गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

महाकुंभ की सफलता का श्रेय इन्हें भी जाता है

 इस महाकुंभ की अपार सफलता के पीछे उन विपक्षी नेताओं का भी बहुत बड़ा सहयोग है, जिन्होंने अपने राजनीतिक करियर को दांव पर लगा, अपने भविष्य को अंधकार में धकेल, लोगों की भावनाओं, उनकी आस्थाओं को दरकिनार कर लगातार विष-वमन करते हुए इस आयोजन की बुराई की ! किसी भी तरह इस आयोजन को रोकने-बदनाम करने के लगातार षड्यंत्र रचे ! वे खुद बर्बाद होने, उपेक्षित होने, बदनाम होने के बावजूद अपने मिशन पर लगे रहे ! उनके इसी उद्यम के कारण पूरा सरकारी तंत्र सदा सचेत, मुस्तैद तथा सतर्क रहा ! जनता को ऐसे लोगों की कद्र करते हुए, उन्हें सदा-सदा के लिए विपक्ष में बैठाए रखना चाहिए जिससे वे भविष्य में भी ऐसे ही सरकार की सतर्कता बनाए रख सकें..................!  
#हिन्दी_ब्लागिंग 
पैंतालीस दिन यानी डेढ़ महीने तक चले महाकुंभ का, हिमालय जैसा अभूतपूर्व कीर्तिमान बना कर, समापन हो गया ! पर जाते-जाते उसने दुनिया को सनातन की विशालता, उसकी गहराई, उसकी आस्था, उसकी व्यापकता का ऐसा परिचय करवा दिया, जिसको सारा विश्व वर्षों-वर्ष याद रखेगा ! इतने बड़े आयोजन का सफलता पूर्वक निर्वहण ही अपने-आप में ही एक कीर्तिमान है ! एक मील का पत्थर है ! एक ऐसा उच्चमान जिसे सालों-साल याद रखा जाएगा ! भविष्य में कहीं भी होने वाले हर बड़े समागम का ऐसा प्रतिस्पर्धी, जिसके प्रत्यक्ष उपस्थित ना होते हुए भी उसकी तुलना उस समय के आयोजन की सफलता से की जाएगी ! एक ऐसी उपलब्धि जिसका उल्लेख आज संसार के हर देश में हो रहा है ! दुनिया अचंभित है ! विकसित देश अपने लोगों को भेज रहे हैं, ऐसे भीड़ प्रबंधन (Crowd Management) को समझने, उसकी कार्यशैली, उसकी विधि को जानने के लिए ! 
सफलता के सिपहसालार 
कोई भी विशाल-विराट अभियान तभी सफल होता है जब उससे जुड़े सभी लोग अपनी पूरी क्षमता से, पूरी तन्मयता से, पूरे समर्पण से अपने आप को उसमें झोंक दें ! योगी जी के नेतृत्व में यहां यही हुआ ! इसमें कोई शक नहीं कि यदि योगी जी ने इस असंभव से काम को ना संभाला होता तो इसकी सफलता अनिश्चित ही थी ! इसके लिए उनकी प्रशंसा करना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा ही होगा ! वे ही इस अकल्पनीय, अद्भुत, अभूतपूर्व, अद्वितीय सफलता के कारक रहे ! उनको तथा उन के लिए पूरे सरकारी तंत्र को अनेकानेक साधुवाद। वहां कार्यरत एक-एक कर्मी का, चाहे वह सफाई से जुड़ा हो, चाहे सुरक्षा से, चाहे व्यवस्था से, पूरा देश दिल से आभारी है और रहेगा ! 
सफल आयोजन के हकदार 
भार तो प्रयागराज के प्रत्येक निवासी का भी है, जिन्होंने अपनी चिंता ना कर, अपनी असुविधाओं को दरकिनार कर, अपनी परेशानियों की शिकायत ना कर करोड़ों-करोड़ लोगों का अपने परिवार सदृश समझ उनका स्वागत किया ! यदि इस पूरे आयोजन के दौरान वहां के हर मेहमान को खाना-पानी-चाय-नाश्ते-यातायात या अन्य किसी मूलभूत सुविधा की कमी महसूस नहीं हुई तो इसका श्रेय वहां के स्थानीय लोगों को जाता है ! इस भागीरथ प्रयास की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। इससे जुड़े सभी व्यक्ति सम्मान पाने के हकदार हैं !
 गंगा पूजन 
परंतु इसके अलावा वहां जाने वाले पैंसठ करोड़ से भी ज्यादा श्रद्धालुओं को भी कोटि-कोटि धन्यवाद, क्योंकि उनके गिलहरी सहयोग के बिना कुंभ की सफलता शायद संदिग्ध हो जाती ! वैयक्तिक व्यवहार, नैतिकता या सामान्य शिष्टाचार को लेकर हमारे बारे में कोई अच्छी राय नहीं है ! हम अपनी हितानुसार नियम-कानून का पालन करते आए हैं ! अपनी सुविधा को उन पर तरजीह देते हैं ! पर महाकुंभ में भाग लेने वाले श्रद्धालुजन मर्यादित रहे, सयंमित रहे, धैर्यवान रहे, जागरूक रहे ! कभी भी उच्छृंखलता नहीं दर्शाई ! यदि ऐसा ना होता तो 15-20 हजार सफाई कर्मियों के लिए हर समय सफाई बनाए रखना लगभग असंभव था ! यदि यह जन-सैलाब जरा सा भी अमर्यादित हो जाता तो बीसियों हजार सुरक्षा कर्मियों की हालत सागर में तिनके के मानिंद हो जाती ! इसलिए महाकुंभ के सुखद समापन का श्रेय तीर्थ यात्रियों को भी जाता है। 
 
