मनोविज्ञान लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मनोविज्ञान लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 13 अगस्त 2025

गैसलाइटिंग, समझदारी अवाम को ही दिखानी होगी

राजनीति में जनोन्माद का भाव पैदा करना स्वाभाविक है। कोई अगर किसी पार्टी पर हमला कर राजनीतिक बढ़त हासिल करने की कोशिश करता है तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। परंतु सोशल मीडिया के युग में, बार-बार फैलाए गए झूठ, आम जनता के लिए सच का रूप ले लेते हैं, यह खतरनाक है ! वर्तमान में झूठ, बल्कि खुले झूठ, का राजनीति में एक गैसलाइटिंग हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाना शुरू हो चुका है ! विपक्षी पर सार्वजनिक मंच से बेशर्मी से झूठ बोल, असंसदीय शब्द या मिथ्या घृणित आरोप लगा कर यह दावा करना कि मेरा कथन ही सच है, यही है गैसलाइटिंग..............!         

#हिन्दी_ब्लागिंग 

गैसलाइटिंग ! क्या होती है गैसलाइटिंग, जिसकी वेबसाइटों पर हुई बेपनाह खोज के कारण अमेरिका के जाने-माने पब्लिशर मेरियम बेवस्टर ने वर्ड ऑफ द ईयर चुना है ? उनके अनुसार इस शब्द का अर्थ है, किसी के द्वारा किसी के आत्म-संदेह को बढ़ावा देना ! किसी को उसकी सोच और विचारों पर संदेह दिला उनको नकारने के लिए प्रेरित करना। इससे पीड़ित व्यक्ति को अपनी ही समझ पर संदेह होने लगता है ! जिससे वह चिंता, अवसाद, भटकाव जैसी भावनाओं से ग्रस्त हो जाता है और इसका असर उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी हानिकारक रूप से पड़ने लगता है !

प्रभाव 
पैट्रिक हैमिल्टन के एक नाटक "गैस लाइट" का 1938 में मंचन हुआ था। बाद में 1944 में उस नाटक पर बनी फिल्म के कथानक में एक व्यक्ति धोखे से अपनी पत्नी को यह विश्वास दिलाने का प्रयास करता है कि वह पागल हो रही है, जबकि ऐसा था नहीं ! सबसे पहले गैसलाइटिंग शब्द का प्रयोग उसी फिल्म में किया गया था ! 

मय के साथ-साथ मुहावरों, शब्दों के अर्थ बदलते रहते हैं ! वर्तमान में गैसलाइटिंग का रूप और अर्थ बदल गया है ! आज छल, फरेब, दगाबाजी और खुले झूठ के जरिए सामाजिक मनोविज्ञान की हेराफेरी को भी "गैसलाइटिंग" कहा जा सकता है। वह साजिश के सिद्धांतों के तहत डीपफेक, ट्विटर, फेक न्यूज और ट्रोलिंग द्वारा सच को झूठ और झूठ को सच में बदलने का हथियार बन गया है ! आजकल, किसी राजनेता या राजनीतिक संगठन के लिये सार्वजनिक बातचीत को विषय से भटकाने और किसी विशेष दृष्टिकोण के पक्ष में या उसके खिलाफ राय में हेरफेर करने की रणनीति के रूप में गैसलाइटिंग का उपयोग करना सामान्य बात है।

प्रक्रिया 
ज इस अस्त्र का इस्तेमाल, देश-विदेश में अपने ही देश, उसकी व्यवस्था, उसकी संस्थाओं की आलोचना करने और उन सब को व्यवस्थित तथा सुधारने के लिए खुद को प्रोजेक्ट करने के लिए हो रहा है ! हालांकि ऐसी हरकतों और बयानों के पीछे अपने कारण हो सकते हैं। लेकिन तथ्यों से खिलवाड़ और झूठ को सच की तरह पेश करने की हिमाकत, बेशर्मी, छल-कपट और मक्कारी की इंतहा है ! भले ही लानत-मलानत होती हो, शर्मसार होना पड़ता हो, पर निर्लज्जता की कोई सीमा नहीं है !

