रावण ने धैर्य नहीं खोया। उस समय यदि वह चाहता तो अपने इन्द्र को जीतनेवाले बेटे तथा महाबली भाई कुम्भकर्ण के साथ अपनी दिग्विजयी सेना को भेज दोनो भाईयों को मरवा सकता था। हालांकि राम-लक्ष्मण ने खर दूषण का वध किया था, पर उनकी सेना और रावण की सेना में जमीन आसमान का फर्क था। जब हनुमानजी तथा और वानर वीरों के रहते युद्ध के दौरान इन दोनों पर घोर संकट आ सकता था तो उस समय तो दोनो भाई अकेले ही थे। पर रावण यह भी जानता था कि ये दोनो भाई साधारण मानव नहीं हैं और युद्ध की स्थिति में लंका को और उसके निवासियों को भी खतरा था। इसलिए रावण ने युद्ध टालने के लिए सीता हरण की योजना बनाई। उसका विश्वास था कि सीताजी के वियोग में यदि राम प्राण त्याग देते हैं तो लक्ष्मण का जिंदा रहना भी नामुमकिन होगा। सीताजी के हरण के पश्चात उसने उन्हें अपने महल में ना रख, अशोक वाटिका में महिला निरिक्षकों की निगरानी में ही रखा और कभी भी उनके पास अकेला बात करने नहीं गया।
वैसे भी सीता हरण उसकी मजबूरी थी। एक विश्व विजेता की बहन का सरेआम अपमान हुआ और वह चुप्पी साध कर बैठा रहता तो क्या इज्जत रह जाती उसकी। इसके अलावा सिर्फ दो मानवों को मारने के लिए यदि वह अपनी सेना भेजता तो यह भी किसी तरह उसकी ख्याति के लायक बात नहीं थी। यह काम भी उसके अपमान का सबब बनता।
पर रावण की योजना उस समय विफल हो गयी जब हनुमानजी ने राम-सुग्रीव की मैत्री का गठबंधन करवा दिया। उसके बाद अलंघ्य सागर ने भी राम की सेना को मार्ग दे दिया। फिर भी वह महान योद्धा विचलित नहीं हुआ। एक-एक कर अपने प्रियजनों की मृत्यु पर भी उसने बदले की भावना के वश सीताजी को क्षति पहुंचाने का उपक्रम नहीं किया।
विभिन्न कथाकारों ने रावण को कामी, क्रोधी, दंभी तथा निरंकुश शासक निरुपित किया है। पर ध्यान देने की बात है कि जिसमें इतने अवगुण हों वह क्या कभी देवताओं द्वारा पोषित उनके कोष के रक्षक कुबेर को परास्त कर अपनी लंका वापस ले सकता था? शिवजी के महाबली गण नंदी को परास्त करना क्या किसी कामी-क्रोधी का काम हो सकता था? शिवजी को प्रसन्न कर उनका चंद्रहास खड़्ग लेना क्या किसी अधर्मी के वश की बात थी? देवासुर संग्राम में जब मेघनाद ने इंद्र को पराजित किया, उस समय युद्ध में भगवान विष्णु और शिवजी ने भी भाग लिया था। वे भी क्या रावण को रोक पाये थे? ऐसा महाबली क्या भोग विलास में लिप्त रहनेवाला हो सकता है?
युद्ध के दौरान दोनों पक्षों ने शक्ति की पूजा की थी। मां ने दोनों को दर्शन दिये थे। पर राम को वरदान मिला, विजयी भव का, और रावण को कल्याण हो। रावण का कल्याण असुर योनी से मुक्ति में ही था। सबसे बड़ी बात यदि रावण बुराइयों का पुतला होता तो क्या सर्वज्ञ साक्षात विष्णु के अवतार, अपने ही अंश लक्ष्मण को रावण से ज्ञान लेने भेजते?
हमारे ऋषि-मुनिओं ने सदा अहंकार से दूर रहने की चेतावनी दी है। यह किसी भी रूप में हो सकता है, शक्ति का, रूप का, धन का यहां तक की भक्ति का भी। ऐसा जब-जब हुआ है, उसका फल अभिमानी को भुगतना पड़ा है। फिर वह चाहे इंद्र हो, नारद हो, कोई महर्षि हो या रावण हो। पर शायद रावण के साथ ही ऐसा हुआ है कि प्रायश्चित के बावजूद, सदियां गुजर जाने के बाद भी बदनामी ने उसका पीछा नहीं छोड़ा है। आज भी उसे बुराईयों का पर्याय माना जाता है।
पर क्या यह उचित है ???
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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10 टिप्पणियां:
main aap se kafi had tak sehmat hoon aur aap ki himmat ki daad deta hoon..........
बडे भाई बहुत ही सुन्दर समसामयिक पोस्ट है, मैं आज आपके ब्लाग में पहली बार आया, विचारोत्तेजक चिंतन प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद ।
छत्तीसगढ के ब्लागर्स
आपके इस पोस्ट से संबंधित एक मेरा एक आलेख आज के सांध्य दैनिक छत्तीसगढ में भी है जिसे मैं कल अपने ब्लाग पर प्रस्तुत कर रहा हूं, समय मिले तो एक नजर एवं आर्शिवाद चाहूंगा ।
आरंभ
आप ने एक दम सही लिखा है, मेरे पिता जी ने भी एक बार यही कहा था मुझे, हमारॊ धार्मिक पुस्तको को ध्यान से पढॊ तो बहुत ही ग्यान की बाते पता चलती है.
धन्यवाद
विजय दशमी पर्व की बहुत बहुत शुभ कामनाऍ.
bahut sundar. nai nai bate pataa chalee.
कथुरियाजी धन्यवाद।
पर मेरा विनम्र विचार है कि इसमें हिम्मत की नहीं धैर्य की ज्यादा जरूरत है। क्योंकि हमारे ग्रन्थों में जीवन से जुड़ी हर बात का विवरण मौजूद है। सिर्फ गहरे पानी पैठने की जरूरत है।
राम को यदि हम ईश्वर न मान कर तथ्यों पर जायें तो राम से अधिक रावण श्रेष्ठ लगेगा
लेकिन रावण गुणों मे श्रेष्ठ होते हुये भी हार गया था और हारे हुये का गुणगान कौन करेगा?
राम और रावण युद्ध दो सभ्यताओं का युद्ध था, जो सभ्यता हार गई वो बुरी कहलाई जाती है वरना राक्षस शब्द का अर्थ बुरा तो कतई नहीं है.
आप जिस रावण की बात कर रहे हैं वह तो राम के हाथों मारा गया था. आज के रावण की बात कीजिए जो हर आदमी में जिन्दा है.
िवजयदशमी पवॆ की शुभकामनाएं ।
अच्छा िलखा है आपने
दशहरा पर मैने अपने ब्लाग पर एक िचंतनपरक आलेख िलखा है । उसके बारे में आपकी राय मेरे िलए महत्वपूणॆ होगी ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
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