शनिवार, 9 मई 2020

यह वृक्ष का घमंड था या अन्याय का प्रतिरोध

बहुत बार मन में आया कि उस ज्ञानी पुरुष ने अपने शिष्यों को जो सबक सिखाया क्या वह सही था। वह यह भी तो बता सकते थे कि इसे कहते हैं वीरता, बहादुरी, अन्यायी के सामने ना झुकने का संकल्प। देखो और सीखो इस वृक्ष से। जिसने मरना मंजूर किया पर अन्याय के सामने झुका नहीं। वहीं यह मौकापरस्त घास है, जो लहलहा तो रही है पर हर कोई उसे रौंदता चला जाता है.........


#हिन्दी_ब्लागिंग 

बचपन की कई किस्से कहानियों का पुनरावलोकन करने पर लगता है कि जैसे उनके मुख्य पात्र के साथ न्याय ना हुआ हो ! कहीं ना कहीं उसका संदेश अनकहा रह गया हो ! ऐसी ही एक कहानी है उस  वृक्ष की जो तूफ़ान का सामना करते हुए धराशाई हो गया था। 

वर्षों से एक कहानी पढाई/सुनाई जाती है कि किसी उपवन में एक छायादार आम का वर्षों पुराना वृक्ष था। विशाल, घना, सदाबहार, जिसकी छाया में इंसान हो या पशु सभी आश्रय व राहत पाते थे। उसकी ड़ालियों पर हजारों पक्षियों का बसेरा था। तने और जड़ में भी नाना प्रकार के जीव-जंतुओं ने आश्रय ले रखा था। उस पर लगने वाले फल बिना भेदभाव के सब की क्षुधा शांत करते थे। वह वृक्ष, वृक्ष ना होकर जैसे उन सब का अभिभावक सा बन गया था। 

समय का फेर। बरसात का मौसम था। रोज ही आंधी-पानी ने मिल कर जीवों का जीना दूभर कर रखा था। पर पेड़ की सघनता उनके लिए कवच का काम कर रही थी। जैसे कह रही हो कि मेरे रहते तुम सभी सुरक्षित हो। पर एक शाम, शायद उस दिन काल-वैसाखी थी, एक जबरदस्त तूफान उठा ! चारों और अंधेरा छा गया ! मूसलाधार पानी बरसने लगा ! आकाशीय बिजली लपलपा कर धरती छूने लगी ! वाओं ने तो जैसे सब कुछ उड़ा ले जाने की ठान ली थी ! छोटे-मोठे पेड़ तो कब के भू-लुंठित हो चुके थे ! ऐसा लगता था कि आज सारी कायनात ही खत्म हो कर रह जाएगी। ऐसे में भी वह वृक्ष अपने शरणागतों को साहस बंधाता खड़ा था ! जैसे कह रहा हो कि मेरे रहते तुम पर आंच नहीं आ सकती ! पर इधर तूफ़ान का जोर बढ़ता ही जा रहा था ! पानी लगातार बरसे जा रहा था ! हवाऐं और-और तेज होती जा रही थीं ! पूरी कोशिश के बावजूद भी वह पुराना, बुजुर्ग पादप प्रकृति के इस प्रचंड प्रकोप को सह नहीं पाया और जड़ से उखड़ गया।

दूसरे दिन उधर से एक ज्ञानी पुरुष अपने शिष्यों के साथ निकले। उस विशाल वृक्ष का हश्र देख उन्होंने अपने शिष्यों को उसे दिखा कर कहा कि देखो अहंकारी का अंत ऐसा ही होता है। घमंड़ के कारण यह विनाशकारी तूफान के सामने भी अकड़ा खड़ा रहा और मृत्यु को प्राप्त हुआ। उधर वह कोमल घास विपत्ति के समय झुक गयी और अब लहलहा रही है। इसे कहते हैं बुद्धिमत्ता।

बहुत बार मन में आया कि उस ज्ञानी पुरुष ने अपने शिष्यों को जो सबक सिखाया क्या वह सही था। वह यह भी तो बता सकते थे कि इसे कहते हैं वीरता, बहादुरी, अन्यायी के सामने ना झुकने का संकल्प। देखो और सीखो इस वृक्ष से। जिसने मरना मंजूर किया पर अन्याय के सामने झुका नहीं। वहीं यह मौकापरस्त घास है, जो लहलहा तो रही है पर हर कोई उसे रौंदता चला जाता है।

4 टिप्‍पणियां:

Kamini Sinha ने कहा…

बहुत ही सुंदर और विचारणीय ,सही कहा आपने -हर घटनाक्रम का अलग अलग दृष्टिकोण होता हैं और सब अपनी बुद्धि -विवेक से ही इसका वरन करते हैं। हमारे पूर्वजो ने भी बहुत सी बातों को शायद समझने और समझाने में चूक की हैं। एक बेहतरीन सोच को नमन

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
बहुत-बहुत आभार ¡ चलते आ रहे अर्थों में देखें तो राणा प्रताप, शिवाजी, चन्द्र शेखर आजाद जैसे देश भक्त वीरों के पराक्रम को कैसे आंकेंगे

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हार्दिक आभार, शास्त्री जी

विशिष्ट पोस्ट

विडंबना या समय का फेर

भइया जी एक अउर गजबे का बात निमाई, जो बंगाली है और आप पाटी में है, ऊ बोल रहा था कि किसी को हराने, अलोकप्रिय करने या अप्रभावी करने का बहुत सा ...