सावन का पवित्र, खुशहाल माह। शिवजी की परिवार सहित पूजा-अर्चना। पावन सोमवारों की अपनी महत्ता। रिमझिम फुहारों का आनंद। कृषकों के खिले चेहरे। ग्रीष्म से छुटकारा पा तन-मन तर करवाते जीव-जंतु। आपस में भीगते-भिगोते, हंसते-खेलते बच्चे।
ऐसे ही हल्के-फुल्के मौसम में याद आया कि पिछली बार शिवजी की हिमाचल में स्थित अद्भुत क्रीड़ा स्थली "बिजली महादेव" पर आधारित पोस्ट बिना फोटो के ड़ालनी पड़ी थी जब कि इस बार फोटो उपलब्ध हैं। तो तीसरे सोमवार को यह शुभ कार्य करने का निश्चय किया। पर तेरे मन कुछ और है कर्ता के कुछ और। रवीवार को जब जिरह-बख्तर कसने लगा तो देखा कि संत गुगलानंद समाधी में चले गये हैं। पर जब सोमवार शाम को भी समाधी नहीं टूटी और अजीब-अजीब संदेश आने लगे तो इस महान धारा के प्रवर्तक श्री ललितजी को आवाज लगाई। उन्होंने तसल्ली देते हुए कहा कि बाबा बहुत बार अपना आचन-पाचन ठीक करने में वक्त ले लेते हैं जल्दी ही प्रवचन देने लगेंगे। सोमवार निकल गया, मंगल की शाम आ धमकी, गुगलानंद की समाधी नहीं टूटनी थी सो नहीं टूटी। इस सब गोरख धंधों से अंजान अपने हाथ पैर फूलने लगे। तभी गुरु पाबलाजी का ध्यान आया। चलित फोन से सम्बंध साधा, उन्होंने समाधी से जुड़े एक-दो सवाल किए और बोले कि घबड़ाने की कोई बात नहीं है, गुगलानंद की "नाड़ी" की गति धीमी है, उसका "समय" ठीक नहीं चल रहा है। समय यंत्र की दोलन क्रिया ठीक कर दें, स्वत: ही समाधी के बाहर आ जाएंगे। लो जी अगले पांच मिनटों में गुगलानंद पूछ रहे थे, मैं कहां हूं?
इस नामुराद "नाड़ी" ने तो बहुत बार "सिम्पटम" दिखाए थे पर अपन ही समझ नहीं पाए थे। यह पता नहीं था कि जरा सी 'घड़ी' कौन सी 'घड़ी' दिखा देगी। चलो इसी बहाने कुछ सीखने को ही मिला।
पर मुसीबत खत्म कहां हुई थी जो बरखा का आंनद ले पाते। गुगलानंदजी की समाधी टूटी तो उनकी देखा-देखी कम्प्यूटर बाबा अड़ गये। डाक्टरी जांच के बाद निदान पाया गया कि उनकी ग्लूकोज की सप्लाई बंद हो गयी है यानि "एडोप्टर" महाशय हड़ताल पर चले गये हैं। मैंने ऊपर देख शिवजी से पूछा क्या प्रभू आप ही का तो गुणगान करना चाहता हूं फिर ये बाधाएं क्यूं?
प्रभू मुस्कुराए बोले, हर किसी चीज का समय बंधा हुआ है। जिसे चौथे सोमवार आना था तुम उसे तीसरे में ही ला रहे थे, बस।
तो रब रक्खे सुख, अगले सोमवार को बिजली महादेव यानि मक्खन महादेव या कहिए बिजलेश्वर महादेवजी के दर्शन करना मत भूलिएगा।
और हां यदि आपके "मेज वाले" या "गोद वाले" की घड़ी धीमी हो तो ठीक कर लें। कहीं ऐसा ना हो कि यह यंत्र "टाईम मशीन" बन जाए :-)
5 टिप्पणियां:
सुझाव तो बहुत अच्छे हैं!
घड़ी ही कुछ ऐसी थी, क्या किया जाए?
घड़ीसाज से सुधरवा लिया जाए।:)
चलिए अगली सोमवार के लिए तैयार तो हो गयी !
ha..ha..dhyaan rakhunga
सही कहा ललितजी,
'घड़ी', 'घड़ी' की बात है। पता नहीं किस घड़ी कौन सी घड़ी पर कैसी घड़ी आ बीते और घड़ी भर में घड़ी का घडियाल बन जाए :-)
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