सफलता के सिपहसालार |
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सफल आयोजन के हकदार |
गंगा पूजन |
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
सफलता के सिपहसालार |
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सफल आयोजन के हकदार |
गंगा पूजन |
इस बात पर मंथन आरंभ हो चुका है कि क्यों ना देश के सभी नामी-गिरामी, प्रसिद्ध, श्रद्धा के केंद्रों को व्यवस्थित और सर्व सुविधायुक्त कर उन्हें और भी लोकप्रिय बनाया जाए ! इससे, पर्यटन बढ़ेगा, लोगों को घर बैठे रोजगार मिलेगा, पलायन रुकेगा, लोग समृद्ध होंगे, समाज में संपन्नता आएगी, खुशहाली बढ़ेगी, निर्धनता कम होगी। इसके साथ ही सरकार की आमदनी बढ़ेगी ! जिससे जन-सुविधाओं का और तेजी से विकास हो पाएगा ! पर सबसे बड़ी बात, अपनी संस्कृति का, अपनी परंपराओं का, अपने सनातन का भी सुचारु रूप से प्रचार-प्रसार हो सकेगा............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
देश को अपनी आर्थिक अवस्था को मजबूत करने का एक नया स्रोत मिल गया है और वह है धार्मिक पर्यटन (Religious Tourism), इसका आभास तो तब ही मिल गया था, जब माता वैष्णव देवी की यात्रा में मूलभूत सुविधाओं का इजाफा होने पर श्रद्धालुओं की संख्या कई गुना बढ़ गई थी ! पर तब की तथाकथित धर्म-निरपेक्ष सरकारों ने अपने निजी स्वार्थों के लिए, इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया था ! पर वर्षों बाद जब काशी विश्वनाथ और उज्जैन के महाकाल कॉरिडोर बने और उनको जनता का जिस तरह का प्रतिसाद मिला, वह एक नई खोज, एक नए विचार का उद्घोषक था ! राम मंदिर निर्माण ने इस विचार को और भी पुख्ता किया तथा इस महाकुंभ ने तो जैसे उस पर मोहर ही लगा एक नई राह ही प्रशस्त कर दी !
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श्रीराम मंदिर |
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विश्वनाथ मंदिर परिभ्रमण पथ |
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महाकाल मंदिर परिसर |
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जन सैलाब |
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महाकुंभ |
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वसंत |
वैसे तो वैलेंटाइन नाम के बहुत से संत हुए हैं पर यह वाकया उस वक्त के रोम के इसी नाम के एक पादरी संत वैलेंटाइन से जुड़ा हुआ है, जिन्हें जनता का अपार स्नेह तथा वहां के धर्म गुरुओं का पूर्ण समर्थन प्राप्त था। दोनों धड़ों की आपसी रंजिश को राजा के उस कानून ने और हवा दे दी ! धर्म गुरुओं को प्रजा को अपनी तरफ करने का मौका मिल गया ! उन्होंने वैलेंटाइन को आगे कर राजा क्लैडियस के आदेश की खिलाफत करनी शुरू कर दी ! वैलेंटाइन ने गुप्त रूप से सैनिकों का विवाह करवाना शुरू कर दिया। इस बात की जानकारी जब राजा को हुई तो उसने उनको मौत की सजा सुना दी ! 14 फरवरी 269 को संत वैलेंटाइन को मौत के घाट उतार दिया गया। फिर 496 ई. में पोप ग्लेसियस ने इस दिन को उस संत के नाम पर "सेंट वैलेंटाइन्स डे" घोषित कर दिया।
किला शब्द सुनते ही ऊंचाई पर बनी एक व्यापक, विशाल संरचना की तस्वीर दिमाग में बनती है ! ऊँची-ऊँची, अभेद्य, मजबूत दीवारें ! उन पर हथियारों के लिए बने झरोखे ! दीर्घकाय, कीलों मढ़े दरवाजे ! उन तक पहुंचने के लिए अनगिनत सीढ़ियां ! पर फोर्ट विलियम यानी विजय दुर्ग में ऐसा कुछ नहीं है, यह बिलकुल अलग है ! ऊंचाई की तो छोड़ें, कुछ दूरी से तो यह दिखलाई भी नहीं पड़ता, क्योंकि इसका निर्माण भूमि-तल से नीचे किया गया है.............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
कलकत्ता, अब का कोलकाता ! महलों के शहर की ख्याति के बावजूद, एक धीर-गंभीर शहर ! इसने कभी भी औरों की तरह शोर नहीं मचाया कि मेरा क़ुतुब मीनार देखो, मेरा ताजमहल देखो, मेरा गेटवे ऑफ इंडिया देखो, मेरा गोल्डन बीच देखो या मेरा चार मीनार देखो ! इसने कभी गर्वोक्ति नहीं की कि देखो, देश में पहली बार मेरे यहां यह-यह हुआ ! जबकि इसके पास ऐसा बताने को, दिखाने को कई दर्जन उदाहरण मौजूद हैं !