नेता ??
राजनीति में जनोन्माद का भाव पैदा करना स्वाभाविक है। कोई अगर किसी पार्टी पर हमला कर राजनीतिक बढ़त हासिल करने की कोशिश करता है तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। परंतु सोशल मीडिया के युग में, बार-बार फैलाए गए झूठ, आम जनता के लिए सच का रूप ले लेते हैं, यह खतरनाक है ! वर्तमान में झूठ, बल्कि खुले झूठ, का राजनीति में एक गैसलाइटिंग हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाना शुरू हो चुका है ! विपक्षी पर सार्वजनिक मंच से बेशर्मी से झूठ बोल, असंसदीय शब्द या मिथ्या घृणित आरोप लगा कर यह दावा करना कि मेरा कथन ही सच है, यही है वह बला, जिसे गैसलाइटिंग कहा जाता है 
गैसलाइटिंग ग्रसित 
से झूठ के पुलिंदों की सच्चाई को उजागर करने के लिए जनता यानी पब्लिक को ही गैस लाइटिंग के धुंए से फैले धुंधलके को दूर हटा, उसी गैस की रौशनी का उपयोग कर, सार्वजनिक रूप से, सरे आम, मक्कारों के चेहरों से  मुखौटे उतार, उनकी असलियत को देश-दुनिया के सामने लाना होगा ! तभी देश को शांति और सुरक्षा मिल पाएगी !

https://youtube.com/@gagansharma8554?si=70eu3nbJkp0Lti1W?view_as=subscribe?sub_confirmation=1 

सभी चित्रों के लिए अंतर्जाल का आभार  

बुधवार, 7 अगस्त 2024

एक हैं रामचेत, सुल्तानपुर वाले

अब बात साइड इफेक्ट की ! इस मुलाकात के बाद रामचेत जी सुर्खियों में आ गए ! आना ही था ! दूकान पर लोग पहुंचने लगे ! दूर-दूर से फोन आने लगे ! अपने गांव-खेड़े में उनकी इज्जत बढ़ गई ! मीडिया उनके इंटरव्यू के लिए समय लेने लगा ! वे खुश हैं, गदगद हैं ! उनके साथ-साथ उस पुरानी चप्पल के भी भाग खुल गए ! देश-परदेस में उसकी फोटो ''वायरल'' हो गई ! खबरें हैं कि उसकी कीमत भी लगने लगी है ! कौन लगा रहा है इसकी जानकारी गोपनीय है ! ज्ञातव्य है कि कुछ सालों पहले ऐसे ही किसी पेंटिंग की भी दो करोड़ की  बोली लगी थी ! किसी को फुरसत नहीं है कि पूछे कि साहब उत्तर प्रदेश की उस गरीब महिला कलावती का आजकल क्या हाल है, जिसका पहली बार आपने मनरेगा मजदूर बन, मिटटी का टोकरा उठा कर आपने फोटुएं खिंचवाईं थी...........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

