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बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

आम इंसान की समृद्धि में तीर्थों का योगदान,

इस बात पर मंथन आरंभ हो चुका है कि क्यों ना देश के सभी नामी-गिरामी, प्रसिद्ध, श्रद्धा के केंद्रों को  व्यवस्थित और सर्व सुविधायुक्त कर उन्हें और भी लोकप्रिय बनाया जाए ! इससे, पर्यटन बढ़ेगा, लोगों को घर बैठे रोजगार मिलेगा, पलायन रुकेगा, लोग समृद्ध होंगे, समाज में संपन्नता आएगी, खुशहाली बढ़ेगी, निर्धनता कम होगी। इसके साथ ही सरकार की आमदनी बढ़ेगी ! जिससे जन-सुविधाओं का और तेजी से विकास हो पाएगा ! पर सबसे बड़ी बात, अपनी संस्कृति का, अपनी परंपराओं का, अपने सनातन का भी सुचारु रूप से प्रचार-प्रसार हो सकेगा............!

#हिन्दी_ब्लागिंग   

देश को अपनी आर्थिक अवस्था को मजबूत करने का एक नया स्रोत मिल गया है और वह है धार्मिक पर्यटन (Religious Tourism), इसका आभास तो तब ही मिल गया था, जब माता वैष्णव देवी की यात्रा में मूलभूत सुविधाओं का इजाफा होने पर श्रद्धालुओं की संख्या कई गुना बढ़ गई थी ! पर तब की तथाकथित धर्म-निरपेक्ष सरकारों ने अपने निजी स्वार्थों के लिए, इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया था ! पर वर्षों बाद जब काशी विश्वनाथ और उज्जैन के महाकाल कॉरिडोर बने और उनको जनता का जिस तरह का प्रतिसाद मिला, वह एक नई खोज, एक नए विचार का उद्घोषक था ! राम मंदिर निर्माण ने इस विचार को और भी पुख्ता किया तथा इस महाकुंभ ने तो जैसे उस पर मोहर ही लगा एक नई राह ही प्रशस्त कर दी !

श्रीराम मंदिर 
अब देश की दशा-दिशा निर्धारित करने वालों को अपनी आर्थिक स्थित मजबूत करने के लिए एक अकूत खजाना मिल गया है ! उन्हें समझ आ गया है कि देश की धर्म-परायण जनता को यदि पर्याप्त सुरक्षा और सुख-सुविधा मिले तो वह धार्मिक स्थलों के दर्शन के लिए भी उतनी ही तत्पर रहती है, जितनी अन्य किसी पर्यटन स्थल के लिए ! महाकुंभ में श्रद्धालुओं की अनपेक्षित, अविश्वसनीय, अकल्पनीय, मर्यादित उपस्थिति इसका ज्वलंत उदाहरण है ! इसी से प्रोत्साहित हो कर अब इस बात पर मंथन आरंभ हो चुका है कि क्यों ना देश के सभी नामी-गिरामी, प्रसिद्ध, श्रद्धा के केंद्रों को भी व्यवस्थित और सर्व सुविधायुक्त कर उन्हें और भी लोकप्रिय बनाया जाए ! इससे पर्यटन बढ़ेगा ! लोगों को घर बैठे रोजगार मिलेगा ! पलायन रुकेगा ! लोग समृद्ध होंगे ! समाज में संपन्नता आएगी ! खुशहाली बढ़ेगी ! निर्धनता कम होगी ! इसके साथ ही सरकार की आमदनी बढ़ेगी, जिससे जन-सुविधाओं का और तेजी से विकास हो पाएगा ! पर सबसे बड़ी बात, अपनी संस्कृति का, अपनी परंपराओं का, अपने सनातन का भी सुचारु रूप से  प्रचार-प्रसार हो सकेगा ! 
विश्वनाथ मंदिर परिभ्रमण पथ 

महाकाल मंदिर परिसर 
महा कुंभ के दौरान प्रयागराज के हर वर्ग के, हर तबके के लोगों को जो आमदनी हुई वह आँखें चौंधियाने वाली है ! इसमें अब कोई शक नहीं कि सुप्रसिद्ध स्थानों पर होने वाले ऐसे आयोजन या आने वाले समय में उन स्थानों पर बनने वाले एक-एक धार्मिक परिभ्रमण पथ, पर्यटन और मंदिरों की अर्थ-व्यवस्था (Religious Tourism and Temple Economy) देश के वाणिज्य, व्यापार और अर्थव्यवस्था में सुधार की अहम कड़ी होने जा रहे हैं ! कुंभ तिथि तो चार सालों में एक बार आती है पर माघ मेला तो हर साल लगता है ! छठ पूजा तो हर साल होती है ! गंगा दशहरा तो हर साल होता है ! तो ऐसे हर तीज-त्योहारों को भव्य, सुव्यवस्थित व सुरक्षित बना लोगों को आने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा ! 