जन सैलाब 
यदि देखा जाए तो इस महाकुंभ की अपार सफलता के पीछे उन विपक्षी नेताओं का भी बहुत बड़ा सहयोग है, जिन्होंने अपने राजनीतिक करियर को दांव पर लगा, बिना अपने भविष्य को ध्यान में रखे, लोगों की भावनाओं, उनकी आस्थाओं को दरकिनार कर लगातार विष-वमन करते हुए इस आयोजन की बुराई की ! किसी भी तरह इस आयोजन को रोकने-बदनाम करने के लगातार षड्यंत्र रचे ! खुद और अपने लगे-बंधों से लोगों को डराने-धमकाने की चेष्टा की ! इस महा पर्व को बदनाम करने के लिए धर्म, संस्कृति, परंपरा, समाज सभी के विरोधी बन गए ! वे खुद बर्बाद होने, उपेक्षित होने, बदनाम होने, जनता द्वारा नकार दिए जाने के बावजूद अपने मिशन पर लगे रहे ! यही कारण था कि पूरा सरकारी तंत्र सदा सचेत रहा ! किसी भी अनहोनी, आपदा, विपदा या षड्यंत्र का सामना करने के लिए मुस्तैद रहा ! सरकार को उनका आभार मानना चाहिए तथा जनता को ऐसे लोगों की कद्र करते हुए उन्हें सदा-सदा के लिए विपक्ष में बैठाए रखना चाहिए, जिससे वे भविष्य में भी ऐसे ही सरकार की सतर्कता बनाए रख सकें !  

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

आम इंसान की समृद्धि में तीर्थों का योगदान,

इस बात पर मंथन आरंभ हो चुका है कि क्यों ना देश के सभी नामी-गिरामी, प्रसिद्ध, श्रद्धा के केंद्रों को  व्यवस्थित और सर्व सुविधायुक्त कर उन्हें और भी लोकप्रिय बनाया जाए ! इससे, पर्यटन बढ़ेगा, लोगों को घर बैठे रोजगार मिलेगा, पलायन रुकेगा, लोग समृद्ध होंगे, समाज में संपन्नता आएगी, खुशहाली बढ़ेगी, निर्धनता कम होगी। इसके साथ ही सरकार की आमदनी बढ़ेगी ! जिससे जन-सुविधाओं का और तेजी से विकास हो पाएगा ! पर सबसे बड़ी बात, अपनी संस्कृति का, अपनी परंपराओं का, अपने सनातन का भी सुचारु रूप से प्रचार-प्रसार हो सकेगा............!

#हिन्दी_ब्लागिंग   

देश को अपनी आर्थिक अवस्था को मजबूत करने का एक नया स्रोत मिल गया है और वह है धार्मिक पर्यटन (Religious Tourism), इसका आभास तो तब ही मिल गया था, जब माता वैष्णव देवी की यात्रा में मूलभूत सुविधाओं का इजाफा होने पर श्रद्धालुओं की संख्या कई गुना बढ़ गई थी ! पर तब की तथाकथित धर्म-निरपेक्ष सरकारों ने अपने निजी स्वार्थों के लिए, इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया था ! पर वर्षों बाद जब काशी विश्वनाथ और उज्जैन के महाकाल कॉरिडोर बने और उनको जनता का जिस तरह का प्रतिसाद मिला, वह एक नई खोज, एक नए विचार का उद्घोषक था ! राम मंदिर निर्माण ने इस विचार को और भी पुख्ता किया तथा इस महाकुंभ ने तो जैसे उस पर मोहर ही लगा एक नई राह ही प्रशस्त कर दी !

श्रीराम मंदिर 
अब देश की दशा-दिशा निर्धारित करने वालों को अपनी आर्थिक स्थित मजबूत करने के लिए एक अकूत खजाना मिल गया है ! उन्हें समझ आ गया है कि देश की धर्म-परायण जनता को यदि पर्याप्त सुरक्षा और सुख-सुविधा मिले तो वह धार्मिक स्थलों के दर्शन के लिए भी उतनी ही तत्पर रहती है, जितनी अन्य किसी पर्यटन स्थल के लिए ! महाकुंभ में श्रद्धालुओं की अनपेक्षित, अविश्वसनीय, अकल्पनीय, मर्यादित उपस्थिति इसका ज्वलंत उदाहरण है ! इसी से प्रोत्साहित हो कर अब इस बात पर मंथन आरंभ हो चुका है कि क्यों ना देश के सभी नामी-गिरामी, प्रसिद्ध, श्रद्धा के केंद्रों को भी व्यवस्थित और सर्व सुविधायुक्त कर उन्हें और भी लोकप्रिय बनाया जाए ! इससे पर्यटन बढ़ेगा ! लोगों को घर बैठे रोजगार मिलेगा ! पलायन रुकेगा ! लोग समृद्ध होंगे ! समाज में संपन्नता आएगी ! खुशहाली बढ़ेगी ! निर्धनता कम होगी ! इसके साथ ही सरकार की आमदनी बढ़ेगी, जिससे जन-सुविधाओं का और तेजी से विकास हो पाएगा ! पर सबसे बड़ी बात, अपनी संस्कृति का, अपनी परंपराओं का, अपने सनातन का भी सुचारु रूप से  प्रचार-प्रसार हो सकेगा ! 
विश्वनाथ मंदिर परिभ्रमण पथ 

महाकाल मंदिर परिसर 
महा कुंभ के दौरान प्रयागराज के हर वर्ग के, हर तबके के लोगों को जो आमदनी हुई वह आँखें चौंधियाने वाली है ! इसमें अब कोई शक नहीं कि सुप्रसिद्ध स्थानों पर होने वाले ऐसे आयोजन या आने वाले समय में उन स्थानों पर बनने वाले एक-एक धार्मिक परिभ्रमण पथ, पर्यटन और मंदिरों की अर्थ-व्यवस्था (Religious Tourism and Temple Economy) देश के वाणिज्य, व्यापार और अर्थव्यवस्था में सुधार की अहम कड़ी होने जा रहे हैं ! कुंभ तिथि तो चार सालों में एक बार आती है पर माघ मेला तो हर साल लगता है ! छठ पूजा तो हर साल होती है ! गंगा दशहरा तो हर साल होता है ! तो ऐसे हर तीज-त्योहारों को भव्य, सुव्यवस्थित व सुरक्षित बना लोगों को आने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा ! 

