शनिवार, 30 दिसंबर 2023

निमंत्रण

अपने रसूख के कारण जिन्होंने एक बार हमारे पुश्तैनी मकान को राजमार्ग का हिस्सा बता गिरवाने की साजिश तक कर दी थी, वो हमारे रिश्ते के ताऊ जी, जिन्होंने बाकायदा ऐलान कर दिया था कि इनके परिवार में संतान की कल्पना भी नहीं की जा सकती, आज उनके मुंह में दही जम गया है ...........! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

मेरे बेटे का पहला जन्मदिन आने वाला है ! परिवार के सभी सदस्यों, सगे-संबंधियों में अपार उत्साह है ! हर तरह के रीति-रिवाज पूरे विधि-विधान से संपन्न किए जा रहे हैं ! हों भी क्यों ना! वर्षों के बाद ऐसी ख़ुशी प्रभु ने हमें बक्शी है ! हमारे समाजसेवी परिवार की समाज में प्रतिष्ठा है ! लोगों से काफी मेल-जोल है ! इसीलिए शिशु के अन्नप्राशन पर किस-किस को निमंत्रण देना है, इस बात पर जब चर्चा शुरू हुई तो माँ का कहना था कि वर्षों बाद ऐसा शुभ अवसर आया है, सभी जान-पहचान वालों और रिश्तेदारों को न्योता भेजना चाहिए ! हमारे बाबूजी कुछ असमंजस में हैं ! उनको अतीत की घटनाएं और उनसे उपजी वैमनस्यता के कारण लग रहा है कि कुछ लोग नहीं आएंगे ! 

काफी सालों से हमारी बिरादरी में कुछ लोगों के बीच आपसी अनबन चल रही है ! रिश्तेदारी होते हुए भी एक दूसरे की उन्नति देख लोगों को जलन होने लगती है ! जरा-जरा सी बात पर कोर्ट-कचहरी की नौबत आ जाती है !  

मेरी शादी के बाद काफी दिनों तक घर में बच्चे की किलकारी नहीं गूंजने को लेकर तरह-तरह की अफवाहें फैलाई गईं ! पहले तो हमारे कहीं संबंध ही ना हों इसके षड्यंत्र रचे गए, जो बुरी तरह असफल रहे ! फिर हमारे परिवार को लेकर झूठी कहानियां गढ़ी गईं, अफवाहें फैलाई गईं, जिन्हें समझदार लोगों ने सिरे से नकार दिया ! एक लंबे अरसे के बाद पंच परमेश्वर की तरफ से भी हमें न्याय मिला, झूठे मामले-मुकदमें खारिज हो गए और प्रभु की दया से हमारा घर-परिवार खुशहाल होता चला गया ! 

कुछ समय पश्चात ईश्वर का एक अंश हमारे यहां भी अवतरित हुआ ! बस, फिर क्या था ! इस खबर से हमारे बैरी रिश्तेदारों को तो जैसे सांप सूंघ गया ! हमारी निपूती बुआ तो उसके बारे में सुनते ही पागलों की तरह बिदकने लगी ! अंटसंट कहना उनकी आदत में शुमार हो गया ! बच्चे का कोई जिक्र भी कर दे तो काटने को तैयार ! अपने रसूख के कारण जिन्होंने एक बार हमारे पुश्तैनी मकान को राजमार्ग का हिस्सा बता गिरवाने की साजिश कर दी थी, वो हमारे रिश्ते के ताऊ जी, जिन्होंने बाकायदा ऐलान कर दिया था कि इनके परिवार में संतान की कल्पना भी नहीं की जा सकती, वे आज मुंह में दही जमाए बैठे हैं ! कई और ऐसे हैं, जो रिश्तेदार हमारे हैं पर अपने दोस्तों, जिनसे हमारी नहीं पटती पर उनकी रोजी-रोटी का जरिया हैं, उनको खुश करने की खातिर असमंजस में हैं कि बबुआ के यहां जाएं कि नहीं ! कुछ इस ताक में हैं कि देखें बुलाते भी हैं कि नहीं ! एक हमारा नजदीकी परिवार, बाप कह रहा है कि नहीं जाना है, बेटा कह रहा है मैं तो जाऊंगा ! दो-एक इस परिस्थिति से बचने के लिए काम का बहाना कर शहर ही छोड़ गए ! कुछ अपनी करनियों को याद कर पेशोपेश में हैं कि अब किस मुंह को ले कर जाएं, उन्हें वे तमाम बातें याद आ रही हैं जो हमारे परेशानी भरे दिनों में उन्होंने उगल दी थीं ! तो कुल मिला कर एक बड़ी ही पेचीदा परिस्थिति आन पड़ी है, हमारी बिरादरी के सामने !

