बुधवार, 13 अगस्त 2025

गैसलाइटिंग, यह कौन सी बला है

राजनीति में जनोन्माद का भाव पैदा करना स्वाभाविक है। कोई अगर किसी पार्टी पर हमला कर राजनीतिक बढ़त हासिल करने की कोशिश करता है तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। परंतु सोशल मीडिया के युग में, बार-बार फैलाए गए झूठ, आम जनता के लिए सच का रूप ले लेते हैं, यह खतरनाक है ! वर्तमान में झूठ, बल्कि खुले झूठ, का राजनीति में एक गैसलाइटिंग हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाना शुरू हो चुका है ! विपक्षी पर सार्वजनिक मंच से बेशर्मी से झूठ बोल, असंसदीय शब्द या मिथ्या घृणित आरोप लगा कर यह दावा करना कि मेरा कथन ही सच है, यही है गैसलाइटिंग..............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

गैसलाइटिंग ! क्या होती है गैसलाइटिंग, जिसकी वेबसाइटों पर हुई बेपनाह खोज के कारण अमेरिका के जाने-माने पब्लिशर मेरियम बेवस्टर ने वर्ड ऑफ द ईयर चुना है ? उनके अनुसार इस शब्द का अर्थ है, किसी के द्वारा किसी के आत्म-संदेह को बढ़ावा देना ! किसी को उसकी सोच और विचारों पर संदेह दिला उनको नकारने के लिए प्रेरित करना। इससे पीड़ित व्यक्ति को अपनी ही समझ पर संदेह होने लगता है ! जिससे वह चिंता, अवसाद, भटकाव जैसी भावनाओं से ग्रस्त हो जाता है और इसका असर उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी हानिकारक रूप से पड़ने लगता है !

प्रभाव 
पैट्रिक हैमिल्टन के एक नाटक "गैस लाइट" का 1938 में मंचन हुआ था। बाद में 1944 में उस नाटक पर बनी फिल्म के कथानक में एक व्यक्ति धोखे से अपनी पत्नी को यह विश्वास दिलाने का प्रयास करता है कि वह पागल हो रही है, जबकि ऐसा था नहीं ! सबसे पहले गैसलाइटिंग शब्द का प्रयोग उसी फिल्म में किया गया था ! 

मय के साथ-साथ मुहावरों, शब्दों के अर्थ बदलते रहते हैं ! वर्तमान में गैसलाइटिंग का रूप और अर्थ बदल गया है ! आज छल, फरेब, दगाबाजी और खुले झूठ के जरिए सामाजिक मनोविज्ञान की हेराफेरी को भी "गैसलाइटिंग" कहा जा सकता है। वह साजिश के सिद्धांतों के तहत डीपफेक, ट्विटर, फेक न्यूज और ट्रोलिंग द्वारा सच को झूठ और झूठ को सच में बदलने का हथियार बन गया है ! आजकल, किसी राजनेता या राजनीतिक संगठन के लिये सार्वजनिक बातचीत को विषय से भटकाने और किसी विशेष दृष्टिकोण के पक्ष में या उसके खिलाफ राय में हेरफेर करने की रणनीति के रूप में गैसलाइटिंग का उपयोग करना सामान्य बात है।

प्रक्रिया 
ज इस अस्त्र का इस्तेमाल, देश-विदेश में अपने ही देश, उसकी व्यवस्था, उसकी संस्थाओं की आलोचना करने और उन सब को व्यवस्थित तथा सुधारने के लिए खुद को प्रोजेक्ट करने के लिए हो रहा है ! हालांकि ऐसी हरकतों और बयानों के पीछे अपने कारण हो सकते हैं। लेकिन तथ्यों से खिलवाड़ और झूठ को सच की तरह पेश करने की हिमाकत, बेशर्मी, छल-कपट और मक्कारी की इंतहा है ! भले ही लानत-मलानत होती हो, शर्मसार होना पड़ता हो, पर निर्लज्जता की कोई सीमा नहीं है !

नेता ??
राजनीति में जनोन्माद का भाव पैदा करना स्वाभाविक है। कोई अगर किसी पार्टी पर हमला कर राजनीतिक बढ़त हासिल करने की कोशिश करता है तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। परंतु सोशल मीडिया के युग में, बार-बार फैलाए गए झूठ, आम जनता के लिए सच का रूप ले लेते हैं, यह खतरनाक है ! वर्तमान में झूठ, बल्कि खुले झूठ, का राजनीति में एक गैसलाइटिंग हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाना शुरू हो चुका है ! विपक्षी पर सार्वजनिक मंच से बेशर्मी से झूठ बोल, असंसदीय शब्द या मिथ्या घृणित आरोप लगा कर यह दावा करना कि मेरा कथन ही सच है, यही है वह बला, जिसे गैसलाइटिंग कहा जाता है 
गैसलाइटिंग ग्रसित 
से झूठ के पुलिंदों की सच्चाई को उजागर करने के लिए जनता यानी पब्लिक को ही गैस लाइटिंग के धुंए से फैले धुंधलके को दूर हटा, उसी गैस की रौशनी का उपयोग कर, सार्वजनिक रूप से, सरे आम, मक्कारों के चेहरों से  मुखौटे उतार, उनकी असलियत को देश-दुनिया के सामने लाना होगा ! तभी देश को शांति और सुरक्षा मिल पाएगी !

@संदर्भ और सभी चित्रों के लिए अंतर्जाल का आभार  

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