रविवार, 25 अप्रैल 2010

अपनी सेना के वीर जवानों की खातिर इसे पढ़ें और पढवाने की कोशिश जरूर करें.

यह मार्मिक अपील, स्व.ले.सौरभ कालिया, जिन्हें १५.०५.१९९९ को कारगिल में गश्त करते समय पाकिस्तानी सेना ने बंदी बना लिया था तथा बाद में उनकी नृशंस ह्त्या कर दी थी, के पिताजी द्वारा की गयी है। वे वर्षों से इस मुहिम में जुटे हुए हैं जिससे पाकिस्तान का घिनौना और बर्बर चेहरा दुनिया के सामने आ सके। आपसे प्रार्थना है कि सिर्फ पांच मिनट दे इसे पढ़ें और आगे लोगों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें।

ले.सौरभ कालिया पहले अफसर थे जिन्होंने पाक के नापाक इरादों से कारगिल में अतिक्रमण का पर्दाफाश किया था और इसकी सूचना सेना और देश को दी थी।
15.05.1999 को सीमा पर गश्त करते समय LOC के अंदर ही उन्हें और उनके पांच साथियों को पाकिस्तानी सेना ने बंदी बना कारागार में डाल दिया था। जहां उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में तीन हफ्तों तक अमानुषिक रूप से प्रताड़ित किया गया। इस सब के गवाह थे उनके शरीर पर पड़े दाग जो सच्चाई बताने के लिए उनके शवों पर मौजूद थे जब उनके पार्थिव शरीरों को पाक सेना ने वापस किया। उन निशानों से पता चलता है कि पाक सेना अधिकारी पाश्विकता की किस हद तक जा चुके हैं। जवानों के शरीरों पर जगह-जगह जलती सिगरेटों से दागने के निशान अपनी कहानी कहते थे। कानों को किसी नूकीली चीज से बुरी तरह छेदा गया था। आंखें फोड़ कर निकाल दी गयीं थी। दांत और जबड़े की हड़्ड़ियां तोड़ डाली गयी थीं। शरीर के कोमल तथा नाजुक अंगों का तो और भी बुरा हाल कर दिया गया था। यह तो प्रमाण थे शरीर पर हुए जुल्म के पर मानसिक रूप से उन्हें कितनी यंत्रणा दी गयी होगी उसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। पूरे 22 दिनों तक पाश्विक अत्याचार के बाद उन सब को गोली मार मौत के घाट उतार दिया गया। इस बर्बरता पूर्ण हत्याकांड़ में पाक सेना ने किसी भी युद्धबंदियों के लिए बने नियम या कानून की परवाह नहीं कर पूरी दुनिया को ठेंगा दिखाया है।

इधर जहां हमें नाज है अपने वीर जवानों पर, उनकी देशभक्ति पर, उनके धैर्य पर, उनके साहस पर, उनकी दृढता पर, उनकी इच्छा शक्ति पर वहीं उनके ऊपर हुए अत्याचार को देख सुन कर भी ढील बरतने वाले देश के कर्णधारों और उन तथाकथित मानवाधिकार के नाम पर अपना उल्लू सीधा करने वालों मतलब परस्तों ने जैसी उदासीनता दिखलाई है उससे ड़र है कि अपने बच्चों को फौज में भेजने की इच्छा रखने वाले माता-पिता को ऐसा करने के पहले दो बार सोचना पड़ेगा। इतना ही नहीं इस तरह के व्यवहार ने फौज को भी कोई अच्छा संदेश या संकेत नहीं भेजा है।