पर जो भी हो हम, हमारा परिवार, हमारे हितैषी, हमारे शुभचिंतक परमानंद में हैं ! उधर हमारी माँ घोर आशावादी और क्षमाशील हैं ! उन्होंने कह दिया है, ऐसे शुभ अवसर का निमंत्रण तो सबको जाएगा, जिसे आना हो आएगा, जिसे नहीं आना उसकी इच्छा ! हम अपनी तरफ से कोई शिकायत का मौका नहीं देंगे ! बाकि भगवान सबको सद्बुद्धि दे !  

सोमवार, 25 दिसंबर 2023

शनि महाराज, सवालों के घेरे में

सवाल शनि देव पर भी उठता कि क्यों महाराज, आप तो खुद को न्याय का देवता कहलवाते हो ! फिर क्यों इतनी देर लग जाती है दोषियों को दंड मिलने में ? क्यों भ्रष्टाचारियों के दिल नहीं दहलते आपके डर से ? या फिर यह डर, कानून, नियम सब भोले-भाले आम लोगों के लिए ही होते हैं ? उस पर न्याय में विलंब आपके अस्तित्व पर भी तो सवाल उठा देता है ! अच्छा, क्या आपको कुछ अजीब नहीं लगता जब उसी अजीबोगरीब तरीके से आए पैसे से आपकी पूजा-अर्चना होती है, भोग लगता है ? क्या प्रभु आप भी............!!   

#हिन्दी_ब्लागिंग 

शनि देव को न्याय का देवता कहा गया है जो मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं ! शायद ये अकेले ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा लोग श्रद्धा से कम, डर से ज्यादा करते हैं ! उन्हीं के जन्म स्थान के रूप में प्रसिद्ध है, शिंगणापुर ! जहां की मान्यता है कि इस देव स्थान में यदि कोई चोरी करता है तो वह गांव के बाहर नहीं जा पाता या तो अपनी दृष्टि खो बैठता है या फिर घोर कष्टों में पड़ जाता है ! कहते हैं इसीलिए यहां घरों-दुकानों में दरवाजे नहीं लगाए जाते ! इस देव स्थान का प्रबंधन सुचारु रूप से करने के लिए एक न्यासी बोर्ड का गठन किया गया है जिसका काम यहां के वित्त को व्यवस्थित करने, हितधारकों के हितों को बनाए रखने, परिचालन करने और दिशा-निर्देश में मदद करना है !  