जन सैलाब 

महाकुंभ 
यह सब जो आगत भविष्य में होने जा रहा है, वही कुछ लोगों के लिए, जो अपनी राजनितिक लड़ाई तो हार ही चुके हैं अपनी पहचान तक गंवाने की कगार तक पहुँच गए हैं, परेशानी का कारण बना हुआ है। उन्हें अपना नामो-निशान मिटता साफ दिखाई पड़ रहा है। इसीलिए वे अपने बचे-खुचे पूर्वाग्रही, भ्रमित वोटरों को बचाए रखने के लिए कुंभ के बहाने सनातन का विरोध कर रहे हैं, अपनी संस्कृति का विरोध कर रहे हैं, अपने ही धर्म का विरोध कर रहे हैं, ! देश वासियों की आस्था, श्रद्धा, उनके संस्कारों की थाह के सामने हर बार मुंहकी खाने के बावजूद बेशर्मी की हद पार कर अनर्गल झूठ फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। अभी तो ऐसे लोगों की तिलमिलाहट और बढ़ेगी जब संभल जैसे कई नए-नए तीर्थ देश और विश्व के नक्शे पर उभर कर सामने आएंगे ! भगवान ऐसे लोगों को सद्बुद्धि दे जिससे ये अपने स्वार्थों से ऊपर उठ देशहितार्थ कुछ कर सकें ! 
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

वैलेंटाइन दिवस, दो तबकों की रंजिश का प्रतीक तो नहीं.......?

वैलेंटाइन दिवस, जिसे प्यार व सद्भाव की कामना स्थापित करने वाले दिन के रूप में प्रचारित किया गया था,  वह अब मुख्य रूप से प्रेमी जोड़ों के प्यार के त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा है। इसमें भी एक कटु सत्य यह है कि इसको मनाने वाले अधिकांश, या कहिए मुट्ठी भर लोगों को छोड़, शायद ही कोई वैलेंटाइन को याद भी करता होगा या उसके बारे में कुछ जानता भी होगा ! ऐसे लोगों के लिए यह दिन सिर्फ सारी वर्जनाओं को ताक पर रखने या उन्हें तोड़ने का मौका होता है ! यही कारण है कि शुरुआत के दिनों की उस एक दिनी फिल्म ने आज हफ्ते भर के सीरियल का रूप ले लिया है...........!!
 
#हिन्दी_ब्लागिंग 
 
अपने देश के एक खास तबके को पश्चिम सदा से आकर्षित करता रहा है ! वहां की हर अच्छी-बुरी बात को अपनाने की ललक सदा से इसवर्ग में रही है ! हो सकता है कि सैकड़ों सालों की परवशता और उससे उपजी हीन मानसिकता या फिर वहां  की चकाचौंध इसका कारण  हो,  पर यह सच्चाई है !  इसी मनोवृत्ति के कारण वसंतोत्सव,  करवा चौथ,  भाई दूज जैसे अपने परंपरागत मासूम त्योहारों का मजाक बना कर, उन्हें आयातित उत्सवों के सामने कमतर साबित करने की कुत्सित कोशिश की जाती रही,  पर जनमानस का साथ ना मिलने पर उन पर आधुनिकता का मुल्लमा चढ़ा कर, बाजार की सुरसा भूख के हवाले कर दिया गया ! आज उसका परिणाम सबके सबके सामने है !
 
वसंत
किसी की अच्छाई अपनाने में कोई बुराई नहीं है, पर उस बात का अपने परिप्रेक्ष्य, माहौल, परिस्थियों के अनुसार उनके औचित्य का आकलन जरूर होना चाहिए, जो कभी नहीं किया गया ! ऐसे ही 1992 के दशक के आस-पास हमारे किशोरों, युवक-युवतियों को निशाना बना, जिस एक-दिनी वैलेंटाइन दिवस जैसे जलसे का बीजारोपण किया गया था, वह आज एक विशाल वृक्ष बन चुका है ! उसी की छांव में आज का मौकापरस्त बाजार अपना तमाशा शुरू कर, युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता ! यही कारण है कि शुरुआत के दिनों की उस एक दिनी फिल्म ने आज हफ्ते भर के सीरियल का रूप ले लिया है!

14 फरवरी, वैलेंटाइन दिवस, जिसे योजनाबद्ध तरीके से सदियों पहले रोम में समाज के लोगों के बीच आपसी प्यार व सद्भाव की कामना स्थापित करने वाले दिन के रूप में प्रचारित कर एक विशेष दिन का रूप दिया गया, क्या वह उस समय के वहां के दो शक्तिशाली गुट, राजपरिवार और धर्मगुरुओं की सत्ता लालसा का कारण तो नहीं था ! क्योंकि उस समय रोम में ये दोनों धड़े अपनी-अपनी जगह काफी शक्तिशाली थे और समाज पर दोनों का ही अच्छा-खासा दबदबा हुआ करता था !
 
रोम में तीसरी सदी में राजा क्लॉडियस का शासन था। एस समय किसी बिमारी से काफी लोगों के मारे जाने के कारण रोमन सेना में सैनिकों की भारी कमी हो गई ! उधर शादी के बाद ज्यादातर सैनिक सेना से विमुख हो जाते थे ! सो क्लॉडियस ने सैनिकों के परम्परागत विवाह पर रोक लगा दी। उसका मानना था कि अविवाहित पुरुष ही सेना में अच्छी तरह से अपना कर्त्तव्य निभा सकते हैं ! क्योंकि उन पर परिवार की अतिरिक्त जिम्मेदारी नहीं होती, उनका ध्यान नहीं भटकता ! यदि निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो राजा द्वारा बनाया गया वह कानून गलत भी नहीं था, उसने तो देशहित के लिए वैसा कदम उठाया था ! जिससे रोम की सेना शक्तिशाली और देश की सुरक्षा सुदृढ़ बनी रह सके !  

