सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

आस्था ने चमत्कार दिखाया

आज के मशीनी युग में आस्था, विश्वास, चमत्कार जैसी बातें दकियानुसी लगती हैं। पर कभी-कभी कुछ ऐसा हो जाता है, जिसे आस्थावान चमत्कार, पर भोतिकवादी संयोग कह कर संतुष्ट हो जाते हैं। बिना लाग-लपेट के एक सच्ची घटना बता रहा हूं। अब इसे चाहे संयोग माने चाहे आस्था का चमत्कार।
राजस्थान के मेंहदीपुर जिले में हनुमानजी के बाल रूप की पूजा “बालाजी महाराज” के रूप में होती है। मान्यता है कि दुनिया भर की अलाओं-बलाओं का निवारण यहां होता है। वह भी स्वयं बालाजी द्वारा। किसी पण्डे, पुजारी या झाड़-फूंक करनेवाले की कोई भूमिका यहां नहीं होती। हजारों मरीज ठीक हो कर जाते हैं यहां से, जिनमें डाक्टर, इंजिनियर, वकील, सरकारी अफसर, अमीर-गरीब सभी शामिल हैं।
यहां बिना टिप्पणी, एक घटना का जिक्र करना चाहता हूं। बात सात-आठ साल पहले दिल्ली की है। मेरी एक दूर के रिश्ते की मामीजी हैं, वह फरिदाबाद में रहती हैं। उनकी हनुमानजी में अटूट श्रद्धा है। बहुत कम लोगों में ऐसी आस्था देखी है मैंने। एक बार उन्हीं के जोर देने के कारण मुझे, मेंहदीपुर जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। मैं, मेरे दो कजिन, मामीजी तथा उनका पुत्र, पांचो जने मंदिर की संगत के साथ, हनुमानजी के दर्शन करने वहां गये थे। वहां का दस्तूर है कि मंदिर पहुंचते ही सबसे पहले बालाजी की मुर्ती के सामने, जिसे दरबार कहते हैं, अपनी हाजिरी लगवानी होती है। उसी तरह लौटते समय उनकी इजाजत लेने का नियम है। इजाजत लेते समय प्रभू से प्रार्थना करनी पड़ती है कि वे अपना गण हमारे साथ भेजें ,जिससे हम सहीसलामत अपने घर वापस पहुंच सकें। हो सकता है कि वर्षों पहले जब वहां घना जंगल हुआ करता था, तो ऐसी प्रार्थना , यत्रियों को अतिरिक्त मनोबल प्रदान करती हो। अब तो सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं। बसों, गाड़ियों की भरमार है। फ़िर भी प्रथा चली आ रही है।
पूजा-अर्चना कर दूसरे दिन दोपहर बाद साढे तीन बजे हमने दिल्ली के लिए बस पकड़ी। जिसने करीब दस बजे हमें दिल्ली के, धौला कुआं बस टर्मिनल पर उतार दिया। यहां से हमें जनकपुरी जो मुश्किल से आठ-दस किमी है, जाना था और मामीजी को फरिदाबाद, जो दिल्ली यू.पी. के बार्डर पर स्थित है, जहां जाने के लिए उस समय उन्हें तीन बार वाहन बदलना पड़ना था। धौला कूआं से आश्रम, आश्रम से फरिदाबाद मोड़ तथा वहां से उनके घर तक। क्योंकि उस समय फरिदाबाद के लिए अंतिम बस जा चुकी थी। आम समय में ही उतनी दूर जाने में ड़ेढ एक घंटा लग जाता है। रात गहराते देख हमने बहुत जोर लगाया कि रात आप जनकपुरी में ही रुक जाएं, पर उन्होंने हमारी एक ना सुनी। उसी समय उन्हें पहले पड़ाव की बस मिली और वे दोनो मां बेटा उसमें चले गये। हमे करीब आधे घंटे के बाद बस मिली। हम तकरीबन सवा ग्यारह बजे घर पहुंच गये। अभी बैठे कुछ ही देर हुए थी कि फरिदाबद से मामीजी के घर पहुंचने का फोन आ गया। इतनी जल्दि उनके पहुंचने का सुन जहां मन चिंता मुक्त हुआ वहीं आश्चर्य से ही भर गया।
सुबह उन्होंने विस्तार से जो जानकारी दी वह मैं संक्षेप में आप को बता रहा हूं। धौला कूआं से जब वह आश्रम वाले स्टाप पर उतरीं तो वहां बिल्कुल सुनसान था। फरिदाबाद की तरफ़ जानेवाली बस के स्टाप पर भी कोई नहीं था। आंच मिनट बाद पता नहीं कहां से एक लड़का आया, हमें वहां खड़े देख, उसके पूछने पर, जब हमने अपनी बात बताई तो उसने कहा कि फरिदाबाद की बस तो जा चुकी है पर आप घबड़ायें नहीं कुछ ना कुछ इंतजाम हो जायेगा। थोड़ी देर बाद पता नहीं कहां से एक थ्री व्हिलर लेकर आया और बोला कि वैसे तो इन वाहनों का बार्डर पार करना मना है, पर आपको यह फरिदाबाद मोड़ तक छोड़ आयेगा। इसके पहले की उसे हम धन्यवाद के दो शब्द कह पाते, वह अंधेरे में गायब हो गया। रात को मन थोड़ा घबरा रहा था, पर मुझे अपने बालाजी पर पूर्ण विश्वास था, सो तनिक भी डर नहीं लग रहा था। स्कूटर ने जब हमें मोड़ पर उतारा, ग्यारह के ऊपर बज चुके थे और वहां भी सन्नाटा छाया हुआ था। उसी समय वहां से एक टेम्पो निकल रहा था, हमें खड़े देख हमारा गंत्व्य पूछ बोला, कि उधर तो नहीं जा रहा हूं, पर इतनी रात में आप परेशान होंगी सो आपको घर पहुंचा कर चला जाऊंगा। इसतरह बालाजी की कृपा से मैं आपलोगों के साथ-साथ ही घर पहुंच गयी।
अब सोचता हूं कि क्या वह सब संयोग था? उस भद्र महिला का कैसा अटूट विश्वास था, जिसने उनका मनोबल बनाये रखा? या सचमुच अदृष्य शक्तियां होती हैं जो अपने पर पूरी आस्था रखनेवालों का सदा साथ देती हैं। क्या कोई जवाब है इसका?