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विक्टोरिया मेमोरियल |
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हावड़ा ब्रिज |
आज उन्हीं में से एक की बात ! वह है 1781 के कलकत्ता में अंग्रेजों द्वारा करीब 170 एकड़ में निर्मित एक अद्भुत किला, फोर्ट विलियम। जिसका नामकरण ब्रिटिश सम्राट विलियम III के नाम पर किया गया था। यह भारतीय सेना के पूर्वी कमान का मुख्यालय है। उसकी चर्चा इसलिए भी सामयिक है, क्योंकि पिछले साल दिसम्बर में उसका नाम बदल कर, महाराष्ट्र के सिंधु-दुर्ग तट पर स्थित शिवाजी के मजबूत नौसैनिक अड्डे से प्रेरणा ले विजय दुर्ग कर दिया गया है। जो भारतीय इतिहास और राष्ट्रवाद के प्रतीक छत्रपति शिवाजी को श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित है। इसके साथ ही अपनी सेना के नायकों को सम्मान देने हेतु, इसके भीतर की कुछ इमारतों के नाम भी बदल दिए गए हैं !
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किले का एक प्रवेश द्वार |
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अंदरूनी भाग |
फोर्ट विलियम ! कोलकाता के दिल धर्मतल्ला से विक्टोरिया मेमोरियल की तरफ बढ़ें, तो इस महानगर का इकलौता हरियालियुक्त स्थान, मैदान शुरू हो जाता है, जो कि किले का ही एक हिस्सा है ! उसी मैदान और हुगली (गंगा) नदी के पूर्वी किनारे के बीच के इलाके पर, जो उस समय के बंगाल के गवर्नर जनरल वैरेन हेस्टिंग के नाम पर हेस्टिंग कहलाता है, वहीं खिदिरपुर रोड़ पर यह किला स्थित है। जो कोलकाता के प्रसिद्ध व विख्यात स्थानों में से एक है।
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खिदिरपुर रोड का बाहरी हिस्सा |
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अंदर की भव्य ईमारत |
किला शब्द सुनते ही ऊंचाई पर बनी एक व्यापक, विशाल संरचना की तस्वीर दिमाग में बनती है जिसके सामने हर चीज बौनी नजर आती हो ! ऊँची-ऊँची, अभेद्य, मजबूत दीवारें ! उन पर हथियारों के लिए बने झरोखे ! दीर्घकाय, कीलों मढ़े दरवाजे ! उन तक पहुंचने के लिए अनगिनत सीढ़ियां ! पर फोर्ट विलियम यानी विजय दुर्ग इससे बिलकुल अलग है ! ऊंचाई की तो छोड़ें, कुछ दूरी से तो यह दिखलाई भी नहीं पड़ता, क्योंकि इसका निर्माण भूमि-तल से नीचे किया गया है। जब तक इसके पास ना पहुंचो, पता ही नहीं चलता कि यहां कोई विशाल परिसर भी बना हुआ है !