जन सैलाब 

महाकुंभ 
यह सब जो आगत भविष्य में होने जा रहा है, वही कुछ लोगों के लिए, जो अपनी राजनितिक लड़ाई तो हार ही चुके हैं अपनी पहचान तक गंवाने की कगार तक पहुँच गए हैं, परेशानी का कारण बना हुआ है। उन्हें अपना नामो-निशान मिटता साफ दिखाई पड़ रहा है। इसीलिए वे अपने बचे-खुचे पूर्वाग्रही, भ्रमित वोटरों को बचाए रखने के लिए कुंभ के बहाने सनातन का विरोध कर रहे हैं, अपनी संस्कृति का विरोध कर रहे हैं, अपने ही धर्म का विरोध कर रहे हैं, ! देश वासियों की आस्था, श्रद्धा, उनके संस्कारों की थाह के सामने हर बार मुंहकी खाने के बावजूद बेशर्मी की हद पार कर अनर्गल झूठ फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। अभी तो ऐसे लोगों की तिलमिलाहट और बढ़ेगी जब संभल जैसे कई नए-नए तीर्थ देश और विश्व के नक्शे पर उभर कर सामने आएंगे ! भगवान ऐसे लोगों को सद्बुद्धि दे जिससे ये अपने स्वार्थों से ऊपर उठ देशहितार्थ कुछ कर सकें ! 
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से

रविवार, 22 अक्टूबर 2023

''अंकल, कन्या खिलाओगे'' ?

कन्या भोज के दिन फिर आ गए हैं पर कुछ वर्षों से नवरात्रों में भी कुछ बदलाव आया है, कन्या भोज के दिनों में वह पहले जैसी आपाधापी कुछ कम हुई लगती है, अब आस-पडोस की अभिन्न सहेलियों में वैसा अघोषित युद्ध नहीं छिड़ता ! नहीं तो पहले सप्तमी की रात से ही कन्याओं की बुकिंग शुरु हो जाती थी । फिर भी सबेरे-सबेरे हरकारे दौड़ना शुरु कर देते हैं। गृहणियां परेशान, हलुवा कडाही में लग रहा है पर चिंता इस बात की है कि "पन्नी" अभी तक आई क्यूं नहीं ? "खुशी" सामने से आते-आते कहां गायब हो गयी ! एक पुरानी रचना जो आज भी सामयिक और प्रासंगिक है.................

(एक पुरानी पर सामयिक रचना )

