लगता तो ऐसा ही है कि सब कुछ लकीर के फ़क़ीर की तरह ही चलता है, विवेक का बिलकुल सहारा नहीं लिया जाता ! क्योंकि यदि ऐसा होता तो क्या हजारों साल पुराने ग्रंथ, जिसकी कथा निर्विवाद रूप से सर्वोपरि है, में वर्णित किसी घटना को मंचित करने वालों को दोषी करार दिया जाता ? वैसे भी यदि किसी कानून की रक्षा हेतु यह कदम उठाया गया था तो महर्षि वेदव्यास और गणेश जी को भी समन जारी कर देना था ...........................!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
आम धारणा है, और बहुत हद तक सच भी है कि किसी भी क्षेत्र में सर्वोच्च पद पर पहुँचने वाला व्यक्ति बहुत ही ज्ञानी, लायक, बुद्धिमान, विवेकी और उस ख़ास पद के लिए योग्य होता है ! परन्तु आश्चर्य और खेद की बात है कि हर क्षेत्र में अपवाद स्वरुप कुछ ऐसे महानुभाव भी मिल ही जाते हैं जो अपनी ''करनियों'' से उनके उस ख़ास पद पर होने और पहुंचने पर उनकी लियाकत पर ही शक उत्पन्न कर देते हैं ! ऐसे लोग, चाहे राजनीती हो, खेल हो, न्याय-व्यवस्था हो, प्रशासन हो, शिक्षा या अभिनय का क्षेत्र हो सभी जगह अपनी पहुँच बनाए मिल जाएंगे ! जैसे संचार क्रांति हुई है तबसे ऐसे लोगों के कारनामे और भी सामने आने लगे हैं !
अभी कुछ दिनों पहले कपिल शर्मा के एक शो में बी.आर.चोपड़ा द्वारा निर्मित महाभारत में काम कर चुके कुछ कलाकार आए थे। जिन्होंने धारावाहिक बनने के दौरान हुए दिलचस्प वाकयों का जिक्र किया था। उन्हीं किस्सों के बीच पुनीत इस्सर ने एक अजीबोगरीब घटना का खुलासा किया कि कैसे महाभारत कथा में वर्णित द्रौपदी चीर हरण को फिल्माने के कारण बनारस के कोर्ट द्वारा सीरियल के कुछ कलाकारों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया गया था !
उनके अनुसार, करीब 30 साल पहले एक बार जब वह ड्राइव कर रहे थे। अचानक एक पुलिस की वैन आई और उनसे गाड़ी रोकने को कहा। पुनीत ने बताया कि उन्हें पहले लगा कि उन्होंने गलती से सिग्नल तोड़ दिया है। लेकिन पुलिस ने उन्हें बताया कि उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया है। उन्हें बताया गया कि पुनीत इस्सर, जिन्होंने दुर्योधन की भूमिका निभाई थी, गूफी पेंटल, जो शकुनि मामा बने थे, परामर्शदाता कवि व गीतकार नरेंद्र शर्मा, पटकथा लेखक राही मासूम रजा तथा निर्माता बी आर चोपड़ा के खिलाफ चीरहरण सीन की वजह से केस दर्ज हुआ है। यह सुन सभी शॉक्ड हो गए थे।क्या उस सनकी आदमी को सजा नहीं मिलनी चाहिए थी जिसने सिर्फ अपनी खब्त के कारण बेवजह लोगों को परेशान किया ? क्या कोर्ट में बेबुनियाद, काल्पनिक, सच्चाई से कोसों दूर के मामलों पर मुकदमा दायर किया जा सकता है ? क्या किसी भी मुकदमे को बिना देखे-सुने, जांचे-परखे, बिना उसकी अहमियत जाने दाखिल कर लिया जाता है
पुनीत ने आगे बताया कि बीआर चोपड़ा ने फिर वकील हायर किया ! दौड़-धूप की गई ! किसी तरह मामला निपटा दिया गया ! लेकिन फिर 28 साल बाद, उसी केस पर, दोबारा उन्हीं लोगों को फिर समन भेजा गया ! इस बीच काफी समय बीत चुका था ! बी. आर. चोपड़ा, रवि चोपड़ा, नरेंद्र शर्मा, राही मासूम रजा अब हमारे बीच नहीं रहे थे ! फिर भी जवाब तो देना ही था ! इसलिए पुनीत तथा गूफी पेंटल जी ने फिर एक वकील को मामला सौंपा ! केस के लिए जब वे बनारस गए तो जिस आदमी की शिकायत पर केस हुआ था, उसने कहा कि उसे हमारे साथ सिर्फ फोटो खिंचवानी थी इसलिए उसने ऐसा किया ! इस पर इन लोगों की क्या प्रतिक्रिया थी यह पुनीत ने नहीं बताया। उन्होंने इस बात का खुलासा भी नहीं किया कि यह मुकदमा किसी आम आदमी ने किया था कि सीधे किसी वकील ने ! जिसने भी किया हो उस पर अदालत द्वारा कार्रवाई तो होनी ही चाहिए थी !