पिछले कई दिनों से राहुल गांधी के तरह-तरह के अवतार देश के सामने लाए जा रहे हैं ! कभी खेत में किसानों के साथ, कभी रेलवे कुलियों के साथ, कभी किसी मेकेनिक के साथ, कभी बढ़ई के साथ, कभी रेलवे के स्टाफ के साथ और कभी किसी जूते गांठने वाले की गुमटी पर ! विरोधियों द्वारा इसका काफी मजाक बनाया गया ! काफी ट्रोलिंग हुई ! उनके व्यक्तित्व पर भी सवाल उछाले गए ! पर शायद इन ड्रामों के सीधे-सरल आमजन पर पड़ने वाले प्रभाव पर किसी ने ध्यान नहीं दिया ! जो सुलतानपुर एपिसोड के बाद अचानक सामने आया है ! जिसमें रामचेत ने अपने पूरे गांव के साथ उनको वोट देने की बात की है ! इससे तो यही लगता है कि बहुत सावधानी से डूब कर पानी पिया जा रहा है ! यानी ऐड़ा बन कर नहीं, ऐड़ा बना कर पेड़ा खाया जा रहा है !     
हुनर 
पिछले दिनों 26 जुलाई को अपने एक केस के सिलसिले में यू.पी. के सुल्तानपुर के कोर्ट में पेशी के बाद लौटते समय राहुल गांधी का काफिला अचानक कूरेभार क्षेत्र के विधायक नगर के मुख्य मार्ग पर स्थित राम चेत मोची की छोटी सी गुमटीनुमा जूतों की दुकान पर रुकता है ! राहुल जी अपने दल-बल के साथ गाड़ी से उतर कर दुकान में विराजमान हो जाते हैं ! वहीं रामचेत जी से बातचीत होती है ! एक पुरानी चप्पल उठा, उसकी गठाई तथा एक जूते में सोल चिपकाया जाता है ! काफिला करीब आधा घंटा वहां गुजार, मदद का वादा कर आगे रवाना हो जाता है ! वादे के अनुसार रामचेत जी को एक मशीन भी भेजी जाती है, हालांकि बिजली ना होने की वजह से फिलहाल वह काम नहीं कर रही ! रामचेत जी भी रिटर्न गिफ्ट के रूप में अपने हाथ से बनाए दो जूते उन्हें भिजवाते हैं ! अच्छा रहा सब कुछ ! बहुत अच्छा ! 
रामचेत जी 
अब बात साइड इफेक्ट की ! इस मुलाकात के बाद रामचेत जी सुर्खियों में आ गए ! आना ही था ! दूकान पर लोग पहुंचने लगे ! फोन आने लगे ! अपने गांव-खेड़े में उनकी इज्जत बढ़ गई ! मीडिया उनके इंटरव्यू के लिए समय लेने लगा ! वे गदगद हैं ! इनके साथ-साथ उस चप्पल के भी भाग खुल गए ! देश-परदेस में उसकी फोटो ''वायरल'' हो गई ! खबरें हैं कि उसकी कीमत भी लगने लगी है ! कौन लगा रहा है, इसकी जानकारी गोपनीय है ! ज्ञातव्य है कि कुछ सालों पहले ऐसे ही किसी पेंटिंग की भी दो करोड़ की बोली लगाई गई थी ! पर अभी तो 40-45 साल से तंगहाली और गुरबत की अवस्था में रहने वाले, इस घटना से उस स्थिति में कोई खास बदलाव ना आने के बावजूद, रामचेत जी अभी इस लाइम-लाइट का मजा ले रहे हैं !
सिलाई मशीन 
इसमें सियासत क्या हुई ! एक लोकल चैनल के साक्षात्कार में जब रामचेत जी से राहुल जी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उन्हें पहली बार देखा है। पोस्टरों में चेहरा देखा होने की वजह से पहचान गए ! उनके अनुसार वे बहुत ही नेकदिल, दयालु और सज्जन इंसान हैं ! वे अपने वादे के भी पक्के हैं ! मैं छोटी जाति का हूँ (उन्होंने अपनी जाति भी बताई ) आजतक किसी छोट-मोटे नेता तक ने कभी मेरी दूकान की तरफ रुख नहीं किया पर आज देश का इतना बड़ा नेता आ कर मेरे पास बैठा ! मेरे से बात की ! मेरा हाल-चाल जाना ! यह उनकी महानता है ! उनका बड़प्पन है ! मैं धन्य हो गया ! 
