हमारे पहले राष्ट्रपति बाबू राजेंद्र प्रसाद हालांकि काफी धीर, गंभीर, गुणी इंसान थे। पर मन से बहुत कोमल और परम्पराओं को निभाने में विश्वास रखते थे।
उन्हें सांस की तकलीफ रहा करती थी इसलिये गर्मी के दिनों में मध्य प्रदेश के प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पहाड़ी
स्थान पचमढी जाया करते थे। उस समय मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल हुआ करते थे। उनके निवास पर रोज शाम को रामचरित मानस का पाठ हुआ करता था। राजेंद्र बाबू अक्सर वहां जाया करते थे और जाते ही रविशंकर जी के चरण स्पर्श करते थे। शुक्ल जी जब भी उन्हें रोकते कि आप राष्ट्रपति हैं और मैं तो एक छोटा सा मुख्य मंत्री हूं आप मेरे पांव ना छूआ करें। तब ही राजेंद्र बाबू मुस्कुरा कर जवाब देते कि मैं एक ब्राह्मण के चरण स्पर्श करता हूं किसी मुख्य मंत्री के नहीं। जब भी मैं शाम को यहां आता हूं तो राष्ट्रपति के रूप में नहीं आता बल्कि, राम कथा का रस पान कर अपने को धन्य करने आता हूं। उनको समझाने का सभी ने बहुत प्रयास किया पर उन्होंने अपनी सरलता नहीं त्यागी। ऐसी विनम्रता की आशा क्या हम आज के राजनितिज्ञों से कर सकते हैं? जो अपने को महान बताने दिखाने के लिए पता नहीं कैसी-कैसी नौटंकिया करते रहते हैं।
राजेंद्र बाबू इतने बड़े पद पर रहने के बावजूद बहुत सादगी और मितव्ययी थे। एक बार उनके सचिव द्वारा लाया गया जूता उन्हें ठीक नहीं बैठ रहा था। इसे देख सचिव ने कहा कि अभी बदलवा लाता हूं। इस पर राजेंद्र बाबू ने पूछा कि कैसे जाओगे? सचिव ने कहा, कार से जाऊंगा। राजेंद्र बाबू बोले, अभी रहने दो, जब उधर कोई काम हो तब ही जाना। मेरा काम पुराने जूते से चल जाएगा। जानते हैं कि उन के जूते की कीमत क्या थी? सिर्फ आठ या दस रुपये।
सोचिए आज के मंत्रियों के बारे में जो लिखने के लिये हजारों रुपये की कलमों का इस्तेमाल करते हैं। वह भी कभी खुद के पैसे से ना खरीद कर। रही गाहियों की बात तो इन के वाहन चालक भी अपनी जरूरतों के लिए सरकारी गाड़ी को ही उपयुक्त मानते हैं।
8 टिप्पणियां:
जाने कहाँ गए वो दिन .
पहले जन प्रतिनिधियों की सुरक्षा का ढोंग भी नहीं था जिस पर आज अरबोँ खर्च किए जा रहे हैं
सरकार विज्ञापन देती है टैक्स पटाओ टैक्स पटाओ
क्यों जिससे बाबूलाल अपना घर भर ले
बाबू राजेंद्र प्रसाद ओर उन जेसे नेताओ को नमन करने को भी दिल करता है, ओर यह आज के नेता से अच्छा किसी सुअर को पास बिठा लो, आज के दो टके के नेता जो कल तक किसी झोपडे मै रहते थे, आज उन के बंगले किसी महल से कम नही, कोई पुछताछ करने वाला जॊ नही.... जो पूछेगा वो भी तो चोर ही होगा.
आप ने बहुत सुंदर लेख लिखा धन्यवाद
अब तो इसे किदव्न्ती ही माना जायेगा
सशक्त अभिव्यक्ति!
नारी-दिवस पर मातृ-शक्ति को नमन!
आज वैसे सरल और सहज नेता कहाँ रहे...
अभी साठ करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं बंगलों पर दिल्ली में.
अब वो बात कंहा शर्मा जी।
राजेन्द्र बाबू का गौरव अक्षुण्ण है उनके इन्हीं कार्यों से ! सहजता, सरलता की साक्षात प्रतिमूर्ति थे वह !
दुर्लभ है यह इस वक्त ।
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