वैसे तो वैलेंटाइन नाम के बहुत से संत हुए हैं पर यह वाकया उस वक्त के रोम के इसी नाम के एक पादरी संत वैलेंटाइन से जुड़ा हुआ है, जिन्हें जनता का अपार स्नेह तथा वहां के धर्म गुरुओं का पूर्ण समर्थन प्राप्त था। दोनों धड़ों की आपसी रंजिश को राजा के उस कानून ने और हवा दे दी ! धर्म गुरुओं को प्रजा को अपनी तरफ करने का मौका मिल गया ! उन्होंने  वैलेंटाइन को आगे कर राजा क्लैडियस के आदेश की खिलाफत करनी शुरू कर दी ! वैलेंटाइन ने गुप्त रूप से सैनिकों का विवाह करवाना शुरू कर दिया। इस बात की जानकारी जब राजा को हुई तो उसने उनको मौत की सजा सुना दी ! 14 फरवरी 269 को संत वैलेंटाइन को मौत के घाट उतार दिया गया। फिर 496 ई. में पोप ग्लेसियस ने इस दिन को उस संत के नाम पर "सेंट वैलेंटाइन्स डे" घोषित कर दिया।

वैलेंटाइन दिवस, जिसे समाज के लोगों के बीच आपसी प्यार व सद्भाव की कामना स्थापित करने वाले दिन के रूप में प्रचारित कर, संत वैलेंटाइन को दी गई मौत की सजा वाली तारीख, 14 फरवरी के दिन से  शुरू किया गया था, वह अब दुनिया भर में अपना रूप बदल, मुख्य रूप से प्रेमी जोड़ों के प्यार के त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा है। इसमें भी एक कटु सत्य यह है कि इसको मनाने वाले अधिकांश, या कहिए मुट्ठी भर लोगों को छोड़, शायद ही कोई वैलेंटाइन को याद भी करता होगा या उसके बारे में कुछ जानता भी होगा ! ऐसे लोगों के लिए यह दिन सिर्फ सारी वर्जनाओं को ताक पर रखने या उन्हें तोड़ने का मौका होता है ! 
 
सेंट वैलेंटाइन का होना एक सच्चाई है ! उनको मारा गया, यह भी सच्चाई है ! कई चर्चों में  उनकी निशानियां या अवशेष भी हैं, यह भी सच्चाई है ! पर जो कथाएं, किवदंतियां, दंतकथाएं उनको ले कर जनमानस में चल रही हैं, उनमें कितनी सच्चाई है, यह नहीं कहा जा सकता ! क्योंकि कुछ लोगों का मानना है कि उन्हें मृत्युदंड राजद्रोह के लिए नहीं बल्कि धर्मद्रोह के लिए दिया गया था ! तो असलियत क्या है ? कहा नहीं जा सकता ! अब जो है वो तो हइए है 😌

सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

कोलकाता का अद्भुत फोर्ट विलियम, अब विजय दुर्ग 😇

किला शब्द सुनते ही ऊंचाई पर बनी एक व्यापक, विशाल संरचना की तस्वीर दिमाग में बनती है ! ऊँची-ऊँची, अभेद्य, मजबूत दीवारें ! उन पर हथियारों के लिए बने झरोखे ! दीर्घकाय, कीलों मढ़े दरवाजे ! उन तक पहुंचने के लिए अनगिनत सीढ़ियां ! पर फोर्ट विलियम यानी विजय दुर्ग में ऐसा कुछ नहीं है, यह बिलकुल अलग है ! ऊंचाई की तो छोड़ें, कुछ दूरी से तो यह दिखलाई भी नहीं पड़ता, क्योंकि इसका निर्माण भूमि-तल से नीचे किया गया है.............!

#हिन्दी_ब्लागिंग      

कलकत्ता, अब का कोलकाता ! महलों के शहर की ख्याति के बावजूद, एक धीर-गंभीर शहर ! इसने कभी भी औरों की तरह शोर नहीं मचाया कि मेरा क़ुतुब मीनार देखो, मेरा ताजमहल देखो, मेरा गेटवे ऑफ इंडिया देखो, मेरा गोल्डन बीच देखो या मेरा चार मीनार देखो ! इसने कभी गर्वोक्ति नहीं की कि देखो, देश में पहली बार मेरे यहां यह-यह हुआ ! जबकि इसके पास ऐसा बताने को, दिखाने को कई दर्जन उदाहरण मौजूद हैं ! 

विक्टोरिया मेमोरियल 

हावड़ा ब्रिज 

आज उन्हीं में से एक की बात ! वह है 1781 के कलकत्ता में अंग्रेजों द्वारा करीब 170 एकड़ में निर्मित एक अद्भुत किला, फोर्ट विलियम। जिसका नामकरण ब्रिटिश सम्राट विलियम III के नाम पर किया गया था। यह भारतीय सेना के पूर्वी कमान का मुख्यालय है। उसकी चर्चा इसलिए भी सामयिक है, क्योंकि पिछले साल दिसम्बर में उसका नाम बदल कर, महाराष्ट्र के सिंधु-दुर्ग तट पर स्थित शिवाजी के मजबूत नौसैनिक अड्डे से प्रेरणा ले विजय दुर्ग कर दिया गया है। जो भारतीय इतिहास और राष्ट्रवाद के प्रतीक छत्रपति शिवाजी को श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित है। इसके साथ ही अपनी सेना के नायकों को सम्मान देने हेतु,  इसके भीतर की कुछ इमारतों  के नाम भी बदल दिए गए हैं ! 