लखटकिया चप्पल 
जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा गया कि आप वोट किसको देंगे तो बिना एक क्षण लगाए, सीधे-सरल रामचेत जी ने राहुल गांधी का ही नाम तो लिया ही, विश्वास के साथ यह भी कहा कि मैं तो क्या सारा गांव उन्हीं को वोट देगा। देश का नेता ऐसा ही मिलनसार, भलामानुष, गरीबों का ध्यान रखने वाला होना चाहिए ! यही बात गौर करने वाली है कि राहुल का कहीं भी रुकना, किसी से भी मिलना, उसके काम में दिलचस्पी दिखाना, उससे बात करना, क्या यह सब स्वतःस्फूर्त है या सब कुछ किसी स्क्रिप्ट के तहत, एक दीर्घ कालीन योजना को ध्यान में रख कर किया जा रहा है ? खोजबीन तो यही बताती है कि यह सब एक सोची समझी रणनीति के तहत, सर्वे कर, पूरी स्क्रिप्ट बना, उचित कलाकार को चुन, पहले से पूरी बिसात बिछा कर घटना को अंजाम दिया जाता है ! 
असर क्या है ? समाज के उन गरीब मजदूर, मेकेनिक, कारपेंटर, कुली, मोची, जिनसे कोई ढंग से बात भी नहीं करता उनके मन पर इन सब बातों से बड़ा गहरा असर पड़ता है ! ऐसे अत्यंत पिछड़े, समाज के अंतिम छोर पर खड़े इंसान को जब ऐसी हमदर्दी, ऐसा सम्मान, ऐसी इज्जत मिलती है, जिसकी उसने सपने में भी कल्पना ना की हो, जब अचानक वह अपने आप का कद अपने लोगों में बढ़ा पाता है तो निहाल हो, गर्व सा महसूस करने लगता है और इस बात को चारों ओर ज्यादा से ज्यादा प्रचारित-प्रसारित  करने में वह कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता ! वह सबको बताता है कि देखो इतना बड़ा आदमी, देश का नेता, कितना रहम दिल है, जो हमारी खोज-खबर ले रहा है ! हमारा इतना ख्याल रख रहा है ! जहां देश के बड़े-बड़े लोग नहीं जा सकते वहां हमें ले जा कर बैठाता है ! हमारा सुख-दुःख पूछता है ! यदि यह सत्ता में आ गया तो सारे गरीबों का कल्याण  हो जाएगा ! उसकी यह बात वह काम कर जाती है जो किसी नेता की दस-बीस हजार की सभा में दिया गया भाषण भी नहीं कर पाता ! 
फोटो सेशन 
उसको इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि सामने वाला किस लिए ऐसा कर रहा है ! उसका आचरण क्या है ! वो जो कर रहा है वह नाटक है या सच्चाई ! उसे सिर्फ इतना पता होता है कि उस इंसान के कारण उसकी जिंदगी में एक सुखद बदलाव आया है और मैं उसी का साथ दूँगा ! अपने परिवार की चिंता से ग्रस्त जिंदगी के थपेड़ों से जूझते ऐसे लोगों को फुर्सत ही कहां मिलती है कि वे आस-पास घटित हो रहे वाकयों पर ध्यान दे सकें ? नहीं तो इनमें से कोई तो पूछता कि साहब उत्तर प्रदेश की उस गरीब महिला कलावती का क्या हाल है, जिसका पहली बार मनरेगा मजदूर बन, मिटटी का टोकरा उठा कर आपने फोटुएं खिंचवाईं थीं ? 

