भोलू सैय्यद तो मर गया ! पर उसको दी गई वह अनोखी सजा, उसकी जर्जरावस्था तक पहुंच चुकी मजार आज भी भुगत रही है। जो ना जाने कब से दी जा रही है और ना जाने कब तक दी जाती रहेगी। उस समय तो राजाओं ने अक्लमंदी से काम ले एक बड़ी विपदा टाल दी थी ! पर आज के राजा तो खुद भोलू सैय्यद बने हुए हैं ! इनके द्वारा लाई गईं विपदाएं कौन टालता है, यही देखना है ! उस समय तो राजा ने प्रजा को सजा दी थी, आज प्रजा राजा को उसकी करनी का दंड दे दे, तो कोई अचरज नहीं.............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य, प्रतिशोध जैसी भावनाऐं हर शख्स के मन में कमोबेश होती ही हैं ! बिरले संत-महात्मा ही इससे निजात पा सकते हैं ! इन्ही भावनाओं के तहत चुगली और झूठ जैसी आदतें भी आती हैं, जिनका सहारा अक्सर अपने व्यक्तिगत हित-लाभ के लिए लिया जाता रहा है ! इसके लिए किसी को कोई बड़ी सजा भी नहीं मिलती है। पर इतिहास में अपवाद स्वरूप चुगली के कारण दी गई एक अनोखी सजा का विवरण मिलता है जो दोषी के मरणोपरांत भी वर्षों से बाकायदा जारी है !
उपेक्षित, जर्जर इमारत |
मध्य प्रदेश के इटावा-फर्रुखाबाद मार्ग पर दतावली गांव के पास जुगराम जी का एक प्रसिद्ध मंदिर है। उसी से जरा आगे जाने पर खेतों में भोलू सैय्यद का मकबरा बना हुआ है। जो अपने नाम और खुद से जुड़ी प्रथा के कारण खासा मशहूर है। इसे चुगलखोर की मजार के नाम से जाना जाता है और प्रथा यह है कि यहां से गुजरने वाला हर शख्स इसकी कब्र पर कम से कम पांच जूते जरूर मारता है। क्योंकि यहां के लोगों में ऐसी धारणा है कि इसे जूते मार कर आरंभ की गयी यात्रा निर्विघ्न पूरी होती है। अब यह धारणा कैसे और क्यूँ बनी, कहा नहीं जा सकता। इसके बारे में अलग-अलग किंवदंतियां प्रचलित हैं !
वीरानगी |
दूसरों को दंडित करने की तत्परता |
इंसानों के दिल-ओ-दिमाग का भी जवाब नहीं है ! मजार है ! इसलिए धीरे-धीरे लोग यहां मन्नत मांगने भी आने लगे हैं। हालांकि उसके लिए भी कब्र को फूल या चादर के बदले जूतों की पिटाई ही नसीब होती है ! इसके अलावा इधर से यात्रा करने वाले कुछ लोगों का मानना है कि यह रास्ता बाधित है इसलिए भी लोग खुद और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए मजार की जूतम-पैजार कर के ही अपनी यात्रा जारी रखते हैं !
भोलू सैय्यद तो मर गया, पर उसको दी गई वह अनोखी सजा, उसकी जर्जरावस्था तक पहुंच चुकी मजार आज भी भुगत रही है। जो ना जाने कब से दी जा रही है और ना जाने कब तक दी जाती रहेगी। उस समय तो राजाओं ने अक्लमंदी से काम ले एक बड़ी विपदा टाल दी थी ! पर आज के राजा तो खुद भोलू सैय्यद बने हुए हैं ! इनके द्वारा लाई गईं विपदाएं कौन टालता है, यही देखना है ! इतिहास खुद को दोहराता तो है पर कभी-कभी थोड़ी बहुत तबदीली भी तो हो ही जाती है ! उस समय तो राजा ने प्रजा को सजा दी थी, आज प्रजा राजा को उसकी करनी का दंड दे दे, तो कोई अचरज नहीं.............!
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