जिस तरह किसी भी रत्न को दाग, जाल, रेखा या किसी भी अशुद्धि से परे जा कर ही अनमोल माना जाता है, नहीं तो उसका मोल कम हो जाता है, ठीक उसी तरह चयनित होने जा रहे भारत रत्न का भी हर तरह की कसौटी पर खरा उतरना लाजिमी होना चाहिए ! पर आज के माहौल में, राजनीतिक तुष्टिकरण में, जाति -बिरादरी में साख की खातिर, हैसियत जताने के लिए, अपने अहम् की तुष्टि के लिए या अपनी महत्वकाक्षों के चलते, कोई भी अपनी पसंद के किसी के नाम को भी इस सम्मान हेतु प्रस्तावित करता नजर आने लगा है............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
भारत रत्न, भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान। यह सम्मान राष्ट्रीय सेवा के लिए दिया जाता है। इन सेवाओं में कला, साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवा और खेल शामिल है। इस सम्मान की स्थापना 2 जनवरी 1954 में की गई थी। इसके लिए चयनित व्यक्ति विशेष का चयन ज्यादातर सर्वमान्य रहा, पर कुछेक बार अनुत्तरित प्रश्न भी खड़े हुए, इसकी चयनित शख्सियत को ले कर ! इधर भी एक चलन कुछ ज्यादा ही देखने में आने लगा है, कोई भी अपनी जाति-बिरादरी, धर्म-पंथ के नेता के लिए इसकी मांग उठाने लग पड़ा है ! यदि इसकी रेवड़ी बंटने लगी तो फिर भविष्य में इसकी महत्ता का सिर्फ अंदाज ही लगाया जा सकता है !
इन्हीं सब गुणों को देखते हुए सर्वोच्च नागरिक सम्मान के नामकरण के लिए इसके स्वप्नकारों के दिमाग में ''रत्न'' नाम आया होगा। यानी एक ऐसा इंसान जो देश से जुड़ा हुआ हो ! जो मन-कर्म-वचन से देश और देशवासियों के उत्थान के लिए समर्पित हो ! समय के थपेड़े, विपरीत परिस्थियां, जटिल समस्याएं भी उसे विचलित या पथ-भ्रष्ट ना कर पाती हों ! संयम, विनम्रता, समर्पण, लगन, जिजीविषा, परोपकारिता, निरपेक्षिता जैसे गुण उसमें चिरस्थाई हों। जैसे रत्न आभूषणों के रूप में शरीर की शोभा बढ़ाते हैं, साथ ही अपनी दैवीय शक्ति के प्रभाव के कारण रोगों का निवारण भी करते हैं; उसी तरह इस सम्मान को पाने वाले के गुण भी देश की शोभा में इजाफा करने वाले और उसकी कर्मठता, अवाम के हालात को सुधारने और उसकी मुश्किलों का हल निकालने में सक्षम होनी चाहिए । एक ऐसा इंसान जिसकी मिसाल दी सके ! जो सर्वोपरि हो, अपने समय में !
इसके समकक्ष एक और अलंकरण बना दिया जाए और उसका नाम भारत भूषण रख दिया जाए ! अब भूषण यानी गहने वगैरह को टिकाऊ बनाने के लिए उसमें कुछ खोट मिलाने की छूट और मान्यता तो है ही
इसके समकक्ष एक और अलंकरण बना दिया जाए और उसका नाम भारत भूषण रख दिया जाए ! अब भूषण यानी गहने वगैरह को टिकाऊ बनाने के लिए उसमें कुछ खोट मिलाने की छूट और मान्यता तो है ही
जिस तरह किसी भी रत्न को दाग, जाल, रेखा या किसी भी अशुद्धि से परे जा कर ही अनमोल माना जाता है, नहीं तो उसका मोल कम हो जाता है, ठीक उसी तरह चयनित होने जा रहे भारत रत्न का भी हर तरह की कसौटी पर खरा उतरना लाजिमी होना चाहिए ! पर आज के माहौल में, राजनीतिक तुष्टिकरण में, जाति-बिरादरी में साख की खातिर, हैसियत जताने के लिए, अपने अहम् की तुष्टि के लिए या अपनी महत्वकाक्षों के चलते, कोई भी अपनी पसंद के किसी के नाम को भी इस सम्मान हेतु प्रस्तावित करता नजर आने लगा है।
अब ना तो पहले जैसे लोग रहे ना हीं ऊसूल ! ऐसे में याद आती है, भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री श्री अबुल कलाम आज़ाद की ! जब उनको भारत रत्न देने की बात आई तो उन्होंने खुद जोर देकर मना कर दिया, क्योंकि वे खुद इसकी चयन समिति के सदस्य थे ! हालांकि बाद में मरणोंपरांत 1992 में उन्हें इस सम्मान से नवाजा गया ! आज तो खुद ही अपना नाम प्रस्तावित करवाया जाने लगा है ! आज जरुरत है पद्म पुरुस्कारों जैसी अवनति से इसे बचाए रखने की।
17 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया।
आभार, सुशील जी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 16 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यशोदा जी
रचना को मान दे, स्थान प्रदान करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
सोचने को विवश करता सार्थक आलेख।
बेहतरीन लेख । काश ये सम्मान खिलाड़ियों में हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद सबसे पहले मिला होता।
इतने बड़े सम्मान की गरिमा कायम रहनी ही चाहिए। इसके लिए चयन प्रक्रिया बहुत ही निष्पक्ष होनी चाहिए। विचारणीय आलेख।
शास्त्री जी
हार्दिक आभार
शिवम जी
हर जगह जुगाड़ का घुन लगता जा रहा है ! पद्मश्री की हालत तो देख देख ही रहे हैं !
ज्योति जी
प्रतिक्रिया के लिए अनेकानेक धन्यवाद
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-१०-२०२०) को 'नागफनी के फूल' (चर्चा अंक-३८५७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
विचारणीय आलेख
साधुवाद 🙏🍁🙏
वर्षा जी
"कुछ अलग सा" पर आपका सदा स्वागत है
बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं विचारणीय लेख।
सुधा जी
अनेकानेक धन्यवाद
Bahut sundar jankari
कदम जी
अनेकानेक धन्यवाद
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