गरीबों के मनोविज्ञान को, लोगों की इसी कमजोर रग को, राहुल जी की सलाहकार समिति ने समझ, अपना चक्रव्यूह उसी के अनुसार रच डाला है ! बाकी का काम तो उनके साथ चलते निर्देशकों, स्क्रिप्ट लेखकों और कैमरों ने पूरा कर ही दिया है ! एक बात और कि इस तरह के सारे नाटकों का श्रेय उनके निदेशक को जाता है, कलाकार रूपी राहुल जी तो पूरी तरह, सपूर्णतया निर्देशक के नायक हैं, जो उसने कहा अक्षरशः वैसा ही निभा दिया !   

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

शुक्रवार, 29 मई 2020

वे भी मेरी निष्पक्षता और मंतव्य को समझते थे।

आजकल लॉकडाउन में बिटिया ऋद्धिमा, पुत्रवधु, जिसे घर में रिद्धि या रिद्दु कह कर ही बुलाते हैं, अक्सर कुछ नया व्यंजन बना उसे ''लॉक'' कर, मेरी राय जानना चाहती है ! उस पदार्थ का उसके हाथों पहली बार धरा पर अवतरण होने के कारण उसकी ऐसी जिज्ञासा का होना स्वाभाविक भी है ! जब उसे सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल जाती है तब उसकी मांग मुझसे  ''आउट ऑफ़ टेन'' कुछ नंबर पाने की हो जाती है जो मेरे द्वारा सात-साढ़े सात से ऊपर नहीं जा पाता !


कुछ सालों पहले रायपुर में बी.एड. के छात्र-छात्राओं के पुष्प सज्जा, मूर्तिकला व रंगोली इत्यादि की स्पर्धा में अक्सर मुझे जज की भूमिका निभाने का अवसर मिलता रहता था। छात्रों को मुझसे हौसलाअफजाई और सलाह तो मिल जाती थी पर स्पर्द्धा के दौरान उन्हें मुझसे औरों की बजाय कुछ कम ही नंबर मिल पाते थे। पर वे भी शायद मेरी निष्पक्षता और मंतव्य को समझते थे।  


अब एक कहानी - किसी नगर में एक बहुत ही निष्णात और निपुण शिल्पकार रहता था।  जिसकी ख्याति देश-विदेश में दूर-दूर तक फैली हुई थी। उसका एक ही लड़का था। अपनी कला की विरासत को ज़िंदा रखने के लिए शिल्पी ने अपने बेटे को शिल्प की बारीकियां समझा उसे हर तरह से निपुण कर दिया था। लड़के की कला भी मशहूर हो चुकी थी। अलग-अलग राज्यों से उसे बुलावा आने लगा था। सराहना के साथ-साथ दिनों-दिन पारितोषिकों में भी इजाफा होता चला जा रहा था। पर वह युवक जब भी अपने पिता से अपनी कलाकृति के बारे में पूछता तो पिता हर बार उसमें कोई ना कोई कमी निकाल देता था। लड़का और मनोयोग से अपनी कला को निखारने में जुट जाता था। एक बार उसने अपना सब कुछ झोंक कर एक बेहतरीन प्रतिमा बनाई ! लोग उसे देख दांतों तले उंगलियां दबाने लगे ! सभी ने यहां तक कि राजा ने भी उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा की। पर इस बार भी युवक कलाकार का पिता नाखुश ही रहा। उसके इस बर्ताव से युवक को दुःख के साथ-साथ क्रोध भी बहुत आया और उसने अपने पिता से कहा कि लगता है आप मेरी सफलता से ईर्ष्या करते हैं ! मेरी यशो-कीर्ति आपको अच्छी नहीं लगती। आप किसी दुर्भावना के तहत मेरी हर कृति में खामियां निकाल देते हैं ! ऐसा क्यों ? आज आपको बताना ही पडेगा ! अपने पुत्र की बात सुन शिल्पकार गंभीर हो गया ! पर आज समय आ पहुंचा था सच बताने का ! उसने अपने बेटे को शांत हो जाने को कहा और बोला कि मैं तुम्हें अपने से भी बड़ा शिल्पकार बनता हुआ देखना चाहता हूँ ! इसीलिए मैं तुम्हारी हर कलाकृति में मीन-मेख निकाला करता हूँ और इसीलिए अब तक तुम अपनी कला को और बेहतर करने के लिए जुट जाते थे। मुझे पता था कि जिस दिन मैंने तुम्हारी कला की प्रशंसा कर दी; उसी दिन तुम संतुष्ट हो जाओगे ! और जब भी कोई कलाकार अपने काम से संतुष्ट हो जाता है उसी समय उसकी कला का एक तरह से अंत हो जाता है ! उसकी और बेहतर करने की भूख ख़त्म हो जाती है ! उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है ! ऐसा तुम्हारे साथ ना हो, तुम विश्व के महान शिल्पकार बन सको इसीलिए मेरा ऐसा व्यवहार हुआ करता था। पिता की बात सुन पुत्र की आँखों से आंसू बह निकले ! वह क्षमा माँगते हुए अपने पिता के चरणों में झुक गया। 