#हिन्दी_ब्लागिंग 

सुबह-सुबह दरवाजे की घंटी बजी।  द्वार खोल कर देखा तो पांच से दस  साल की चार - पांच  बच्चियां  लाल रंग के कपड़े  पहने  खड़ी थीं।   छूटते ही  उनमें सबसे  बड़ी  लड़की ने  सपाट आवाज  में सवाल  दागा,   ''अंकल, 
कन्या खिलाओगे'' ?   
मुझे  कुछ सूझा नहीं,  अप्रत्याशित   सा था यह सब। अष्टमी के दिन कन्या पूजन होता है। पर वह सब परिचित चेहरे होते हैं, और आज वैसे भी षष्ठी है। फिर सोचा शायद गृह मंत्रालय  ने कोई अपना विधेयक पास कर दिया हो इसलिये इन्हें बुलाया हो। अंदर पूछा,   तो पता चला कि ऐसी कोई बात नहीं है !  मैं फिर  कन्याओं  की ओर  मुखातिब   हुआ और बोला,  ''बेटाआज नहीं,  हमारे  यहां अष्टमी  को पूजा  की जाती है''। "अच्छा कितने बजे" ? फिर सवाल उछला, जो  सुनिश्चित  कर  लेना  चाहता था,  उस दिन के निमंत्रण को।  मुझसे कुछ कहते नहीं बना, कह दिया,  ''बाद में बताऐंगे''।  तब   तक बगल वाले घर की घंटी बज चुकी थी।
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आपकी आँखें हमारे लिए सर्वपरि हैं 
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मैं सोच रहा था कि बड़े-बड़े व्यवसायिक घराने या नेता आदि ही नहीं आम जनता भी चतुर होने लग गयी है। सिर्फ दिमाग होना चाहिये। दुह लो, मौका देखते ही, जहां भी जरा सी गुंजाईश हो। बच ना पाए कोई। जाहिर है कि ये छोटी-छोटी बच्चियां इतनी चतुर सुजान नहीं हो सकतीं। यह सारा खेल इनके माँ, बाप, परिजनों द्वारा रचा गया है।
जोकि दिन भर टी.वी. पर जमाने भर के बच्चों को उल्टी-सीधी हरकतें करते और पैसा कमाते देख, हीन भावना से ग्रसित होते रहते हैं। अपने नौनिहालों को देख कुढते रहते हैं कि लोगों के कुत्ते-बिल्लियाँ भी छोटे पर्दे पर पहुँच कमाई करने लग गए हैं, दुनिया कहां से कहां पहुंच गयी और हमारे बच्चे घर बैठे सिर्फ रोटियां तोड़े जा रहे हैं। फिर ऐसे ही किसी कुटिल दिमाग में इन दिनों  बच्चों को घर-घर जीमते देख यह योजना आयी होगी और उसने इसका कापी-राइट कोई और करवाए, इसके पहले ही, दिन देखा ना कुछ और बच्चियों को नहलाया, धुलाया, साफ सुथरे कपड़े पहनवाए, एक वाक्य रटवाया, "अंकल/आंटी, कन्या खिलवाओगे ? और इसे अमल में ला दिया।
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प्रचारित होना कुछ ज्यादा मुश्किल नहीं है 
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ऐसे लोगों को पता है कि इन दिनों लोगों की धार्मिक भावनाएं अपने चरम पर होती हैं। फिर  बच्ची स्वरुपा देवी को
अपने दरवाजे पर देख भला  कौन मना करेगा। सब ठीक रहा तो सप्तमी, अष्टमी और नवमीं इन तीन दिनों तक बच्चों और हो सकता है कि पूरे घर के खाने का इंतजाम हो जाए। ऊपर से बर्तन, कपड़ा और नगदी अलग से। इसमें कोई  दिक्कत   भी नहीं आती,  क्योंकि इधर वैसे ही आस्तिक गृहणियां चिंतित रहती हैं, कन्याओं की आपूर्ती को लेकर।   जरा सी देर हुई या अघाई कन्या ने खाने से इंकार किया और हो गया अपशकुन ! इसलिए होड़ लग जाती है पहले अपने घर कन्या बुलाने की !

अब फिर कन्या भोज के दिन आ गए हैं पर पिछले कुछ वर्षों से नवरात्रों में भी कुछ बदलाव आया है, अब इन दिनों में वह पहले जैसी आपाधापी कुछ कम हुई लगती है, अब आस - पडोस की  अभिन्न सहेलियों में वैसा अघोषित युद्ध
नहीं छिड़ता ! नहीं तो  सप्तमी की रात से ही कन्याओं की बुकिंग शुरु हो जाती है। फिर भी सबेरे-सबेरे हरकारे
दौड़ना शुरु कर देते हैं। गृहणियां परेशान, हलुवा कडाही में लग रहा है पर चिंता इस बात की है कि "पन्नी" अभी  तक आई क्यूं नहीं? "खुशी" सामने से आते-आते कहां गायब हो गयी ! कोरम पूरा नहीं हो पा रहा है।इधर काम पर जाने वाले हाथ में लोटा, जग लिए खड़े हैं कि देवियां आएं तो उनके चरण पखार कर काम पर जाएं। देर हो रही है, पर आफिस के बॉस से तो निपटा जा सकता है, वैसे आज के दिन तो वह भी लोटा लिए खड़ा होगा कन्याओं के इन्जार में,  घर के इस बॉस से कौन पंगा ले, वह भी तब जब बात धर्म की हो।                                           

आज इन "चतुर-सुजान" लोगों ने कितना आसान कर दिया है  सब कुछ।  पूरे देश को राह दिखाई है, घर पहुंच सेवा प्रदान कर।

"जय माता दी"

