रविवार, 15 अगस्त 2021

अब स्वतंत्रता दिवस, निपटाना नहीं मनाना है

वर्षों तक लोग स्वंय-स्फुर्त हो घरों से निकल आते थे। पूरे साल जैसे राष्ट्रीय दिवस का इंतजार रहता था ! पर अब लोग इनसे  जुडे समारोहों में खुद  नहीं आते, उन्हें बरबस वहां लाया जाता है। दुःख होता है, यह देख कर कि इन पर्वों  को मनाया नहीं, बस  किसी तरह निपटाया  जाता है। इससे भी इंकार नहीं है कि देश-दुनिया का माहौल,  अराजकता, आतंक, असहिष्णुता जैसे  कारक भी इनसे  दूरी बनाने के कारण हैं, पर कटु सत्य यही है कि लोगों की भावनाएं अब पहले जैसी नहीं रहीं ............!

#हिन्दी_ब्लागिंग      
15 अगस्त, वह पावन दिवस जब देशवासियों ने एकजुट हो आजादी पाई थी। कितनी खुशी, उत्साह और उमंग थी तब। वर्षों तक लोग स्वंय-स्फुर्त हो घरों से निकल आते थे, पूरे साल जैसे इस दिन का इंतजार रहता था। पर धीरे-धीरे आदर्श, चरित्र, देश प्रेम की भावना का छरण होने के साथ-साथ यह पर्व महज एक अवकाश दिवस के रूप मे परिवर्तित होने पर मजबूर हो गया। इस कारण और इसी के साथ आम जनता का अपने तथाकथित नेताओं से भी मोह भंग होता चला गया। 
   
अब लोग इससे जुडे समारोहों में खुद नहीं आते उन्हें बरबस वहां लाया जाता है। अब इस पर्व को मनाया नहीं निपटाया जाता है। आज हाल यह है कि संस्थाओं में, दफ्तरों में और किसी दिन जाओ न जाओ आज जाना बहुत जरूरी होता है, अपने-आप को देश-भक्त सिद्ध करने के लिए। खासकर विद्यालयों, महाविद्यालयों में जा कर देखें, पाएंगे मन मार कर आए हुए लोगों का जमावड़ा, कागज का तिरंगा थामे बच्चों को भेड़-बकरियों की तरह घेर-घार कर संभाल रही शिक्षिकाएं ! साल में सिर्फ दो या तीन बार निकलती गांधीजी की तस्वीर ! नियत समय के बाद आ अपनी अहमियत जताते खास लोग। फिर मशीनी तौर पर सब कुछ जैसा चला आ रहा है वैसा ही निपटता चला जाता है ! झंडोत्तोलन, वंदन, वितरण, फिर दो शब्दों के लिए चार वक्ता, जिनमे से तीन आँग्ल भाषा का उपयोग कर उपस्थित जन-समूह को धन्य करते हैं और लो हो गया सब का फ़र्ज पूरा। कमोबेश यही हाल सब जगह है।
 