शनि जन्मभूमि, शिंगणापुर 
अब इसी न्यासी बोर्ड के कई ऐसे कारनामे उजागर हुए हैं, जिन्हें इस बोर्ड के सदस्यों ने बिना गांव के बाहर गए, खुले खिड़की दरवाजों के सामने, बिना किसी डर-भय के ''वित्त को व्यवस्थित करते हुए सिर्फ बोर्ड के हितधारकों के हितों को को ध्यान में रख'' अंजाम दिया ! खबर के सामने आने से पता चला है कि न्यासी बोर्ड ने बासठ श्रमिकों की जगह 1800 लोगों को अनौपचारिक रूप से भर्ती कर वेतन में हेरा-फेरी की ! दर्शन की रसीदों में घपला कर करोड़ों का गबन किया ! मंदिर को मिलने वाले दान को एक निजी शिक्षण संस्थान को दिया जाता रहा ! बिजली आपूर्ति पर प्रति माह 40 लाख के डीजल का खर्च दिखाया जाता रहा ! मंदिर के सौंदर्यीकरण पर 50 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद 50 फीसदी ही काम हो पाया है और यह सब लंबे समय से होता आ रहा है ! और वे सब फलते-फूलते रहे न्याय के दरबार में, ठीक न्यायाधीश की नाक के नीचे ! 

अब सवाल शनि देव पर ही उठता कि क्यों महाराज, आप तो खुद को न्याय का देवता कहलवाते हो ! फिर क्यों इतनी देर लग जाती है दोषियों को दंड मिलने में ? क्यों भ्रष्टाचारियों के दिल नहीं दहलते आपके डर से ? कैसे हिम्मत होती है आपके सामने कुकृत्य करने की ? या फिर यह डर, कानून, नियम सब भोले-भाले आम लोगों के लिए ही होते हैं ? खासमखास इससे परे होते हैं ! उस पर न्याय में विलंब आपके अस्तित्व पर भी तो सवाल उठा देता है ! अच्छा, क्या आपको कुछ अजीब नहीं लगता जब उसी अजीबोगरीब तरीके से आए पैसे से आपकी पूजा-अर्चना होती है, भोग लगता है ? 

क्या प्रभु आप भी............!! 

बुधवार, 20 दिसंबर 2023

वास्तु और तकनीकी की अद्भुत मिसाल, सोमेश्वर छाया मंदिर

यहां की विशेषता यह है कि दिन भर इस मंदिर के शिवलिंग पर एक स्तंभ की छाया पड़ती रहती है, जबकि गर्भगृह में स्थित शिवलिंग और आकाश में विचरते सूर्य के बीच आने वाला कोई स्तंभ यहां है ही नहीं ! वैसे भी यदि कोई स्तंभ हो भी तो सूर्य के विचरण के कारण किसी भी छाया का दिन भर एक ही जगह बने रहना असंभव होता है ! यहां वह छाया कैसे, क्यूँ, किस तरह बनती है, इसकी पेचीदगी को ले कर वातुशास्त्री, वैज्ञानिक व इंजिनियर सभी आज तक अचंभित हैं ...........!

#हिन्दी_ब्लॉगिंग 

प्रकृति ने जिस खुले दिल से हमारे देश पर अपना प्यार-स्नेह लुटाया है उसी जज्बे, जोश और हौसले से इसके रहवासियों ने तरह-तरह के उपकर्मों से इसे सजाया-संवारा है ! वह भी तब, जब आज की तरह के आधुनिक यंत्र और सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं ! फिर भी प्राचीन भारतीय वास्तुकला इतनी उन्नत थी कि उसकी कोई मिसाल ही नहीं मिलती ! चाहे तकनिकी पेचीदगी हो, चाहे बारीक से बारीक कलाकारी हो, चाहे दांतों तले उंगली दबवा लेने वाली वास्तु कला हो, एक से बढ़ कर एक विस्मयकारी, अद्भुत रचनाएं देख दर्शक किंकर्तव्यविमूढ़, भौंचक्का सा खड़े का खड़ा रह जाता है ! ऐसा ही एक स्थान है, तेलंगाना राज्य के नलगोंडा जिले के पनागल या पनागल्लु कस्बे में स्थित एक तीर्थ, सोमेश्वर छाया मंदिर। 