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शस्त्र म्यूजियम |
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वास्तुकला |
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ब्लैक होल, स्मारक |
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खूबसूरत परिसर |
विजय दुर्ग में दस हजार जवानों के रहने की सर्वसुविधा युक्त व्यवस्था है ! जिनमें स्विमिंग पूल, फायरिंग रेंज, बॉक्सिंग स्टेडियम, कई गोल्फ कोर्स, सिनेमा इत्यादि शामिल हैं। इसके छह मुख्य द्वार हैं ! आम नागरिक इजाजत पत्र लेकर किले के कुछ चुनिंदा स्थानों को देख सकते हैं ! प्रवेश नि:शुल्क है और समय सुबह 10 बजे से शाम 5.30 तक निर्धारित है। कभी समय और मौका हो तो इस ऐतिहासिक धरोहर को जरूर देखना चाहिए।
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
सबसे भयावक है कि जिस मैक्सिको की सीमा से कूद-फांद कर ये लोग अमेरिका में घुसे थे, यदि उसी मैक्सिको में वापस फेंक दिए जाते तो ? पनामा के जंगलों में घटने वाली जो थोड़ी-बहुत बातें बाहर आती हैं, वे इतनी डरावनी, भयानक व हृदय-विदारक हैं कि उनका विवरण भी नहीं किया जा सकता ! वापस तो आना दूर, वहां जो नारकीयता इन पर बीतती उसका तो अंदाज भी नहीं लगाया जा सकता ! खासकर युवतियों-महिलाओं की मुसीबतों, उनके शारीरिक-मानसिक उत्पीड़न के बारे में...........!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
पिछले दिनों अमेरिका ने अपने यहां चोरी-छुपे, अनैतिक तथा गैर कानूनी रूप से घुसने वाले कुछ ऐसे लोगों को वापस भारत भिजवा दिया, जिन्हें ना यहां की सरकार ने, ना समाज ने, ना ही उनकी लियाकत ने इजाजत दी थी ''खच्चर वाले रास्ते'' से वहां जाने की ! ना ही जहां ये जा रहे थे, वहां की सरकार ने, या समाज ने या किसी और ने न्योता था, अपने यहां आने को !
जैसा कि अपने देश में होता आया है, जहां कुछ लोग मौतों में भी अपने लिए अवसर तलाशने लगते हैं, इस घटना पर भी उनके बचाव में पिंकी-गुड्डू जैसे गैंग उतर आए ! उन जैसों से ही यह सवाल है कि भाई रात के अंधेरे में यदि आपके घर कोई दिवार टाप कर अंदर घुसता है, तो क्या आप उसे डिनर खिला, उपहार दे, अपनी गाड़ी में उसके घर छोड़ने जाओगे या पहले खुद छितरैल कर पुलिस के हवाले करोगे ?
हताशा में, बेघर हुए, नकारे हुए, हाशिए पर सरका दिए गए कुछ लोग सच को झूठ और झूठ को महा झूठ बना कर, अपने को फिर स्थापित करने का मौका तलाशते रहते हैं ! भले ही हर बार बेइज्जत हो (चाटने वाली बात कुछ भदेश हो जाती है) मुंह की खानी पड़ती हो ! ऐसे मौकापरस्तों, अवसरवादियों को किनारे कर (already they are) कुछ आशंकाओं पर नजर डाल, उनके परिणाम के बारे में सोचें तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे !
मान लीजिए, लौटाए गए ऐसे लोगों को, जिनका ना कोई रेकॉर्ड होता है, ना ही गिनती, ना ही दस्तावेज, उन्हें कैद कर सालों-साल के लिए जेल में डाल दिया जाता तो ?