बुधवार, 2 मार्च 2022

चमत्कार का यही चमत्कार है कि चमत्कार का एहसास ही नहीं हो पाता

तकलीफ बहुत बढ़ने पर कई बार गुहार की थी, ''क्या प्रभु ! यह जरा सा रोग नहीं दूर हो पा रहा !'' ऐसे में ही पता नहीं, पिछले दिनों कब और कैसे रात सोते वक्त नाक पर हाथ रख, मन ही मन ''नासै रोग हरे सब पीरा , जपत निरंतर हनुमत बीरा'' का तीन बार जप करना शुरू कर दिया था ! मेरा डॉक्टर और दवाइयों से यथाशक्ति परहेज ही रहता आया है ! तो क्या खांसी इसलिए शुरू हुई कि उसके बहाने मुझे अस्पताल जाना पड़े ! क्योंकि इसके पहले कभी भी इतने लंबे समय तक इसका प्रकोप नहीं हुआ था ! वहां जाने पर खांसी के चलते नाक की दवा भी मिली और वर्षों से चली आ  रही ''एक्यूट'' तकलीफ से छुटकारा मिला ! अब यह क्या था........! 

#हिन्दी_ब्लागिंग            

भगवान सर्वव्यापी है ! रक्षक है ! तारणहार है ! सबकी सुनता है ! हरेक की सहायता करता है ! पर कभी अहसास नहीं होने देता ! खुद परोक्ष में रह, यश किसी और को दिलवा देता है ! चमत्कार होते हैं, पर इस तरह सरलता के साथ कि इंसान की क्षुद्र बुद्धि समझ ही नहीं पाती ! प्रभु चाहते हैं कि इंसान स्वाबलंबी बने, कर्म करे, उनके सहारे ना बैठा रहे ! इसीलिए वह ख्याल तो रखते हैं ! सहायता भी करते हैं ! पर किसी को एहसास नहीं होने देते ! होता क्या है कि मुसीबत में आदमी हाथ-पैर मारता ही है ! तरह-तरह के उपाय करता है ! इधर दौड़, उधर दौड़, यह आजमा, वह आजमा ! फिर जब ठीक हो जाता है तो अहसान भी उसी माध्यम का मानता है जो अंत में सहायक हुआ था ! तब तक वह भूल जाता है कि उसने परम पिता से भी सहायता मांगी थी और वह तो किसी को भी निराश नहीं करता ! यह भी भूल जाता है कि वह खुद भी उसी ईश्वर की रचना है उसकी बनाई प्रकृति, व्यवस्था का ही एक हिस्सा है, अपनी रचना की वह कभी उपेक्षा नहीं करता ! 

कभी-कभी मेरा अपने अतीत पर ध्यान जाता है तो ऐसे पचीसों हादसे याद आते हैं जब कुछ भी हो सकता था पर बचाव हुआ ! चाहे तालाब या कुएं में डूबने से बचा लिया गया होऊँ ! या सुनसान सड़क पर से तीन-चार साल की उम्र में भटक जाने पर कोई "अवतरित" हो सुरक्षित ले आया हो ! आग से बचाव, बिजली से बचाव, नौकरी के दौरान मशीनों से बचाव, ट्रेन से बचाव, सुनसान सड़क पर शहर से दूर निरुपाय हालत में किसी भी हादसे से बचाव ! खेल की चोट से बचाव, बिमारी से बचाव......! जितना याद आता जाता है, घटनाएं उतनी ही बढ़ती चली जाती हैं !    

वह सिर्फ धन्यवाद लेता है ! यश किसी और को दिलवा देता है ! मैं आस्तिक जरूर हूँ ! आस्था भी है ! पर अंध विश्वास नहीं है ! नियमित पूजा-पाठ या मंदिर गमन भी नहीं हो पाता ! 15-20 मिनट ध्यान लगाने की कोशिश करता भी हूँ तो अपने सुविधानुसार ! जब कुछ विपरीत, निराशाजनक या तनाव दायक होता है, लगता है कि अन्याय हो रहा है, अति होती है तो शिकायत भी उसी से करता हूँ ! मुझे लगता है कि वह मुझे सुन रहा है ! लगता है कि उसे जब भी फुर्सत होगी मुझ अकिंचन की तरफ भी जरूर ध्यान देगा ! फिर इंसान उसे नहीं पुकारेगा तो और किसके पास जाएगा अपना दुखड़ा ले कर ! 