5 टिप्‍पणियां:

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

उन अपरिचित मददगारों की सहज मानवीय सहायता के लिये उनकी प्रशंसा करने के स्थान पर आप सारे प्रकरण को रहस्य की चाशनी में लपेट कर अँधविश्वासों को मज़बूत करने का ही काम कर रहे हैं।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अमर ज्योतिजी,
सोच है अपनी-अपनी। मैनें एक घटना सामने रखी। आप उसे अंधविश्वास का नाम देने पर ऊतारु हो गये। अलीगढ़ में हो सकता है, इतनी रात गये लोग दूसरों की सहायता के लिए घूमते हों। दिल्ली में तो यह अनहोनी बात है। एक इंसान के विश्वास के पुख्ता होने की बात है। ये तो भुक्तभोगी और हम सब भी मानते हैं कि गदा उठाये खुद तो हनुमानजी आने से रहे।

राज भाटिय़ा ने कहा…

शर्मा जी हो सकता है, कुछ ऎसा है जरुर, वेसे तो मै भी ऎसी बातो पर विशवास नही करता, लेकिन कभी कभी ऎसा महसुस किया है कोई अद्दश्य शक्ति है जो कई बार हमारी मदद कर देती है,
धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

1. It is ture that in this Kalyug "HANUMAN JI" helps those people who have believe in him. He will also teach a lession to persons who said this expereince as 'ANDHAVISWASH'. You are rich that you go such expereince in your life.

Ajit Singh, Faridabad

Unknown ने कहा…

astha ka hi dusara naaam vishvash hai, yah andhvishvash nahi ho sakta yah ghote wle ki kripa hi hai



RAJENDRA SHARMA BARAN RAJASTHAN

विशिष्ट पोस्ट

रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front

सैम  मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...