इस घटना को राष्ट्र के सम्मान के साथ जोड़ते हुए हमें देश के कर्णधारों को झिंझोड़ना होगा कि यदि सेना और उसके जवानों के साथ, जो खुद जाग कर हमारे चैन से सोने का इंतजाम करते हैं, जो मौत से दो-दो हाथ इसलिए करते हैं कि हमारी जिंदगियां सुरक्षित रहें, जिनके लिए देश अभी भी "माँ" है, ऐसा ही सलूक होता रहा तो तुम भी महफूज नहीं रह पाओगे। संसार के मानवाधिकार आयोगों के सामने सारी पोल खोलनी होगी जिससे पाकिस्तानी सेना का दो मुंहा चेहरा और उसका गिजगिजा सच बेनकाब हो सके। यदि अब भी हम यूं ही ढील बरतते रहे और दोषियों को दंड़ नहीं दिया गया तो आने वाले समय मे उनकी हरकतों का अंदाज लगाया जा सकता है।
ले.सौरभ कालिया के अलावा उन पांच जवानों, जिन्होंने मातृभूमि के खिलाफ मुंह खोलने से मौत को गले लगाना बेहतर समझा, के नाम हैं :

१, Sep। Arjun Ram s/o Sh। Chokka Ram; Village & PO Gudi। Teh। & Dist.Nagaur, (Rajasthan)2. Sep. Bhanwar Lal Bagaria h/o Smt. Santosh Devi; Village Sivelara;Teh.&Dist.Sikar (Rajasthan)3. Sep. Bhikaram h/o Smt. Bhawri Devi; Village Patasar; Teh. Pachpatva;Distt.Barmer (Rajasthan)4. Sep. Moola Ram h/o Smt. Rameshwari Devi; Village Katori; Teh. Jayal;Dist.Nagaur(Rajasthan)5. Sep. Naresh Singh h/o Smt. Kalpana Devi; Village Chhoti Tallam;Teh.Iglas ; Dist.Aligarh (UP)

द्वारा :
डॉ एन के कालिया
सौरभ नगर, पालमपुर, 176061
हिमाचल प्रदेश।
+९१(०१८९४)32065

11 टिप्‍पणियां:

नरेश सोनी ने कहा…

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मिटने वालों का बाकी यहीं निशां होगा।

शहीद सौरभ को सलाम।
...और सलाम उनके परिवार को।

राज भाटिय़ा ने कहा…

शर्मा जी यह समाचार मेने कुछ समय पहले भी कही पढा था, पाकिस्तान के गंदा चेहरा तो हम सब के सामने कब का आ चुका है, लेकिन हमारे नेता बार बार उन्हे ही सलाम करते है, समझ मै नही आता. आप का बहुत बहुत धन्यवाद इस समाचार को यहां प्र्काशित करने के लिये.
धन्यवाद

राज भाटिय़ा ने कहा…

अरे कल भी तो पढा था इसे आप के ही ब्लांग पर

36solutions ने कहा…

शहीदों को नमन ..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

एक भी नेतापुत्तर सेना में नहीं मिलेगा.. लायक होते हैं या नहीं ये तो नहीं पता लेकिन नेता अपनी औलादों को सेना में क्यों भर्ती कराना चाहेगा उसे तो दूसरों की औलादें चाहिये शहीद करवाने को..

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

आजकल देशभक्ति तो केवल छब्बीस जनवरी या पन्द्रह अगस्त पर ही दिखती है, जब तिरंगा हाथ में होता है।
हाथ में तिरंगा ले लिया, मूंह पर तिरंगा पोत लिया तो हो गये देशभक्त।
बाकी अगर कहीं देशभक्ति का कोई गीत भी गुनगुना दिया तो सब टोकते हैं कि अबे, क्या गा रहा है।

kunwarji's ने कहा…

ये एक राष्ट्रीय शर्म की बात ही तो है!पता नहीं कब समझ पायेंगे हम ये सब....?

manojsah ने कहा…

ऐ माली मुझे तोड़ उस राह पर डाल देने जिस राह से देश के सपुत चले........

दिगम्बर नासवा ने कहा…

शहीदों को नमन .....

संजय भास्‍कर ने कहा…

शहीदों को नमन ....

शरद कोकास ने कहा…

शहीदो की सिर्फ याद बाकी रहती है ।

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