स्टेशन को बंद करने से होने वाली असुविधा को देखते हुए जालसू गांव के रिटायर्ड फौजियों और ग्रामीणों ने इस फैसले के विरुद्ध धरना व विरोध प्रदर्शन करना शुरू किया तो रेलवे को इनकी बात माननी पड़ी और ग्यारहवें दिन फिर स्टेशन को शुरू तो कर दिया पर वहां के लोगों के सामने एक शर्त भी रख दी कि यहां टिकट वितरण के लिए रेलवे का कोई कर्मचारी नहीं होगा और ग्रामीणों को ही इसे संभालना और हर महीने 1500 यानी प्रतिदिन 50 टिकट की बिक्री का भी प्रबंध करना होगा.................!
#हिन्दी_ब्लागिंग
हमारे देश में जहां रेल में बिना टिकट यात्रा करने वालों और उनसे जुर्माना वसूला जाना एक आम बात है ! रेलवे की सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाने वालों की भी कोई कमी नहीं है ! वहीं बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि हमारे ही देश में एक ऐसा रेलवे स्टेशन भी है, जिसके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए वहां के ग्रामीण हर महीने चंदा जुटा कर 1500 रूपए का टिकट खरीदते हैं, जिससे कि रेलवे उस स्टेशन को बंद ना कर दे !
पर ना ही रेलवे के निजीकरण को ले कर विलाप करने वाले मतलबपरस्त, ना हीं मानवाधिकार का रोना रोने वाले मौकापरस्त और ना हीं सबको समानाधिकार देने को मुद्दा बनाने वाले सुविधा भोगी कोई भी तो इधर ध्यान नहीं दे रहा ! शायद उनके वोटों को ढोने वाली रेल गाडी इस स्टेशन तक नहीं आती
पर ना ही रेलवे के निजीकरण को ले कर विलाप करने वाले मतलबपरस्त, ना हीं मानवाधिकार का रोना रोने वाले मौकापरस्त और ना हीं सबको समानाधिकार देने को मुद्दा बनाने वाले सुविधा भोगी कोई भी तो इधर ध्यान नहीं दे रहा ! शायद उनके वोटों को ढोने वाली रेल गाडी इस स्टेशन तक नहीं आती
2005 में अचानक जोधपुर रीजन में कम आमदनी वाले स्टेशनों को बंद करने का फैसला किया गया ! जालसू का नाम भी उस सूचि में था, सो उसे भी बंद कर दिया गया ! स्टेशन को बंद करने से होने वाली असुविधा को देखते हुए जालसू गांव के रिटायर्ड फौजियों और ग्रामीणों ने इस फैसले के विरुद्ध धरना व विरोध प्रदर्शन करना शुरू किया तो रेलवे को इनकी बात माननी पड़ी और ग्यारहवें दिन फिर स्टेशन को शुरू तो कर दिया पर वहां के लोगों के सामने एक शर्त भी रख दी कि यहां टिकट वितरण के लिए रेलवे का कोई कर्मचारी नहीं होगा और ग्रामीणों को ही इसे संभालना और हर महीने 1500 यानी प्रतिदिन 50 टिकट की बिक्री का भी प्रबंध करना होगा।
सरहद पर लोहा लेने वाले यहां के जांबाज लोगों ने यह शर्त भी मंजूर कर ली। अब सवाल था पूंजी का ! पंचायत जुटी और उसके अनुसार सभी से चंदा ले इस समस्या को हल करने का निर्णय लिया गया ! सबने अपने मान-सम्मान और सुविधा बनाए रखने के लिए हर तरह का सहयोग किया ! देखते-देखते डेढ़ लाख रूपए एकत्रित हो गए। इस राशि को गांव में ब्याज पर दिया जाने लगा, जिससे हर महीने तीन हजार रूपए ब्याज रूप में मिलने लगे। उसी रकम से 1500 टिकटों की खरीदी होने लगी और उसी से बुकिंग संभालने वाले ग्रामीण को भी 15% मानदेय भुगतान किया जाने लगा। इस तरह यह देश का इकलौता रेलवे स्टेशन बन गया है जहां कोई रेलवे अधिकारी या कर्मचारी नहीं है, इसके बावजूद भी यहां 10 से ज्यादा ट्रेनें रुकती हैं। गांव के लोग ही टिकट काटते हैं और हर माह करीब 1500 टिकट खरीदते भी हैं।
ऐसा भी नहीं है कि ग्रामीणों के योगदान और सहयोग से चलने वाले इस स्टेशन की बात ऊपर तक ना पहुंची हो ! इस बात का पता रेलवे को तो है ही, पीएमओ तक इसकी खबर है ! पर ना ही रेलवे के निजीकरण को ले कर विलाप करने वाले मतलबपरस्त, ना हीं मानवाधिकार का रोना रोने वाले मौकापरस्त और ना हीं सबको समानाधिकार देने को मुद्दा बनाने वाले सुविधा भोगी कोई भी तो इधर ध्यान नहीं दे रहा ! शायद उनके वोटों को ढोने वाली रेल गाडी इस स्टेशन तक नहीं आती।
18 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
रवीन्द्र जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
जानकारीपरक और प्रेरक पोस्ट।
शास्त्री जी
हार्दिक आभार
वाह सर,बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने।
शिवम जी
अनेकानेक धन्यवाद
सुशील जी
हार्दिक आभार
मीना जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
दुःख होता है इस तरह की अवहेलना देख कर ।
अमृता जी
सच में! एक तरफ अरबों खरबों ऊल-जलूल मदों में बर्बाद कर दिए जाते हैं और दूसरी तरफ ऐसा भी हो रहा है
बहुत सुंदर जानकारी! वैसे सरकार को उचित कदम उठाने चाहिए
सहमत पूरी तरह
अच्छा किया आपने जो यह बात सबके सामने उजागर की,लोग सचेत होंगे तो उपचार भी होगा.
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प्रतिभा जी
बहुत से लोगों को ज्ञात है सरकारी महकमों समेत. पर......बस चल रहा है
क्यूशिराताकी'' की स्कूल जाने वाली सिर्फ एक बालिका के लिए तब तक ट्रेन सेवा जारी रखी जब तक उसने स्कूल पास नहीं कर लिया, यह जापान की सच्ची घटना जन-जन तक पहुँच गई भारत में और अपने ही देश की यह बात क्या छिपी होगी सरकार से ? हालांकि मुझे तो पहली बार इसका पता चला है।
बहुत सुन्दर व अनुपम।
मीना जी
यही विडंबना है जब तक किसी से मतलब नहीं निकलता उसकी कद्र नहीं की जाती
शांतनु जी
"कुछ अलग सा" पर आपका सदा स्वागत है
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