किले का एक प्रवेश द्वार 

अंदरूनी भाग 

फोर्ट विलियम ! कोलकाता के दिल धर्मतल्ला से विक्टोरिया मेमोरियल की तरफ बढ़ें, तो इस महानगर का इकलौता हरियालियुक्त स्थान, मैदान शुरू हो जाता है, जो कि किले का ही एक हिस्सा है ! उसी मैदान और हुगली (गंगा) नदी के पूर्वी किनारे के बीच के इलाके पर, जो उस समय के बंगाल के गवर्नर जनरल वैरेन हेस्टिंग के नाम पर हेस्टिंग कहलाता है, वहीं खिदिरपुर रोड़ पर यह किला स्थित है। जो कोलकाता के प्रसिद्ध व विख्यात स्थानों में से एक है। 

खिदिरपुर रोड का बाहरी हिस्सा 

अंदर की भव्य ईमारत 

किला शब्द सुनते ही ऊंचाई पर बनी एक व्यापक, विशाल संरचना की तस्वीर दिमाग में बनती है जिसके सामने हर चीज बौनी नजर आती हो ! ऊँची-ऊँची, अभेद्य, मजबूत दीवारें ! उन पर हथियारों के लिए बने झरोखे ! दीर्घकाय, कीलों मढ़े दरवाजे ! उन तक पहुंचने के लिए अनगिनत सीढ़ियां ! पर फोर्ट विलियम यानी विजय दुर्ग इससे बिलकुल अलग है ! ऊंचाई की तो छोड़ें, कुछ दूरी से तो यह दिखलाई भी नहीं पड़ता, क्योंकि इसका निर्माण भूमि-तल से नीचे किया गया है। जब तक इसके पास ना पहुंचो, पता ही नहीं चलता कि यहां कोई विशाल परिसर भी बना हुआ है ! 

शस्त्र म्यूजियम 
वास्तुकला 
ब्लैक होल त्रासदी ! अब किला है तो उसका ताल्लुक युद्ध, नर संहार, विभीषिका से भी होना ही है ! इसके साथ भी एक ऐसी किवदंती जुडी हुई है। 1756 में नवाब सिराज्जुदौला ने अंग्रेजों पर हमला कर इस किले को अपने कब्जे में ले, 146 बंदियों को एक 18 x 15 (लगभग) के कमरे में बंद कर दिया था ! तीन दिन बाद जब उसे खोला गया तो सिर्फ 23 लोग ही जिंदा बचे थे ! वैसे इस घटना को इतिहासकार प्रमाणिक नहीं मानते उनके अनुसार यह मनघड़ंत घटना अंग्रेजों द्वारा प्लासी के युद्ध का कारण और उसका औचित्य बनाए रखने के लिए गढ़ी गई थी ! बात चाहे झूठी ही हो पर किले के साथ उसकी चर्चा जरूर होती है।
ब्लैक होल, स्मारक 

खूबसूरत परिसर 

विजय दुर्ग में दस हजार जवानों के रहने की सर्वसुविधा युक्त व्यवस्था है ! जिनमें स्विमिंग पूल, फायरिंग रेंज, बॉक्सिंग स्टेडियम, कई गोल्फ कोर्स, सिनेमा इत्यादि शामिल हैं। इसके छह मुख्य द्वार हैं ! आम नागरिक इजाजत पत्र लेकर किले के कुछ चुनिंदा स्थानों को देख सकते हैं ! प्रवेश नि:शुल्क है और समय सुबह 10 बजे से शाम 5.30 तक निर्धारित है। कभी समय और मौका हो तो इस ऐतिहासिक धरोहर को जरूर देखना चाहिए।

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

अमेरिका की कार्रवाई से जुड़े, यदि, तो, जैसे कुछ अंदेशे

सबसे भयावक है कि जिस मैक्सिको की सीमा से कूद-फांद कर ये लोग अमेरिका में घुसे थे, यदि उसी मैक्सिको में वापस फेंक दिए जाते तो ? पनामा के जंगलों में घटने वाली जो थोड़ी-बहुत बातें बाहर आती हैं, वे इतनी डरावनी, भयानक व हृदय-विदारक हैं कि उनका विवरण भी नहीं किया जा सकता ! वापस तो आना दूर, वहां जो नारकीयता इन पर बीतती उसका तो अंदाज भी नहीं लगाया जा सकता ! खासकर युवतियों-महिलाओं की मुसीबतों, उनके शारीरिक-मानसिक उत्पीड़न के बारे में...........!!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

पिछले दिनों अमेरिका ने अपने यहां चोरी-छुपे, अनैतिक तथा गैर कानूनी रूप से घुसने वाले कुछ ऐसे लोगों को वापस भारत भिजवा दिया, जिन्हें ना यहां की सरकार ने, ना समाज ने, ना ही उनकी लियाकत ने इजाजत दी थी ''खच्चर वाले रास्ते'' से वहां जाने की ! ना ही जहां ये जा रहे थे, वहां की सरकार ने, या समाज ने या किसी और ने न्योता था, अपने यहां आने को ! 

जैसा कि अपने देश में होता आया है, जहां कुछ लोग मौतों में भी अपने लिए अवसर तलाशने लगते हैं, इस घटना पर भी उनके बचाव में पिंकी-गुड्डू जैसे गैंग उतर आए ! उन जैसों से ही यह सवाल है कि भाई रात के अंधेरे में यदि आपके घर कोई दिवार टाप कर अंदर घुसता है, तो क्या आप उसे डिनर खिला, उपहार दे, अपनी गाड़ी में उसके घर छोड़ने जाओगे या पहले खुद छितरैल कर पुलिस के हवाले करोगे ? 