गर्भगृह में स्थित शिवलिंग 
हैदराबाद शहर से तकरीबन 100 किमी तथा तेलंगाना के नलगोंडा नगर से करीब चार किमी दूर एक जगह है, पनागल। यहीं स्थित है 12वीं सदी की शुरुआत में चोल राजवंश के द्वारा बनवाया गया शिव जी का एक मंदिर, जो सोमेश्वर छाया मंदिर के नाम से विख्यात है ! यहां की विशेषता यह है कि दिन भर इस मंदिर के शिवलिंग पर एक स्तंभ की छाया पड़ती रहती है, जबकि गर्भगृह में स्थित शिवलिंग और आकाश में विचरते सूर्य के बीच आने वाला कोई स्तंभ यहां है ही नहीं ! वैसे भी यदि कोई स्तंभ हो भी तो सूर्य के विचरण के कारण किसी भी छाया का दिन भर एक ही जगह बने रहना असंभव होता है ! यहां वह छाया कैसे, क्यूँ, किस तरह बनती है, इसकी पेचीदगी को ले कर वातुशास्त्री, वैज्ञानिक व इंजिनियर सभी आज तक अचंभित हैं !


अलंकृत स्तंभ 
यह निर्माण हमारे प्राचीन कलाविदों के वास्तुशास्त्र के ज्ञान की पराकाष्ठा का एक उदाहरण है। प्रकृति का नियम है, छाया है तो उसका कारण भी होगा और वह है मंदिर के बाहर बने प्रस्तर स्तंभ, जिन पर रामायण, महाभारत तथा पुराणों के प्रसंगों को बहुत खूबसूरती से उकेरा गया है। उन स्तंभों का निर्माण इस तरह और ऐसी जगहों पर, इस तरह और इस खूबी के साथ किया गया है कि सूर्य के दिन भर के बदलते कोणों के बावजूद, किसी ना किसी स्तंभ की छाया बिना किसी विघ्न के शिवलिंग पर पड़ती रहती है ! 

इस मंदिर में शिव जी के साथ ब्रह्मा, विष्णु जी की भी पूजा होती है। इन तीनों के मंदिर एक ही प्रांगण में होने के बावजूद उनके प्रवेश द्वार अलग-अलग दिशाओं में हैं ! जो भी हो पर यह मंदिर हमारी बेहतरीन मूर्तिकला और वास्तुकला की विरासत को आज भी संभाले हुए है। इस क्षेत्र में इस ऐतिहासिक मंदिर की बहुत मान्यता है इसीलिए श्रद्धालु दर्शनार्थी यहां भारी संख्या में अपनी मन्नतों को पूरा करने हेतु आते रहते हैं। 

आपकी आँखें हमारे लिए अनमोल हैं 
प्रकृति के नियमानुसार बीतते समय का असर इस प्राचीन मंदिर पर भी पड़ा है ! इसके कुछ हिस्सों की सुरक्षा के लिए कदम उठाए भी गए हैं ! पर यह हमारी और हमारी सरकारों की जिम्मेदारी है कि हम अपनी ऐसी विलक्षण धरोहरों को सहेज कर रखें, जिससे हमारी आने वाली पीढ़ियां भी ऐसे अनोखे और दुर्लभ निर्माणों को देख गौरवान्वित हो सकें। जीवन की आपाधापी तो कभी खत्म नहीं होती फिर भी कुछ समय निकाल ऐसी जगहों पर जरूर जाना चाहिए ! 

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

गुरुवार, 14 दिसंबर 2023

वृक्ष सिखाता जीवन-दर्शन

उसके पैर अपनी जमीन में गहरे तक उतरे रहे पर उसने सदा अपना सर रोशनी और ऊंचाईयों की तरफ बनाए रखा ! अति विषम परिस्थितियों में भी उसके अस्तित्व पर शायद इसीलिये आंच नहीं आई, क्योंकि उसका जन्म ही हुआ था दूसरों की भलाई के लिये, दूसरों को जीवन प्रदान करने के लिये, दूसरों को आश्रय देने के लिए, दूसरों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ! जिसका जीवन ही औरों की भलाई के लिये बना हो उसकी रक्षा करने के लिये तो कायनात भी अपनी पूरी ताकत लगा देती है......!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

