैं ? जानवरों की तरह मेहनत-मश्शकत कर हम अपनी आने वाली कितनी पीढ़ियों को आर्थिक रूप से सुरक्षित करना चाहते हैं ? क्या हमें अपनी नस्लों की लियाकत के ऊपर भरोसा नहीं है कि वे भी अपने काम में सक्षम होंगे ?'' 
बैरागी 
वा र्तालाप चल रहा था, ''आजकल ज्यादातर घरों में दो या तीन बच्चे होते हैं, किसी-किसी के तो एक ही संतान होती है फिर भी लोग लगे रहते हैं अपनी सेहत को दांव पर लगा कमाने में ! कितना चाहिए एक इंसान को जीवन-यापन करने के लिए ? जिनके लिए हम कमाते हैं वह उनके काम आएगा कि नहीं यह भी पता नहीं ! फिर विडंबना देखिए कि जिनके भविष्य के लिए दिन-रात एक किए हुए होते हैं, वर्तमान में उन्हीं से दो बातें करने के लिए, उनके साथ कुछ समय गुजारने का हमारे पास वक्त नहीं होता ! सारा जीवन यूँ ही और-और सिर्फ और इकट्ठा करने में गुजर जाता है ! 

समागम 
व्या ख्यान में सीख ने स्थान ले लिया, ''धनी होना कोई बुरी बात नहीं है पर धन को अपने ऊपर हावी होने देना ठीक नहीं होता। समय चक्र कभी रुकता नहीं है। जो आज है, वह कल नहीं रहता, जो कल होगा वह भी आगे नहीं रहेगा। एक न एक दिन हम सबको जाना है, एक दूसरे से बिछुड़ना है। हमारे पहले भी वक्त यूँ ही चला करता था, हमारे बाद भी ऐसे ही चलता रहेगा, क्योंकि समय के पास तो अपने लिए भी समय नहीं होता ! हर सौ साल में मनुष्यों की पूरी दुनिया बदल जाने के बावजूद कायनात यूँ ही कायम रहेगी।

वर्षों के बाद हमारी आगामी पीढ़ी हमारी ही फोटो देख पूछेगी, यह लोग कौन थे ? तब उन्हें हमारे संबंध में बतलाया जाएगा और ऊपर बैठे हम अपने आंसू छिपाए यह सोचेंगे, क्या इन्हीं के लिए हमने अपनी जिंदगी खपाई जो हमें पहचानते ही नहीं ! पर हमें यह ख्याल शायद ही आए कि हम अपने पूर्वजों को और उनकी पहचान को कितना याद रख पाए थे !

प्र वचन चल रहा था, लोग दत्तचित्त हो सुन रहे थे। सभी सहमत थे उपरोक्त बातों से ! सभी पर जैसे विरक्ति हावी होती जा रही थी ! यह मर्कट बैराग्य था ! पर इसकी मौजूदगी तभी तक रहनी थी जब तक श्रवण क्रिया चल रही थी ! जैसे कोई सम्मोहन से चुटकी बजते ही होश में आ जाता है वैसे ही इस माहौल से बाहर आते ही सभी ने फिर दो और दो को पांच करने के चक्कर में फंस जाना था ! 

यही तो माया है ! प्रभू की लीला है ! यदि इंसान भूलता नहीं, हर बात को दिल से लगाए रखता या बात-बात पर विरक्त हो जाता, तब तो यह संसार कभी का खत्म हो गया होता ! फिर भी ऐसे समागम हमें कभी-कभी आईना तो दिखा ही जाते हैं। कभी-ना कभी कुछ गंभीरता से सोचने को मजबूर तो कर ही देते हैं !   

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से   

सोमवार, 7 अप्रैल 2025

टेढ़ी उंगली और घी

यहां इस संयोग की भी प्रबल संभावना है कि इस बात की ईजाद करने वाले महानुभाव ठंडे प्रदेश में रहते होंगे, जहां घी सदा ठोस रूप में रहता होगा और उसे उंगली टेढ़ी कर ही बर्तन वगैरह से निकाल सकना संभव हो पाता होगा ! पर इसी के साथ यह सवाल भी तो उठता है कि यदि मौसम गर्म हो और उस कारण घी अपनी तरलावस्था में रहता हो, तब तो वह ना सीधी उंगली से निकलेगा ना हीं टेढ़ी से.........फिर ? 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

