सोमवार, 9 अगस्त 2021

गेपरनाथ, जहां शिव जी सपरिवार कुछ समय गुजारते हैं

ताल के हरे रंग के पारदर्शी पानी में कई लोग नहाने का आनंद ले अपनी थकावट दूर कर लेते हैं । जमीन का ढलाव यहां भी ख़त्म नहीं होता, बल्कि घाटी नीचे और नीचे होते हुए घने जंगल में विलीन होती चली जाती है। दर्रे की दूसरी दिवार पर भी कुछ कुटियानुमा कंदराएं नज़र आती हैं। जिनके बारे में बताया जाता है कि पहुंचे हुए साधू-संत वहां रह कर अपनी साधना पूरी किया करते थे............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

सावन का पावन महीना ! हर जगह हर-हर महादेव की गूँज ! सारा देश शिवमय ! शिव शंकर भोलेनाथ के देश भर में स्थित हजारों देवस्थानों में उत्सव का माहौल ! शिवालय छोटा हो या बड़ा, भगतों को कोई फर्क नहीं पड़ता ! उन्हें सिर्फ प्रभु का सानिध्य चाहिए होता है ! देव स्थान का मार्ग जितना दुर्गम होता है, लोगों के मन में उसकी प्रमाणिकता उतनी ही बढ़ जाती है। खासकर पहाड़ों के दुर्गम रास्तों के बाद अपने गंतव्य पर जा अपने इष्ट के दर्शन मिलने पर आस्था और विश्वास दोगुना हो जाता है। कष्ट सह कर पहुँचने पर जिस अलौकिक आनंद की अनुभूति मिलती है वह वर्णनातीत होती है। वैसे पहाड़ों के अलावा भी हमारे देश में कई ऐसे स्थान हैं, जहां पहुंचना कुछ कष्ट-साध्य ही माना जाएगा। 

प्रवेश द्वार 




ऐसा ही राजस्थान के कोटा शहर के पास, चम्बल की गहरी कंदराओं में प्रकृति की गोद में स्थित एक अनोखा, रहस्यमय, कुछ अनजाना सा शिवालय है, बाबा गेपरनाथ ! यहां का मार्ग दुर्गम तो नहीं है पर रोमांचक जरूर है ! कोटा बूंदी के रावतभाटा मार्ग पर रथ कांकरा के पास शहर से करीब 24-25 कि.मी. की दूरी पर एक सड़क दायीं ओर मुड़ती है, जो करीब दो कि.मी. के बाद चम्बल की घाटी और उस पर बने प्राकृतिक पहाड़ी, संकरे दर्रे पर जा कर ख़त्म होती है। ऊपर से घाटी की गहराई 800 से 1000 फिट तक की है। वहीं से पहाड़ी की एक दिवार से जुडी हुई सीढ़ियों की श्रृंखला नीचे तक चली गयी है। करीब चार सौ सीढ़ियां उतरने के बाद, भूतल से करीब 100 फिट पहले एक चबूतरे पर खोह नुमा जगह पर शिव जी का छोटा सा लिंग स्थापित है जिस पर पहाड़ी के अंदर से लगातार अटूट जलधारा आ कर उसका अभिषेक करती रहती है। मंदिर के अंदर जगह इतनी कम और संकरी है कि बमुश्किल दो लोग ही झुक कर बैठ सकते हैं। 






ऐसा माना जाता है कि पूर्व काल में यह क्षेत्र भील राजाओं के आधीन था, उन्हीं  भीलों के शैव मतावलंबी गुरु ने इस मंदिर की स्थापना करवाई थी। यहां के शिवलिंग की विशेषता है कि यह दोहरी योनि में स्थित है ! ऐसा उदाहरण बहुत कम देखने को मिलता है। स्थानीय लोग बाबा गेपरनाथ के रूप में यहां शिवजी को पूजते हैं। ऐसी मान्यता है कि शिवरात्रि के आस-पास शिव जी अपने पूरे परिवार के साथ कुछ समय यहां गुजारते हैं। इस जगह को करीब पांच सौ साल पुराना बतलाया जाता है। यह स्थान साधू-संतों की तपस्थली भी रहा है। 




मंदिर से कुछ नीचे, पहाड़ी से गिरी हुई छोटी-बड़ी शिलाओं से घिरा, एक ताल है, जिसमें पहाड़ों से आ-आ कर पानी एकत्र होता रहता है। हरे रंग के पारदर्शी पानी में कई लोग नहाने का आनंद ले अपनी थकावट दूर कर लेते हैं । जमीन का ढलाव यहां भी ख़त्म नहीं होता, बल्कि घाटी नीचे और नीचे होते हुए घने जंगल में विलीन होती चली जाती है। दर्रे की दूसरी दिवार पर भी कुछ कुटियानुमा कंदराएं नज़र आती हैं। जिनके बारे में बताया जाता है कि पहुंचे हुए साधू-संत वहां रह कर अपनी साधना पूरी किया करते थे।आज तो दस तरह की सहूलियतें उपलब्ध हैं। पर देख सुन कर आश्चर्य होता है कि जब इतने साधन नहीं थे, तब इतने दुर्गम, निर्जन, सुनसान, दुरूह इलाके की खोज कैसे हुई होगी। कैसे पहुंचा गया होगा यहां !



सुरम्य घाटी 
जो भी हो ! अद्भुत जगह है यह ! नीचे उतरने के पश्चात किसी दूसरे लोक में होने का अनुभव होने लगता है ! दिन की रौशनी में प्रकृति की अपूर्व छटा साल भर लोगों को लुभा कर प्रभू के दर्शन के अलावा युवाओं को पिकनिक के लिए भी आमंत्रित करती रहती है। इसीलिए दिन ब दिन लोगों की आवक बढती ही जा रही है ! 2008 में एक हादसे में सीढ़ियों के धंस जाने की वजह से पचासों लोग यहां फंस गए थे ! जिन्हें बड़ी मुश्किल और जद्दोजहद के बाद निकाला जा सका था ! उसके बाद ही पक्की-मजबूत सीढ़ियां बनाई गईं। पर अभी भी अभी बहुत सी मूलभूत सहूलियतों और सुरक्षात्मक उपायों की जरुरत है ! फिर भी यदि कभी मौका मिले तो ऐसी अद्भुत जगह के दर्शन करने का सुयोग छोड़ना नहीं चाहिए। 

10 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर चित्रों के साथ सुन्दर वर्णन।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बहुत-बहुत धन्यवाद, सुशील जी

Jyoti Dehliwal ने कहा…

गेपरनाथ के बारे में बहुत ही रोचक जानकारी दी है आपने। बाह7त सुंदर फोटोज।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

धन्यवाद, ज्योति जी

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-8-21) को "बूँदों की थिरकन"(चर्चा अंक- 4152) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
बहुत-बहुत धन्यवाद

Kadam Sharma ने कहा…

बहुत सुंदर जानकारी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनेकानेक धन्यवाद, कदम जी

SANDEEP KUMAR SHARMA ने कहा…

अदभुत और गहन जानकारी..।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संदीप जी
हार्दिक आभार

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