आप दुनिया के सबसे ताकतवर देश में, उसकी इजाजत के बगैर, अवैध रूप से घुस-पैठ करते पकड़े जाते हो ! यदि वह अपने देश में अराजकता और हिंसा फैलाने का दोष लगा गोली ही मार देता तो, पता भी नहीं चलता ! होती किसी की हिम्मत पूछने की ? वैसे भी कितने ही मार दिए जाते हों, क्या पता ! मार कर दुर्घटना का रूप दे दिया जाता हो, क्या पता ! कितने कैसी सजा भुगत रहे हों, क्या पता !
सबसे भयावक है कि जिस मैक्सिको की सीमा से कूद-फांद कर ये लोग अमेरिका में घुसे थे, यदि उसी मैक्सिको में वापस फेंक दिए जाते तो ? पनामा के जंगल जो मानव तस्करी करने वाले सबसे खतरनाक, निष्ठुर, माफियाओं के गढ़ हैं ! जहां माफियाओं द्वारा पैसे के लिए नृशंस, पाश्विक कृत्य जानवरों तक को दहला देते हैं ! वहां घटने वाली जो थोड़ी-बहुत बातें बाहर आती हैं, वे इतनी डरावनी, भयानक व हृदय-विदारक होती हैं कि उनका विवरण भी नहीं किया जा सकता ! वहां से इनका वापस आना तो दूर, वहां जिन्दा रह पाना भी मुश्किल होता ! जो नारकीयता इन पर बीतती उसका तो अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता ! खासकर युवतियों-महिलाओं की मुसीबतों, उनके शारीरिक-मानसिक उत्पीड़न के बारे में ! उनकी तो जिंदगी नर्क बन कर रह जाती !
रही एजेंटों की बात तो वे पहुंचाने के पैसे लेते हैं, लौटा कर लाने के नहीं ! सोचने की बात है जो घुस-पैठ करवाने के ही पचास-पचास लाख ले लेते हों वे उस बदतरीन परिस्थिति में क्या नहीं मांग सकते ! वैसे भी ऐसे बदनसीबों की तलाश वहां के माफिया को रहती है जो शरीर के अंगों की तस्करी करते हैं ! उनको तो एक ही शरीर से करोड़ों की आमदनी हो जाती है ! तो...................................!!
माँ-बाप को, घर के बड़ों को, परिवार को, दूसरों की शिकायत या और किसी पर दोष मढ़ने की बजाय शुक्र मनाना चाहिए कि बच्चे सशरीर घर वापस आ गए हैं ! इसके साथ ही देश के ऐसे ''गरीबों'' को सबक लेना चाहिए कि लाखों-करोड़ों खर्च कर चौबीस घंटे किसी अनहोनी के डर से आशंकित रह, 14-14 घंटे की ड्यूटी करने से कहीं बेहतर है कि बाहर जाने की लालसा त्याग, यदि देश में ही परिवार के संग रह, उन्हीं पैसों से देश में ही कुछ कर सकून की जिंदगी बसर कर ली जाए !
बिना किसी अपेक्षा के, अपनी अंतरात्मा की आवाज पर, निस्वार्थ भाव से किसी के लिए किया गया कोई भी कर्म जिंदगी भर आपको संतोष प्रदान करता रहता है। यह रचना काल्पनिक नहीं बल्कि सत्य पर आधारित है। श्रीमती जी शिक्षिका रह चुकी हैं। उसी दौरान उनका एक संस्मरण उन्हीं के शब्दों में ...........!