सीधी उंगली से घी नहीं  निकलता ! पता नहीं किसने इस सत्य की खोज की, क्योंकि उसके इस उपक्रम पर कई सवाल उठ खड़े होते हैं ! जैसे वह उंगली से ही घी क्यों निकालना चाहता था ? यदि वह घर में ऐसा कर रहा था तो उसने चम्मच या वैसे ही किसी उपकरण का उपयोग क्यों नहीं किया ? यदि बाहर कहीं उसे ऐसा करने की जरुरत पड़ ही गई तो क्या घी निकालने के पहले उसने हाथ वगैरह साफ किए थे या नहीं ? क्या उंगली के नाखून गंदगी-रहित थे ? ऐसा ना होने पर बाकी के घी के खराब होने का भी खतरा था ! प्रश्न यह भी उठता है कि वह उंगली से घी निकाल कर उसका क्या उपयोग करना चाहता था, क्योंकि जब उसके पास चम्मच ही नहीं था तो कटोरी वगैरह भी कहां होगी ! ऐसे में घी गिर कर बर्बाद भी हो सकता था ! 

 सिधाई का साथ नहीं 

यहां इस संयोग की भी प्रबल संभावना है कि इस बात की ईजाद करने वाले महानुभाव ठंडे प्रदेश में रहते होंगे, जहां घी सदा ठोस रूप में रहता होगा और उसे उंगली टेढ़ी कर ही बर्तन वगैरह से निकाल सकना संभव हो पाता होगा ! पर इसी के साथ यह सवाल भी तो उठता है कि यदि मौसम गर्म हो और उस कारण घी अपनी तरलावस्था में रहता हो, तब तो वह ना सीधी उंगली से निकलेगा ना हीं टेढ़ी से.........फिर ? 

टेढ़ा तो होना ही पड़ता है 

मेरे अपने व्यक्तिगत शोध तो यही बताते हैं कि शठे शाठ्यम समाचरेत ! अगला नहीं मान रहा, तो उसे ही कुछ ऐसा ''ताप'' दे दिया जाए कि त्राहिमाम-त्राहिमाम करते, पिघल कर खुद ही बाहर आ जाए ! अपनी उंगली टेढ़ी क्यों करनी ! यदि नहीं तो फिर उंगली से कहीं बेहतर है, चम्मच जैसा कोई उपकरण ! इससे घी-तेल सब कुछ आसानी, बेहतर और साफ-सुथरे तरीके से निकाला जा सकता है, बिना उन्हें अशुद्ध, दूषित या अन्य किसी आशंका के ! हालांकि टेढ़ा इसे भी करना पड़ता है ! यह तो नियति है !

वैसे इस घी वाली बात का अभिप्राय भले ही कुछ भी हो पर शाब्दिक अर्थ तो पूरी तरह भ्रामक है ! घी एक बहुत ही पवित्र और बहु-उपयोगी पदार्थ है, उसे पूजा-पाठ तथा अन्य धार्मिक कार्यों के अलावा कभी-कभी दवा के रूप में भी काम में लाया जाता है, ऐसी वस्तु को उंगली से निकालना उसे दुषित करना है, इस बात का उन महानुभाव को ध्यान रखना चाहिए था ! वैसे उनका तेल वगैरह के बारे में क्या विचार था, इसका पता नहीं चल पाया है ! यदि किसी मित्र, सखा, साथी को इस बारे में कुछ भी ज्ञात हो, तो साझा जरूर करें ! धन्यवाद !

@यह एक निर्मल हास्य है, अन्यथा ना लें  

@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से                

गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

मच्छरदानी, इंसान की एक छुद्र कीट से मात खाने की निशानी

एक तरफ दुनिया भर में जंगली, खतरनाक, दुर्लभ, मासूम, हर तरह के जानवरों को पिंजरों में बंद कर विश्व के सबसे खतरनाक जानवर इंसान के दीदार के लिए रखा जाता है ! दूसरी तरफ वही इंसान एक अदने से कीड़े से बचने के लिए खुद को मसहरी नुमा पिंजरे में बंद कर अपनी जान की हिफाजत करने पर मजबूर हो जाता है ! वह भले ही ग्रहों के पार जाने की जुगत भिड़ा चुका हो, पर मच्छर भाऊ ने उसके ग्रहों की दशा अभी भी दिशाहीन ही कर के रखी हुई है.................!  

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कुछ सालों पहले तक बंगाल के भद्र-लोक के व्यक्तित्व का, रहन-सहन का जिक्र होते ही धोती-कुर्ता, छाता, सिगरेट, चाय, घर का अपना पोखर जैसी चीजों का उल्लेख भी प्रमुख रूप से हो ही जाता था ! परंतु ऐसी चर्चा करने वाले पता नहीं क्यों उस एक चीज को भुला देते थे जो वहां के तकरीबन हर घर में पाई जाती थी, जिसका नाम है मसहरी ! हो सकता है कि एक छुद्र कोटि के निम्न कीट से अपनी हार की निशानी को ज्यादा मशहूरी दे कर हम अपनी बची-खुची नाक की और बेइज्जती नहीं होने देना चाहते हों ! इसलिए उसका जिक्र ना करते हों !

