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सोमवार, 18 अगस्त 2025

शौक या अत्याचार 😢(विडियो सहित)

कभी  आपने पिजंड़े में   कैद जानवरों  के  चेहरों को ध्यान से देखा है  ? जहां  हर जीव के  चेहरे पर छटपटाहट, बेबसी, निराशा, उदासी, थकावट,  उकताहट जैसे भाव  स्थाई हो कर रह गए होते हैं ! यहां आहार तो  इन्हें बिना किसी उपक्रम व परिश्रम  के मिल जाता है ! इसीलिए बिना दौड़-भाग के सिर्फ खाने और सोने के कारण उनकी शारीरिक क्रियाऐं दिन ब दिन शिथिल होती चली जाती हैं और ये समय से पहले बूढ़े, बीमार होते चले जाते हैं.........!       

#हिन्दी_ब्लागिंग 

इंसान सदा से एक फितरती प्राणी रहा है ! वह अपने आप को संसार के सभी जीवों से उत्कृष्ट मानता आया है ! उसे लगता है कि वही इस जगत का स्वामी है, बाकी सारे जीव-जंतु उसकी मिल्कियत हैं ! इतना ही नहीं यदि वह सक्षम व सशक्त भी हो जाए तो वह तो निरीह इंसानों तक को नहीं बख्शता,उनको अपना दास बना लेता है, जानवर क्या चीज हैं ! 

शौक की कीमत 
सी मानसिकता के चलते कई लोग अपने शौक की पूर्ती के लिए जानवरों के बच्चों को पालते हैं ! जिनमें कई खूंखार जंगली नस्लें भी होती हैं ! शौक-शौक है ! बस, उसे पूरा करने की क्षमता होनी चाहिए ! संसार में ऐसे सक्षमों की कोई कमी नहीं है ! 

जानवरों को पालना कोई बुरी बात नहीं है ! देश-विदेश में ऐसा वर्षों से होता आया है ! यदि पशु-पक्षी बेसहारा हो, अपने परिवार से बिछुड़ा हुआ हो या उसकी जान को खतरा हो तो उसकी रक्षा करना, उसका जीवन बचाना पुण्य का काम माना जाता है ! परंतु सिर्फ अपने शौक को पूरा करने के लिए जंगली जानवरों के शावकों, पशु-पक्षियों या अन्य जीवों को सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए बंदी बनाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता ! 

स्नेह 
शुरू-शुरू में पशु शावकों और इंसानों में सौहार्द बना रहता है, बच्चों को दुलार, प्यार, सेवा, सुरक्षा सब मिलता है, परंतु जब वही शावक कुछ बड़े हो जाते हैं और उनमें उनकी नैसर्गिक क्षमताएं, आदतें और प्रवित्तियां उभरने लगती हैं तो इंसानों को वे अपने लिए खतरा लगने लगते हैं और उन्हीं से डर कर उन्हें पिंजड़ों में बंदी बना नारकीय जीवन जीने पर मजबूर कर दिया जाता है ! 


प्रताड़ना 
चिड़ियाघर भी कुछ ऐसी ही जगह है ! फर्क इतना ही है कि वहां शौक नहीं बल्कि इंसान के जानने, समझने के नाम पर बेकसूर जीवों को छोटे-बड़े पिजरों में आजन्म कैद कर रखा जाता है ! जहां सबसे बड़ी मुसीबत सरीसृप जाति को होती है जो अपने आकार से कहीं छोटे कांच के बक्सों में कैद होते हैं ! भले ही कुछेक जानवरों के बाड़े बड़े होते हैं पर कैद, कैद होती है। आजादी, आजादी !

                                                 

पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं 
भी आपने इन कैदी जीवों के चेहरों को ध्यान से देखा है ? जहां हर जीव के चेहरे पर बेबसी, छटपटाहट, निराशा, उदासी, थकावट, उकताहट जैसे भाव स्थाई हो कर रह गए होते हैं ! यहां इन्हें आहार बिना किसी उपक्रम के मिल जाता है ! इसलिए बिना दौड़-भाग के सिर्फ खाने और सोने के कारण उनकी शारीरिक क्रियाऐं दिन ब दिन शिथिल होती चली जाती हैं और ये समय से पहले बूढ़े, बीमार होते चले जाते हैं ! 