पर सवाल यह उठता है कि क्या उस सनकी आदमी को सजा नहीं मिलनी चाहिए थी जिसने सिर्फ अपनी खब्त के कारण बेवजह लोगों को परेशान किया ? क्या कोर्ट में बेबुनियाद, काल्पनिक, सच्चाई से कोसों दूर के मामलों पर मुकदमा दायर किया जा सकता है ? क्या किसी भी मुकदमे को बिना देखे-सुने, जांचे-परखे, बिना उसकी अहमियत जाने दाखिल कर लिया जाता है ? लगता तो ऐसा ही है कि सब कुछ लकीर के फ़क़ीर की तरह ही चलता है, विवेक का बिलकुल सहारा नहीं लिया जाता ! क्योंकि यदि ऐसा होता तो क्या हजारों साल पुराने ग्रंथ, जिसकी कथा निर्विवाद रूप से सर्वोपरि है, में वर्णित किसी घटना को मंचित करने वालों को दोषी करार दिया जाता ? वैसे भी यदि किसी कानून की रक्षा हेतु यह कदम उठाया गया था तो महर्षि वेदव्यास और गणेश जी को भी समन जारी कर देना था ! पढ़ने-सुनने में बात भले ही मजाकिया लगे, पर इसका असर या प्रभाव सोचनीय और दूरगामी है।
हमारे कोर्ट-कचहरियों में जो लाखों केस, सालों-साल से यूं ही धूल खाते, फैसले की उम्मीद में पड़े हैं, उनमें हजारों-हजार मामले ऐसे ही बेतुके, बेबुनियाद, बेमतलब के भी दर्ज हैं ! आए दिन इस पर संज्ञान जरूर लिया जाना चाहिए ! इस क्षेत्र के विद्वान, गुणी, जानकार लोगों के साथ-साथ सरकार के विधि मंत्रालय को भी इस पर कदम उठाने चाहिए, जिससे सनकी, गैर-जिम्मेदार, अविवेकी वकीलों और उनके अहम पर भी अंकुश लग सके और न्याय प्रणाली मखौल बन कर ना रह जाए।
9 टिप्पणियां:
बिल्कुल सही..🌻
शिवम जी
आपका सदा स्वागत है
शास्त्री जी
हार्दिक आभार
कैसे गैर जिम्मेदार लोग हैं
ऐसे लोगों पर कानून का सख्त होना बहुत जरूरी है
यह भारतीय न्यायपालिका के 'न्याय-दर्शन' के स्तर को भी दर्शाता है।
कदम जी
यही तो त्रासदी है
चेतन जी
होना तो यही चाहिए पर....
विश्वमोहन जी
ऐसी खामियां दूर हो जाए तो न्यायालयों को भी सांस लेने का मौका मिले
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