अभी क्या हुआ कि वर्षों से चली आ रही मेरे बंद नाक की समस्या अचानक दूर हो गई ! मुझे लगता है कि किलो से भी ज्यादा होम्योपैथी की गोलियां, उस पैथी की और दवाओं के साथ निगल चुका होऊंगा ! महीनों आयुर्वेद की औषधियों का भी सेवन किया ! एक्यूप्रेशर सिर्फ दिलो-दिमाग पर प्रेशर डाल कर रह गया !एलोपैथी वाले सिर्फ ऑपरेशन ही एकमात्र इलाज बतलाते थे, दोबारा फिर व्याधि के उभर आने के खतरे के साथ ! सो चल रहा था जैसे-तैसे, मुंह से सांस लेते, दसियों अड़चनों के साथ ! 

ऐसे में पिछले दिनों कुछ खांसी-कफ की शिकायत हुई ! पांच-सात दिन तो, अपने-आप ठीक हो जाएगी, की आश्वस्तता के साथ निकल जाने के बावजूद प्रकोप कम ना हुआ तो आजकल के दिन-काल की गंभीरता को देख डॉक्टर की शरण में जाना पड़ा ! खांसी के साथ ही उनसे लगे हाथ नाक के पॉलिप का जिक्र भी कर दिया ! उन्होंने दस दिन की दवा दी और बोले, चिंता ना करें ठीक हो जाएगा ! मैंने पूछा भी कि क्या ऑपरेशन जरुरी है ? तो बोले ऐसा कुछ जरुरी नहीं है, दवा से ही राहत मिल जाएगी ! और फिर चमत्कार ही हो गया, खांसी तो तीन दिन में ही ठीक हो गई और वर्षों-वर्ष से चौबीसों घंटे बुरी तरह ''चोक'' रहने वाले नाक के द्वार भी खुल गए ! कितने सालों बाद मिली इस राहत की ख़ुशी को ब्यान करना मेरे लिए मुश्किल लग रहा है !

जिस एलोपैथी के तीन-तीन डाक्टरों ने सिर्फ ऑपरेशन को ही अंतिम उपाय बताया था ! उसी की दवाओं से बिना शरीर पर चाक़ू चले रोग ठीक हो गया ! यह कैसे संभव हुआ.....! याद आता है कि तकलीफ बहुत बढ़ने पर कई बार गुहार की थी, ''क्या प्रभु ! यह जरा सा रोग नहीं दूर हो पा रहा !'' ऐसे ही पता नहीं, पिछले दिनों कब और कैसे रात सोते वक्त नाक पर हाथ रख, मन ही मन ''नासै रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा'' का तीन बार जप करना शुरू हो गया था ! मेरा डॉक्टर और दवाइयों से यथाशक्ति परहेज ही रहता आया है ! तो क्या खांसी इसलिए शुरू हुई कि उसके बहाने मुझे अस्पताल जाना पड़े ! क्योंकि इसके पहले कभी भी इतने लंबे समय तक इसका प्रकोप नहीं हुआ था ! वहां जाने पर खांसी के चलते नाक की दवा भी मिली और वर्षों से चली आ  रही ''एक्यूट'' तकलीफ से छुटकारा मिला ! अब यह क्या था........! 

अपने हर दुःख, दर्द, तकलीफ की अति में हमें एक ही सहारा नजर आता है, भगवान ! अपने साथ कुछ गलत होते ही हम अनायास ही उसको याद करने लगते हैं ! कष्टों से मुक्ति, मुसीबतों से छुटकारा, कठिन परिस्थितियों से निजात दिलाने के लिए गुहार लगाते हैं ! हमें आशा रहती है, किसी चमत्कार की कि इधर हम बोले, उधर उसने मदद भेजी ! गोया कि वह बेल्ला बैठा, हमारी पुकार का इंतजार ही कर रहा हो ! उस पर यदि कुछ समय यूँ ही गुजर जाता है और अपनी स्थिति में कुछ सुधार होता नहीं दिखता तो लग जाते हैं, उसी को भला-बुरा कहने ! कई तो उसके अस्तित्व को ही नकारने लगते हैं ! जबकि बचपन से ही यह सुनते आए हैं कि उसके दरबार में देर भले ही हो सकती है, लेकिन अंधेर कभी नहीं ! पर बुरे समय में हमारी बुद्धि भी घास चरने चली जाती है ! विश्वास डगमगाने लग जाता है ! पर वह किसी को भी, कभी भी मंझधार में नहीं छोड़ता !  

