रविवार, 29 सितंबर 2024

साहिब, साहब और साहेब

साहिब से साहब, साहब से साहेब ! बात सिर्फ एक शब्द की मात्रा की हेरा-फेरी की नहीं है बल्कि उसमें रची गई साजिश की है ! उस साजिश को नाकाम करने की है ! उसमे लाए गए फर्क को आम आदमी को समझाने की है ! साहिब के सामने हर नागरिक श्रद्धा से सिर झुकाता है ! साहब के सामने मजबूरी में सर झुकाना पड़ता है। जबकि साहेब के सामने सर झुकाना नहीं पड़ता बल्कि उनके साथ सर उठाकर खड़े रहने का हक मिलता है...........!  

#हिन्दी_ब्लागिंग  

कभी-कभी पूरी जानकारी ना होने से कुछ शब्द भ्रमित कर जाते हैं ! वैसा ही एक शब्द है, साहब ! जो अंग्रजों द्वारा खुद को आम जनता से अलग दिखलवाने की लालसा के कारण एक निर्धारित, सोची समझी, श्रेष्ठि और मजदूर वर्ग में भेद-भाव और सम्मान पाने की साजिश के तहत गढ़ा गया ! उस समय यह अंग्रेजों के लिए ही प्रयोग किया जाता था ! जिससे शासक और शासित, मजदूर और मालिक में भेद किया जा सके ! पर समय के साथ-साथ यह भारतीय उच्चाधिकारियों के साथ भी जुड़ता चला गया ! धीरे-धीरे इसका प्रयोग इतना व्यापक और लोकप्रिय हो गया कि अंग्रेजों के जाने के बाद भी भारतीय उच्चाधिकारियों, रसूखदारों, आत्मश्लाघि लोगों ने अपनी अहम-तुष्टि के लिए इसे अपने साथ जोड़े रखा !  

अब यह सवाल मन में उठना स्वाभाविक ही था कि जो शब्द सामाजिक अलगाव के लिए उपयोग किया जाता रहा हो ! ऊँच-नीच का भेदभाव दर्शाता हो, उसे हमारे सम्मानित, सामाजिक समरसता के लिए माने जाने वाले, देवतुल्य गुरुओं तथा उनके स्मारकों के साथ कैसे जोड़ दिया गया ! देश के लिए अपनी जान तक की परवाह ना करने वाले, देशहित के लिए जीवन समर्पण करने वालों के साथ कैसे जोड़ दिया गया ! 

विभिन्न स्रोतों में उपलब्ध विवरणों से जो जानकारियों मिलीं, वे साफ करती हैं कि मूल शब्द ''साहिब'' अरबी भाषा का है। जिसका अर्थ है, ईश्वर के समकक्ष या भगवान के साथी। इसीलिए इसे देवतुल्य गुरुओं के साथ जोड़ा गया है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी एक-दो जगह इस शब्द को श्री राम जी के लिए उपयोग किया है। अन्य धर्मों के धर्म-ग्रंथों में भी इस शब्द का जिक्र पाया जाता है !

यह भी अंग्रेजों की कुटिलता की एक बानगी है कि उन्होंने साहिब जिसका अर्थ होता है भगवान के साथी, उसका सरकारीकरण कर उसे साहब कर दिया जिसका अर्थ होता है सरकार के प्रतिनिधि ! जिसने बाद में मुखसुख के कारण ''साब'' का रूप अख्तियार कर लिया। लोगों के जेहन में बैठे इस शब्द को शायद इसीलिए चुना गया होगा ताकि लोगों को अपनी औकात और उनकी बात आसानी से नमाझ में आ जाए ! 

अब रही इसी से मिलते-जुलते तीसरे शब्द ''साहेब'' की ! यह शब्द उन स्वाभिमानी देश प्रेमियों द्वारा रचा गया जो अंग्रेजों की मानसिकता को समझते थे। उनकी चाल का जवाब उन्हीं शैली में देने के लिए इसे हथियार बनाया गया ! साहब के खिलाफ साहेब की रचना हुई ! जहां साहब का अर्थ सरकार का साथी मायने रखता था वहीं साहेब शब्द खुद को आम सर्वहारा जनता का साथी या प्रतिनिधि बताता है। कमाल की बात तो यह रही कि खुद को साहब कहलवाने का शौक रखने वाले तो हवा हुए पर जिनके नाम के साथ साहेब जुड़ा, वे सदा के लिए अमर हो गए, फिर चाहे वे नाना साहेब पेशवा हों ! बाला साहेब देवरस हों ! बाला साहेब ठाकरे हों या फिर बाबा साहेब आंबेडकर हों ! सभी को नमन !

साहिब से साहब, साहब से साहेब ! बात सिर्फ एक शब्द की मात्रा की हेरा-फेरी की नहीं है बल्कि उसमें रची गई साजिश की है ! उस साजिश को नाकाम करने की है ! उसमे लाए गए फर्क को आम आदमी को समझाने की है ! साहिब के सामने हर नागरिक श्रद्धा से सिर झुकाता है ! साहब के सामने मजबूरी में सर झुकाना पड़ता है। जबकि साहेब के सामने सर झुकाना नहीं पड़ता बल्कि उनके साथ सर उठाकर खड़े रहने का हक मिलता है।  

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