थके-हारे, निश्चित समय में सीता माता को ना खोज पाने के भय से व्याकुल, वानर समूह को उचित मार्गदर्शन दे, लंका का पता बताने वाली सिद्ध तपस्विनी "स्वयंप्रभा" को वाल्मीकि रामायण के बाद कोई विशेष महत्व नहीं मिल पाया। हो सकता है, श्री राम से इस पात्र का सीधा संबंध ना होना इस बात का कारण हो।
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शबरी की तरह ही स्वयंप्रभा भी श्री राम की प्रतीक्षा, एकांत और प्रशांत वातावरण में संयत जीवन जीते हुए कर रही थी। परन्तु ये शबरी से ज्यादा सुलझी और पहुंची हुई तपस्विनी थीं। इनका उल्लेख किष्किंधा कांड के अंत में तब आता है, जब हनुमान, अंगद, जामवंत आदि सीताजी की खोज में निकलते हैं। काफी भटकने के बाद भी सीताजी का कोई सुराग नहीं मिल पाता है। सुग्रीव द्वारा दिया गया समय भी स्माप्ति पर आ जाता है। थके-हारे दल की भूख प्यास के कारण बुरी हालत होती है। सारे जने एक जगह निढ़ाल हो बैठ जाते हैं। तभी हनुमानजी को एक अंधेरी गुफा में से भीगे पंखों वाले पक्षी बाहर आते दिखते हैं। जिससे हनुमानजी समझ जाते हैं कि गुफा के अंदर कोई जलाशय है। गुफा बिल्कुल अंधेरी और बहुत ही डरावनी थी। सारे जने एक दूसरे का हाथ पकड़ कर अंदर प्रविष्ट होते हैं। वहां हाथ को हाथ नहीं सूझता था। बहुत दूर चलने पर अचानक प्रकाश दिखाई पड़ता है। वे सब अपने आप को एक बहुत रमणीय, बिल्कुल स्वर्ग जैसी जगह में पाते हैं। पूरा समूह आश्चर्य चकित सा खड़ा रह जाता है। चारों ओर फैली हरियाली, फलों से लदे वृक्ष, ठंडे पानी के सोते, हल्की ब्यार सब की थकान दूर कर देती है। इतने में सामने से प्रकाश में लिपटी, एक धीर-गंभीर साध्वी, आती दिखाई पड़ती है। जो वल्कल, जटा आदि धारण करने के बावजूद आध्यात्मिक आभा से आप्लावित लगती है। हनुमानजी आगे बढ़ कर प्रणाम कर अपने आने का अभिप्राय बतलाते हैं, और उस रहस्य-लोक के बारे में जानने की अपनी जिज्ञासा भी नहीं छिपा पाते हैं। साध्वी, जो कि स्वयंप्रभा हैं, करुणा से मंजुल स्वर में सबका स्वागत करती हैं तथा वहां उपलब्ध सामग्री से अपनी भूख-प्यास शांत करने को कहती हैं। उसके बाद शांत चित्त से बैठ कर वह सारी बात बताती हैं।
यह सारा उपवन देवताओं के अभियंता मय ने बनाया था। इसके पूर्ण होने पर मय ने इसे देवराज इंद्र को समर्पित कर दिया। उनके कहने पर, इसके बदले कुछ लेने के लिए जब मय ने अपनी प्रेयसी हेमा से विवाह की बात कही तो देवराज क्रुद्ध हो गये, क्योंकि हेमा एक देव-कन्या थी और मय एक दानव। इंद्र ने मय को निष्कासित कर दिया, पर उपवन की देख-भाल का भार हेमा को सौंप दिया। हेमा के बाद इसकी जिम्मेदारी स्वयंप्रभा पर आ गयी।
इतना बताने के बाद, उनके वानर समूह के जंगलों में भटकने का कारण पूछने पर हनुमानजी उन्हें सारी राम कथा सुनाने के साथ-साथ समय अवधी की बात भी बताते हैं कि यदि एक माह स्माप्त होने के पहले सीता माता का पता नहीं मिला तो हम सब की मृत्यु निश्चित है। स्वयंप्रभा उन्हें कहती हैं कि घबड़ायें नहीं, आप सब अपने गंतव्य तक पहुंच गये हैं। इतना कह कर वे सबको अपनी आंखें बंद करने को कहती हैं। अगले पल ही सब अपने-आप को सागर तट पर पाते हैं। स्वयंप्रभा सीताजी के लंका में होने की बात बता वापस अपनी गुफा में चली जाती हैं। आगे की कथा तो जगजाहिर है।
यह सारा प्रसंग अपने-आप में रोचक तो है ही, साथ ही साथ कहानी का महत्वपूर्ण मोड़ भी साबित होता है। पर पता नहीं, स्वयंप्रभा जैसा इतना महत्वपूर्ण पात्र उपेक्षित क्यूं रह गया।
8 टिप्पणियां:
आपको दीपावली की हार्दिक बधाईयाँ और शुभकामनाये !
जी हाँ रामायण में स्वयंप्रभा नाम्नी पात्र बहुत ही रहस्यमय है ! आपना अच्छा विवरण दिया !
दीपावली की शुभकामनाएं !
बढ़िया विवरण दिया...
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
स्वयंप्रभा को स्मृति में लाने के लिये आभार ।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ।
nai jankari ke liye shukriyaa.
diwaalee kee shubhkamanaye.
बढ़िया विवरण | आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
दीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
अच्छा, यह तो मुझे भूल ही गया था - स्वयंप्रभा प्रकरण।
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