संयोगवश एक छोटा सा बीज धरती में पनाह लेता है ! धरा भी उसे अपनी ममतामयी गोद में हौले से समेट लेती है ! धीरे-धीरे उपयुक्त माहौल पा बीज ने अपनी जड़ें जमीन में फैला कर अपनी पकड़ मजबूत कर ली ! समय बीतता गया एक दिन उस बीज ने अंकुरित हो अपना सर जमीन के बाहर निकाला। उसके सामने विशाल संसार अपनी हजारों अच्छाईयों और बुराईयों के साथ पसरा पड़ा था। उस छोटे से कोमल, नाजुक, हरे पौधे ने चहूँ ओर अपनी दृग दृष्टि डाली और फिर सर उठा कर आसमान की उंचाईयों की तरफ अपनी नजर उठाई और मन ही मन उस उंचाई को नापने का दृढ निश्चय कर लिया।   

समय बीतता गया। धरती के देश आपस में लड़ते-भिड़ते रहे। उनकी आपसी दुश्मनी से वातावरण विषाक्त होता रहा। एक दूसरे को नीचा दिखाने में हजारों लाखों जाने जाती रहीं। पर पौधे ने अपना सफर जारी रखा। विज्ञान तरक्की की राह दिखाता रहा। इंसान अंतरिक्ष की सीमायें लांघने लगा। पौधा भी धीरे धीरे जमीन में अपनी पकड़ और अच्छी तरह जमाते हुए, संसार के अच्छे-बुरे बदलाव देखते हुए, शुरुआती खतरों से खुद को बचाते हुए अपनी मंजिल की ओर अग्रसर होता रहा।
आपकी आँखें हमारे लिए अनमोल हैं 
पौधा अब बढ़ कर वृक्ष बन चूका था ! अब उसकी छाया में पशु आ कर अपनी थकान मिटाने लगे थे। पक्षियों ने उसकी ड़ालियों की सुरक्षा में अपने नीड़ों को स्थान दे दिया था। कभी-कभी थके हारे स्त्री-पुरुष भी उसकी छांव में गर्मी से राहत पाने आ बैठते थे और सर उठा कर उसकी विशालता उसकी उपादेयता को मुग्ध भाव से देख प्रकृति के शुक्रगुजार हो जाते थे। कुछेक इस वृक्ष को देख प्रेरणा भी लेते थे ! ऐसा होता भी क्यूं ना ?
यह पेड़ ही तो था, जो वक्त के अनगिनत थपेड़े खा कर भी अपना सर ऊंचा किए खड़ा था। तूफानों के सामने बहुत बार उसे झुकना जरूर पड़ा पर मुसीबत जाते ही वह दुगनी उम्मीद से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता रहा। उसके पैर अपनी जमीन में गहरे तक उतरे रहे पर उसने सदा अपना सर रोशनी और ऊंचाईयों की तरफ बनाये रखा। अति विषम परिस्थितियों में भी उसके अस्तित्व पर शायद इसीलिये आंच नहीं आयी, क्योंकि उसका जन्म ही हुआ था दूसरों की भलाई के लिये, दूसरों को जीवन प्रदान करने के लिये, दूसरों को आश्रय देने के लिये, दूसरों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये। जिसका जीवन ही औरों की भलाई के लिये बना हो उसकी रक्षा करने के लिये तो कायनात भी अपनी पूरी ताकत लगा देती है।

@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

विशिष्ट पोस्ट

विडंबना या समय का फेर

भइया जी एक अउर गजबे का बात निमाई, जो बंगाली है और आप पाटी में है, ऊ बोल रहा था कि किसी को हराने, अलोकप्रिय करने या अप्रभावी करने का बहुत सा ...