मंगलवार, 26 मई 2020

रामप्पा मंदिर, जो अपने शिल्पकार के नाम से जाना जाता है

प्राणप्रतिष्ठा के दिन महाराज गणपति देव ने जैसे ही मंदिर को देखा, वे अचंभित, ठगे से खड़े रह गए ! उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा भव्य, खूबसूरत, विशाल और अद्भुत निर्माण उन्हीं के राज्य में हुआ है ! उनकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली ! उन्होंने आगे बढ़ कर रामप्पा को गले से लगा लिया और कहा कि मैं धन्य हूँ, जो तुम जैसा कलाकार मेरे पास है। संसार की कोई भी निधि, कोई भी संपदा तुम्हारी इस कला का मोल नहीं चुका सकती ! तुमने मुझे और अपनी धरती को धन्य कर दिया। आज तक हर मंदिर उसमें स्थापित देव प्रतिमा के नाम से ही जाना जाता रहा है, पर मैं इस मंदिर का नाम तुम्हारे नाम पर रखता हूँ ! आज से यह मंदिर रामप्पा मंदिर के नाम से जाना जाएगा..................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
बात बहुत पुरानी है ! करीब 800 साल पहले की !  ईसवी सन 1213 की ! तब आंध्र राज्य पर काकतिया वंश के महाराज गणपति देव का शासन था। एक बार जब महाराज़ अपने सालाना राज्य-भ्रमण पर थे तो उसी दौरान अनेक पुराने मंदिरों को क्षतिग्रस्त व जर्जरावस्था में देख उनको यह विचार आया कि क्यों ना एक ऐसे मंदिर का निर्माण किया जाए जो हजारों वर्ष तक बिना किसी क्षति के बना रह सके ! ऐसा ख्याल आते ही वे वहीं से अपने महल लौट आए। महाराज गणपति शिव जी के अनन्य भक्त थे। महल वापस आते ही उन्होंने राज्य के प्रमुख शिल्पकार रामप्पा को बुलवा उसे अपनी मंशा जता एक ऐसा भव्य शिव मंदिर बनाने को कहा जो वर्षों तक बिना किसी नुक्सान के टिका रह सके। राजज्ञा ! बहस का तो सवाल ही नहीं ! शिल्पकार राजा की इच्छा को शिरोधार्य कर लौट आया।



रामप्पा एक बहुत ही कुशल, अनुभवी तथा अपने कार्य को पूरी तरह से जानने समझने वाला निष्णात व निपुण शिल्पकार था। उसकी बनाई हुई प्रतिमाएं अक्सर लोगों को सजीव होने का धोखा दे देतीं थीं। इसीलिए वह राजा का अत्यंत विश्वासपात्र व बहुत प्रिय दरबारी था। उसके लिए राजाज्ञा, देवाज्ञा के समान थी। महल से लौटते ही वह अपने काम में जुट गया। इस कार्य के लिए जैसी-जैसी जानकारी जहां-जहां से भी मिलने की संभावना थी उसने वे सारे ग्रंथ, लेख, पांडुलिपियां खंगाल डालीं। इसी प्रयास में यह तथ्य उसके सामने आया कि अब तक बनाए गए मंदिर या भवनों में बड़े-बड़े, विशाल पत्थरों व शिलाओं का प्रयोग होता रहा है, जिनके बेहद भारी होने की वजह से प्रकृति के कोप का सामना किया जा सके। परंतु उनका अपना यही भार कालांतर में उन्हीं पर भारी पड़ उनके जमींदोज होने का कारण बन जाता है। इस तथ्य का पता लगते ही रामप्पा एक ऐसे पदार्थ की ईजाद में लग गए जो कठोर, ठोस और मजबूत तो हो पर उसका भार बहुत कम हो। उन दिनों कम साधन होने के बावजूद उन्होंने रात-दिन एक कर दिए ! सेतुबंध तक अपनी खोज का दायरा बढ़ा दिया ! समय तो लगा परआखिर अपनी अथक मेहनत और लगन के बल पर उन्होंने एक ऐसे अपने मन मुताबिक़ ''पत्थर'' की खोज कर ही डाली। यह आज तक एक रहस्य ही है कि वह ''पत्थर'' उन्हें कहीं मिला था या उसको बनाया गया था ! अगर बनाया गया था तो 800-900 वर्ष पहले वह कौन सी तकनीक थी उनके पास, जो पत्थरों को इतना हल्का कर दे कि वो पानी में तैरने लगें ! क्योंकि सेतुबंध में प्रयोग किए गए पत्थरों के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसे पत्थर नहीं मिलते जो पानी पर तैर सकें ! तो क्या रामप्पा ने वह पौराणिक तकनीक खोज निकाली थी.....! 