मसहरी 

म सहरी, मच्छरदानी, मशारी, मॉस्किटो नेट ! एक अति छुद्र-कीट, मच्छर से बचने का एकमात्र फुलप्रूफ साधन ! मच्छर, विश्व भर में तकरीबन हर साल करीब 20-25 करोड़ लोगों को अपने खूनी पंजे में फंसा, उनमें से अधिकतर को जहन्नुम रसीद कर देता है ! और अब तो यह बात जग-जाहिर सी हो चुकी है कि इंसान माने या ना माने उससे एक तरह से हार स्वीकार कर चुका है ! इंसानी ईजाद की कोई भी चीज धुंआ, स्प्रे, केमिकल कुछ भी उस अस्थि विहीन, तकरीबन भार हीन कीट से पार नहीं पा सकी है ! उलटे यह अभी भी जमीनी आत्माओं का मिलन परमात्मा से बेहिचक करवाए जा रहा है ! इसने इतने लोगों को ऊपर पहुंचा दिया है, जितने मनुष्य के आपसी युद्ध भी नहीं कर पाए हैं ! इस खतरनाक बला के खौफ का आलम तो यह है कि इससे मुक्ति की परिकल्पना को साकार करने के लिए हमें वैश्विक स्तर पर हर साल 25 अप्रैल को विश्व मलेरिया दिवस मनाना पड़ता है !

 खतरनाक कीट 
ऐसे में यह मसहरी ही है जो हमें इस दुर्दांत शत्रु से किसी हद तक बचाती आ रही है ! मनुष्य जाति को तो इसके आविष्कारक के नाम कोई नोबल पुरुस्कार जैसा कुछ घोषित कर देना चाहिए ! वैसे इसका इतिहास सैकड़ों साल पुराना है ! कहते हैं कि क्लियोपेट्रा के शयन कक्ष में भी इसका उपयोग होता था ! भारत तथा ग्रीस के पुराने दस्तावेजों में भी इसका उल्लेख मिलता है ! समय के साथ-साथ इसके रूप-रंग-आकार-प्रकार में भी तरह-तरह के बदलाव आए हैं ! फैशन के अनुसार इसने भी अपने को ढाल लिया है !

डिजायनर 
एक तरफ दुनिया भर में जंगली, खतरनाक, दुर्लभ, मासूम, हर तरह के जानवरों को पिंजरों में बंद कर विश्व के सबसे खतरनाक जानवर इंसान के दीदार के लिए रखा जाता है ! दूसरी तरफ वही इंसान एक अदने से कीड़े से बचने के लिए खुद को मसहरी नुमा पिंजरे में बंद कर अपनी जान की हिफाजत करने पर मजबूर हो जाता है ! कहते हैं ना कि भगवान सभी को ठिकाने से लगाए रखता है !

बिना भेदभाव सुरक्षा 
जो भी हो मसहरी का तो हमें सदा अहसानमंद रहना होगा ! जो बिना भेदभाव अमीर-गरीब, आबालवृद्ध, स्त्री-पुरुष सभी को बीमार पड़ने से बचाती है ! एक बार घर आ जाए तो वर्षों साथ निभाती है। सोने के पहले इसको लगाने की जरा सी जहमत जरूर होती है पर उसके बाद इसके अंदर परिवार ऐसे निश्चिंत हो सोता है, जैसे किसी किले में सुरक्षा प्राप्त हो

बेफिक्री की नींद 
सो चता हूँ, इंसान को मसहरी में सुरक्षित सोता देख मच्छर क्या सोचता होगा ? जाल की दीवारों पर सर पटक-पटक कर भिनभिनाता होगा, अरे मेरे पेट पर लात मार चैन से सो रहा है ! अच्छा बेटा अभी तो सो ले ! सुबह तो बाहर आएगा ! बहुत शौक है ना शाम को टहल कर सेहत बनाने का, तब देखूंगा तुझे ! देखता हूँ उस बराबर की जंग में कौन जीतता है !

कुछ भी हो इंसान भले ही ग्रहों के पार जाने की जुगत भिड़ा चुका हो, पर मच्छर भाऊ ने उसके ग्रहों की दशा अभी भी दिशाहीन ही कर के रखी हुई है !  

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से  

@मशक में कौन सा खतरनाक होता है, सभी जानते हैं 😀 

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