शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2024

''कुछ अलग सा'', ब्लॉग से पुस्तकाकार

शिकायत नहीं है पर शिकवा है उन बचपन के दोस्तों से, अपने पारिवारिक सदस्यों से, लम्बी दोस्ती का दम भरने वालों से, रचनाओं को अपने प्रकाशन में स्थान देने वालों से, कि बधाइयां, शुभकामनाएं, मंगलकामनाएं तो ढेर की ढेर भेजीं पर 250/- जैसी एक ''बड़ी'' राशि का जुगाड़ नहीं हो पाया ! जिससे पुस्तक खरीदी जा सके ! इस पर खुद को समझाया भी कि भाई, तुम प्रेमचंद, शरद जोशी या जय शंकर प्रसाद नहीं हो ! नाहीं किसी ने तुम्हें लिखने को कहा था ! तो खेद किस बात का ? पर यह जो मन है ना, वह मानता नहीं है ! अपनों से बड़ी आशाएं लगाए रहता है, तरह-तरह के झटके लगने के बावजूद भ्रम पाले रहता है ......!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

धन्यवाद ज्ञापन :-

चौदह-पंद्रह साल के ब्लॉग लेखन से जाहिर है काफी कुछ अच्छा-बुरा एकत्रित होना ही था ! अंदर-बाहर से सलाहें भी दगने लगीं थीं कि ब्लॉगों को पुस्तक का रूप दे दिया जाए ! इसमें सब से अग्रणी थी बिटिया सांशू ! नागपुर से जब भी फोन पर बात होती, उसका पहला प्रश्न होता, ताऊजी बुक का क्या हुआ ?
पर अपने मन में भी यह आशंका रहती ही थी कि तकनिकी में कभी कुछ ऐंड-बैंड हो गया, तो सब हवा-हवाई ही ना हो जाए ! पर झिझक का क्या करें जो आशंकित करती रहती थी कि पता नहीं कोई पढ़ेगा भी की नहीं ! पर भले ही अपना दही खट्टा ही हो, कढ़ी तो बनाई जा ही सकती है, सो एक दिन स्वांतः सुखाय खातिर चढ़ ही गए झाड़ पर !
ब्लॉगों का पुस्तकाकार आ गया ! आश्चर्य चकित भी कर गया पहला लॉट ख़त्म हो कर ! जिसमे सबसे ज्यादा योगदान रहा छोटी भगिनी रेवा जी का, जिन्होंने यहां-वहां, जाने कहां-कहां, विदेश तक को भी नहीं बक्शा ! उधर अभय-चेतन के मित्र ! जिस संस्था से जुड़ा हूँ उसके द्वारा बने मेरे नए सखा ! ब्लॉग को पढ़ने वाले दोस्त, सभी ने पुस्तक ले कर प्रोत्साहित ही नहीं किया बल्कि पुस्तक की एक-एक रचना का उल्लेख कर अपनी प्रतिक्रियाएं भी व्यक्त कीं ! कइयों ने अपने जानने वालों को इसे भेंट स्वरूप प्रदान किया !
पर हर चीज का एक दूसरा पहलू भी होता है, जिसके बारे में कहना नहीं चाहता था ! पर कहीं ना कहीं बात कचोटती तो है ही ! शिकायत नहीं है पर शिकवा है उन बचपन के दोस्तों से, अपने पारिवारिक सदस्यों से, लम्बी दोस्ती का दम भरने वालों से, रचनाओं को अपने प्रकाशन में स्थान देने वालों से, कि बधाइयां, शुभकामनाएं, मंगलकामनाएं तो ढेर की ढेर भेजीं पर 250/- जैसी एक बड़ी राशि का जुगाड़ नहीं हो पाया ! खुद को समझाया कि भाई तुम प्रेमचंद, शरद जोशी या जय शंकर प्रसाद नहीं हो ! नाहीं किसी ने तुम्हें लिखने को कहा था ! तो खेद किस बात का ! पर यह जो मन है ना, वह मानता नहीं है ! अपनों से बड़ी आशाएं लगाए रहता है, तरह-तरह के झटके लगने के बावजूद भ्रम पाले रहता है ......!
बीती ताहि बिसार कर, शब्दांकुर प्रकाशन, उसके संचालक काली शंकर जी का बहुत-बहुत आभार जिनके मार्गदर्शन, निर्देशन और प्रयासों के कारण यह पुस्तक अपने इस स्वरूप को पा कर ''अमेजन'' पर भी उपलब्ध हो सकी ! उन सभी स्नेही-जनों, हितैषियों, संबंधियों, मित्रों, मित्रों के मित्रों का बहुत-बहुत धन्यवाद, जिन्होंने पुस्तक के माध्यम से मेरी हौसला आफजाई की ! जैसी भी हैं, रचनाओं को सम्मान दे मेरा मान रखा ! अपनी रचनाओं को लेकर ना कभी, ना अभी, मैंने कोई मुगालता नहीं पाला है, यह जो प्यार मिल रहा है यह सबके स्नेह का ही परिणाम है, यह कायम रहे, यही प्रभु से कामना है !
एक बार फिर सभी का हार्दिक आभार
🙏🙏

कोई टिप्पणी नहीं:

विशिष्ट पोस्ट

''कुछ अलग सा'', ब्लॉग से पुस्तकाकार

शिकायत नहीं है पर शिकवा है उन बचपन के दोस्तों से, अपने पारिवारिक सदस्यों से, लम्बी दोस्ती का दम भरने वालों से, रचनाओं को अपने प्रकाशन में स्...