                                                 

       
आजादी 
हालांकि हम सब में इस को लेकर थोड़ी बहुत जागरूकता तो आई है पर वह ना के बराबर है ! इन प्राणियों को भी प्रेम, प्यार, करुणा और आजादी की उतनी ही जरुरत है, जितनी कि हमें !  

@चित्र अनुज रंजन तथा अंतर्जाल के सौजन्य से  

रविवार, 15 अगस्त 2021

अब स्वतंत्रता दिवस, निपटाना नहीं मनाना है

वर्षों तक लोग स्वंय-स्फुर्त हो घरों से निकल आते थे। पूरे साल जैसे राष्ट्रीय दिवस का इंतजार रहता था ! पर अब लोग इनसे  जुडे समारोहों में खुद  नहीं आते, उन्हें बरबस वहां लाया जाता है। दुःख होता है, यह देख कर कि इन पर्वों  को मनाया नहीं, बस  किसी तरह निपटाया  जाता है। इससे भी इंकार नहीं है कि देश-दुनिया का माहौल,  अराजकता, आतंक, असहिष्णुता जैसे  कारक भी इनसे  दूरी बनाने के कारण हैं, पर कटु सत्य यही है कि लोगों की भावनाएं अब पहले जैसी नहीं रहीं ............!

#हिन्दी_ब्लागिंग      
15 अगस्त, वह पावन दिवस जब देशवासियों ने एकजुट हो आजादी पाई थी। कितनी खुशी, उत्साह और उमंग थी तब। वर्षों तक लोग स्वंय-स्फुर्त हो घरों से निकल आते थे, पूरे साल जैसे इस दिन का इंतजार रहता था। पर धीरे-धीरे आदर्श, चरित्र, देश प्रेम की भावना का छरण होने के साथ-साथ यह पर्व महज एक अवकाश दिवस के रूप मे परिवर्तित होने पर मजबूर हो गया। इस कारण और इसी के साथ आम जनता का अपने तथाकथित नेताओं से भी मोह भंग होता चला गया। 
   
अब लोग इससे जुडे समारोहों में खुद नहीं आते उन्हें बरबस वहां लाया जाता है। अब इस पर्व को मनाया नहीं निपटाया जाता है। आज हाल यह है कि संस्थाओं में, दफ्तरों में और किसी दिन जाओ न जाओ आज जाना बहुत जरूरी होता है, अपने-आप को देश-भक्त सिद्ध करने के लिए। खासकर विद्यालयों, महाविद्यालयों में जा कर देखें, पाएंगे मन मार कर आए हुए लोगों का जमावड़ा, कागज का तिरंगा थामे बच्चों को भेड़-बकरियों की तरह घेर-घार कर संभाल रही शिक्षिकाएं ! साल में सिर्फ दो या तीन बार निकलती गांधीजी की तस्वीर ! नियत समय के बाद आ अपनी अहमियत जताते खास लोग। फिर मशीनी तौर पर सब कुछ जैसा चला आ रहा है वैसा ही निपटता चला जाता है ! झंडोत्तोलन, वंदन, वितरण, फिर दो शब्दों के लिए चार वक्ता, जिनमे से तीन आँग्ल भाषा का उपयोग कर उपस्थित जन-समूह को धन्य करते हैं और लो हो गया सब का फ़र्ज पूरा। कमोबेश यही हाल सब जगह है।
 