पता नहीं क्यों जब भी ऐसा कोई ''क्षण''  सम्मुख होता है तो यह पुरानी कहानी भी सामने आ खड़ी हो जाती है ! 

शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

अंधकार से ही जीवन व ज्ञान उपजा है

अंधकार ! जिसकी बात होते आते या दिखते ही एक नकारात्मक भावना दिलों में छा जाती है ! पर सच्चाई तो यही है कि अँधेरा चाहे कितना भी घना हो, उसके पीछे, उसी परिवेश में, उसी के संरक्षण में सृजन, सृष्टि व विकास का क्रम लगातार, अनवरत रूप से सतत चलता ही रहता है ! तभी तो जीवन का प्रादुर्भाव हुआ ! प्रकाश की उत्पत्ति हुई ! प्रकाश हुआ तभी ज्ञान का भी विकास हो पाया ! ज्ञान बढ़ा तभी समाज, देश, दुनिया की तरक्की हो पायी। इतना सब होने और देने के बावजूद, अकारण ही हम अँधेरे को अमंगल मान बैठे हैं। ये तो हमारा ही संकुचित दृष्टिकोण और अज्ञान हुआ ! कायनात की इस विशाल, रहस्यमयी, चिलमन के पीछे, क्या छिपा है, प्रकृति क्या बुन रही है, प्रभु की कौन सी लीला अवतरित होने वाली है: कौन जानता है........!  

#हिन्दी_ब्लागिंग
उजाला और अँधेरा, जैसे एक ही सिक्के के दो पहलु ! पर उजास को जहां ज्ञान, जीवन, उत्साह, शुचिता और जीवंतता का प्रतीक माना जाता है, वहीं अंधकार को निराशा, हताशा, अज्ञान या अमंगल का पर्याय मान लिया गया है। पर एक सच्चाई यह भी है कि आज भी ब्रह्मांड में इसका अस्तित्व उजाले से कहीं ज्यादा है, चाहे उसका विस्तार अनंत अंतरिक्ष में हो, चाहे सागर की अतल गहराइयों में ! चाहे इंसान के अबूझ मस्तिष्क की बात हो चाहे अगम मन की, सब जगह अंधकार अपने स्थूल रूप में विद्यमान नजर आता है। भले ही इस बात से मुंह फेर लिया जाए पर अंधकार के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। चाहे पौराणिक कथाएं हों, कथा-कहानियां हों या वैज्ञानिक तथ्य सबमें अंधकार की उपस्थिति अनिवार्यत: दिखलाई पड़ती है।

यहां अंधेरे के गुणगान का प्रयास नहीं हो रहा पर कुछ तो होगा इसके रहस्यमय वातावरण में जिसके कारण विष्णु जी को सागर की अतल गहराइयां मुनासिब बैठतीं होंगी ! क्यों ऋषि-मुनि पहाड़ों की अँधेरी गुफाओं में जा कर ही तप करते होंगे ! क्यों प्रकृति ने अंतरिक्ष और सागर की गहराइयों में प्रकाश की व्यवस्था नहीं की ! क्यों आँखें बंद कर अँधेरे की शरण में जा कर ही प्रभु का ध्यान लग पाता है ! क्यों आदमी को अपने जीवन का करीब एक तिहाई नींद के अँधेरे में गुजारना पड़ता है ! कैसे आँखों में रौशनी ना होने, जगत के प्रकाश की चकाचौंध से अनजान रहने के बावजूद भी सूरदास, मिल्टन, के सी डे, हेलेन केलर, जैसे सैंकड़ों लोग अंधेपन के अंधेरे के सानिध्य रह कर भी अपने आप को जगत्प्रसिद्ध कर पाए !