बुधवार, 4 नवंबर 2020

करवा चौथ, सोच बदलने की जरुरत है

आज कल आयातित  कल्चर, विदेशी सोच तथा तथाकथित आधुनिकता के हिमायती कुछ लोगों को महिलाओं का दिन भर उपवासित रहना उनका उत्पीडन लगता है। उनके अनुसार यह पुरुष  प्रधान समाज द्वारा महिलाओं को कमतर आंकने का बहाना है। अक्सर उनका सवाल रहता है कि पुरुष क्यों नहीं अपनी पत्नी के लिए व्रत रखते ? ऐसा कहने वालों को शायद व्रत का अर्थ सिर्फ भोजन ना करना ही मालुम है। जब कि कहानियों में व्रत अपने प्रियजनों को सुरक्षित रखने, उनकी अनिष्ट से रक्षा करने की मंशा का सांकेतिक रूप भर है। इस तरह के लोग एक तरह से अपनी नासमझी से  महिलाओं की भावनाओं का अपमान ही करते हैं। उनके प्रेम, समर्पण, चाहत को कम कर आंकते हैं 


#हिन्दी_ब्लागिंग 

करवाचौथ, हिंदू विवाहित महिलाओं का  एक महत्वपूर्ण त्यौहार।  जिसमें पत्नियां अपने  पति की  लंबी उम्र के लिए दिन भर  कठोर उपवास  रखती हैं। यह  खासकर उत्तर  भारत में  खासा लोकप्रिय पर्व है, वर्षों से मनता और मनाया जाता हुआ पति-पत्नी के रिश्तों के प्रेम का प्रतीक ! सीधे-साधे तरीके से बिना किसी ताम-झाम के, बिना कुछ या जरा सा खर्च किए, सादगी से मिल-जुल कर आपस मनाया जाने वाला एक छोटा, प्यारा, मासूम सा उत्सव। 
व्रत से जुडे हर कथानक में एक बात प्रमुखता से सामने आती है कि स्त्री, पुरुष से ज्यादा धैर्यवान, सहिष्णु,  सक्षम, विपत्तियों का डट कर सामना करने वाली, अपने हक़ के लिए सर्वोच्च सत्ता से भी टकरा जाने वाली होती है
इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। जिसकी कुछ कथाएं बहुत प्रचलित हैं। जिसमें सबसे लोकप्रिय रानी वीरांवती की कथा है। जिसे पंडित लोग व्रती स्त्रियों को सुनवा, संध्या समय  जल ग्रहण करवाते हैं। इस गल्प में सात भाइयों की लाडली बहन वीरांवती का उल्लेख है जिसको कठोर व्रत से कष्ट होता देख भाई उसे धोखे से भोजन करवा देते हैं जिससे उसके पति पर विपत्ति आ जाती है और वह माता गौरी की कृपा से फिर उसे सकुशल वापस पा लेती है।
महाभारत में भी इस व्रत का उल्लेख मिलता है जब द्रौपदी पांडवों की मुसीबत दूर करने के लिए शिव-पार्वती के मार्ग-दर्शन में इस व्रत को कर पांडवों को मुश्किल से निकाल चिंता मुक्त करवाती है। 
कहीं-कहीं सत्यवान और सावित्री की कथा में भी इस व्रत को सावित्री द्वारा संपंन्न होते कहा गया है जिससे प्रभावित हो यमराज सत्यवान को प्राणदान करते हैं।
ऐसी ही एक और कथा करवा नामक स्त्री की  भी है जिसका पति नहाते वक्त नदी में घड़ियाल का शिकार हो जाता है और बहादुर करवा घड़ियाल को यमराज के द्वार में ले जाकर दंड दिलवाती है और अपनें पति को वापस पाती है।
 