खुदा ना खास्ता यदि ये राष्ट्रीय दिवस रविवार को पड़ जाएं तो बाबू लोगों के मुंह का स्वाद और भी कड़वा हो जाता है ! लगता है जैसे उनकी कोई प्रिय चीज लूट ली गई हो ! चौबीस घंटे में पैंतालीस बार इस बात का दुखड़ा आपस में रो कर मातम मनाऐंगे ! कारण भी तो है ! हमें काम करने की आदत ही नहीं रह गई है ! साल शुरू होते ही हम कैलेण्डर में पहले छुट्टियों की तारीखें देखते हैं ! हर समय कुछ मुफ्त में पाने की फिराक में रहते हैं ! इसमें दोष अवाम का भी नहीं है ! कहावत है जैसा राजा वैसी प्रजा ! आज जापान को देखिए वहां सौ में नब्बे आदमी ईमानदार है ! क्योंकि उन्हें वैसा ही नेतृत्व मिला ! हमारे यहां उसका ठीक उलट, सौ में नब्बे बेईमान हैं ! ऐसा क्यों हुआ, कहने की कोई जरुरत ही नहीं है ! अवाम को जैसा दिखा वैसा ही उसने सीखा ! पचासों साल से आम आदमी ने लूट-खसोट, भ्रष्टाचार, बेईमानी, मनमानी, उच्चश्रृंखलता का राज देखा ! वह भी वैसा ही हो गया ! 
आजादी के शुरु के वर्षों में सारे भारतवासियों में एक जोश था, उमंग थी, जुनून था। प्रभात फ़ेरियां, जनसेवा के कार्य और देश-भक्ति की भावना लोगों में कूट-कूट कर भरी हुई थीं। चरित्रवान, ओजस्वी, देश के लिए कुछ कर गुजरने वाले नेताओं से लोगों को प्रेरणा मिलती थी। यह परंपरा कुछ वर्षों तक तो चली फिर धीरे-धीरे सारी बातें गौण होती चली गयीं। देश सेवा एक व्यवसाय बन गई ! सत्ता हासिल करने की होड़ लग गई !  पहले जैसी भावनाएं, उत्साह, समर्पण सब तिरोहित हो गए ! इसका असर आम आदमी पर पडना ही था, पड़ा,और वह भी देशप्रेम की भावना से दूर होता चला गया ! उसमें भी ''मैं और मेरा'' का भाव गहरे तक पैठ गया ! धीरे-धीरे यह बात कुटेव बन गई ! अब यदि इसे सुधारने की कोशिश की जाती है तो उसमें भी लोगों को बुराई नजर आती है ! उसका भी विरोध होता है ! सामने वाले की मंशा पर शक होने लगता है ! 
जब चारों ओर हताशा, निराशा, वैमनस्य, खून-खराबा, भ्रष्टाचार बुरी तरह हावी हों तो यह भी कहने में संकोच होता है कि आइए हम सब मिल कर बेहतर भारत के लिए कोई संकल्प लें। पर संकल्प तो लेना ही पडेगा ! देश है तभी हम हैं ! हम रहें ना रहें देश को रहना ही है ! यदि कोई देश के उत्थान की बात करता है, यदि किसी की आँखों में देश को फिर से जगतगुरु बनाने के सपने हैं, यदि कोई देश को दुनिया का सिरमौर बनाना चाहता है, यदि कोई देश के गौरव उसके सम्मान के लिए कुछ भी कर गुजरने को उतारू है तो हमें उसके पीछे खड़ा होना है ! उसका उत्साह बढ़ाना है ! उसके मार्ग में आने वाले हर कटंक को दूर करने ने उसकी सहायता करनी है !  
प्रकृति के नियमानुसार कुछ भी स्थाई नहीं है ! जो है वह खत्म भी होता है, भले ही उसमें कुछ समय लगे ! तो इतने दिनों से एकत्रित हुई बुराइयों को भी ख़त्म होना ही है ! दिन बदलने ही हैं ! बेहतर समय को आना ही है ! देश को फिर स्वर्णिम युग में प्रवेश करना ही है ! इसी विश्वास के साथ सबको इस दिवस की, जिसने हमें भरपूर खुश होने का मौका दिया है, ढेरों शुभकामनाएं। वंदे मातरम, जय हिंद, जय हिंद  की सेना !  

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