हताशा में, बेघर हुए, नकारे हुए, हाशिए पर सरका दिए गए कुछ लोग सच को झूठ और झूठ को महा झूठ बना कर, अपने को फिर स्थापित करने का मौका तलाशते रहते हैं ! भले ही हर बार बेइज्जत हो (चाटने वाली बात कुछ भदेश हो जाती है) मुंह की खानी पड़ती हो ! ऐसे मौकापरस्तों, अवसरवादियों को किनारे कर (already they are) कुछ आशंकाओं पर नजर डाल, उनके परिणाम के बारे में सोचें तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे !   

मान लीजिए, लौटाए गए ऐसे लोगों को, जिनका ना कोई रेकॉर्ड होता है, ना ही गिनती, ना ही दस्तावेज, उन्हें कैद कर सालों-साल के लिए जेल में डाल  दिया जाता  तो ? 

आप दुनिया के सबसे ताकतवर देश में, उसकी इजाजत के बगैर, अवैध रूप से घुस-पैठ करते पकड़े जाते हो ! यदि वह अपने देश में अराजकता और हिंसा फैलाने का दोष लगा गोली ही मार देता तो, पता भी नहीं चलता ! होती किसी की हिम्मत पूछने की ? वैसे भी कितने ही मार दिए जाते हों, क्या पता ! मार कर दुर्घटना का रूप दे दिया जाता हो, क्या पता ! कितने कैसी सजा भुगत रहे हों, क्या पता !

सबसे भयावक है कि जिस मैक्सिको की सीमा से कूद-फांद कर ये लोग अमेरिका में घुसे थे, यदि उसी मैक्सिको में वापस फेंक दिए जाते तो ? पनामा के जंगल जो मानव तस्करी करने वाले सबसे खतरनाक, निष्ठुर, माफियाओं के गढ़ हैं ! जहां माफियाओं द्वारा पैसे के लिए नृशंस, पाश्विक कृत्य जानवरों तक को दहला देते हैं ! वहां घटने वाली जो थोड़ी-बहुत बातें बाहर आती हैं, वे इतनी डरावनी, भयानक व हृदय-विदारक होती हैं कि उनका विवरण भी नहीं किया जा सकता ! वहां से इनका वापस आना तो दूर, वहां जिन्दा रह पाना भी मुश्किल होता ! जो नारकीयता इन पर बीतती उसका तो अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता ! खासकर युवतियों-महिलाओं की मुसीबतों, उनके शारीरिक-मानसिक उत्पीड़न के बारे में ! उनकी तो जिंदगी नर्क बन कर रह जाती !

रही एजेंटों की बात तो वे पहुंचाने के पैसे लेते हैं, लौटा कर लाने के नहीं ! सोचने की बात है जो घुस-पैठ करवाने के ही पचास-पचास लाख ले लेते हों वे उस बदतरीन परिस्थिति में क्या नहीं मांग सकते ! वैसे भी ऐसे बदनसीबों की तलाश वहां के माफिया को रहती है जो शरीर के अंगों की तस्करी करते हैं ! उनको तो एक ही शरीर से करोड़ों की आमदनी हो जाती है ! तो...................................!!

माँ-बाप को, घर के बड़ों को, परिवार को, दूसरों की शिकायत या और किसी पर दोष मढ़ने की बजाय शुक्र मनाना चाहिए कि बच्चे सशरीर घर वापस आ गए हैं ! इसके साथ ही देश के ऐसे ''गरीबों'' को सबक लेना चाहिए कि लाखों-करोड़ों खर्च कर चौबीस घंटे किसी अनहोनी के डर से आशंकित रह, 14-14 घंटे की ड्यूटी करने से कहीं बेहतर है कि बाहर जाने की लालसा त्याग, यदि देश में ही परिवार के संग रह, उन्हीं पैसों से देश में ही कुछ कर सकून की जिंदगी बसर कर ली जाए !   

बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

ललिता का बेटा

बिना किसी अपेक्षा के, अपनी अंतरात्मा की आवाज पर, निस्वार्थ भाव से किसी के लिए किया गया कोई भी कर्म जिंदगी भर आपको संतोष प्रदान करता रहता है। यह रचना काल्पनिक नहीं बल्कि सत्य पर आधारित है। श्रीमती जी शिक्षिका रह चुकी हैं। उसी दौरान उनका एक संस्मरण उन्हीं के शब्दों में ...........!   