करवाचौथ के व्रत से जुडी कहानी चाहे जब की हो और जैसी भी हो हर कथानक में एक बात प्रमुखता से सामने आती है कि स्त्री, पुरुष से ज्यादा धैर्यवान, सहिष्णु, सक्षम, विपत्तियों का डट कर सामना करने वाली, अपने हक़ के लिए सर्वोच्च सत्ता से भी टकरा जाने वाली होती है। जब कि पुरुष या पति को सदा उसकी सहायता की आवश्यकता पड़ती रहती है। उसके मुश्किल में पड़ने पर उसकी पत्नी तरह-तरह के अनेकों कष्ट सह, उसकी मदद कर, येन-केन-प्रकारेण उसे मुसीबतों से छुटकारा दिलाती है। हाँ ! इस बात को कुछ अतिरेक के साथ जरूर बयान किया गया है। वैसे भी यह व्रत - त्योहार  प्राचीन काल से चले आ रहे हैं, जब महिलाएं घर संभालती थीं और पुरुषों पर उपार्जन की जिम्मेवारी होती थी। पर आज इसे  कुछ तथाकथित आधुनिक नर-नारियों द्वारा अपने आप को प्रगतिशील दिखाने के कुप्रयास में इसे पिछडे तथा दकियानूसी त्योहार की संज्ञा दी जा रही है। 
आजकल आयातित  कल्चर, विदेशी सोच तथा तथाकथित आधुनिकता के हिमायती कुछ लोगों को महिलाओं का दिन भर उपवासित रहना उनका उत्पीडन लगता है। उनके अनुसार यह पुरुष  प्रधान समाज द्वारा महिलाओं को कमतर आंकने का बहाना है। अक्सर उनका सवाल रहता है कि पुरुष क्यों नहीं अपनी पत्नी के लिए व्रत रखते ? ऐसा कहने वालों को शायद व्रत का अर्थ सिर्फ भोजन ना करना ही मालुम है। जब कि कहानियों में व्रत अपने प्रियजनों को सुरक्षित रखने, उनकी अनिष्ट से रक्षा करने की मंशा का सांकेतिक रूप भर है। यह तो  इस तरह के लोग एक तरह से अपनी नासमझी से महिलाओं की भावनाओं का अपमान ही करते हैं। उनके प्रेम, समर्पण, चाहत को कम कर आंकते हैं और जाने-अनजाने महिला और पुरुष के बीच गलतफहमी की खाई को पाटने के बजाए और गहरा करने में सहायक होते हैं। 
वैसे देखा जाए तो पुरुष द्वारा घर-परिवार की देख-भाल, भरण-पोषण भी एक तरह का व्रत ही तो है जो वह आजीवन निभाता है ! आज समय बदल गया है, पहले की तरह अब महिलाएं घर के अंदर तक ही सिमित नहीं रह गयी हैं। पर इससे उनके अंदर के प्रेमिल भाव, करुणा, परिवार की मंगलकामना जैसे भाव ख़त्म नहीं हुए हैं।
आज एक तरफ हमारे हर त्योहार, उत्सव, प्रथा को रूढ़िवादी, अंधविश्वास, पुरातनपंथी, दकियानूसी कह कर ख़त्म करने की कोशिशें हो रही हैं। दूसरी तरफ "बाजार" उतारू है, इस जैसे मासूम से त्यौहारों को फैशन के रूप में ढालने को ! आस्था को खिलवाड का रूप दे दिया गया है। मिट्टी के बने कसोरों का स्थान मंहगी धातुओं ने ले लिया है। पारंपरिक मिठाइयों की जगह चाकलेट आ गया है। देखते-देखते साधारण सी चूडी, बिंदी, टिकली, धागे सब "डिजायनर" होते चले गये। दो-तीन-पांच रुपये की चीजों की कीमत 100-150-200 रुपये हो गयी। अब सीधी-सादी प्लेट या थाली से काम नहीं चलता उसे सजाने की अच्छी खासी कीमत वसूली जाती है, कुछ घरानों में छननी से चांद को देखने की प्रथा घर में उपलब्ध छननी से पूरी कर ली जाती थी पर अब उसे भी बाज़ार ने साज-संवार, दस गुनी कीमत कर, आधुनिक रूप दे महिलाओं के लिए आवश्यक बना डाला है। पावन रूप को विकृत करने की शुरुआत हुई फिल्मों से जिसने रफ्तार पकडी टी.वी. सीरियलों के माध्यम से !
अब तो सोची समझी साजिश के तहत हमारी शिक्षा, संस्कृति, संस्कारों, उत्सव-त्योहारों, रस्मों-रिवाजों, परंपराओं सब पर इस गिद्ध रूपी बाज़ार को हावी करवाया जा रहा है ! समय की जरुरत है कि हम अपने ऋषि-मुनियों, गुणी जनों द्वारा दी गयी सीखों उपदेशों का सिर्फ शाब्दिक अर्थ ही न जाने उसमें छिपे गूढार्थ को समझने की कोशिश भी करें। उसमें छिपे गुणों, नसीहतों, उपदेशों को अपनाएं !