ज्ञान की बात करें तो प्रकाश की उपयोगिता को तो किसी भी तरह नकारा नहीं जा सकता। अंधकार से निकलने के पश्चात ही ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति हुयी। दुनिया ने तरक्की की। एक-दूसरे को जाना-पहचाना। तरह-तरह की ईजादें हुईं। ज्ञान-विज्ञान से इंसान और यह संसार नई-नई ऊंचाइयों तक पहुंचे। लोगों के जीवन में खुशहाली आई। पर जब सृजन की बात आती है, नव निर्माण की बात आती है, सृष्टि की बात आती है तो अंधकार की भूमिका अहम हो जाती है। जीवन की बात करें तो सारे जीव-जंतु, पशु-पक्षी, जानवर-इंसान सभी तो माँ के गर्भ के अंदर अंधकार में पल कर ही जीवन पाते हैं। यहां तक कि पेड़-पौधे, वृक्ष-लताएं इन सभी को सूरज का प्रकाश देखने के पहले धरा की अंधेरी कोख में ही रह कर अपनी जड़ें मजबूत करनी पड़ती हैं। जितनी कीमती और दुर्लभ धातुएं हैं उनका काया पलट धरती की गहराइयों की अंधेरी कोख में ही संभव है ! जीवनदाई जल अपने निर्मल रूप में धरा की अंधेरी गोद से ही निकल चराचर की प्यास शांत कर पाता है। सूर्यास्त के पश्चात, आसमान में कालिमा छाने के बाद ही कायनात की अद्भुत कारीगिरी, चाँद और सितारों के रूप में सामने आ पाती है ! जन्म लेने के बाद भी जीवन की ऊंचाइयों के सपने देखने के लिए इंसान अपनी आँखों की डिबिया बंद करने के पश्चात ही उस अँधेरी दुनिया के तिलिस्म में प्रवेश कर पाता है ! प्रकृति का सबसे बड़ा अजूबा हमारा शरीर हमें चलायमान रखने के लिए अपने सारे क्रिया-कलाप शरीर के अंदर के अँधेरे में ही पूरा करता है ! घने जंगलों के अंधकार में, धरती की गहरी-अंधी-घुप्प गुफाओं में, सागर की अगम्य-घनी-रौशनी विहीन गहराइयों में भी असंख्य जीव अपना जीवन चक्र बिना किसी बाधा या परेशानी के पूरा करते हैं ! सोचिए यदि कजरारे बादल नभ में छा, सुरमई अंधेरा फैला कर मधु-रस की वर्षा ना करते तो क्या धरा पर जीवन की कल्पना संभव हो पाती ! और तो और आज दुनिया का सबसे बड़ा, लोकप्रिय और सर्वव्यापी मनोरंजन का साधन सिनेमा,  हॉल में अंधेरा किए बिना देख पाना कहां संभव है, भले ही इसमें उजाले का भी कुछ हाथ हो ! 


* ऋग्वेद - सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था। छिपा था क्या कहां, किसने देखा था उस पल तो अगम, अटल जल भी कहां था। था तो हिरण्य गर्भसृष्टि से पहले विद्यमान, वही तो सारे भूत जाति का स्वामी महान।............ यानी तम का साम्राज्य !

