रविवार, 4 अक्तूबर 2020

मच्छर, वाल्मीकि भी जिसे नजरंदाज नहीं कर पाए

इसी आताताई से बचने की  खातिर ऋषि-मुनि ज्यादातर पहाड़ों में या गुफाओं में जा कर, विघ्न-बाधा रहित हो, तपस्या करना पसंद करते थे ! इस मच्छारासुर से बचने के लिए ही श्री विष्णु ने सागर में और भोले नाथ ने हिमगिरि को निवास बनाया ! लक्ष्मण जी ने यूं ही चौदह साल जाग कर नहीं बिताए, वे चाहते थे कि प्रभु राम इससे राहत पा आराम से रात में सो सकें ! श्री राम ने भी रीछ-वानरों की सेना इसीलिए बनाई, क्योंकि उन पर मसक का असर न के बराबर होता है। यदि मानवों की सेना होती, तो तटीय प्रदेश के नमी युक्त वातावरण में इसके प्रकोप से ही कई सैनिक परलोक गमन कर जाते ! फिर रावण की तो मौंजा ही मौंजा हो जातीं ................!

#हिन्दी_ब्लागिंग   

अभी-अभी आए कोरोना का आतंक तो है, जो शायद कुछ समय पश्चात् काबू में भी आ जाएगा ! पर क्या उसकी तुलना हमारे पीढ़ी दर पीढ़ी के हमसाया रहे मच्छर के साथ हो सकती है ! तुलना तो दूर वह तो इसके पासंग भी नहीं है ! कहां कोरोना, वंश-हीन, आकार हीन, मृत्यु हीन, दिशा हीन, असामाजिक, निर्मम वायरस ! भले ही उसके आतंक से दुनिया भर में तहलका मचा हुआ है ! अत्यंत दुःख की बात है कि इसकी वजह से लाखों लोग काल के गाल में समा चुके हैं ! फ़िलहाल जिसका प्रकोप थमता भी नहीं दिखता ! पर आशा है और लगता है कि इस पर जल्द ही काबू पा लिया जाएगा।

उधर हमारा मच्छर, अदना सा, नश्वर, वंश युक्त, साकार, सामाजिक, क्षुद्र कीट ! पर जिसका अस्तित्व प्राचीन काल से ही इस धरा पर बना हुआ है ! जिसको रामायण की रचना के दौरान महर्षि वाल्मीकि भी नजरंदाज नहीं कर पाए, ''मसक समान रूप कपि धरी, लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी !'' जो लाखों सालों से मानव का सहगामी रहते हुए भी उसके खून का प्यासा है ! जिसके कारण हर साल तकरीबन दस लाख लोगों की मौत हो जाती है ! जिसका आंकड़ा दुनिया के इतिहास में हुए युद्धों में हताहत लोगों से भी कई गुना ज्यादा है ! उस पर कभी भी काबू नहीं पाया जा सका है, और ना हीं आशा है ! तो डरना किससे है ? कौन ज्यादा खतरनाक है ? कौन ज्यादा मारक है ?  

वैसे इनकी नई पीढ़ी को पहले की बनिस्पत रक्त की आपूर्ति बहुतायाद में और वह भी कम खतरे के साथ होने लगी है। जिसका सारा श्रेय हमारी रहम दिल, परोपकारी, सूक्ष्म वस्त्र धारी ललनाओं को जाता है, जिन्होंने बारहों महीने अपने वस्त्रों में कटौती कर इन मासूम जीवों की जरूरत को पूरा करने का संकल्प ले रखा है

दुनिया भर में मच्छरों की करीब 3500 से ज्यादा प्रजातियाँ पाई जाती हैं ! जिनमें मादा की उम्र दो महीने और नर की 15 दिनों की ही होती है। मादा एक बार में तीन सौ, पर जीवन भर में सिर्फ पांच सौ अंडे ही दे सकती है। इन में सिर्फ 6% प्रजातियों की मादाएं ही इंसानों का खून चूसती हैं, वह भी ज्यादाकर समलिंगियों का, यहां भी ''नारि न मोहे नारि के रूपा", चरितार्थ होता है ! खून भी कितना, सिर्फ .01 से .1ml ! नर मच्छर इस खून-खराबे से अलग ही रहता है ! बाकी प्रजातियों की ज्यादातर नस्लें शाकाहारी होती हैं, जो पौधों, फूलों और वनस्पतियों के रस से ही अपना गुजारा कर लेती हैं ! इनमें भी करीब सौ ही ऐसी प्रजातियां हैं, जिनसे बिमारी फैलती है ! वह तो भला हो कायनात का जिसने इनको कुछ हद तक काबू कर नकेल कस दी, वर्ना यदि सारे मच्छर-मच्छरियाँ रक्त-पिपासू हो जाते तो इंसान इस धरा से कब का गो-वेंट-गॉन हो गया होता ! 