बुधवार, 18 मार्च 2020

प्रभु कभी अपने बच्चों को नहीं बिसारते

आज  कोरोना की भयावकता को देख युद्ध स्तर पर इसके खिलाफ मुहीम छेड़ी जा चुकी है ! जिसके तहत कई मंदिरों को बंद कर दिया गया है तो कुछ में अत्यधिक सावधानी बरती जा रही है। इस पर कुछ अति बुद्धिमान तथा आत्मश्लाघी विद्वान भगवान का मजाक उड़ाने से भी बाज नहीं आ रहे ! इसी पर एक पुरानी कहानी याद आ गयी...............! 

#हिन्दी_ब्लागिंग
देश के एक हिस्से में बरसात के दिनों में तूफ़ान आ जाने से हाहाकार मचा हुआ था ! सैलाब ने हर ओर तबाही मचा दी थी ! बड़े-बड़े घर जमींदोज हो गए थे ! धन-जन की बेहिसाब क्षति हुई थी। इंसान-पशु-मवेशी सब बाढ़ की चपेट में आ जान गंवा रहे थे। ऐसे में भगवान में गहरी आस्था रखने वाला एक आदमी किसी तरह खुद को बचाते हुए एक पेड़ पर बैठा प्रभु से खुद को बचाने की गुहार लगा रहा था। उसे पूरा विश्वास था कि भगवान् उसकी रक्षा जरूर करेंगे। तभी उधर से एक नाव गुजरी और उसे देख उन्होंने पुकार कर कहा कि नौका में आ जाओ ! पर उसने जवाब दिया कि आप जाओ, मुझे मेरे भगवान बचा लेंगे। उसे ना आता देख नाव आगे बढ़ ली। कुछ देर बाद वहां से लोगों को पानी से बचा सुरक्षित जगह तक ले जाता हुआ एक स्टीमर गुजरा, उसमें बैठे कर्मियों के उसे बुलाने पर उसने उनको भी वही जवाब दिया, कि उसे उसके प्रभु बचा लेंगे ! उसको समझाने का कोई असर ना होते देख वे भी आगे चले गए। इधर शाम घिरने लगी थी, ऐसे में कुछ देर बाद उधर से सेना के जवान अपनी मोटर बोट से निकले और इसे देख बोले कि इधर के सभी लोगों को बचा लिया गया है, यह अंतिम प्रयास है ! तुम ही बचे हो आ जाओ ! पर इस भोले भक्त ने फिर वही राग अलाप कर ईश्वर की दुहाई दी ! लाख समझाने पर भी उसके ना मानने और अपने राहत कार्य में विलंब होता देख वे लोग भी आगे बढ़ गए।

रात घिर आई, पानी का वेग बढ़ गया और वह पेड़ जिसका सहारा उस आदमी ने लिया था उखड कर पानी में जा गिरा ! दिन भर के भूखे-प्यासे, थके-हारे उस आदमी की पानी से संघर्ष ना कर पाने से मौत हो गयी। मरणोपरांत जब वह ऊपर भगवान के सामने हाजिर हुआ तो गुस्से से भरा हुआ था ! उसने चिल्ला कर शिकायत की कि मैं तुम्हारा भक्त, मुसीबत में पड़ा, गहरी आस्था से तुम्हें पुकार रहा था ! मुझे पूरा विश्वास था कि तुम मुझे बचा लोगे ! पर तुमने तो मेरी एक ना सुनी और मुझे मार ही डाला, ऐसा क्यों ?
प्रभु बोले, अरे मुर्ख ! मैंने तो तेरी हर पल सहायता करनी चाही ! पहले एक नाव भेजी, तूने उसे नकार दिया ! फिर मैंने स्टीमर भेजा, तू उसमें भी नहीं चढ़ा ! फिर मैंने सेना के जवानों को तुझे बचाने भेजा, पर तू कूढ़मगज तब भी नहीं माना ! तो क्या मैं खुद गरुड़ पर सवार हो तुझे बचाने आता ? चल जा अपने लेखे-जोखे का हिसाब होने तक अपने अगले जन्म का इंतजार कर !

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