शिव पुराण - सृष्टि के पहले ब्रह्मा और विष्णु जी में कौन बड़ा और पूजनीय की बात को ले छिड़े विवाद के हल स्वरुप शिव जी उन दोनों के बीच एक विशाल अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। घोर अंधकार और भयानक विस्फोट के साथ उपजे उस प्रकाश स्तंभ के ओर-छोर का पता करने हेतु हंस रूप धारण कर ब्रह्मा ऊपर तथा वराह रूपी विष्णु जी नीचे की ओर चल पड़े।...........  यानी चहूँ ओर अंधेरा !

* जिस समय सृष्टि में अंधकार था। न जल, न अग्नि और न वायु था तब वही तत्सदब्रह्म ही था जिसे श्रुति में सत् कहा गया है। सत् अर्थात अविनाशी परमात्मा।.........सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा !

* वैज्ञानिकों में एक अवधारणा यह भी हैं कि शुरुआत में ब्रह्मांड की सारी आकाश गंगाएं, आकाशीय पिंड, सभी कण और सभी पदार्थ  एक ही साथ, एक ही जगह, एक ही बिंदु पर स्थित थे ! यह बिंदु अत्यंत छोटा होते हुए भी अत्यधिक घनत्व और अत्यंत गर्म था। यह विवरण ''ब्लैक हॉल'' की याद दिलाता है जिससे प्रकाश भी बाहर नहीं आ पाता।................यानी गहन अंधकार !

ब्रह्मांड विज्ञान के वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि ब्रह्मांड का जन्म एक महाविस्फोट (Big Bang) से हुआ है और उसके पश्चात उसका लगातार विस्तार हो रहा है। उसके पहले क्या था ! कैसा था ! इसका तो अभी सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा रहा है।............ यहां भी अभी अन्धकार की थ्योरी ही काम कर रही है !
  
इन सारे तथ्यों से एक बात निकल कर सामने आती है कि पहले जो कुछ भी था वह निपट तम का ही एक हिस्सा था ! फिर एक भयंकर उथल-पुथल के फलस्वरूप हुए महाविस्फ़ोटों के कारण ब्रह्मांड का निर्माण हुआ, जिसके फलस्वरूप अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न हुई और उससे इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्युट्रान तथा फोटॉन जैसे कण अस्तित्व में आए। इन्हीं में से का एक कण फोटॉन प्रकाश और रौशनी का कारक है। फोटान वो कण हैं जिनसे रौशनी बनती है; यानी ब्रह्मांड निर्माण के पहले सिर्फ अंधकार का ही साम्राज्य था ! अभी भी कायनात की इस विशाल, रहस्यमयी चिलमन के पीछे क्या छिपा है, प्रकृति क्या बुन रही है, प्रभु की कौन सी लीला अवतरित होने वाली है: कौन जानता है !  



इन सब से एक बात तो साफ़ हो जाती है कि अंधकार चाहे कितना भी घना हो, उसके पीछे, उसी परिवेश में, उसी के संरक्षण में सृजन, सृष्टि व विकास का क्रम तो लगातार, अनवरत रूप से सतत चलता ही रहता है ! तभी तो जीवन का प्रादुर्भाव हुआ ! प्रकाश की उत्पत्ति हुई ! प्रकाश हुआ तभी ज्ञान का भी विकास हो पाया ! ज्ञान बढ़ा तभी समाज, देश, दुनिया की तरक्की हो पायी। इतना सब होने और देने के बावजूद अकारण ही हम इसे अमंगल मान बैठे हैं। ये तो हमारा ही संकुचित दृष्टिकोण और अज्ञान हुआ ! 

विशिष्ट पोस्ट

त्रासदी, नंबर दो होने की 😔 (विडियो सहित)

वीडियो में एक  व्यक्ति रैंप  पर स्नोबोर्डिंग  करने  की  कोशिश  करता  है, पर असफल  हो  जाता है।  यूट्यूब पर जावेद करीम के दुनिया के पहले  वीड...