जो भी हो उस पदार्थ के मिलते ही मंदिर का निर्माण शुरू हो गया। जिसे पूरा होने में 40 साल का वक्त लग गया था। छह फीट ऊंचे चबूतरे पर बनाए गए, भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर के मुख्य द्वार पर नौ फिट ऊँची शिव वाहन नंदी की भी मूर्ति स्थापित की गई ! दीवारों पर महाभारत और रामायण के दृश्य उकेरे गए ! शिल्पकारों ने अपनी कला की छाप भवन की छत, दीवारों, खंभों के साथ हर संभावित जगह पर छोड़ी थी। सुंदर, नक्काशीदार मूर्तियों की भव्यता को देख कोई भी बिना प्रभावित और मोहित हुए नहीं रह सकता था।


प्राणप्रतिष्ठा के दिन महाराज गणपति देव ने जैसे ही मंदिर को देखा, वे अचंभित, ठगे से खड़े रह गए ! उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा भव्य, खूबसूरत, विशाल और अद्भुत निर्माण उन्हीं के राज्य की धरती पर हुआ है ! भावातिरेक में उनकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली ! उन्होंने आगे बढ़ कर रामप्पा को गले से लगा लिया और कहा कि मैं धन्य हूँ, जो तुम जैसा कलाकार मेरे पास है। संसार की कोई भी निधि, कोई भी संपदा तुम्हारी इस कला का मोल नहीं चुका सकती ! तुमने मुझे और अपनी धरती को धन्य कर दिया। आज तक हर मंदिर उसमें स्थापित देव प्रतिमा के नाम से ही जाना जाता रहा है, पर मैं इस मंदिर का नाम तुम्हारे नाम पर रखता हूँ ! आज से यह मंदिर रामप्पा मंदिर के नाम से जाना जाएगा।


रामाप्पा या रामलिंगेश्वर मंदिर तेलंगाना में मुलुगू जिले के वेंकटापुर मंडल के सैकड़ों साल से आबाद पालमपेट गांव में स्थित है। तेलंगाना के वारंगल जिले से इसकी दूरी करीब 70 की. मी. है। शिवरात्रि के दौरान इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। कई प्राकृतिक आपदाएं झेलने के बाद भी इस प्रसिद्ध मंदिर को कभी भी कोई ज्यादा नुक्सान नहीं पहुंचा है। धीरे-धीरे इसकी ख्याति जब जन-जन से होते हुए सरकारी कानों तक पहुंची तब वैज्ञानिकों ने इसकी खोज-खबर ले, जांच-पड़ताल की और पाया कि अपनी उम्र के हिसाब से यह मंदिर आज भी बहुत मजबूत है। जब काफ़ी कोशिशों के बाद भी इसकी मज़बूती का रहस्य नहीं खुला तो मंदिर के एक पत्थर के एक टुकड़े को काट कर उसका परिक्षण किया गया ! परिणामस्वरूप पाया गया कि वह पदार्थ आश्चर्यजनक रूप से वजन में बहुत हल्का होने के बावजूद बहुत ही मजबूत है और इसके साथ-साथ पानी में भी नहीं डूबता है ! इस प्रकार मंदिर की मजबूती का तो पता चल गया पर पत्थर का रहस्य अब भी ज्यों का त्यों बना हुआ है ! 


तेहरवीं सदी में भारत आए मशहूर खोजकर्ता मार्को पोलो द्वारा "मंदिरों की आकाशगंगा में सबसे चमकीला तारा'' कहलवाने वाला यह मंदिर विश्व धरोहर की दौड़ में शामिल होने जा रहा है। साल 2018 में घोषित होने वाली विश्व धरोहरों की सूची में शामिल करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस मंदिर का प्रस्ताव संस्कृति मंत्रालय को भेज दिया गया है। वहां से स्वीकृति मिलते ही वह प्रस्ताव यूनेस्को भेज दिया जाएगा। इसकी दिनों-दिन बढ़ती ख्याति के कारण यहां पर्यटकों की आवाजाही भी बहुत बढ़ गई है। इसीलिए उनकी सुख-सुविधा को ध्यान में रख पर्यटन विभाग भी जागरूक हो गया है उसी के तहत इसके पास की झील के किनारे कॉटेज व रेस्त्रां वगैरह की सुविधाएं उपलब्ध होने लग गई हैं। 

@सभी तस्वीरें अंतर्जाल से साभार 

14 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 26 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी
मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (27-05-2020) को "कोरोना तो सिर्फ एक झाँकी है"   (चर्चा अंक-3714)    पर भी होगी। 
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
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सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

चर्चा में स्थान उपलब्ध कराने हेतु हार्दिक आभार

Meena sharma ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी आदरणीय गगन जी

मन की वीणा ने कहा…

जानकारी युक्त सुंदर पोस्ट।

Jyoti khare ने कहा…

सार्थक और सटीक जानकारी


सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बढ़िया जानकारी युक्त पोस्ट

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी
बहुत-बहुत आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
हर्दिक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

खरे जी
हौसलाअफजाई हेतु हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी
पधारने हेतु हार्दिक आभार

Unknown ने कहा…

Adbhut jaankari

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

@unknown
हार्दिक धन्यवाद।
कभी बेनामी की नकाब उतार कर भी मुखातिब हों, खुशी होगी

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