भोलू सैय्यद तो मर गया ! पर उसको दी गई वह अनोखी सजा, उसकी जर्जरावस्था तक पहुंच चुकी मजार आज भी भुगत रही है। जो ना जाने कब से दी जा रही है और ना जाने कब तक दी जाती रहेगी। उस समय तो राजाओं ने अक्लमंदी से काम ले एक बड़ी विपदा टाल दी थी ! पर आज के राजा तो खुद भोलू सैय्यद बने हुए हैं ! इनके द्वारा लाई गईं विपदाएं कौन टालता है, यही देखना है ! उस समय तो राजा ने प्रजा को सजा दी थी, आज प्रजा राजा को उसकी करनी का दंड दे दे, तो कोई अचरज नहीं.............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य, प्रतिशोध जैसी भावनाऐं हर शख्स के मन में कमोबेश होती ही हैं ! बिरले संत-महात्मा ही इससे निजात पा सकते हैं ! इन्ही भावनाओं के तहत चुगली और झूठ जैसी आदतें भी आती हैं, जिनका सहारा अक्सर अपने व्यक्तिगत हित-लाभ के लिए लिया जाता रहा है ! इसके लिए किसी को कोई बड़ी सजा भी नहीं मिलती है। पर इतिहास में अपवाद स्वरूप चुगली के कारण दी गई एक अनोखी सजा का विवरण मिलता है जो दोषी के मरणोपरांत भी वर्षों से बाकायदा जारी है !
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उपेक्षित, जर्जर इमारत |
मध्य प्रदेश के इटावा-फर्रुखाबाद मार्ग पर दतावली गांव के पास जुगराम जी का एक प्रसिद्ध मंदिर है। उसी से जरा आगे जाने पर खेतों में भोलू सैय्यद का मकबरा बना हुआ है। जो अपने नाम और खुद से जुड़ी प्रथा के कारण खासा मशहूर है। इसे चुगलखोर की मजार के नाम से जाना जाता है और प्रथा यह है कि यहां से गुजरने वाला हर शख्स इसकी कब्र पर कम से कम पांच जूते जरूर मारता है। क्योंकि यहां के लोगों में ऐसी धारणा है कि इसे जूते मार कर आरंभ की गयी यात्रा निर्विघ्न पूरी होती है। अब यह धारणा कैसे और क्यूँ बनी, कहा नहीं जा सकता। इसके बारे में अलग-अलग किंवदंतियां प्रचलित हैं !
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वीरानगी |
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दूसरों को दंडित करने की तत्परता |
इंसानों के दिल-ओ-दिमाग का भी जवाब नहीं है ! मजार है ! इसलिए धीरे-धीरे लोग यहां मन्नत मांगने भी आने लगे हैं। हालांकि उसके लिए भी कब्र को फूल या चादर के बदले जूतों की पिटाई ही नसीब होती है ! इसके अलावा इधर से यात्रा करने वाले कुछ लोगों का मानना है कि यह रास्ता बाधित है इसलिए भी लोग खुद और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए मजार की जूतम-पैजार कर के ही अपनी यात्रा जारी रखते हैं !
भोलू सैय्यद तो मर गया, पर उसको दी गई वह अनोखी सजा, उसकी जर्जरावस्था तक पहुंच चुकी मजार आज भी भुगत रही है। जो ना जाने कब से दी जा रही है और ना जाने कब तक दी जाती रहेगी। उस समय तो राजाओं ने अक्लमंदी से काम ले एक बड़ी विपदा टाल दी थी ! पर आज के राजा तो खुद भोलू सैय्यद बने हुए हैं ! इनके द्वारा लाई गईं विपदाएं कौन टालता है, यही देखना है ! इतिहास खुद को दोहराता तो है पर कभी-कभी थोड़ी बहुत तबदीली भी तो हो ही जाती है ! उस समय तो राजा ने प्रजा को सजा दी थी, आज प्रजा राजा को उसकी करनी का दंड दे दे, तो कोई अचरज नहीं.............!
@चित्र, संदर्भ, अंतर्जाल के सौजन्य से
इस महाकुंभ की अपार सफलता के पीछे उन विपक्षी नेताओं का भी बहुत बड़ा सहयोग है, जिन्होंने अपने राजनीतिक करियर को दांव पर लगा, अपने भविष्य को...