हे, पार्थ (कर्मचारी),
इस बार इंक्रिमेंट अच्छा नहीं हुआ, बुरा हुआ।
इंसेंटिव नहीं मिला, यह भी बुरा हुआ।
वेतन में कटौती हो रही है, बुरा हो रहा है।
तुम पिछले इंसेंटिव ना मिलने का पश्चाताप ना करो।
तुम अगले इंसेंटिव की भी चिंता मत करो।
बस जो मिल रहा है उस वेतन में संतुष्ट रहो....
तुम्हारी जेब से क्या गया जो रोते हो?
जो आया था सब यहीं का था।
तुम जब नहीं थे, तब भी यह कंपनी चल रही थी।
तुम जब नहीं रहोगे तब भी यह कंपनी चलती रहेगी।
तुम कुछ भी ले कर यहां नहीं आए थे।
जो अनुभव मिला यहीं मिला।
जो भी काम किया कंपनी के लिए किया।
डिग्री ले कर आए थे, अनुभव ले कर जाओगे।
जो कम्प्यूटर आज तुम्हारा है, वह कल किसी और का था.
कल किसी और का होगा और परसों किसी और का।
तुम इसे अपना समझ कर क्यों खुश हो रहे हो।
यही खुशी तुम्हारी समस्त परेशानियों का मूल कारण है।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
गुरुवार, 4 मार्च 2010
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3 टिप्पणियां:
हा हा!! पूरा गीता सार मिल गया...आभार!
हा हा हा..क्या कमाल का कम्पनीय गीता सार दिया है....
बहुत खूब्!!
अच्छा विश्लेषण
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