खुदा ना खास्ता यदि ये राष्ट्रीय दिवस रविवार को पड़ जाएं तो बाबू लोगों के मुंह का स्वाद और भी कड़वा हो जाता है ! लगता है जैसे उनकी कोई प्रिय चीज लूट ली गई हो ! चौबीस घंटे में पैंतालीस बार इस बात का दुखड़ा आपस में रो कर मातम मनाऐंगे ! कारण भी तो है ! हमें काम करने की आदत ही नहीं रह गई है ! साल शुरू होते ही हम कैलेण्डर में पहले छुट्टियों की तारीखें देखते हैं ! हर समय कुछ मुफ्त में पाने की फिराक में रहते हैं ! इसमें दोष अवाम का भी नहीं है ! कहावत है जैसा राजा वैसी प्रजा ! आज जापान को देखिए वहां सौ में नब्बे आदमी ईमानदार है ! क्योंकि उन्हें वैसा ही नेतृत्व मिला ! हमारे यहां उसका ठीक उलट, सौ में नब्बे बेईमान हैं ! ऐसा क्यों हुआ, कहने की कोई जरुरत ही नहीं है ! अवाम को जैसा दिखा वैसा ही उसने सीखा ! पचासों साल से आम आदमी ने लूट-खसोट, भ्रष्टाचार, बेईमानी, मनमानी, उच्चश्रृंखलता का राज देखा ! वह भी वैसा ही हो गया ! 
आजादी के शुरु के वर्षों में सारे भारतवासियों में एक जोश था, उमंग थी, जुनून था। प्रभात फ़ेरियां, जनसेवा के कार्य और देश-भक्ति की भावना लोगों में कूट-कूट कर भरी हुई थीं। चरित्रवान, ओजस्वी, देश के लिए कुछ कर गुजरने वाले नेताओं से लोगों को प्रेरणा मिलती थी। यह परंपरा कुछ वर्षों तक तो चली फिर धीरे-धीरे सारी बातें गौण होती चली गयीं। देश सेवा एक व्यवसाय बन गई ! सत्ता हासिल करने की होड़ लग गई !  पहले जैसी भावनाएं, उत्साह, समर्पण सब तिरोहित हो गए ! इसका असर आम आदमी पर पडना ही था, पड़ा,और वह भी देशप्रेम की भावना से दूर होता चला गया ! उसमें भी ''मैं और मेरा'' का भाव गहरे तक पैठ गया ! धीरे-धीरे यह बात कुटेव बन गई ! अब यदि इसे सुधारने की कोशिश की जाती है तो उसमें भी लोगों को बुराई नजर आती है ! उसका भी विरोध होता है ! सामने वाले की मंशा पर शक होने लगता है ! 
जब चारों ओर हताशा, निराशा, वैमनस्य, खून-खराबा, भ्रष्टाचार बुरी तरह हावी हों तो यह भी कहने में संकोच होता है कि आइए हम सब मिल कर बेहतर भारत के लिए कोई संकल्प लें। पर संकल्प तो लेना ही पडेगा ! देश है तभी हम हैं ! हम रहें ना रहें देश को रहना ही है ! यदि कोई देश के उत्थान की बात करता है, यदि किसी की आँखों में देश को फिर से जगतगुरु बनाने के सपने हैं, यदि कोई देश को दुनिया का सिरमौर बनाना चाहता है, यदि कोई देश के गौरव उसके सम्मान के लिए कुछ भी कर गुजरने को उतारू है तो हमें उसके पीछे खड़ा होना है ! उसका उत्साह बढ़ाना है ! उसके मार्ग में आने वाले हर कटंक को दूर करने ने उसकी सहायता करनी है !  
प्रकृति के नियमानुसार कुछ भी स्थाई नहीं है ! जो है वह खत्म भी होता है, भले ही उसमें कुछ समय लगे ! तो इतने दिनों से एकत्रित हुई बुराइयों को भी ख़त्म होना ही है ! दिन बदलने ही हैं ! बेहतर समय को आना ही है ! देश को फिर स्वर्णिम युग में प्रवेश करना ही है ! इसी विश्वास के साथ सबको इस दिवस की, जिसने हमें भरपूर खुश होने का मौका दिया है, ढेरों शुभकामनाएं। वंदे मातरम, जय हिंद, जय हिंद  की सेना !  

18 टिप्‍पणियां:

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 15 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Meena Bhardwaj ने कहा…

स्वतन्त्रता दिवस समारोह पर समसामयिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता सारगर्भित लेख । स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सर !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज के संदर्भ में स्वतंत्रता दिवस के लिए सार्थक और सटीक विश्लेषण ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिग्विजय जी
सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी
बहुत-बहुत धन्यवाद ! आपको भी इस पुनीत पर्व की शुभकामनाएं, सपरिवार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संगीता जी
हार्दिक आभार ! सपरिवार इस पुनीत पर्व की शुभकामनाएं स्वीकारें

Kadam Sharma ने कहा…

सुंदर विचारणीय रचना

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कदम जी
अनेकानेक धन्यवाद

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

विचारोत्तेजक लेख....

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विकास जी
आपका सदा स्वागत है

Dr. Vandana Sharma ने कहा…

आजकल की सच्चाई

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

प्रकृति के नियमानुसार कुछ भी स्थाई नहीं है ! जो है वह खत्म भी होता है, भले ही उसमें कुछ समय लगे ! तो इतने दिनों से एकत्रित हुई बुराइयों को भी ख़त्म होना ही है ! दिन बदलने ही हैं ! बेहतर समय को आना ही है ! देश को फिर स्वर्णिम युग में प्रवेश करना ही है ! इसी विश्वास के साथ सबको इस दिवस की, जिसने हमें भरपूर खुश होने का मौका दिया है, ढेरों शुभकामनाएं। वंदे मातरम, जय हिंद, जय हिंद की सेना....बहुत ही विश्वास और आशा भरी,सकारात्मक ऊर्जा देता लेखन, आपको हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

वंदना जी
अनेकानेक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

जिज्ञासा जी
कुछ तो समय देर लगा देता है और कुछ अडंगा लग जाता है अपने ही विघ्नसंतोषियों से

Anupama Tripathi ने कहा…

सच कहा आपने ,नए जोश से काम करना है |

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनुपमा जी
सारी नकारात्मकताओं को नकारते हुए

MANOJ KAYAL ने कहा…

सारगर्भित लेख

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हार्दिक आभार, मनोज जी

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