बुधवार, 4 नवंबर 2020

करवा चौथ, सोच बदलने की जरुरत है

आज कल आयातित  कल्चर, विदेशी सोच तथा तथाकथित आधुनिकता के हिमायती कुछ लोगों को महिलाओं का दिन भर उपवासित रहना उनका उत्पीडन लगता है। उनके अनुसार यह पुरुष  प्रधान समाज द्वारा महिलाओं को कमतर आंकने का बहाना है। अक्सर उनका सवाल रहता है कि पुरुष क्यों नहीं अपनी पत्नी के लिए व्रत रखते ? ऐसा कहने वालों को शायद व्रत का अर्थ सिर्फ भोजन ना करना ही मालुम है। जब कि कहानियों में व्रत अपने प्रियजनों को सुरक्षित रखने, उनकी अनिष्ट से रक्षा करने की मंशा का सांकेतिक रूप भर है। इस तरह के लोग एक तरह से अपनी नासमझी से  महिलाओं की भावनाओं का अपमान ही करते हैं। उनके प्रेम, समर्पण, चाहत को कम कर आंकते हैं 


#हिन्दी_ब्लागिंग 

करवाचौथ, हिंदू विवाहित महिलाओं का  एक महत्वपूर्ण त्यौहार।  जिसमें पत्नियां अपने  पति की  लंबी उम्र के लिए दिन भर  कठोर उपवास  रखती हैं। यह  खासकर उत्तर  भारत में  खासा लोकप्रिय पर्व है, वर्षों से मनता और मनाया जाता हुआ पति-पत्नी के रिश्तों के प्रेम का प्रतीक ! सीधे-साधे तरीके से बिना किसी ताम-झाम के, बिना कुछ या जरा सा खर्च किए, सादगी से मिल-जुल कर आपस मनाया जाने वाला एक छोटा, प्यारा, मासूम सा उत्सव। 
व्रत से जुडे हर कथानक में एक बात प्रमुखता से सामने आती है कि स्त्री, पुरुष से ज्यादा धैर्यवान, सहिष्णु,  सक्षम, विपत्तियों का डट कर सामना करने वाली, अपने हक़ के लिए सर्वोच्च सत्ता से भी टकरा जाने वाली होती है
इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। जिसकी कुछ कथाएं बहुत प्रचलित हैं। जिसमें सबसे लोकप्रिय रानी वीरांवती की कथा है। जिसे पंडित लोग व्रती स्त्रियों को सुनवा, संध्या समय  जल ग्रहण करवाते हैं। इस गल्प में सात भाइयों की लाडली बहन वीरांवती का उल्लेख है जिसको कठोर व्रत से कष्ट होता देख भाई उसे धोखे से भोजन करवा देते हैं जिससे उसके पति पर विपत्ति आ जाती है और वह माता गौरी की कृपा से फिर उसे सकुशल वापस पा लेती है।
महाभारत में भी इस व्रत का उल्लेख मिलता है जब द्रौपदी पांडवों की मुसीबत दूर करने के लिए शिव-पार्वती के मार्ग-दर्शन में इस व्रत को कर पांडवों को मुश्किल से निकाल चिंता मुक्त करवाती है। 
कहीं-कहीं सत्यवान और सावित्री की कथा में भी इस व्रत को सावित्री द्वारा संपंन्न होते कहा गया है जिससे प्रभावित हो यमराज सत्यवान को प्राणदान करते हैं।
ऐसी ही एक और कथा करवा नामक स्त्री की  भी है जिसका पति नहाते वक्त नदी में घड़ियाल का शिकार हो जाता है और बहादुर करवा घड़ियाल को यमराज के द्वार में ले जाकर दंड दिलवाती है और अपनें पति को वापस पाती है।
 