#हिन्दी_ब्लागिंग 

अभी अपने स्कूल पहुंची ही थी कि राजेंद्र को एक छोटे से बच्चे के साथ आते देखा ! अंदाज हो गया कि बच्चा उसी का होगा ! कुछ ही देर में इसकी पुष्टि भी हो गई ! उसने बताया कि वह अपने बच्चे का दाखिला करवाने आया है ! मेरी आँखों के सामने पिछले पैंतीस साल किसी फिल्म की तरह गुजर गए ! तब मुझे साल भर ही हुआ था, छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर शहर के इस स्कुल में शिक्षिका के रूप में काम करते, जब ललिता अपने इसी बेटे राजेंद्र को मेरे पास लाई थी, स्कुल में प्रवेश के हेतु। आज वही राजेंद्र मेरे सामने खड़ा है, अपने बेटे का हाथ थामे और आज साल भर ही  रह गया है, मेरे रिटायरमेंट में ! अजब संयोग था !
काफी पुरानी बात है, उस समय कुकुरमुत्तों की तरह गली-गली स्कूली दुकानें नहीं खुली थीं। हमारा विद्यालय भी एक संस्था द्वारा संचालित था। जहां बच्चों का दाखिला उनकी योग्यता के अनुसार ही किया जाता था। यहां की सबसे अच्छी बात थी कि इस स्कूल में समाज के हर तबके के परिवार के बच्चे बिना किसी भेद-भाव के शिक्षा पाते थे। कार से आने वाले बच्चे पर भी उतना ही ध्यान दिया जाता था, जितना मेहनत-मजदूरी करने वाले के घर से आने वाले बच्चे पर। फीस के अलावा किसी भी तरह का अतिरिक्त आर्थिक भार किसी पर नहीं डाला जाता था। फीस से ही सारे खर्चे पूरे करने की कोशिश की जाती थी। इसीलिए स्टाफ की तनख्वाह कुछ कम ही थी। पर माहौल का अपनापन और शांति, यहां बने रहने के लिए काफी था। हालांकि करीब तीस साल की लम्बी अवधि में मेरे पास विभिन्न जगहों से कई नियुक्ति प्रस्ताव आए पर इस अपने परिवार जैसे माहौल को छोड़ कर जाने की कभी भी इच्छा नहीं हुई। स्कूल में कार्य करने के दौरान तरह-तरह के अनुभवों और लोगों से दो-चार होने का मौका मिलता रहता था।इसीलिए इतना लंबा समय कब गुजर गया पता ही नहीं चला।
पर इतने लम्बे कार्यकाल में सैकड़ों बच्चों को अपने सामने बड़े होते और जिंदगी में सफल होते देख खुशी और तसल्ली जरूर मिलती है। ऐसा कई बार हो चुका है कि किसी यात्रा के दौरान या बिलकुल अनजानी जगह पर अचानक कोई युवक आकर मेरे पैर छूता है और अपनी पत्नी को मेरे बारे में बतलाता है तो आँखों में ख़ुशी के आंसू आए बिना नहीं रहते। गर्व भी होता है कि मेरे पढ़ाए हुए बच्चे आज देश के साथ विदेशों में भी सफलता पूर्वक अपना जीवन यापन कर रहे हैं। खासकर उन बच्चों की सफलता को देख कर खुशी चौगुनी हो जाती है, जिन्होंने गरीबी में जन्म ले, अभावग्रस्त होते हुए भी अपने बल-बूते पर अपने जीवन को सफल बनाया।
ऐसा ही एक छात्र था, राजेन्द्र, उसकी माँ ललिता हमारे स्कूल में ही आया का काम करती थी। एक दिन वह अपने चार-पांच साल के बच्चे का पहली कक्षा में दाखिला करवा उसे मेरे पास ले कर आई और एक तरह से उसे मुझे सौंप दिया। वक्त गुजरता गया। मेरे सामने वह बच्चा, बालक और फिर युवा हो बारहवीं पास कर महाविद्यालय में दाखिल हो गया। इसी बीच ललिता को तपेदिक की बीमारी ने घेर लिया। पर उसने लाख मुसीबतों के बाद भी राजेन्द्र की पढ़ाई में रुकावट नहीं आने दी। उसकी मेहनत रंग लाई, राजेन्द्र द्वितीय श्रेणी में सनातक की परीक्षा पास कर एक जगह काम भी करने लग गया। 

वह लड़का बहुत कम बोलता था ! अपने मन की बात भी जाहिर नहीं होने देता था ! पर उसकी सदा यही इच्छा रहती थी कि जिस तरह भी हो वह अपने माँ-बाप को सदा खुश रख सके। अच्छे चरित्र के उस लडके ने अपने अभिभावकों की सेवा में कोई कसर नहीं रख छोड़ी। उससे जितना बन पड़ता था अपने माँ-बाप को हर सुख-सुविधा देने की कोशिश करता रहता था। माँ के लाख कहने पर भी अपना परिवार बनाने को वह टालता रहता था। उसका एक ही ध्येय था, माँ-बाप की ख़ुशी। ऐसा पुत्र पा वे दोनों भी धन्य हो गए थे। यही वजह थी कि वह बच्चा मुझे सदा याद रहा !

विधि का अपना विधान होता है ! इस परिवार ने कुछ समय के लिए ही जरा सा सुख देखा था कि एक दिन ललिता के पति का देहांत हो गया। इस विपदा के बाद तो बेटा अपनी माँ के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो गया। पर भगवान को कुछ और ही मंजूर था ! ललिता अपने पति का बिछोह और अपनी बिमारी का बोझ ज्यादा दिन नहीं झेल पाई और पति की मौत के साल भर के भीतर ही वह भी उसके पास चली गयी। राजेन्द्र बिल्कुल टूट सा गया। मेरे पास अक्सर आ बैठा रहता था। जितना भी और जैसे भी हो सकता था मैं उसे समझाने और उसका दुःख दूर करने की चेष्टा करती थी। समय और हम सब के समझाने पर धीरे-धीरे वह नॉर्मल हुआ। काम में मन लगाने लगा। सम्मलित प्रयास से उसकी शादी भी करवा दी गयी। 

प्रभु की कृपा और अपने माँ-बाप के आशीर्वाद उसका गृहस्थ जीवन सुखमय रहा। जब कभी भी मुझसे मिलता, तो उसकी विनम्रता, विनयशीलता मुझे अंदर तक छू जाती ! आज वही राजेन्द्र अपने बच्चे के साथ मेरे सामने खड़ा था और मुझे उस बच्चे में वर्षों पहले का राजेंद्र नजर आ रहा था, जो पहली बार ऐसे ही मुझसे मिला था ! ऊपर से उसके माँ-बाप भी उसे देखते होंगे तो उनकी आत्मा भी उसे ढेरों आशीषों से नवाजती होगी। मुझे भी उसका अपने माँ-बाप के प्रति समर्पण कभी भूलता नहीं है। 

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

वर्षों से चुगलखोरी की सजा भुगतती, एक मजार

भोलू सैय्यद तो मर गया ! पर उसको दी गई वह अनोखी सजा, उसकी जर्जरावस्था तक पहुंच चुकी मजार आज भी भुगत रही है। जो ना जाने कब से दी जा रही है और ना जाने कब तक दी जाती रहेगी। उस समय तो राजाओं ने अक्लमंदी से काम ले एक बड़ी विपदा टाल दी थी ! पर आज के राजा तो खुद भोलू सैय्यद बने हुए हैं ! इनके द्वारा लाई गईं विपदाएं कौन टालता है, यही देखना है ! उस समय तो राजा ने प्रजा को सजा दी थी, आज प्रजा राजा को उसकी करनी का दंड दे दे, तो कोई अचरज नहीं.............!     