अब यह सब देख-सुन कर जब पुरानी कथाओं, किस्से-कहानियों पर ध्यान जाता है, तो मच्छर की उपस्थिति और भी प्रामाणिक और पौराणिक हो जाती है। अब जा कर यह समझ में आता है कि इसी आताताई से बचने की  खातिर ऋषि-मुनि ज्यादातर पहाड़ों में या गुफाओं में जा कर, विघ्न-बाधा रहित हो, तपस्या करना पसंद करते थे ! वन में रहने वाले तपस्व्वी, गुरूकुल के आचार्य भी हवन, यज्ञ कर इसे दूर रखने की चेष्टा करते रहते थे ! राजाओं-महाराजाओं पर चंवर क्यों डुलाए जाते थे ! आज भी अदालतों में चोबदार मुस्तैद रहते हैं कि इसके कारण जज साहब का ध्यान न्याय से ना भटक जाए ! इसका आतंक ही ऐसा है !  इसी "मसकासुर" से बचने के लिए ही श्री विष्णु ने सागर और भोले नाथ ने हिमगिरि को निवास बनाया ! लक्ष्मण जी ने यूं ही चौदह साल जाग कर नहीं बिताए, वे चाहते थे कि प्रभु राम इससे राहत पा आराम से रात में सो सकें ! श्री राम ने भी रीछ-वानरों की सेना इसीलिए बनाई, क्योंकि उन पर मसक का असर न के बराबर होता है। यदि मानवों की सेना होती, तो तटीय प्रदेश के नमी युक्त वातावरण में इसके प्रकोप से ही कई सैनिक परलोक गमन कर जाते ! रावण की तो मौंजा ही हो जातीं !

इस छुद्र कोटि के निम्न जीव से तो विश्विजेता का ख्वाबधारी सिकंदर तक नहीं बच पाया, तो बाकियों की क्या बिसात है ! चाँद-मंगल को फतह कर लेने वाला इंसान, इस बिना रीढ़ वाले जीव के सामने विवश इसलिए है, क्योंकि समय के साथ इसने अपनी आदतें बदली हैं ! यह दिनों-दिन समझदार और हाई-टेक होता चला गया है ! प्रमाण की क्या जरुरत है आप खुद ही देख लीजिए ! अब यह पहले की तरह ज्यादा गुंजार नहीं करता। कान के पास आने से परहेज करने लगा है ! जींस में बदलाव ला अपना आकार भी कुछ छोटा कर लिया है। उड़ने की शैली भी कुछ बदल कर सुरक्षात्मक हो गयी है। रक्त रूपी आहार भी कम लेने लगा है। इन सब परिवर्तनों का फायदा इस प्रजाति को मिलने भी लगा है। पहले गले तक रक्त पी, खुमार में आ आस-पास ही पड़ा रहता था, चाहे बिस्तर पर या फिर तकिए पर या फिर पास की दिवार पर और देखते-देखते हाथ के एक ही प्रहार से वहीं हार पहनने लायक रह जाता था। पर अब बदलाव के कारण यह जरुरत के अनुसार भोग लगा.. यह-जा ! वह-जा ! वैसे इनकी  नई पीढ़ी को पहले की बनिस्पत रक्त की आपूर्ति बहुतायाद में और वह भी कम खतरे के साथ होने लगी है। जिसका सारा श्रेय हमारी रहम दिल, परोपकारी, सूक्ष्म वस्त्र धारी ललनाओं को जाता है, जिन्होंने बारहों महीने अपने वस्त्रों में कटौती कर इन मासूम जीवों की जरूरत को पूरा करने का संकल्प ले रखा है।

एक-डेढ़ मिलीग्राम के इस दंतविहीन कीड़े ने वर्षों से हमारे नाक में दम कर रखा है। करोड़ों-अरबों रूपए इसको नष्ट करने के उपायों पर खर्च करने के बावजूद इसकी आबादी कम नहीं हो पा रही है। जितना पैसा दुनिया भर की सरकारें इस कीट से छुटकारा पाने पर खर्च करती हैं; वह यदि बच जाए तो दुनिया में कोई इंसान भूखा नंगा नहीं रह जाएगा। इससे बचने का उपाय यही है कि खुद जागरूक रह कर अपनी सुरक्षा आप ही की जाए। क्योंकि ये महाशय "देखन में छोटे हैं पर घाव करें गंभीर"।  

30 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत खूब। बढ़िया।

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

शानदार लेख🌻

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 04 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी
हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवम जी
अनेकानेक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी
सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 5 अक्टूबर 2020) को 'हवा बहे तो महक साथ चले' (चर्चा अंक - 3845) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रवीन्द्र जी
मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद ।
सभी सुरक्षित रहें स्वस्थ रहें

Onkar ने कहा…

बहुत बढ़िया

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हार्दिक आभार, ओंकार जी

कदम शर्मा ने कहा…

मजेदार वर्णन, बहुत बढिया

Anita ने कहा…

रोचक अंदाज में मच्छर गाथा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कदम जी
आप लोगों की प्रतिक्रियाऐ ही हौसला बढाती हैं, आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी
पधारने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और रोचक प्रस्तुति।

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत बढ़िया

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
अपनी टिप्पणियों से हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार

anita _sudhir ने कहा…

सुंदर मच्छर कथा

Meena Bhardwaj ने कहा…

मच्छर जीवन की रोचक कहानी । कमाल की है आपकी लेखनी । अति सुन्दर।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

मच्छरों पर बहुत रोचक जानकारी युक्त बढ़िया आलेख।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योत्सना जी
''कुछ अलग सा'' पर आपका सदा स्वागत है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनिता जी
आपका ''कुछ अलग सा'' पर सदा स्वागत है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी
मच्छर चाहे कितना भी खून पी ले, ऐसी स्नेहात्मक टिप्पणियों से उसकी कभी कमी नहीं होती ! हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी
स्वागत है, सदा ही

Sudha Devrani ने कहा…

कोरोना और मच्छर!!!!
मच्छरों के बारे में बहुत ही रोचक जानकारी....
कमाल का लेखन
लाजवाब।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुधा जी
अनेकानेक धन्यवाद

मन की वीणा ने कहा…

वाह अद्भुत, शानदार शोधपरक लेख बहुत ही रोचक तथ्य ।
बहुत सुंदर।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार

Chetan ने कहा…

क्या बात है :)

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

चेतन जी
यही तो बात है :)

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