करवाचौथ के व्रत से जुडी कहानी चाहे जब की हो और जैसी भी हो हर कथानक में एक बात प्रमुखता से सामने आती है कि स्त्री, पुरुष से ज्यादा धैर्यवान, सहिष्णु, सक्षम, विपत्तियों का डट कर सामना करने वाली, अपने हक़ के लिए सर्वोच्च सत्ता से भी टकरा जाने वाली होती है। जब कि पुरुष या पति को सदा उसकी सहायता की आवश्यकता पड़ती रहती है। उसके मुश्किल में पड़ने पर उसकी पत्नी तरह-तरह के अनेकों कष्ट सह, उसकी मदद कर, येन-केन-प्रकारेण उसे मुसीबतों से छुटकारा दिलाती है। हाँ ! इस बात को कुछ अतिरेक के साथ जरूर बयान किया गया है। वैसे भी यह व्रत - त्योहार  प्राचीन काल से चले आ रहे हैं, जब महिलाएं घर संभालती थीं और पुरुषों पर उपार्जन की जिम्मेवारी होती थी। पर आज इसे  कुछ तथाकथित आधुनिक नर-नारियों द्वारा अपने आप को प्रगतिशील दिखाने के कुप्रयास में इसे पिछडे तथा दकियानूसी त्योहार की संज्ञा दी जा रही है। 
आजकल आयातित  कल्चर, विदेशी सोच तथा तथाकथित आधुनिकता के हिमायती कुछ लोगों को महिलाओं का दिन भर उपवासित रहना उनका उत्पीडन लगता है। उनके अनुसार यह पुरुष  प्रधान समाज द्वारा महिलाओं को कमतर आंकने का बहाना है। अक्सर उनका सवाल रहता है कि पुरुष क्यों नहीं अपनी पत्नी के लिए व्रत रखते ? ऐसा कहने वालों को शायद व्रत का अर्थ सिर्फ भोजन ना करना ही मालुम है। जब कि कहानियों में व्रत अपने प्रियजनों को सुरक्षित रखने, उनकी अनिष्ट से रक्षा करने की मंशा का सांकेतिक रूप भर है। यह तो  इस तरह के लोग एक तरह से अपनी नासमझी से महिलाओं की भावनाओं का अपमान ही करते हैं। उनके प्रेम, समर्पण, चाहत को कम कर आंकते हैं और जाने-अनजाने महिला और पुरुष के बीच गलतफहमी की खाई को पाटने के बजाए और गहरा करने में सहायक होते हैं। 
वैसे देखा जाए तो पुरुष द्वारा घर-परिवार की देख-भाल, भरण-पोषण भी एक तरह का व्रत ही तो है जो वह आजीवन निभाता है ! आज समय बदल गया है, पहले की तरह अब महिलाएं घर के अंदर तक ही सिमित नहीं रह गयी हैं। पर इससे उनके अंदर के प्रेमिल भाव, करुणा, परिवार की मंगलकामना जैसे भाव ख़त्म नहीं हुए हैं।
आज एक तरफ हमारे हर त्योहार, उत्सव, प्रथा को रूढ़िवादी, अंधविश्वास, पुरातनपंथी, दकियानूसी कह कर ख़त्म करने की कोशिशें हो रही हैं। दूसरी तरफ "बाजार" उतारू है, इस जैसे मासूम से त्यौहारों को फैशन के रूप में ढालने को ! आस्था को खिलवाड का रूप दे दिया गया है। मिट्टी के बने कसोरों का स्थान मंहगी धातुओं ने ले लिया है। पारंपरिक मिठाइयों की जगह चाकलेट आ गया है। देखते-देखते साधारण सी चूडी, बिंदी, टिकली, धागे सब "डिजायनर" होते चले गये। दो-तीन-पांच रुपये की चीजों की कीमत 100-150-200 रुपये हो गयी। अब सीधी-सादी प्लेट या थाली से काम नहीं चलता उसे सजाने की अच्छी खासी कीमत वसूली जाती है, कुछ घरानों में छननी से चांद को देखने की प्रथा घर में उपलब्ध छननी से पूरी कर ली जाती थी पर अब उसे भी बाज़ार ने साज-संवार, दस गुनी कीमत कर, आधुनिक रूप दे महिलाओं के लिए आवश्यक बना डाला है। पावन रूप को विकृत करने की शुरुआत हुई फिल्मों से जिसने रफ्तार पकडी टी.वी. सीरियलों के माध्यम से !
अब तो सोची समझी साजिश के तहत हमारी शिक्षा, संस्कृति, संस्कारों, उत्सव-त्योहारों, रस्मों-रिवाजों, परंपराओं सब पर इस गिद्ध रूपी बाज़ार को हावी करवाया जा रहा है ! समय की जरुरत है कि हम अपने ऋषि-मुनियों, गुणी जनों द्वारा दी गयी सीखों उपदेशों का सिर्फ शाब्दिक अर्थ ही न जाने उसमें छिपे गूढार्थ को समझने की कोशिश भी करें। उसमें छिपे गुणों, नसीहतों, उपदेशों को अपनाएं !

13 टिप्‍पणियां:

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

शानदार लेख। बिल्कुल सही कहा आपने। ये मुट्ठीभर तथाकथित बुद्धिजीवी,विदेशी विचारधारा से प्रेरित लोग, फिलम सिनेमा या धारावाहिक वाले जब भी कोई हिन्दू त्यौहार आता है बुराई बतियाना, मजाक उड़ाना आदि शुरू कर देते है। अभी देखिए न दीपावली आने वला है उसपर भी ज्ञान देने के लिए ये "तथाकथित" लोग आ जाएंगे। मुझे तो ऐसा लगता है कहीं मेरे एक दिया जलाने से पूरा ग्लेशियर पिघल ना जाए। बाकी आपके ब्लॉग हमेशा "कुछ अलग सा" रहता है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर।
करवाचौथ की बधाई हो।

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवम जी
बिल्कुल सही! सब सोची-समझी साजिश के तहत किया जाता है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिग्विजय जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सजिश समझ में आते हुऐ भी हम उसमें शामिल हो कर आनन्द की प्राप्ति करते हैं । सुन्दर।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी
देख लिजिए फेसबुक भरा पडा है मोहतरमाओं की मजाक उडाती पोस्टों तथा उन पर चापलूसीयुक्त टिप्पणियों से। बात अच्छे बुरे की नहीं है बात है ऐसे लोगों
की दूसरे का मजाक बनाने या अपने को ही सही ठहराने की जिद का

कदम शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर और सही तस्वीर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

धन्यवाद, कदम जी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी
हार्दिक आभार

Jyoti Dehliwal ने कहा…

विचारणीय आलेख।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी
सदा स्वागत है आपका

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