#हिन्दी_ब्लागिंग 

ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य, प्रतिशोध जैसी भावनाऐं हर शख्स के मन में कमोबेश होती ही हैं ! बिरले संत-महात्मा ही इससे निजात पा सकते हैं ! इन्ही भावनाओं के तहत चुगली और झूठ जैसी आदतें भी आती हैं, जिनका सहारा अक्सर अपने व्यक्तिगत हित-लाभ के लिए लिया जाता रहा है ! इसके लिए किसी को कोई बड़ी सजा भी नहीं मिलती है। पर इतिहास में अपवाद स्वरूप चुगली के कारण दी गई एक अनोखी सजा का विवरण मिलता है जो दोषी के मरणोपरांत भी वर्षों से बाकायदा जारी है ! 

उपेक्षित, जर्जर इमारत 

मध्य प्रदेश के इटावा-फर्रुखाबाद मार्ग पर दतावली गांव के पास जुगराम जी का एक प्रसिद्ध मंदिर है। उसी से जरा आगे जाने पर खेतों में भोलू सैय्यद का मकबरा बना हुआ है। जो अपने नाम और खुद से जुड़ी प्रथा के कारण खासा मशहूर है। इसे चुगलखोर की मजार के नाम से जाना जाता है और प्रथा यह है कि यहां से गुजरने वाला हर शख्स इसकी कब्र पर कम से कम पांच जूते जरूर मारता है। क्योंकि यहां के लोगों में ऐसी धारणा है कि इसे जूते मार कर आरंभ की गयी यात्रा निर्विघ्न पूरी होती है। अब यह धारणा कैसे और क्यूँ बनी, कहा नहीं जा सकता। इसके बारे में अलग-अलग किंवदंतियां प्रचलित हैं !

वीरानगी 
ऐसा क्यों है इसकी कोई निश्चित प्रामाणिकता तो नहीं है पर जैसा यहां के लोग बताते हैं कि बहुत पहले इस विघ्नसंतोषी, सिरफिरे इंसान ने अपने किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए इटावा के राजा तथा अटरी के हुक्मरान को गलत अफवाहें फैला कर लड़वा दिया था। वह तो युद्ध के दौरान ही सच्चाई का पता चल गया और व्यापक जनहानि होने से बच गयी। इसे पकड़ मंगवाया गया और मौत की सजा दे दी गई। पर ऐसा नीच कृत्य करने वाले को मर कर भी चैन ना मिले इसलिये उसका मकबरा बनवा कर यह फर्मान जारी कर दिया गया कि इधर से हर गुजरने वाला इस कब्र पर पांच जूते मार कर ही आगे जायेगा। जिससे भविष्य में और कोई ऐसी घिनौनी हरकत ना करे।

दूसरों को दंडित करने की तत्परता 
इसके अलावा इसे 1129 में हुई राजा जयचंद और मुहम्मद गोरी की लड़ाई से भी जोड़ा जाता है ! कहते हैं उस समय यहां राजा सुमेर सिंह का राज था जिन्होंने इस युद्ध में राजा जयचंद का साथ दिया था ! युद्ध के दौरान उनकी खुफिया जानकारियां, वहां फकीर के रूप में रह रहे एक जासूस भोला सैय्यास ने गोरी तक पहुंचाईं थीं ! भेद खुलने पर राजा सुमेरसिंह ने उसे मृत्यु दंड दिया था, जिसमें उसकी जान जाने तक पत्थरों-जूतों से मारने की सजा थी ! उसके बाद उसकी मजार बनवा उस पर पत्थर लगवा कर उस पर चुगल खोर की मजार लिख, यह फर्मान जारी किया गया कि जो भी इधर से गुजरे वह इसको जूतों से मार कर ही आगे जाए ! तब से ऐसा ही चला आ रहा है ! पर अब बहुत कम हो चुका है !  

इंसानों के दिल-ओ-दिमाग का भी जवाब नहीं है ! मजार है ! इसलिए धीरे-धीरे लोग यहां मन्नत मांगने भी आने लगे हैं। हालांकि उसके लिए भी कब्र को फूल या चादर के बदले जूतों की पिटाई ही नसीब होती है ! इसके अलावा इधर से यात्रा करने वाले कुछ लोगों का मानना है कि यह रास्ता बाधित है इसलिए भी लोग खुद और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए मजार की जूतम-पैजार कर के ही अपनी यात्रा जारी रखते हैं ! 

भोलू सैय्यद तो मर गया, पर उसको दी गई वह अनोखी सजा, उसकी जर्जरावस्था तक पहुंच चुकी मजार आज भी भुगत रही है। जो ना जाने कब से दी जा रही है और ना जाने कब तक दी जाती रहेगी। उस समय तो राजाओं ने अक्लमंदी से काम ले एक बड़ी विपदा टाल दी थी ! पर आज के राजा तो खुद भोलू सैय्यद बने हुए हैं ! इनके द्वारा लाई गईं विपदाएं कौन टालता है, यही देखना है ! इतिहास खुद को दोहराता तो है पर कभी-कभी थोड़ी बहुत तबदीली भी तो हो ही जाती है ! उस समय तो राजा ने प्रजा को सजा दी थी, आज प्रजा राजा को उसकी करनी का दंड दे दे, तो कोई अचरज नहीं.............!     

@चित्र, संदर्भ, अंतर्जाल के सौजन्य से 

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