वैलेंटाइन दिवस, जिसे प्यार व सद्भाव की कामना स्थापित
करने वाले दिन के रूप में प्रचारित किया गया था, वह अब मुख्य रूप से प्रेमी जोड़ों के प्यार के त्योहार के
रूप में मनाया जाने लगा है। इसमें भी एक कटु सत्य यह है कि इसको मनाने वाले
अधिकांश, या कहिए मुट्ठी भर लोगों को छोड़, शायद ही कोई वैलेंटाइन को याद
भी करता होगा या उसके बारे में कुछ जानता भी होगा ! ऐसे लोगों के लिए यह
दिन सिर्फ सारी वर्जनाओं को ताक पर रखने या उन्हें तोड़ने का मौका होता है
! यही कारण है कि शुरुआत के दिनों की उस एक
दिनी फिल्म ने आज हफ्ते भर के सीरियल का रूप ले लिया है...........!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
अपने
देश के एक खास तबके को पश्चिम सदा से आकर्षित करता रहा है ! वहां की हर
अच्छी-बुरी बात को अपनाने की ललक सदा से इसवर्ग में रही है ! हो सकता है कि
सैकड़ों सालों की परवशता और उससे उपजी हीन मानसिकता या फिर वहां की चकाचौंध
इसका कारण हो, पर यह सच्चाई है ! इसी मनोवृत्ति के कारण वसंतोत्सव, करवा
चौथ, भाई दूज जैसे अपने परंपरागत मासूम त्योहारों का मजाक बना कर, उन्हें
आयातित उत्सवों के सामने कमतर साबित करने की कुत्सित कोशिश की जाती रही, पर जनमानस
का साथ ना मिलने पर उन पर आधुनिकता का मुल्लमा चढ़ा कर, बाजार की सुरसा भूख के हवाले कर दिया गया ! आज
उसका परिणाम सबके सबके सामने है !
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वसंत |
किसी
की अच्छाई अपनाने में कोई बुराई नहीं है, पर उस बात का अपने परिप्रेक्ष्य,
माहौल, परिस्थियों के अनुसार उनके औचित्य का आकलन जरूर होना चाहिए, जो कभी
नहीं किया गया ! ऐसे ही 1992 के दशक के आस-पास हमारे किशोरों,
युवक-युवतियों को निशाना बना, जिस एक-दिनी वैलेंटाइन दिवस जैसे जलसे का
बीजारोपण किया गया था, वह आज एक विशाल वृक्ष बन चुका है ! उसी की छांव में
आज का मौकापरस्त बाजार अपना तमाशा शुरू कर, युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने
में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता ! यही कारण है कि शुरुआत के दिनों की उस एक
दिनी फिल्म ने आज हफ्ते भर के सीरियल का रूप ले लिया है!
14 फरवरी, वैलेंटाइन दिवस, जिसे योजनाबद्ध तरीके से सदियों पहले रोम में समाज के लोगों के बीच आपसी प्यार व सद्भाव की कामना स्थापित करने वाले दिन के रूप में प्रचारित कर एक विशेष दिन का रूप दिया गया, क्या वह उस समय के वहां के दो शक्तिशाली गुट, राजपरिवार और धर्मगुरुओं की सत्ता लालसा का कारण तो नहीं था ! क्योंकि उस समय रोम में ये दोनों धड़े अपनी-अपनी जगह काफी शक्तिशाली थे और समाज पर दोनों का ही अच्छा-खासा दबदबा हुआ करता था !
रोम में तीसरी सदी में राजा क्लॉडियस का शासन था। एस समय किसी बिमारी से काफी लोगों के मारे जाने के कारण रोमन सेना में सैनिकों की भारी कमी हो गई ! उधर शादी के बाद ज्यादातर सैनिक सेना से विमुख हो जाते थे ! सो क्लॉडियस ने सैनिकों के परम्परागत विवाह पर रोक लगा दी। उसका मानना था कि अविवाहित पुरुष ही सेना में अच्छी तरह से अपना कर्त्तव्य निभा सकते हैं ! क्योंकि उन पर परिवार की अतिरिक्त जिम्मेदारी नहीं होती, उनका ध्यान नहीं भटकता ! यदि निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो राजा द्वारा बनाया गया वह कानून गलत भी नहीं था, उसने तो देशहित के लिए वैसा कदम उठाया था ! जिससे रोम की सेना शक्तिशाली और देश की सुरक्षा सुदृढ़ बनी रह सके !
वैसे तो वैलेंटाइन नाम के बहुत से संत हुए हैं पर यह वाकया उस वक्त के रोम के इसी नाम के एक पादरी संत वैलेंटाइन से जुड़ा हुआ है, जिन्हें जनता का अपार स्नेह तथा वहां के धर्म गुरुओं का पूर्ण समर्थन प्राप्त था। दोनों धड़ों की आपसी रंजिश को राजा के उस कानून ने और हवा दे दी ! धर्म गुरुओं को प्रजा को अपनी तरफ करने का मौका मिल गया ! उन्होंने वैलेंटाइन को आगे कर राजा क्लैडियस के आदेश की खिलाफत करनी शुरू कर दी ! वैलेंटाइन ने गुप्त रूप से सैनिकों का विवाह करवाना शुरू कर दिया। इस बात की जानकारी जब राजा को हुई तो उसने उनको मौत की सजा सुना दी ! 14 फरवरी 269 को संत वैलेंटाइन को मौत के घाट उतार दिया गया। फिर 496 ई. में पोप ग्लेसियस ने इस दिन को उस संत के नाम पर "सेंट वैलेंटाइन्स डे" घोषित कर दिया।
वैलेंटाइन दिवस, जिसे समाज के लोगों के बीच आपसी प्यार व सद्भाव की कामना स्थापित
करने वाले दिन के रूप में प्रचारित कर, संत वैलेंटाइन को दी गई
मौत की सजा वाली तारीख, 14 फरवरी के दिन से शुरू किया गया था, वह अब दुनिया
भर में अपना रूप बदल, मुख्य रूप से प्रेमी जोड़ों के प्यार के त्योहार के
रूप में मनाया जाने लगा है। इसमें भी एक कटु सत्य यह है कि इसको मनाने वाले अधिकांश, या कहिए मुट्ठी भर लोगों को छोड़, शायद ही कोई वैलेंटाइन को याद भी करता होगा या उसके बारे में कुछ जानता भी होगा ! ऐसे लोगों के लिए यह दिन सिर्फ सारी वर्जनाओं को ताक पर रखने या उन्हें तोड़ने का मौका होता है !
सेंट वैलेंटाइन का होना एक सच्चाई है ! उनको मारा गया, यह भी सच्चाई है ! कई चर्चों में उनकी निशानियां या अवशेष भी हैं, यह भी सच्चाई है ! पर जो कथाएं, किवदंतियां, दंतकथाएं उनको ले कर जनमानस में चल रही हैं, उनमें कितनी सच्चाई है, यह नहीं कहा जा सकता ! क्योंकि कुछ लोगों का मानना है कि उन्हें मृत्युदंड राजद्रोह के लिए नहीं बल्कि धर्मद्रोह के लिए दिया गया था ! तो असलियत क्या है ? कहा नहीं जा सकता ! अब जो है वो तो हइए है 😌
2 टिप्पणियां:
सुन्दर
हार्दिक आभार, सुशील जी 🙏
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