सोमवार, 18 मई 2020

मैं और माइक, माइक और मैं !

लोग "कैमरा कॉन्शस" होते हैं पर मैं तो "माइक कॉन्शस" हूँ। होता क्या है कि जब किसी जुगाड़ु मौके पर कुछ बोलने के लिए खड़ा होता हूँ, तो अपने दाएं-बाएं-पीछे भी नजर  डालनी पड़ती है कि  सब सुन भी रहे हैं या मुझे हल्के में ले अपने मोबाईल में घुसे  बैठे हैं और इस कसरत में ये जनाब यदि  माइक स्टैंड  में अपनी  जगह  जड़ - मुद्रा में  एक ही जगह फिक्स हों  फिक्स हों तो अपनी आवाज,  चेहरे के लगातार  चलायमान रहने  और इनसे तालमेल  न बैठने के  कारण लोगों को मिमियाती सी लगने लगती है.........!   


#हिन्दी_ब्लागिंग

यहां मैं सिर्फ अपनी बात कर रहा हूँ, कोई अपने पर ना ले, आगे ही क्लेश पड़ा हुआ है। हाँ तो मैं कह रहा था कि इस दुनिया में बहुत सारी चीजें ऐसी हैं जिनके आप कितने भी  "used to" हो जाओ, तो भी वे आपको घास नहीं डालेंगी। अब जैसे माइक को ही लें, अरे ! वही माइक्रोफोन ! जिसे बोलते समय मुंह के सामने रखते हैं, जिससे म्याऊं जैसी आवाज भी दहाड़ में बदल जाती है ! जिससे जो नहीं भी सुनना चाहता हो उसे भी जबरिया सुनना पड़ता है ! 
इस नामुराद यंत्र को थामने का मैंने दसियों बार अवसर जुगाड़ा है, 15-20 से ले कर 100-150 तक झेलने वाले श्रोताओं के सम्मुख ! पर आज तक यह मुझसे ताल-मेल नहीं बैठा पाया है ! मुझे तो पसीना आता ही है वह तो अलग बात है !! होता क्या है कि जब किसी मौके पर कुछ बोलने के लिए खड़ा होता हूँ, तो अपने दाएं-बाएं-पीछे भी नजर डालनी पड़ती है कि सब सुन भी रहे हैं या मुझे हल्के में ले अपने मोबाईल में घुस बैठे हैं और इस कसरत में ये जनाब यदि अपनी जगह जड़-मुद्रा में एक ही जगह फिक्स हों तो अपनी आवाज, चेहरे के लगातार चलायमान रहने और इनसे तालमेल न बैठने के कारण लोगों को मिमियाती सी लगने लगती है ! यदि काबू में रखने के लिए इन्हें हाथ में जकड़ लेता हूँ तो ध्यान इसी में रहता है कि बोलते समय ये कहीं नाक या चश्में के सामने ना जा खड़े हों ! लोग "कैमरा कॉन्शस" होते हैं पर मैं तो "माइक कॉन्शस" रहता हूँ। इनका एक और भी अवतार है जो बदन पर सितारे की तरह टांक लिया जाता है पर उनसे मिलने का मुझे कभी मौका नहीं मिला। 

यह सही है कि इसका मेरा दोस्ताना रिश्ता नहीं बन सका, पर फिर भी कभी-कभी मेरे दिल में यह ख्याल आता है कि यदि ये ना होता तो क्या होता, क्या होता यदि ये ना होता ? कैसे नेता-अभिनेता जबरन जुटाई भीड़ के अंतिम छोर पर मजबूरी में खड़े व्यक्ति को अपने कभी भी पूरे न होने वाले वादों से भरमाते ! कैसे धर्मस्थलों से धर्म के ठेकेदार अपनी आवाज प्रभू तक पहुंचाते ! शादियों की तो रौनक ही नहीं रहती ! कवि तो ऐसे ही नाजुक गिने गए हैं सम्मेलनों में तो अगली पंक्ति तक को सुनाने के लिए उन्हें मंच से नीचे आना पड़ता ! गायकों के गलों की तो ऐसी की तैसी हो गयी होती ! ऐसे ही छत्तीसों काम जो आज आसान लगते हैं, हो ही नहीं पाते !  
ना चाहते हुए भी तारीफ़ करुं क्या उसकी, जिसने इसे बनाया ! 1876 में, एमिली बर्लिनर (Emile Berliner)  से जब इसकी ईजाद हो गयी होगी तब उसे क्या पता था कि उसने कौन सी बला. दुनिया को तौहफे में दे डाली है, जिसका आनेवाले दिनों में टेलिफोन, ट्रांसमीटरों, टेप रेकार्डर, श्रवण यंत्रों, फिल्मों, रेडिओ, टेलीविजन, मेगाफोनों, कम्प्यूटरों  और कहाँ-कहाँ नहीं होने लगेगा। उस बेचारे को तो यह भी नहीं पता होगा कि भविष्य में ध्वनि प्रदूषण जैसी  समस्या होगी जिसमें उसकी यह ईजाद मुख्य अभियुक्त हो जाएगी !  

अब जरुरी तो नहीं कि जिससे मेरी न पटती हो उसकी किसी से भी न पटे ! हमारा आपसी रिश्ता जैसा भी हो पर है तो यह गजब की चीज इसमें कोई शक नहीं है ! है क्या ? 

14 टिप्‍पणियां:

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (19 -5 -2020 ) को "गले न मिलना ईद" (चर्चा अंक 3706) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा

Nitish Tiwary ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नितीश जी
हौसलाअफजाई के लिए हार्दिक आभार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अच्छी जानकारी दी है आपने।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आभार, शास्त्री जी

बेनामी ने कहा…

Dilchasp jankari

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बेनामी जी
हार्दिक धन्यवाद ¡
गुजारिश है पहचान उजागर करें

Sweta sinha ने कहा…

रोचक लेख सर।
सादर।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी
बहुत-बहुत धन्यवाद

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!
बहुत खूब.....

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुधा जी
आभार

Harsh Wardhan Jog ने कहा…

बढ़िया लेख

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हर्षवर्धन जी
हार्दिक धन्यवाद ! सुरक्षित व स्वस्थ रहिए

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